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राजू राय 17 वर्ष का था जब उसकी मां को कैंसर होने का पता चला था। इसी कारण उसे मजबूर होकर आजीविका की तलाश में झारखंड के ग्रामीण ज़िले, जामताड़ा को छोड़ना पड़ा था। राजू की उम्र अब 22 वर्ष है एवं अपने घर से दक्षिण पश्चिम में 1,980 किलोमीटर दूर, बैंगलुरु में इमारतों को पेंट कर हर महीने 10,000 रुपए तक कमा लेता है।

दुबला-पतला, गंभीर सा दिखने वाला शख्स, जिसकी ख्वाहिश पैसे जमा कर अपनी बहन की शादी धूम-धाम से कराना है, कहता है कि, “भगवान ने हमें गरीबी तोहफे में दी है।”

राजू राय की कहानी, 307 मिलियन भारतीयों में आम है जो स्वयं को जन्म स्थान से प्रवासी होने की रिपोर्ट करते हैं, जैसा की 2001 की जनगणना रिपोर्ट कहती है (2011 के आंकड़े अब तक तैयार नहीं हैं।)

इनमें, 268 मिलियन (85 फीसदी) अपने राज्य के भीतर ही अपने जन्म स्थान को छोड़ कर दूसरे स्थान पर रहते हैं, 41 मिलियन (13 फीसदी) अपना राज्य छोड़ कर दूसरे राज्य में रहते हैं, एवं 5.1 मिलियन (1.6 फीसदी) भारत से बाहर रहते हैं।

प्रमुख राज्यों में प्रवासी जनसंख्या

राज्य अनुसार प्रवासियों का अनुपात

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पुरुष मुख्य रुप से अधिक पैसे कमाने के लिए लंबी दूरी पर स्थानांतरण करते हैं – महिलों के लिए शादी मुख्य कारण था – एवं इंडियास्पेंड के विश्लेषण से पता चलता है कि पलायन काफी हद तक राज्य के बुनियादी ढ़ांचे में हुए निवेश से संबंधित है।

वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, प्रति व्यक्ति कम बुनियादी ढ़ाचे खर्च वाले राज्य में आमतौर पर – हमेशा नहीं - प्रति व्यक्ति आय कम है, जिससे अधिक लोग पलायन करते हैं।

बिहार, झारखंड एवं उत्तर प्रदेश ऐसे राज्यों में हैं जहां बुनियादी ढ़ांचे पर कम खर्च है एवं प्रति व्यक्ति आय भी कम है।

बुनियादी सुविधाओं के खर्च और प्रति व्यक्ति आय

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गोवा, तमिलनाडु, महाराष्ट्र , हरियाणा और गुजरात जैसे राज्यों में बुनियादी सुविधाओं पर अधिक खर्च होते है एवं प्रति व्यक्ति आय भी उच्च है।

विशेषज्ञों का कहना है कि इसलिए, भारत में प्रति व्यक्ति आय में व्यापक बदलाव देखा गया है एवं कम आय वाले राज्यों से पलायन संकट का स्तर बढ़ रहा है।

सुकुमार मुरलीधरन, शिमला स्थित मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा संचालित इंडियन इंस्टीट्यूट आफ एडवांस्ड स्टडी में फेलो कहते हैं कि, "अस्थिर राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव का कराण गांव से शहर की ओर पलायन की इतनी बड़ी प्रवाह है।”

बुनियादी सुविधाएं महत्वपूर्ण हैं, लेकिन अन्य कारण भी हैं

हालांकि, बुनियादी सुविधाएं प्रति व्यक्ति आय एवं पलायन के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी प्रतीत होता है, लेकिन वहीं अन्य अपवाद भी हैं।

हालांकि, बुनियादी सुविधाएं प्रति व्यक्ति आय एवं पलायन के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी प्रतीत होता है, लेकिन वहीं अन्य अपवाद भी हैं। यदि भारत के सबसे अमीर राज्य, गोवा की बात करें तो वहां प्रति व्यक्ति आय 2,24,138 रुपए (3,300 डॉलर) है जोकि इंडोनेशिया (3491 डॉलर) और यूक्रेन ( 3082 डॉलर) के सामन है।

गोवा का प्रति व्यक्ति बुनियादी सुविधा खर्च भारत के सबसे अधिक राज्यों में से एक हैं, 36,516 रुपए। हरियाणा और महाराष्ट्र, उच्च प्रति व्यक्ति आय के साथ दो अन्य राज्य हैं एवं प्रति व्यक्ति बुनियादी सुविधा खर्च भी उच्च है।

हिमाचल प्रदेश में सर्वोच्च प्रति व्यक्ति बुनियादी सुविधा खर्च है लेकिन कई अन्य कारणों से इसका प्रति व्यक्ति आय कम होना जारी है।

महाराष्ट्र एवं दिल्ली का पलायन दर उच्च है। देश के कुल पलायन दर में इन दो स्थानों की हिस्सेदारी 16.4 फीसदी एवं 11.6 फीसदी है। महाराष्ट्र एवं दिल्ली जैसे स्थानों में बड़ी संख्या में लोगों का पलायन करने – 2001 में करीब 8 मिलियन महाराष्ट्र में एवं साढे पांच मिलियन दिल्ली में – का कारण वहां प्राप्त होने वाले अवसर हैं।

यदि बात बिहार की करें तो वहां प्रति व्यक्ति आय 31,199 रुपए (589 डॉलर) है एवं उत्तर प्रदेश में प्रति व्यक्ति आय 36,250 रुपए (534 डॉलर) है जोकि माली ( 704 डॉलर) और गिनी ( 539 डॉलर) से कम है।

प्रति व्यक्ति बुनियादी सुविधाओं पर बिहार 13,139 रुपए खर्च करता है जबकि उत्तर प्रदेश 9,793 रुपए खर्च करता है।

महाराष्ट्र एवं दिल्ली की तुलना में बिहार और उत्तर प्रदेश राज्यों में लोगों का प्रवाह सीमित है: 2001 में केवल 1,794,219 एवं 2,972,111 लोग ही बिहार एवं उत्तर प्रदेश की ओर गए हैं।

कुछ अपवाद, केरल एवं पंजाब जैसे समृद्ध राज्य हैं जहां बुनियादी सुविधाओं पर कम खर्च होते हैं एवं छत्तीगढ़ एवं हिमाचल प्रदेश जैसे कम आय वाले राज्य हैं जहां अपेक्षाकृत प्रति व्यक्ति बुनियादी सुविधा खर्च उच्च है।

इसके सटीक कारण स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार असमान भूगोल, विविध जनसांख्यिकी, संस्कृति और राजनीति इन पैटर्न में बदलाव का कारण हो सकते हैं।

अजित्व रायचौधरी, अर्थशास्त्र, जादवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कहते हैं कि हालांकि अपक्षपात एवं न्यायसंगत विकास को बढ़ावा देने की ज़िम्मेदारी राज्यों की ओर बढ़ रही है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने पहले ही बताया है, केंद्र की भी अहम भूमिका है। रायचौधरी कहते हैं कि, "राज्य को व्यावहारिक योजना बनाने की जरूरत है। राज्य भर में अपक्षपात को केंद्र सरकार से ध्यान केंद्रित हस्तक्षेप की जरूरत है।"।

पिछड़े क्षेत्रों का महत्व , कम निवेश क्षेत्र और स्थानीय रोजगार

आईआईएएस के मुरलीधरन कहते हैं कि बिजली के क्षेत्र में एक नियम यह है कि उत्पादन में निवेश किया गया प्रत्येक रुपया, बराबर पारेषण और वितरण में निवेश योग द्वारा समर्थन किया जाना चाहिए।

मुरलीधरन कहते हैं कि, “1:1 के अनुपात की तुलना में भारत में करीब 8:2 का रिकॉर्ड है। ”

कुछ लोगों का तर्क है कि कम निवेश के रुप में अनियोजित निवेश, असमानताओं के लिए ज़िम्मेदार हो सकता है।

समंतक दास, मुख्य अर्थशास्त्री और नाइट फ्रैंक इंडिया (एक वैश्विक रियल एस्टेट कंसल्टेंसी) के राष्ट्रीय निदेशक बताते हैं कि वोट बैंक की राजनीति असमानता पैदा कर रहा है, जैसे कि पिछड़े राज्यों से लोग अपने नेताओं पर अधिक निर्भर करते हैं और नेता वोट के रुप में इनका भरपूर फायदा उठाते हैं।

दास कहते हैं कि, “हमें देश में समान रूप से वितरित, रणनीतिक रुप से तैयार की गई बुनियादी सुविधाओं की आवश्यकता है। हमारे पास सामाजिक बुनियादी ढ़ाचे, भौतिक बुनियादी ढांचे होने चाहिए क्योंकि बुनियादी सुविधाओं का विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।”

रायचौधरी कहते हैं कि पूंजीगत व्यय और पर्यावरणीय योजना के एक साथ बढ़ने से ही भविष्य को सुरक्षित किया जा सकता है।

ग्रामीण-शहरी विभाजन और, प्रवास – को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के लिए स्थानीय स्तर पर बढ़ावा देकर ही संबोधित किया जा सकता है।

जैसा कि स्पष्ट होता है कि भारत में नौकरी - बड़े उद्योग बनाने की क्षमता में गिरावट हो रही है, पलायन बढ़ता प्रतीत होता है।

2011 की जनगणना के अनुसार, पिछली जनगणना से भारत की ग्रामीण जनसंख्या की तुलना में शहरी जनसंख्या में अधिक तेजी से विकास हुआ है।

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के अनुसार, 2007-08 में शहरी जनसंख्या में प्रवासियों का अनुपात 35 फीसदी दर्ज किया गया है।

विभिन्न राज्यों में बाहरी लोगों की रिपोर्ट में भिन्नता का कारण अतिमिश्रण है।

मुरलीधरन कहते हैं, “पलायन जातीय और सांस्कृतिक रूढ़िबद्धता का नेतृत्व करता है एवं लोगों के प्रति असहिष्णुता का कारण प्रतिस्पर्धी राजनीति है।”

सिद्धार्थ मित्रा, जादवपुर विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र विभाग के प्रमुख कहते हैं कि जैसा कि आर्थिक विकास का मुख्य कारक बुनियादी सुविधा खर्च है, यह महत्वपूर्ण है कि भारत की अधिक पिछड़े राज्यों, विशेष कर पिछड़े क्षेत्रों में संबंधित बजटीय आवंटन में वृद्धि हो।

मित्रा कहते हैं कि नियम के अपवाद संकेत देते हैं कि सामाजिक क्षेत्र के खर्च भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

(घोष 101reporters.com के साथ जुड़े हैं। यह जमीनी पत्रकारों के एक भारतीय नेटवर्क है। घोष राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव के मुद्दों पर लिखते हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 17 फरवरी 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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