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मुंबई: एक नए अध्ययन के अनुसार, गुजरात, बिहार और उत्तर प्रदेश में पांच में से चार गर्भपात एक दवा या दवाओं के संयोजन का इस्तेमाल करके होता है। हालांकि,यदि इसे ठीक से प्रशासित किया जाए और नौ सप्ताह के गर्भ से पहले किया जाए तो गर्भपात की इस चिकित्सा पद्धति (एमएमए) की सफलता दर 95 फीसदी - 98 फीसदी है लेकिन अध्ययन में पाया गया कि चिकित्सा सेवा में निगरानी की कमी के कारण भारत में बहुत अधिक संख्या में अराजक ढंग से गर्भपात होते हैं। गोलियों के उपयोग के बाद अपूर्ण गर्भपात अक्सर महिलाओं में जटिलता का कारण बनता है, और गर्भपात के बाद उनकी उचित देखभाल की जरूरत होती है। गर्भपात के बाद देखभाल की मांग करने वाली महिलाओं की संख्या असम में 65 फीसदी, यूपी में 59 फीसदी और बिहार में 51 फीसदी है, जिन्होंने जटिलताओं का अनुभव किया, जैसा कि रिपोर्ट में बताया गया है। सात सप्ताह तक सुरक्षित गर्भपात तक पहुंच को मजबूत करने के लिए 2002 में एमटीपी अधिनियम में संशोधन करके भारत में नियम को वैध बनाया गया था। और इसे अभी भी सबसे सुरक्षित और प्रभावी उपायों में से एक माना जाता है। 13 नवंबर, 2018 को प्रकाशित रिपोर्ट 'द इंसीडेंस ऑफ एबॉर्शन एंड अनइंटेंटेड प्रेग्नेंसीज इन सिक्स इंडियन स्टेट्स', असम, गुजरात, बिहार, मध्य प्रदेश तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश के लिए डेटा प्रदान करती है। इन राज्यों में भारत में प्रजनन आयु की 45 फीसदी महिलाएं रहती हैं। यह अध्ययन ‘इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज( मुंबई), ‘पॉपुलेशन काउंसिल’(नई दिल्ली) और न्यूयॉर्क स्थित गुट्टमाकर इंस्टीट्यूट द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था, जो एक शोध संगठन है और वैश्विक स्तर पर प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों को बढ़ावा देता है।

अध्ययन में पाया गया कि गर्भपात की जटिलताओं का मुख्य कारण महिलाओं का गर्भावस्था की समाप्ति पर निर्धारित 15-दिवसीय प्रक्रिया से नहीं गुजरना था, जिसमें स्वास्थ्य सुविधा के लिए कम से कम दो यात्राओं की आवश्यकता होती है।

अध्ययन किए गए छह राज्यों में 2015 में हुए 76 लाख गर्भपात में से 77 फीसदी या 58 लाख गैर-सुविधा वाले एमएमए के माध्यम से किए गए थे। अकेले उत्तर प्रदेश में यह आंकड़े 26 लाख थे।

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी एमएमए के लिए हैंडबुक में दिशा-निर्देशों के अनुसार, गर्भपात को प्रेरित करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले दो-ड्रग रेजिमेंट मिफेप्रिस्टोन और मिसोप्रोस्टोल केवल एक पंजीकृत चिकित्सक या सरकारी अस्पताल द्वारा प्रदान किए जा सकते हैं। लेकिन, यूपीएआई अध्ययन में पाया गया कि ज्यादातर महिलाओं ने इसे अनौपचारिक विक्रेताओं और केमिस्टों से प्राप्त किया। इसका मतलब है कि इन दवाओं के उपयोग और दुष्प्रभावों के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है।

भारत में बड़ी संख्या में असुरक्षित गर्भपात कराने का चलन जारी है, और पिछले पांच वर्षों में अपूर्ण गर्भपात लगभग 30 फीसदी से बढ़कर 50 फीसदी हो गया है, जो असफल घरेलू चिकित्सा के साथ गर्भपात के प्रयासों में वृद्धि दर्शाता है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 5 नवंबर 2016 की रिपोर्ट में बताया है।

नया अध्ययन एक संकेतक के रूप में गर्भपात के महत्व को रेखांकित करता है, जो एक क्षेत्र के गर्भनिरोधक व्यवहार, अनपेक्षित गर्भधारण और पेश की गई समाप्ति सेवाओं के प्रकार को दर्शाता है।

भारत में गर्भपात की संख्या को कम करके आंका जाता है !

56 फीसदी गर्भपात असुरक्षित हैं; भारत में सभी मातृ मृत्यु का 8.5 फीसदी असुरक्षित गर्भपात के कारण होता है; और 10 महिलाएं इस कारण से हर दिन मर जाती हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 22 नवंबर, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

नया अद्ययन ‘द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ’ द्वारा दिसंबर 2017 में प्रकाशित ‘द इंसिडेंस ऑफ अबॉर्शन एंड अनइंटेंडेड प्रेगनेंसी इन इंडिया- 2015’ नामक रिपोर्ट का फॉलअप है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि, सुविधाओं में उपलब्ध गर्भपात की संख्या पर भारत सरकार द्वारा संकलित आंकड़ों में गर्भपात की संख्या को बहुत कम आंका जाता है, क्योंकि सुविधा-आधारित सेवाओं का कवरेज अधूरा है और इसके अलावा, एक सुविधा सेटिंग के बाहर कई गर्भपात होते हैं।” इसलिए, अध्ययन ने सार्वजनिक और निजी सुविधाओं का एक बड़े पैमाने पर नमूना सर्वेक्षण आयोजित करके, जो दवा गर्भपात दवाओं की बिक्री पर गर्भपात और डेटा प्रदान करता है, अप्रत्यक्ष स्रोतों से डेटा का उपयोग किया है।

सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं प्रशिक्षित डॉक्टरों की कमी से जूझ रही हैं और कई तरह के कलंक हैं यहां

अध्ययन किए गए छह राज्यों में सभी सुविधा-आधारित गर्भपात में से, लगभग 13 फीसदी निजी सुविधाओं में किए गए थे। सार्वजनिक सुविधाओं में केवल 5 फीसदी गर्भपात होते हैं। केवल असम ने सार्वजनिक सुविधाओं में 15 फीसदी गर्भपात दर्ज किए, जबकि बिहार, गुजरात और यूपी क्रमशः 2 फीसदी, 3 फीसदी और 4 फीसदी से पीछे हैं।

असुरक्षित गर्भपात को रोकने के लिए काम कर रहा संगठन, ‘आइपस डेवलपमेंट फाउंडेशन इंडिया’ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी विनोज मैनिंग कहते, "असम की राज्य सरकार ने पिछले चार-पांच वर्षों में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में गर्भपात देखभाल में सुधार के लिए ठोस प्रयास किए हैं। उन्होंने अपने वार्षिक स्वास्थ्य बजट में पर्याप्त धन आवंटित किया और प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों ( पीएचसी और सीएचसी ) में गर्भपात देखभाल प्रदान करने के लिए नए एमबीबीएस प्रदाताओं को प्रशिक्षण और प्रमाणित करने के लिए बजट का उपयोग सुनिश्चित किया। " हालांकि गर्भावस्था (एमटीपी) अधिनियम, 1971 की चिकित्सा समाप्ति, 50 साल पहले पारित किया गया था,लेकिन सुरक्षित गर्भपात अभी भी भारत में महिलाओं के लिए एक वास्तविकता नहीं है।

मैनिंग इसके लिए कई कारण बताते हैं। वह कहते हैं, "सेवाओं की कमी के कारण महिलाओं के लिए सुरक्षित गर्भपात तक पहुंच ( उनके घरों / समुदायों के करीब ) का अभाव( जहां इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है) और कानूनी प्रदाताओं की कमी, इसका एक प्रमुख कारण है। इसके अतिरिक्त, कई महिलाओं को भारत में गर्भपात के कानूनी होने और वह कब, कहां और कैसे सुरक्षित सेवाओं तक पहुंच सकते हैं, के बारे में अनभिज्ञ बनी रहती हैं।"

पीएचसी में गर्भपात सेवाओं को बढ़ाने की आवश्यकता

पीएचसी में गर्भपात में कई तरह की बाधाएं आमतौर पर देखी गईं, जो अनिवार्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए एक योग्य चिकित्सा पेशेवर से संपर्क का पहला केंद्र है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि आम तौर पर पीएचसी की क्षमता सीमित होती है, और अध्ययन किए गए छह राज्यों में, केवल एक छोटा अनुपात (3–14 फीसदी) ऐसा करता है। इसलिए गर्भपात का बोझ सार्वजनिक अस्पताल या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों जैसी बड़ी सार्वजनिक सुविधाओं में स्थानांतरित हो गया है।

आईपीएएस डेवलपमेंट फाउंडेशन में अनुसंधान और मूल्यांकन टीम के प्रमुख सुशांत बनर्जी ने इंडियास्पेंड को बताया "एमटीपी प्रशिक्षित डॉक्टर ज्यादातर शहरी क्षेत्र में स्थित हैं, जबकि हमारी अधिकांश आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है।"

“ पीएचसी पर सुरक्षित गर्भपात कराने की सख्त जरूरत है। जबकि पीएचसी चिकित्सक गर्भपात सेवाएं प्रदान करने पर प्रशिक्षित होता है, तब भी समुदाय इस सेवा से अनभिज्ञ रहता है।” हालांकि प्रत्येक सीएचसी में एक स्त्री रोग विशेषज्ञ के लिए प्रावधान है, फिर भी सीएचसी में उनकी आवश्यकता की तुलना में प्रसूति और स्त्री रोग विशेषज्ञों की 76.3 फीसदी कमी है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 22 नवंबर, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

क्यों महिलाएं अनौपचारिक और खतरनाक गर्भपात सेवाओं तक पहुंच जाती हैं

अध्ययन के अनुसार सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य सुविधाओं ने 20 सप्ताह की गर्भकालीन अवधि से परे महिलाओं के गर्भपात से इनकार किया है। बिहार में 29 फीसदी और असम में 63 फीसदी लोगों ने दूसरे तिमाही में गर्भपात कराया, जैसा कि अध्ययन में बताया है।

लेकिन गुजरात और तमिलनाडु में, सीएचसी और पीएचसी ने दूसरी तिमाही में गर्भपात नहीं कराया, जिससे महिलाएं गर्भपात के अनौपचारिक तरीकों तक गईं।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अध्ययन में लिए गए राज्यों में 54-87 फीसदी सुविधाओं ने कम से कम एक महिला की गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग को टाला है।

सुविधाओं द्वारा उद्धृत कारणों में स्टाफ की कमी, स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े सामानों की आपूर्ति की कमी या अपने पति या परिवार के किसी सदस्य की सहमति का नहीं होना शामिल है, जो गर्भपात से इनकार करने के लिए कानूनी आधार नहीं हैं।

यह सुनिश्चित करने के लिए कि महिलाएं अनौपचारिक विक्रेताओं से एमएमए गोलियां नहीं खरीदती हैं, बनर्जी ने सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के सभी स्तरों पर बेहतर गर्भपात सेवाओं की सिफारिश की है। उन्होंने कहा, "नर्सों और दाइयों समेत मेडिकल डॉक्टरों से लेकर मिड-लेवल प्रोवाइडर्स तक इसकी तत्काल जरूरत है। चिकित्सा डॉक्टरों पर निर्भरता से महिलाएं अनौपचारिक प्रदाताओं तक जाने से बचेंगी।"

2015 में अध्ययन किए गए छह राज्यों में अनुमानित गर्भपात

( निलहानी इंडियास्पेंड में इंटर्न हैं। )

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 22, फरवरी 2019 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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