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नई दिल्ली: देश में टीबी के मामलों में गिरावट हुई है। लेकिन टीबी पर एक नई वैश्विक रिपोर्ट ने कड़ी चेतावनी दी है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत मरीजों के इलाज में लड़खड़ा रहा है, खासतौर से उन लोगों के साथ जो बीमारी के प्रतिरोधी संस्करणों के साथ हैं। साथ ही उन्मूलन प्रयासों के लिए कम फंड भी टीवी उन्मुलन प्रयासों को झटका दे रहा है।

नतीजा यह है कि भारत - जहां दुनिया की आबादी का 17.7 फीसदी हिस्सा रहता है और इसके 27 फीसदी टीबी रोगियों की संख्या किसी अन्य देश की तुलना में अधिक है- के लिए 2025 तक टीबी को खत्म करने के अपने लक्ष्य को पूरा करना मुमकिन नहीं है।

हालांकि, टीबी के मामलों में 1.7 फीसदी की कमी आई है ( 2025 टीबी उन्मूलन लक्ष्य को पूरा करने के लिए आवश्यक 10 फीसदी से कम ) और पिछले वर्ष की तुलना में 2017 में मृत्यु में 3 फीसदी की कमी हुई है, जैसा कि 8 सितंबर, 2018 को जारी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा ग्लोबल ट्यूबरकुलोसिस रिपोर्ट 2018 में बताया गया है। 2016 में, भारत में टीबी के मामले 2.79 मिलियन से घटकर 2017 में 2.74 मिलियन हुए हैं, यानी 1.7 फीसदी की कमी हुई है। यह दुनिया भर में 2 फीसदी वार्षिक कमी से थोड़ा धीमा है । टीबी से होने वाले मौतों की संख्या, 2016 में 423,000 थी, जो घटकर 2017 में 410,000 हुई है। रिफाम्पिसिन-प्रतिरोधी टीबी (आरआर टीबी) और मल्टीड्रूग-प्रतिरोधी तपेदिक (एमडीआर-टीबी) में भी कमी आई है। 2017 में यह आंकड़े 147,000 मामलों से कम हो कर 130,000 मामले हुए है, यानी 8 फीसदी की कमी आई है। आरआर टीबी और एमडीआर-टीबी मामले मुश्किल हैं और 46 फीसदी सफलता दर के साथ इलाज और अधिक महंगा हुआ है। दुनिया के दवा प्रतिरोधी टीबी बोझ का 24 फीसदी हिस्सा भारत का है।

टीबी के मामलों में धीमी गिरावट, 2010-2017

इसके अलावा, भारत को अपने टीबी उन्मूलन लक्ष्य को पूरा करने में अभी भी एक लंबा सफर तय करना है । इलाज के लिए मरीजों को लाने, दवा प्रतिरोधी टीबी रोगियों के इलाज और फंडिंग में कई तरह की चुनौतियां हैं।

उन्मूलन का लक्ष्य बहुत दूर बहुत

जैसा कि हमने कहा, टीबी के मामलों और मौतों में जो गिरावट हुई है , वह उन्मूलन लक्ष्य को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। भारत ने 2025 तक टीबी को खत्म करने की योजना की घोषणा की थी, यानी 2030 के वैश्विक लक्ष्य से पांच साल पहले।

2016 से, एस्वातिनी (पूर्व में स्वाजीलैंड), लेसोथो, नामीबिया, दक्षिण अफ्रीका, जाम्बिया और जिम्बाब्वे जैसे , दक्षिणी अफ्रीकी देशों में 4-8 फीसदी की गिरावट की तुलना में भारत में सालाना टीबी मामलों में मात्र 1.7 फीसदी की गिरावट हुई है।

वर्ष 2025 तक बीमारी के मामलों को समाप्त करने के लिए भारत को 10 फीसदी की दर से वार्षिक गिरावट की जरूरत है, जैसा कि ‘इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च’ के पूर्व महानिदेशक और अब डब्ल्यूएचओ में डिप्टी डायरेक्टर जनरल, सौम्या स्वामीनाथन ने नवंबर 2017 में इंडियास्पेन्ड को बताया है।

टीबी ‘उन्मूलन’ का मतलब, प्रति वर्ष प्रति 100,000 आबादी पर 10 से कम मामलों का होना है। 2017 में, भारत में प्रति 100,000 आबादी पर 204 टीबी को मामले थे। 10 वर्षों में, 2025 तक टीबी महामारी को खत्म करने के अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए, अगले दशक में भारत को नए टीबी मामलों को 95 फीसदी तक कम करना होगा, जैसा कि FactChecker ने मार्च 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

वर्तमान में भारत में 65 फीसदी से अधिक टीबी रोगियों का इलाज किया जाता है, जिसका मतलब है कि बोझ के एक चौथाई से अधिक को पर्याप्त रूप से देखा नहीं किया जा रहा है और बीमारी आगे भी जा रही है।

अभी भी तय करना है लंबा रास्ता

वैश्विक स्तर पर, 32 फीसदी मामलों को अधिसूचित नहीं किया गया ( सरकार निगरानी प्रणाली को बीमारी की सूचना देने की प्रक्रिया )। भारत में 26 फीसदी ‘अधिसूचना अंतर’ है, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि नए मामलों की अतिवृद्धि अनुमान और रिपोर्ट के मामलों के बीच के अंतर का कारण मामलों की अंडरपोर्टिंग और अंडर-डायग्नोसिस है। ( लोग डॉक्टर के पास नहीं जाते हैं या जब वे करते हैं तो उनका निदान नहीं होता है ) राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक अधिसूचना प्रणाली और अनिवार्य अधिसूचना को सरल बनाते हुए, भारत ने निजी डॉक्टरों के साथ जुड़कर, टीबी मामलों की रिपोर्टिंग में सुधार किया है। निजी क्षेत्र से अधिसूचित मामलों के कारण, भारत में टीबी मामलों के अनुमान 2014 में 2.2 मिलियन से बढ़कर 2015 में 2.8 मिलियन हो गए हैं। इसी वर्ष मौत की सूचना भी दोगुनी हुई है, आंकड़े 2014 में 220,000 से बढ़ कर 480,000 हुए हैं। इंडिया टीबी रिपोर्ट 2018 के मुताबिक, 2016 में निजी क्षेत्र से करीब 384,000 मामले अधिसूचित किए गए थे, जबकि रैंपैम्पिसिन युक्त दवाओं की बिक्री से डेटा के आधार पर, लैंसेट में प्रकाशित एक 2016 के अध्ययन के अनुसार निजी क्षेत्र में सालाना 2.2 मिलियन मामलों का इलाज किया है। भारत के मेडेकिन सैन्स फ्रंटियर में मेडिकल समन्वयक स्टोबदान कहलोन कहते हैं, "भारत में हर जिले में जीनएक्सपर्ट (रैपिड टीबी निदान उपकरण) हैं, लेकिन अभी भी इसके उपयोग को बढ़ाने की जरूरत है क्योंकि यह प्राथमिक (फुफ्फुसीय) टीबी और यहां तक ​​कि दवा प्रतिरोधी टीबी मामलों का पता लगाने में काफी सुधार करता है।"

टीबी का पता लगाने के लिए भारत अभी भी व्यापक रूप से स्पुतम माइक्रोस्कोपी का उपयोग करता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जहां टीबी बैक्टीरिया की तलाश करने के लिए माइक्रोस्कोप के तहत बलगम नमूने की जांच की जाती है।

यह सस्ता और आसान तरीका है, लेकिन इसमें बीमारी के लिए सबसे सटीक परीक्षण उपलब्ध नहीं है क्योंकि यह बच्चों और एचआईवी पॉजिटिव रोगियों में एक्सट्रैप्लोमोनरी टीबी के मामलों का पता लगाने में कम प्रभावी है ( जो फेफड़ों के अलावा अंगों को प्रभावित करता है ) ।

भारत ने टीबी देखभाल पर 16 प्रमुख डब्ल्यूएचओ सिफारिशों में से छह को लागू नहीं किया है, जैसा कि इंडियास्पेन्ड ने जुलाई 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

दवा प्रतिरोधी टीबी उपचार का लड़खड़ाना

भारत ने आरआर / एमडीआर-टीबी मामलों के 135,000 मामलों का अनुमान लगाया है, लेकिन दूसरी लाइन के दवाओं पर केवल 26, 966 रोगियों को रखा है; इसका मतलब है कि इस तरह के 80 फीसदी मामलों का निदान और उपचार चूक गया है। रिपोर्ट के अनुसार, दवा प्रतिरोधी टीबी उपचार की वैश्विक सफलता दर 55 फीसदी थी। भारत की सफलता दर 46 फीसदी थी। उच्च टीबी बोझ वाले कई अन्य देश हैं लेकिन - बांग्लादेश, इथियोपिया, कज़ाखस्तान, म्यांमार, वियतनाम में 70 फीसदी से अधिक की सफलता दर थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि, "उपचार और पहचान में अंतराल कम करने के लिए टीबी के निदान लोगों के बीच दवा संवेदनशीलता परीक्षण के बहुत अधिक कवरेज, टीबी के अंडरडॉयगनोसिस को कम करना, देखभाल के मॉडल जो आसानी से उपलभ्ध हैं, उपचार जारी रखने और नए नैदानिक ​​और नई दवाओं और उपचार के नियमों को उच्च प्रभाव के साथ जारी रखना बेहतर उपचार के परिणाम की सबसे बड़ी जरूरत है। "

टीबी रोगियों के एक नेटवर्क, ‘सर्वाइवरस ऑफ टबर्क्यलोसिस’ के संयोजक चपल मेहरा कहते हैं, " हम अब अच्छी तरह से जानते हैं कि एमडीआर-टीबी निदान और उपचार में अंतर है। अगर हम अपने एमडीआर-टीबी नंबरों को शामिल करना चाहते हैं, तो हमें पहले मामलों में जल्दी से निदान करने और उनका इलाज करने की आवश्यकता है। हमें दवा-संवेदनशीलता परीक्षण-निर्देशित उपचार की आवश्यकता है, लेकिन नए और अधिक प्रभावी नियमों तक पहुंच की भी आवश्यकता है। अभी जो हो रहा है, उसकी तुलना में गति को तेज करने की जरूरत है। "

डब्लूएचओ द्वारा अनुशंसा प्राप्त करने वाली दवा प्रतिरोधी टीबी के लिए एक नई दवा बेडाक्विलाइन वर्तमान में सशर्त पहुंच कार्यक्रम के तहत भारतीय मरीजों के लिए उपलब्ध है, और इसे अधिक व्यापक रूप से उपलब्ध कराया जाना चाहिए क्योंकि यह सुरक्षित है और बेहतर है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने अगस्त 2018 में बताया है।

एचआईवी पॉजिटिव रोगियों में टीबी

एचआईवी टीबी और मृत्यु दर का खतरा बढ़ाता है। गुप्त टीबी वाले एचआईवी पॉजिटिव रोगियों की सक्रिय टीबी प्राप्त करने की संभावना 26 गुना अधिक हैं। 2017 में, टीबी के कारण भारत में 11,000 एचआईवी पॉजिटिव मरीजों की मृत्यु हो गई थी। हालांकि, एचआईवी रोगियों में टीबी का पता लगाना आसान नहीं है। 50 फीसदी मामलों में, एचआईवी-टीबी रोगियों के बलगम नमूने टीबी बैक्टीरिया के संकेत नहीं दिखाते हैं। 2017 में, भारत का राष्ट्रीय टीबी निकाय, संशोधित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम, और राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन ने ऐसे एचआईवी रोगियों का आंकड़ा जमा किया जो टीबी की जांच किए जा रहे सरकार के एंटी-रेट्रोवायरल केंद्रों का दौरा करते हैं । उन्होंने पाया कि 59 फीसदी रोगियों को टीबी देखभाल नहीं मिली है। न मिलने वाली देखभाल के कारणों में सेवाओं तक खराब पहुंच, सेवा वितरण में कमजोरियां, रिकॉर्डिंग और रिपोर्टिंग में अंतर और निजी क्षेत्र के साथ खराब जुड़ाव शामिल है। दिसंबर 2016 में सरकार ने सभी एचआईवी क्लीनिकों में टीबी वितरण प्रणाली शुरू की है। एचआईवी रोगियों में से 6 फीसदी टीबी लक्षण पाए गए, जिनमें से 14 फीसदी में टीबी का निदान किया गया था।

भारत के टीबी फंडिंग में 1.4 गुना वृद्धि की जरूरत

ब्रिक्स देशों ( ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका ) की 94 फीसदी घरेलू फंड के साथ वैश्विक टीबी वित्त पोषण में 54 फीसदी की हिस्सेदारी है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2016 और 2018 के बीच, भारत के राष्ट्रीय टीबी के लिए घरेलू वित्त पोषण चार गुना हुआ है। 2016 में 110 मिलियन डॉलर (7 9 करोड़ रुपये) से 2018 में 458 मिलियन डॉलर (3,320 करोड़ रुपये) हुआ है, जैसा कि रिपोर्ट कहती है। यह भारत के राष्ट्रीय टीबी बजट का 79 फीसदी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने 2018 में टीबी देखभाल के लिए $ 580 मिलियन (4,400 करोड़ रुपये) को अलग कर दिया है लेकिन हमें $ 1,386 मिलियन (10,080 करोड़ रुपये) की आवश्यकता होगी, जिससे 60फीसदी की कमी दिखती है।

( यदवार प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं। )

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 20 सितंबर, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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