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नई दिल्ली: एक वैचारिक मंच और एक गैर सरकारी संगठन के एक नए अध्ययन के मुताबिक, ऊपरी जाति के हिंदुओं को पुलिस से सबसे कम डर है, उनके बारे में अनुकूल राय होने की संभावना रहती है और उनसे संपर्क करने की संभावना कम है।

सर्वेक्षण के दौरान हिंदुओं में से 18 फीसदी अनुसूचित जाति के उत्तरदाताओं ने पुलिस को ‘बेहद डरावना’ बताया है, जैसा कि, ‘स्टेटस ऑफ पोलिसिंग इन इंडिया, 2018’ की रिपोर्ट में बताया गया है। यह रिपोर्ट कॉमन कॉज और सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के लोकनीति कार्यक्रम द्वारा जारी किया गया।

राष्ट्रीय अपराध आंकड़ों के इस विश्लेषण के मुताबिक, कुछ समूहों के बीच पुलिस का यह डर इस तथ्य से जुड़ा हो सकता है कि भारत में 55 फीसदी से अधिक विचाराधीन कैदी मुस्लिम, दलित या जनजाति हैं। उदाहरण के लिए, झारखंड में, आधिकारिक तौर पर अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के रूप में सूचीबद्ध लगभग 500 आदिवासी (आदिवासी) जेल में हैं क्योंकि ट्रायल धीमा है, जैसा कि मानवाधिकार संस्था सेंटर फॉर जस्टिस एंड पीस द्वारा इस 2017 की रिपोर्ट में बताया गया है।

ऊपरी जाति के हिंदुओं को पुलिस से लगता है सबसे कम डर

ऊपरी जाति के हिंदू अपने क्षेत्र में चाहते हैं अधिक पुलिस

नवंबर 2006 की सच्चर समिति की रिपोर्ट ने विभिन्न सरकारी सेवाओं में मुस्लिमों के खराब प्रतिनिधित्व की भी ओर इशारा किया था। रिपोर्ट में समुदाय में विश्वास बनाने के तरीके के रूप में पुलिस बल में अधिक मुस्लिम प्रतिनिधित्व की सिफारिश की गई थी।

‘कॉमन कॉज’ से जुड़े सदस्य और अध्ययन के लिए सलाहकारों में से एक, विपुल मुद्गल कहते हैं, "हमारे लिए प्रमुख खोज यह थी कि जो लोग समाज में सत्ता पदानुक्रम में उपर होते हैं, उन्हें पुलिस से बेहतर सहयोग मिलता है, जबकि नीचे के लोगों के साथ ऐसा नहीं होता है। विशेष रूप से पुलिस का रिश्ता गरीब और कमजोर नागरिकों के साथ कमजोर है। हालांकि, इसे हम लोग इसे ठीक सकते हैं। "

पुलिस बल में जातियों का असमान प्रतिनिधित्व जाति के विभाजन का भी एक कारण हो सकता है कि लोग पुलिस बल को कैसे देखते हैं। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में, 75 जिला अधीक्षक पुलिस में से 13 ठाकुर, 20 ब्राह्मण, एक कायस्थ, एक भुमिहार, एक वैश्य और छह अन्य ऊंची जातियों से हैं, जैसा कि हिंदुस्तान टाइम्स में जुलाई 2017 की रिपोर्ट में बताया गया है।

राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल (सीआरआरआई) के समन्वयक (पुलिस सुधार) देविका प्रसाद के अनुसार, समस्या इसके पीछे बड़े सिद्धांत पर जोर दिए बिना आरक्षण पर नीति पर्चे के यांत्रिक अनुपालन में निहित है। उनका कहना है कि अनुसूचित जातियों, अन्य पिछड़ी जातियों, जनजातियों और महिलाओं जैसे समूहों का प्रतिनिधित्व मौजूद है लेकिन यह कम है।

वह कहती हैं, "हालांकि यह देखना जरूरी है कि किस तरह के आरक्षण को पूरा किया जा रहा है? क्या उद्देश्य सिर्फ आवश्यक संख्या को पूरा करना है? जरूरत इस बात की है कि पुलिस की संस्कृति में सुधार हो। हमें विविधता के महत्व को समझने की जरूरत है।

इस विविधता से पुलिस विभाग के भीतर लोकतांत्रिक माहौल बनेगा और जनता पुलिस पर भरोसा कर पाएगी।"

सिख और पंजाब के निवासियों ने डर की ज्यादा घटनाओं की की है रिपोर्ट

रिपोर्ट में पाया गया कि धार्मिक समुदायों में सिखों को पुलिस का सबसे ज्यादा और हिंदुओं को सबसे कम डर है। राज्यवार विवरण में पंजाब में पुलिस के डर का उच्च स्तर (46 फीसदी) दिखाया गया है। इस संबंध में पंजाब के बाद तमिलनाडु और कर्नाटक का स्थान रहा है।

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि गरीब सिख पुलिस से ज्यादा डरते हैं। लेकिन यह सभी धार्मिक समूहों के लिए सच है। यदि हम सभी धर्मों के बीच ऊपरी वर्गों पर विचार करते हैं, तो हिंदुओं (14 फीसदी) या मुसलमानों (9 फीसदी) की तुलना में, सिखों की (37 फीसदी) पुलिस से डरने की संभावना है। इस प्रवृत्ति को पिछले चार दशकों में पंजाब में हिंसा के इतिहास से जोड़ा जा सकता है और पुलिस ने इसका जवाब कैसे दिया, खासकर 1990 और 2000 के दशक में जब राज्य में आतंकवाद बढ़ गया था (यहां, यहां और यहां पढ़ें)।

मुद्गल कहते हैं, “आतंकवाद को इन आंकड़ों से सहसंबंधित करके, पंजाब में पुलिस ने 15-20 साल तक काम किया है। राज्य में अशांति की इस अवधि के दौरान, यादृच्छिक गिरफ्तारी और लोगों के गायब होने के साथ, बहुत सी गुप्त पुलिसिंग हुई। यही कारण है कि लोगों के दिमाग में डर रहा है।”

हिमाचल प्रदेश (0.2 फीसदी) और उत्तराखंड (1.4 फीसदी) के निवासियों को पुलिस से सबसे कम डर रहा है। केरल को छोड़कर, दक्षिणी भारत में, लगभग सभी राज्यों में पुलिस के डर का उच्च स्तर सामने आया है।

शीर्ष 5 राज्य जहां सबसे ज्यादा डर है पुलिस का

दक्षिण में हिंदुओं और मुसलमानों में पुलिस से डर ज्यादा

एक सामान्य धारणा है कि, किसी अन्य क्षेत्र की तुलना में हिंदी क्षेत्रों में मुसलमान पुलिस से ज्यादा डरते हैं। लेकिन रिपोर्ट में पाया गया कि दक्षिणी भारत के मुसलमानों में विशेष रूप से कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में रहने वाले लोगों की तुलना में पुलिस का भय अधिक है।

मुद्गल कहते हैं, "दक्षिण भारत ऐतिहासिक रूप से पुलिस व्यवस्था बेहतर रही है, लेकिन हाल ही में आतंकवाद की घटनाओं के बाद, पुलिस ने कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया है और इससे इस क्षेत्र में मुस्लिमों के दिमाग में डर पैदा हुआ है।"

दक्षिणी राज्यों में पुलिस का डर हिंदुओं में भी सबसे ज्यादा था।

दक्षिणी भारत में मुसलमानों को पुलिस से डर

यह सुनिश्चित करने के लिए क्या किया जा सकता है कि सभी समुदायों का पुलिस में भरोसा है? प्रसाद कहते हैं, "कोटा के माध्यम से प्रतिनिधित्व के न्यूनतम मानकों को पूरा करने के लिए पुलिस और सरकार द्वारा बड़े प्रयास की जरूरत है।" उन्होंने आगे कहा कि सरकार को राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान ब्यूरो की वार्षिक रिपोर्ट के आधार पर पुलिस के बारे में धारणाओं पर समय-समय पर सार्वजनिक सर्वेक्षण की आवश्यकता है।

(साहा, दिल्ली के ‘पॉलिसी एंड डेवलप्मेंट एडवाइजरी ग्रूप’ में मीडिया और नीति संचार परामर्शदाता हैं। वह एक स्वतंत्र लेखक भी है और ससेक्स विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज से जेंडर एंड डिवलपमेंट में एमए हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 11 जून, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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