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नई दिल्ली: एक नए अध्ययन से पता चला है कि भारत में गरीब परिवारों में जन्म लेने वाले बच्चों की तुलना में अमीर घरों में जन्म लेने वाले बच्चों में तीन खुराक वाली टीका, डिप्थीरिया, पेट्यूसिस (खांसी) और टेटनस (डीपीटी 3) के टीका प्राप्त की संभावना 2.26 गुना अधिक होती है।

‘एक्स्प्लरैशन ऑफ इनिक्वालिटी: चाइल्ड्हुड इम्यूनाइजेशन’ शीर्षक नाम का अध्ययन विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ओर से एक जुलाई, 2018 को द्वारा शुरु किया गया था। इसका उद्देश्य, यह देखना था कि कैसे सामाजिक आर्थिक, जनसांख्यिकीय और भौगोलिक कारक बच्चे में टीका प्राप्त करने की संभावना के प्रभावित करते हैं।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 (एनएफएचएस) के अनुसार, 2015-16 में, 12-23 महीने के 78.4 फीसदी भारतीय बच्चों को डीपीटी-3 टीका प्राप्त हुआ था। एक दशक पहले ये आंकड़े 55.3 फीसदी थे। डब्ल्यूएचओ अध्ययन ने एनएफएचएस से डेटा का विश्लेषण किया और पाया कि जन्म का अनुक्रम, मां की शिक्षा और घरेलू आर्थिक स्थिति बच्चे के टीकाकरण के मौके को निर्धारित करने में सबसे प्रभावशाली कारक हैं। लिंग से संबंधित असमानता अस्तित्व में नहीं थी, जैसा कि नर और मादा बच्चों में समान स्तर का कवरेज (79 फीसदी) देखा गया।

डब्ल्यूएचओ शोधकर्ताओं ने उन 10 देशों के आंकड़ों का विश्लेषण किया, जिन्हें टीकाकरण प्राथमिकता वाले देशों के रूप में वर्गीकृत किया गया है। वे देश हैं अफगानिस्तान, चाड, कांगो का लोकतांत्रिक गणराज्य, इथियोपिया, भारत, इंडोनेशिया, केन्या, नाइजीरिया, पाकिस्तान और युगांडा।

‘ग्लोबल एलाएंस फॉर वैक्सीन एंड इम्यूनाइजेशन’ (जीएवीआई) ने इन देशों को बचपन के टीकाकरण के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता में रखा है।

ये निष्कर्ष महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि अक्टूबर 2017 में, भारत ने ‘तीव्र मिशन इंद्रधनुष’ नाम का एक अभियान शुरू किया है, जिसका उद्देश्य दिसंबर 2018 तक चुनिंदा जिलों और शहरों में टीकाकरण कवरेज को 90 फीसदी से ज्यादा तक लेकर जाना है। दिसंबर 2014 में शुरू किए गए पहले ‘मिशन इंद्रधनुष’ के तहत 2020 तक टीकाकरण कवरेज कम से कम 90 फीसदी तक हासिल किया जाना था।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य आंकड़ों के मुताबिक, 2015-16 में, 12-23 महीने के 62 फीसदी बच्चों को मूलभूत टीकाकरण प्राप्त हुआ था, जो 2005-06 में एक दशक पहले 44 फीसदी था, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 13 फरवरी, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।

शिक्षित माताओं के बच्चों में टीकाकरण की सुनिश्चितता ज्यादा

जैसा कि ऊपर की टेबल में देखा जा सकता है, जैसे-जैसे मां की शिक्षा का स्तर बढ़ता है, एक बच्चे में टीकाकरण की संभावना बढ़ जाती है।

सार्वजनिक स्वास्थ्य चिकित्सक और सामाजिक नवप्रवर्तन चंद्रकांत लहेरिया ने इंडियास्पेंड को बताया, "हमें यह समझना चाहिए कि प्रत्येक स्वास्थ्य प्रणाली की अपनी असमानताएं हैं। एक बार स्वास्थ्य कार्यक्रम 80-90 फीसदी कवरेज तक पहुंचने के बाद, चुनौती अंतिम-मील उपयोगकर्ताओं तक पहुंचना है, जो सबसे गरीब और सबसे कमजोर हैं। यह वह जगह है जहां ऐसी आबादी को लक्षित करने वाले विशिष्ट हस्तक्षेपों को डिजाइन करने के लिए डेटा की भूमिका आती है।"

भारत में, प्रति 1,000 पुरुषों पर ऐसी 1,403 महिलाएं हैं, जिन्होंने कभी भी शैक्षिक संस्थान में हिस्सा नहीं लिया है। अनुपात 30-34 वर्ष आयु वर्ग तक तेजी से बढ़ता है, जहां यह 2,009 है - जिसका अर्थ है हर पुरुषों पर जिसने कभी शैक्षणिक संस्थान में भाग नहीं लिया है, महिलाओं की संख्या दो है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 28 नवंबर, 2015 की रिपोर्ट में बताया है।

लहेरिया कहते हैं, "अधिक शिक्षित और साक्षर मां समाचार पत्र पढ़ सकती हैं, टीवी देख सकती हैं और विज्ञापनों को समझ सकती हैं। यदि इन माध्यमों का उपयोग करके कोई टीकाकरण / स्वास्थ्य कार्यक्रम शुरू किया जाता है, तो शिक्षित मां उनके बारे में जागरूक हो जाती हैं और उनके बच्चे का टीकाकरण होता है।"

जो बच्चे आर्थिक रूप से समृद्ध घरों में पैदा होते हैं !

धन के सबसे अमीर क्विंटाइल से संबंधित बच्चे की सबसे गरीब क्विंटाइल से बच्चे की तुलना में 2.26 गुना अधिक टीकाकरण की संभावना है, जो आर्थिक स्थिति और टीकाकरण के बीच का संकेत दर्शाता है।

एक क्विंटाइल पांच बराबर समूहों में से एक है, जिसमें एक आबादी को किसी विशेष चर के मूल्यों के वितरण के अनुसार विभाजित किया जा सकता है, इस मामले में धन है।

अमीर परिवारों में पैदा हुए बच्चे टीकाकरण की संभावना अधिक

हालांकि, भारत में समृद्ध परिवारों के बीच कुल टीकाकरण में कमी आई है। जनसंख्या के सबसे गरीब पांचवें हिस्से में टीकाकरण 29 फीसदी बढ़ गया है, जबकि सबसे अमीर आबादी के पांचवें हिस्से के बीच पूर्ण टीकाकरण थोड़ा गिर गया, जैसा कि 14 जनवरी, 2018 को Scroll.in द्वारा किए गए एनएफएचएस 2015-16 डेटा के विश्लेषण से पता चलता है।

वैश्विक स्वास्थ्य और नीति शोधकर्ता अनंत भान कहते हैं, "अधिक शिक्षित माताओं और आर्थिक रूप से बेहतर उप-समूहों में बढ़ा हुआ टीकाकरण कवरेज इन उप-समूहों में टीकाकरण कार्यक्रम अनुपालन की आवश्यकता के बारे में जानकारी की बेहतर पहुंच और समझ का संकेत है। इससे इस बात को बल मिलता है कि राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम को शैक्षणिक और वित्तीय रूप से वंचित उप-समूहों तक संचार करने और पहुंचने में अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। इन उप-समूहों में टीकाकरण अनुपालन में बाधाओं को दूर करने के लिए कुछ नया करने की भी जरूरत है। "

पहले पैदा हुए बच्चे में टीकाकरण की संभावना अधिक

माता-पिता अपने बड़े बच्चों, विशेष रूप से पहले पैदा हुए बच्चे के स्वास्थ्य और टीकाकरण आवश्यकताओं के बारे में अधिक सतर्क हैं। भान कहते हैं, "लेकिन परिवार के आकार का प्रभाव पड़ता है। बड़े परिवारों में, छोटे बच्चों के लिए टीकाकरण कार्यक्रम माता-पिता की प्राथमिकता सूची में कम हो सकता है। "

लहेरिया ने इस उपेक्षा के लिए स्वास्थ्य प्रणाली को जिम्मेदार ठहराया है। " अनुभव के आधार पर, मैं कहूंगा कि अगर पहला बच्चा है, तो मां अधिक उत्साहित होती हैं और बच्चे को टीकाकरण करने के लिए हमारे स्वास्थ्य तंत्र की विफल गुणवत्ता का सामना करने के लिए तैयार दिखती हैं। हालांकि, बाद के बच्चों के साथ, वह लंबी कतारों में खड़े होने के लिए इच्छुक नहीं होती हैं फिर भी उन्हें टीका दिलाने के लिए कई घंटे बिताती है। "

‘इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल एथिक्स’ में 2017 के पेपर के अनुसार स्वास्थ्य प्रणाली में विश्वास की कमी और टीकाकरण के बारे में गलत जानकारी परिवारों को अपने बच्चों को टीकाकरण से रोक सकती है।

दस भारतीयों में से सात से अधिक बीमा द्वारा कवर नहीं किए जाते हैं । 50 देशों के निम्न मध्यम आय वर्ग में भारतीय छठे सबसे बड़े पॉकेट स्वास्थ्य व्ययकर्ता हैं , जैसा कि इंडियास्पेंड ने मई 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

2011-2 में, आउट-ऑफ-पॉकेट (ओओपी) स्वास्थ्य खर्च ने 55 मिलियन भारतीयों ( दक्षिण कोरिया, स्पेन या केन्या की आबादी के मुकाबले अधिक ) को गरीबी में धकेला है और नए अध्ययन के मुताबिक और इनमें से, 38 मिलियन (69 फीसदी) अकेले दवाओं पर किए गए खर्च की वह से गरीब बने, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 19 जुलाई, 2018 की रिपोर्ट से पता चलता है।

नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश और दादर और नगर हवेली का प्रदर्शन सबसे बदतर

राज्यों में, नागालैंड ने टीकाकरण पर सबसे खराब प्रदर्शन किया है। 2015-16 में 35 फीसदी बच्चों को टीका लगाया गया, जैसा कि 13 फरवरी, 2018 को इंडियास्पेंड ने द्वारा इस रिपोर्ट में एनएफएचएस आंकड़ों को उद्धृत किया गया है। आठ उत्तर-पूर्वी राज्यों में से पांच के साथ, राजस्थान (55 फीसदी), मध्य प्रदेश (54 फीसदी), उत्तर प्रदेश (51 फीसदी), और गुजरात (50 फीसदी) सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले 10 राज्यों में से थे।

डब्ल्यूएचओ अध्ययन ने खराब प्रदर्शन के कारण नागालैंड को संदर्भ के रूप में लिया है। यह पाया गया कि चंडीगढ़ के बच्चे डीटीपी-3 टीका प्राप्त करने के लिए नागालैंड के लोगों की तुलना में 14.56 गुना अधिक संभावना रखते हैं।

चंडीगढ़ के बच्चों में टीकाकरण की संभावना अधिक

(साहा, दिल्ली के ‘पॉलिसी एंड डेवलप्मेंट एडवाइजरी ग्रूप’ में मीडिया और नीति संचार परामर्शदाता हैं। वह एक स्वतंत्र लेखक भी हैं और ससेक्स विश्वविद्यालय केइंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीजसेजेंडर एंड डिवलपमेंटमें एमए हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 25 जुलाई, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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