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मुंबई: गोवा और केरल में शिशु मृत्यु दर यूरोपीय और मध्य एशिया औसत के समान हैं, जबकि मध्य प्रदेश और ओडिशा में अफगानिस्तान और हैती की दरें प्रतिबिंबबित होती हैं। ये वे देश है जिनका जीडीपी भारत के मुकाबले काफी कम (क्रमश: 20.8 बिलियन डॉलर और 8.4 बिलियन डॉलर) है।

इस तरह के मानव विकास असमानताओं को देखते हुए, सरकार की वैचारिक संस्था, नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने कहा है कि मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) पर भारत की रैंकिंग को बढ़ाने के लिए, जीवन स्तर में सुधार लाना होगा। हम बता दें कि पिछले 10 वर्षों में भारत मानव विकास सूचकांक में तीन स्थान नीचे आया है।

हालांकि देश के कुछ हिस्सों में सुधार हो रहा है, लेकिन कई दूसरे हिस्से पूरी तरह से पिछड़े हुए हैं। 23 जुलाई, 2018 को दिल्ली में केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (सीपीएसई) द्वारा जिलों के विकास पर एक सत्र को संबोधित करते हुए कांत ने कहा, “ यदि ऐसा जारी रहता है तो भारत लंबे समय तक आगे नहीं बढ़ सकता है।"

एनडीटीवी समाचार रिपोर्ट के मुताबिक, "जब तक हम महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सुधार नहीं करते हैं, तब तक इनमें से कुछ राज्यों में वृद्धि की गति बहुत धीमी होगी।"

सबसे हालिया विकास संकेतकों के आंकड़ों पर इंडियास्पेंड के विश्लेषण से पता चलता है कि विकास की दर भारत के राज्यों में व्यापक रूप से भिन्न है। विकास पर एक असमान राष्ट्र की तस्वीर बनती है। जबकि सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) डेटा पूरे विकसित देशों (जैसे महाराष्ट्र और फिनलैंड) के बराबर है, अन्य 84 गुना से अधिक छोटे हैं। इसी प्रकार, गुजरात जैसे राज्यों में प्राथमिक स्कूल छोड़ने वाले बच्चों का अनुपात राष्ट्रीय औसत (0.83 बनाम 4.34) से काफी कम है, जबकि अन्य का पांच गुना अधिक है, असम का 15.46 है।

भारत हाल ही में 2016 की रैंकिंग में एचडीआई पर 188 देशों में से 131 स्थान पर है, जो ब्रिक्स देशों में सबसे कम है।

एचडीआई मानव विकास में महत्वपूर्ण आयामों को मापता है। एक लंबा और स्वस्थ जीवन, जागरूक और सभ्य जीवन स्तर मानक हैं। सूचकांक का उपयोग राष्ट्रीय नीति विकल्पों पर सवाल उठाने के लिए किया जा सकता है और यह आकलन किया जा सकता है कि समान सकल राष्ट्रीय आय वाले देशों में विभिन्न मानव विकास परिणामों की तुलना में हम कहां हैं।

शिशु मृत्यु दर से स्वास्थ्य देखभाल असमानता उजागर

अपने पहले जन्मदिन तक पहुंचने से पहले मरने वाले बच्चों की दर मध्य प्रदेश में 54, असम में 54 और ओडिशा में 51, गोवा में 9, मणिपुर में 10 और केरल 12 प्रतिशत है, जो पांच गुना अधिक है।

जैसा कि हमने कहा, इसका मतलब है कि भारत के कुछ हिस्सों (गोवा और केरल) का औसत शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) यूरोपीय राष्ट्रों के समान है, जबकि दूसरे राज्यों में जहां उच्चतम आईएमआर है, वे काफी कम विकसित, और अक्सर आपदा / युद्ध-पीड़ित और अस्थिर देशों की तरह हैं।

टॉप पांच राज्य/ केंद्रिय शासित राज्य: उच्चतम और न्यूनतम शिशु मृत्यु दर

हालांकि भारत ने आईएमआर को यानि प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर मृत्यु को, 41 वर्षों में 68 फीसदी से कम किया है ( 1975 में 130 से 2015-16 में 41 ), जैसा कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के आंकड़ों से पता चलता है। भारत का आईएमआर गरीब पड़ोसी बांग्लादेश (31) और नेपाल (29), और अफ्रीकी राष्ट्र रवांडा (31) से भी बदतर है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने मार्च 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

आईएमआर को आम जनसंख्या स्वास्थ्य, स्वास्थ्य प्रणालियों और कार्यक्रमों के उपयोगी माप के रूप में देखा जाता है। यह जनसंख्या के आर्थिक विकास, सामान्य जीवन की स्थितियों, सामाजिक कल्याण, बीमारी की दर, और शिशु मृत्यु दर के कारण पर्यावरण की गुणवत्ता के प्रभाव को दर्शाता है।

भारत में राज्यों के बीच आईएमआर में व्यापक विसंगति स्वास्थ्य देखभाल, स्वच्छता स्तर और महिलाओं की शिक्षा के बीच उच्च स्तर की असमानता को इंगित करती है। ये शिशुओं की जीवित रहने की दर पर असर डालने वाले कारक हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने मार्च 2018 की रिपोर्ट में बताया है।

आर्थिक असमानता

2011 की जनगणना के समय भारत का आर्थिक पावरहाउस महाराष्ट्र 112 मिलियन निवासियों का घर था। भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार महाराष्ट्र का प्रति वर्ष $ 243 बिलियन (16.5 लाख करोड़ रुपये) का जीएसडीपी है। ये आंकड़े फिनलैंड (251 बिलियन डॉलर) के बराबर है, जो 5.5 मिलियन लोगों का घर है।

महाराष्ट्र का जीएसडीपी बिहार की तुलना में 5.5 गुना अधिक है, जिसकी आबादी 104 मिलियन है । बिहार का प्रति वर्ष 44 अरब डॉलर (3 लाख करोड़ रुपये) का जीएसडीपी है, जो उत्तरी अफ्रीकी देश, लीबिया (50.9 अरब डॉलर) से कम है, जो 6.2 मिलियन लोगों का घर है।

जबकि राज्य के जीएसडीपी रैंकिंग ऊपर दिखाए गए शिशु मृत्यु दर को प्रतिबिंबित नहीं करती है, विसंगति का स्तर इस आर्थिक संकेतक के भीतर समान रूप से उच्च है।

भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, शीर्ष पांच राज्यों (महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक और तमिलनाडु) में सबसे कम पांच राज्यों (मणिपुर, नागालैंड, मिजोरम, सिक्किम, ए और एन द्वीप समूह) की तुलना में 84 गुना अधिक जीएसडीपी स्तर है।

2018 में ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल भारत में उत्पन्न हुई धन का 73 फीसदी सबसे अमीर 1 फीसदी को गया है, जो पिछले वर्ष से 20.9 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा है और 2017-18 में केंद्र सरकार के कुल बजट के बराबर है।

2017 के इस कार्य पत्र के अनुसार, 1980 और 2014 के बीच, आबादी के शीर्ष 1फीसदी और पूर्ण आबादी के आर्थिक विकास के बीच भारत में सभी देशों की तुलना में सबसे बड़ा अंतर था।

शिक्षा प्राप्ति देश भर में भिन्न

प्राथमिक विद्यालय में बाहर निकलने वाले विद्यार्थियों का अनुपात देश भर में व्यापक रूप से भिन्न है। 15.46 के आंकड़े के साथ असम का ड्रॉपआउट अनुपात सबसे ज्यादा है, जबकि 0.65 के आंकड़ों के साथ हिमाचल प्रदेश का अनुपात सबसे नीचे है।

ड्रापआउट के उच्चतम दर के साथ वाले राज्य ( (असम -15.46, मिजोरम -10.1, मणिपुर-9.66 और मेघालय-9 .55) देश के उत्तर-पूर्व में सबसे ज्यादा हैं। ये गरीबी और बेरोजगारी के उच्चतम स्तरों के साथ-साथ तेजी से विकास का अनुभव करने वाले क्षेत्र हैं, हालांकि इनमें से कुछ राज्य (सिक्किम और मिजोरम) भारत के कुछ बेहतरीन स्वास्थ्य संकेतकों का दावा करते हैं। भारत के समृद्ध राज्यों में, ड्रापआउट दर कम है, जैसे कि कर्नाटक (2.02), महाराष्ट्र (1.26) और गुजरात (0.83)।

प्राथमिक स्तर पर ड्रॉप आउट अनुपात, 2014-15

Primary Level Drop Out Ratio, 2014-15
State/ Union TerritoriesPrimary Level Drop Out Ratio 2014-15 (%)
Assam15.46
Arunachal Pradesh10.82
Mizoram10.1
Manipur9.66
Meghalaya9.45
Uttar Pradesh8.58
Jammu and Kashmir6.79
Andhra Pradesh6.72
Madhya Pradesh6.59
Haryana5.61
Nagaland5.61
Jharkhand5.48
Rajasthan5.02
Uttarakhand4.04
Punjab3.05
Chhattisgarh2.91
Odisha2.86
Sikkim2.27
Karnataka2.02
West Bengal1.47
Tripura1.28
Maharashtra1.26
Gujarat0.83
Goa0.73
Himachal Pradesh0.65
BiharNot Available
ChandigarhNot Available
DelhiNot Available
KeralaNot Available
LakshadweepNot Available
Tamil NaduNot Available

Source: DISE, School Education In India 2015-16

‘इंटरनेशनल जर्नल ऑफ सोशल साइंसेज’ में 2012 के इस पेपर के मुताबिक, गरीबी स्कूल छोड़ने के मुख्य निर्धारकों में से एक है। राज्य का ड्रॉपआउट अनुपात आबादी के सामान्य आर्थिक और सामाजिक स्वास्थ्य का एक अच्छा मापक है। स्कूली शिक्षा (किताबें, वर्दी, यात्रा और फीस इत्यादि) की छुपी और अग्रिम लागत और परिवार के कामों में हिस्सेदारी के दवाब में माता-पिता अक्सर बच्चों को स्कूल से बाहर खींच लेते हैं।

हालांकि प्राथमिक नामांकन अनुपात में सुधार हुआ है और माध्यमिक विद्यालयों में पहले से कहीं ज्यादा नामांकित बच्चे हैं। लेकिन ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के एक सतत अध्ययन के अनुसार भारत की शिक्षा प्रणाली छात्रों को पर्याप्त रूप से वो सब कुछ सिखाने में नाकाम रही है, जो उन्हें सीखाना चाहिए था। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 20 सितंबर, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

गरीबी रेखा

प्रति व्यक्ति आय के निम्न स्तर (2014-15 में $ 643 या 43,861 और $ 460 या 31,380 रुपये) वाले राज्य, बिहार और उत्तर प्रदेश में, कम से कम रहने की स्थितियों को पूरा करने के लिए आवश्यक राशि से कम कमाई करने वाली आबादी का 29 फीसदी और 34 फीसदी आबादी ( क्रमश: 59.8 मिलियन और 35.8 मिलियन ) के साथ-साथ गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की सबसे बड़ी संख्या है।

उच्च जीएसडीपी के बावजूद, मध्य प्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र न्यूनतम आय के स्तर पर रहने वाली एक बड़ी आबादी (क्रमश:23.4 मिलियन, 23.2 मिलियन और 19.7 मिलियन) के साथ हैं।

प्रत्येक देश के मौद्रिक मापदंड पर गरीबी रेखा संकेतक अलग-अलग हैं। विश्व बैंक की इस रिपोर्ट के मुताबिक 2016 में भारत में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 1.90 डॉलर प्रति दिन गरीबी रेखा के तहत रहने वाले लोगों की सबसे बड़ी संख्या थी। यह आंकड़ा नाइजीरिया से 2.5 गुना से अधिक है, जहां दुनिया भर में गरीबों की दूसरी सबसे बड़ी आबादी (86 मिलियन) है।

गरीबी रेखा से नीचे लोग

Source: Press Note on Poverty Estimates 2011-12, Planning Commission July 2013

Note: Data of Andhra Pradesh includes Telangana

(संघेरा लंदन के किंग्स कॉलेज के स्नातक हैं और इंडियास्पेंड में इंटर्न है।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 30 जुलाई 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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