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( मीना बेन राठवा और उनके पति राजेश राठवा, निर्माण क्षेत्र में कार्यरत उन लाखों नाका श्रमिकों में से हैं, जो धीमा पंजीकरण, प्रक्रियागत देरी, राज्य कल्याण बोर्ड के गठन में देरी और जागरूकता की कमी से निर्माण श्रमिकों को मिलने वाले बीमा और पेंशन जैसे अनिवार्य लाभों से बहुत दूर रह गए हैं। निर्माण क्षेत्र देश में कृषि के बाद दूसरा सबसे बड़े नियोक्ता है।)

मुंबई और वडोदरा: मजदूरी मिलने की उम्मीद में हरिनगर नाका पर खड़ी मीना बेन राठवा ने अपनी 14 वर्षीय बेटी झीनी का हाथ पकड़ते हुए कहा, : “मैं पूरे दिन काम करने के लिए साइट या नाका पर रहती हूं। मैं वहां से इसकी देखभाल नहीं कर सकती, इसलिए मैं चाहती हूं कि यह मेरे साथ आए और घर के लिए थोड़ा कमाए।”

मीना बेन और उनके पति राजेश राठवा उन लाखों नाकों मजदूरों में से हैं ( कैजुअल श्रमिक जो मजदूरी के काम पर रखने के लिए नाका या जंक्शन पर इकट्ठा होते हैं ) जो निर्माण क्षेत्र में कार्यरत हैं। निर्माण क्षेत्र भारत में कृषि के बाद दूसरा सबसे बड़े दैनिक वेतन वाले नियोक्ता है। यहां 13 वर्षों से मीना बेन और उनके पति राजेश राठवा की आजीविका चल रही है।

लगभग 5 करोड़ भारतीयों ने 1983 और 2011-12 के बीच निर्माण क्षेत्र में काम किया है और यह क्षेत्र कृषि में ग्रामीण श्रमिकों में से बचे हुए बड़े अनुपात को रोजगार देता है। हरिनगर नाका में श्रमिकों ने इंडियास्पेंड को बताया कि अनिश्चितता के बावजूद, वे निर्माण में काम करना पसंद करते हैं, क्योंकि काम नियमित रूप से उपलब्ध है और कृषि की तुलना में थोड़ी बेहतर मजदूरी है।

राठवा का 16 वर्षीय बेटा दैनिक मजदूरी के काम की अनिश्चितताओं से बचने के लिए बडोदरा में रह गया। वह वहां थ्रीव्हीलर चलाता है। लेकिन झीनी को पिछले साल स्कूल छोड़ना पड़ा और उसे माता-पिता के साथ नाका पर आना पड़ा। एक साथ, परिवार को औसतन महीने में 12-15 दिनों के लिए रोजगार मिलता है, और वे जीवन निर्वाह करने योग्य से थोड़ा ही ज्यादा कमा पाते हैं। केंद्र सरकार के कानून विभिन्न निर्माण श्रमिकों के लिए एक सुरक्षा चक्र और कल्याणकारी उपायों की एक झलक प्रदान करते हैं, जिनमें से भवन और अन्य निर्माण श्रमिकों (रोजगार और सेवा की शर्तों का विनियमन) के लिए अधिनियम 1996 (वीओसीड्ब्ल्यू) और 1996 का वीओसीड्ब्ल्यू कल्याण सेस अधिनियम, सबसे महत्वपूर्ण हैं। वे श्रमिकों के लिए एक कल्याण कोष प्रदान करते हैं, जो राज्य निर्माण परियोजनाओं पर एक-दो फीसदी का उपकर लगाकर बनाते हैं। यह 10 या अधिक श्रमिकों को रोजगार देने वाले किसी भी प्रतिष्ठान पर और 10 लाख रुपये से अधिक की लागत वाली परियोजनाओं के लिए लागू होते हैं। राज्य कल्याण बोर्ड उपकर एकत्र करते हैं और उन श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा लाभ देते हैं, जो उनके साथ पंजीकरण होते हैं।18 से 60 वर्ष की आयु के वे श्रमिक, जो पूर्ववर्ती 12 महीनों में कम से कम 90 दिनों के लिए भवन निर्माण या निर्माण कार्य में लगे हुए हैं, पंजीकरण के लिए पात्र हैं।लाभ में पेंशन, दुर्घटना के मामले में सहायता, आवास ऋण, शिक्षा, समूह बीमा प्रीमियर, चिकित्सा व्यय, मातृत्व लाभ, आदि शामिल हैं। हालांकि, अधिनियमों के पारित होने के 23 साल बाद, कार्यान्वयन खराब बना हुआ है। ज्यादातर राज्यों ने 2011 के अंत तक कल्याण बोर्ड का गठन नहीं किया था, इसलिए एकत्र किए गए उपकर का वितरण नहीं किया गया था। उत्तर प्रदेश, जिसने 2016-17 में सबसे अधिक निर्माण श्रमिकों (12 मिलियन) को दर्ज किया, ऐसे राज्यों में से एक था, जैसा कि ‘नेशनल लेबर कमेटी फॉर कंस्ट्रक्शन लेबर’ (एनसीसी-सीएल) द्वारा संकलित आंकड़ों से पता चलता है। इंडियास्पेंड ने नवी मुंबई, महाराष्ट्र, और वडोदरा, गुजरात में नाकों का दौरा किया। नई दिल्ली के ‘सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज’ द्वारा प्रकाशित ‘इंडिया एक्सक्लूजन रिपोर्ट-2017’ के अनुसार, दोनों विकसित 'औद्योगिक' राज्य हैं, जो उपकर संग्रह और संवितरण के मामले में खराब प्रदर्शन करते हैं।

हरिनगर नाका, गुजरात के वडोदरा में एक लेबर चौक है, जहां रोजगार पाने की उम्मीद में सैकड़ों निर्माण मजदूर रोज सुबह इकट्ठा होते हैं।

धन के एक चौथाई का उपयोग हुआ

1996 से कल्याणकारी उपकर के रूप में एकत्रित 38,685.23 करोड़ रुपये (5.6 बिलियन डॉलर) में से, केवल 9,967.61 करोड़ ($ 1.4 बिलियन) या 25.8 फीसदी वास्तव में खर्च किए गए हैं, जैसा कि जुलाई 2018 में संसद में पेश किए गए श्रम पर स्थायी समिति की 38 वीं रिपोर्ट से पता चलता है। सभी योजनाओं के माध्यम से वितरित राष्ट्रीय उपकर औसतन प्रति वर्ष सिर्फ 499 रुपये है।

36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 19 ने अपने एकत्रित धन का 25 फीसदी से कम खर्च किया है। केरल एकमात्र ऐसा राज्य था, जिसने एकत्रित धन से ज्यादा और गोवा ने 90 फीसदी से अधिक धनराशि खर्च की थी। मेघालय -2 फीसदी-, चंडीगढ़ -4.7 फीसदी और महाराष्ट्र-6.8 फीसदी- में फंड का सबसे कम उपयोग था।

प्रत्येक राज्य द्वारा उपकर कल्याण निधि का प्रतिशत

Source: Standing Committee on Labour 38th Report, 2018

निर्माण श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए काम करने वाली एक राष्ट्रीय समिति,’एनसीसी-सीएल’ के अनुसार, केवल चार राज्यों ने प्रति वर्ष, प्रति कार्यकर्ता 2,000 रुपये से अधिक और 20 राज्यों ने 1,000 से कम का संग्रह किया है। यह आंकड़े ‘राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय’ (एनएसएसओ) के साथ-साथ केंद्र और राज्यों द्वारा अदालत में दायर किए गए हलफनामों से भी हैं।

प्रति वर्ष प्रति कार्यकर्ता एकत्रित उपकर की राशि

Source: National Campaign Committee for Central Legislation on Construction Labour, 2017

प्रति कार्यकर्ता दमन और दीव ने 20,525 रुपए, सिक्किम ने 3,853 रुपए और चंडीगढ़ ने 3,157 रुपए सबसे अधिक उपकर एकत्र किया। मणिपुर ने114 रुपये, झारखंड ने135 रुपये और तमिलनाडु ने136 रुपये -सबसे कम जमा किया है।

यह पूछे जाने पर कि प्रति वर्ष प्रति श्रमिक वितरित धनराशि इतनी कम क्यों है, महाराष्ट्र के श्रम विभाग के एक सूत्र ने कहा, "इन फंडों का वितरण योजना-वार है और प्रति व्यक्ति गणना नहीं की जा सकती है, इसलिए प्रत्येक कार्यकर्ता को उपकर से पैसा मिलेगा, जो उन योजनाओं की संख्या के आधार पर होगा, जिनके लिए वे पात्र हैं।"

पंजीयन में कठिनाई

नवी मुंबई के नेरुल के एक नाका कार्यकर्ता कोंडूबा हिंगोले ने कहा, "हमें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है, लेकिन हम जानते हैं कि अगर हम पंजीकरण कराते हैं तो कुछ लाभ मिल सकते हैं।"

कुछ बिल्डरों और ठेकेदारों ने, जिनसे इंडियास्पेंड ने गुजरात और महाराष्ट्र जैसे अपेक्षाकृत विकसित राज्यों में संपर्क किया, कहा कि वे इन कानूनों से अनजान हैं। गुजरात के वडोदरा में एक बिल्डर ने इंडियास्पेंड को बताया, “मैं एक परियोजना के आधार पर श्रमिकों को नियुक्त करता हूं। हमारे पास एक मुंशी है, जो उन्हें एक कार्ड देता है। कार्ड में केवल उन दिनों को चिह्नित किया जाता, जितने दिन वे काम करने के लिए आते हैं । उन्हें महीने के अंत में या परियोजना समाप्त होने पर भुगतान किया जाता है। मुझे इस पंजीकरण प्रक्रिया के बारे में नहीं पता है। ” कई ऐसी प्रक्रियाएं हैं जो पंजीकरण को कठिन बनाते हैं। डिजाइन की खामियों से लेकर अतिव्यापी अधिनियमों तक और जमीन पर राजनीतिक और प्रशासनिक इच्छाशक्ति की कमी तक, जैसा कि ‘इंडिया इक्स्क्लूशन रिपोर्ट-2017’ से पता चलता है। रिपोर्ट में बताया गया कि, श्रमिकों के पंजीकरण (610,000) और उपकर वितरण (5,483 करोड़ रुपये के उपकर संग्रह का 7 फीसदी) के संदर्भ में महाराष्ट्र सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों में से एक है। मुंबई और नवी मुंबई में निर्माण श्रमिकों को पंजीकृत करने के लिए काम करने वाली गैर-लाभकारी विकास संगठन ‘यूथ फॉर यूनिटी एंड वॉलंटरी एक्शन’ (YUVA) के साथ 2012 से जुड़े एक श्रमिक हेल्पलाइन एसोसिएट दीपक कांबले कहते हैं, “1996 में अधिनियम स्थापित होने के बाद, सरकार ने 2007 में महाराष्ट्र में एक समिति गठित की, और 2013-14 के बाद ही उन्होंने श्रमिकों का पंजीकरण शुरू किया। लेकिन पंजीकरण की प्रक्रिया उतनी तेज नहीं है, जितनी होनी चाहिए। ”

महाराष्ट्र में निर्माण श्रमिकों के लिए एक बड़ी चुनौती रोजगार बिल्डर या ठेकेदार से 90-दिवसीय नौकरी पूर्णता प्रमाण पत्र प्राप्त करना है। पंजीकरण फॉर्म जमा करने के लिए उसे 85 रुपए का शुल्क देना होता है।

परियोजना समन्वयक राजू वंजारे ने कहा, “पहले कार्यकर्ता को पंजीकरण के लिए सीधे आयुक्त कार्यालय जाना पड़ता था। फिर सरकार ने शहरी स्थानीय निकायों और नगरपालिकाओं को शामिल करने का फैसला किया, जिन्हें 90-दिवसीय प्रमाण पत्र जारी करने का प्रभार दिया गया था। इसमें नाका में जाने वाले अधिकारियों को शामिल किया जाएगा, जो नियमित रूप से नाका कार्यकर्ताओं की पहचान करेंगे और उन्हें प्रमाण पत्र देंगे।”

कांबले ने कहा, “बिल्डरों को अपनी परियोजनाओं के लिए मंजूरी पाने के लिए उपकर जमा करना होगा। बड़ी निर्माण कंपनियां या ठेकेदार सुनिश्चित करते हैं कि उनके श्रमिक पंजीकृत हैं। हालांकि, नाका कार्यकर्ता आसानी से पंजीकृत नहीं हो पाते हैं क्योंकि उन्हें 90-दिवसीय कार्य प्रमाणपत्र नहीं मिलता है। ”

हाल के एक सरकारी नोटिस का उद्देश्य कुछ सरकारी अधिकारियों जैसे ग्राम सेवक या वार्ड अधिकारियों को प्रमाण पत्र जारी करने के लिए अधिकृत करके शीघ्र पंजीकरण को सक्षम करना था।

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नवी मुंबई के नेरुल के एक नाका कार्यकर्ता संजय राठौड़ ने इंडियास्पेंड को बताया, "मुझे अपना 90-दिवसीय कार्य प्रमाणपत्र मिला है, क्योंकि मैंने एक अवधि के लिए एक बॉस के लिए काम किया है, अन्यथा इसे प्राप्त करना मुश्किल है। लेकिन 90-दिवसीय प्रमाण पत्र प्राप्त करने के बाद भी, मेरा पंजीकरण पूरा नहीं हुआ है, हालांकि मुझे अपने दस्तावेज जमा किए लगभग एक साल हो गया है। लाभ प्राप्त करना दूर की बात है। "

नाका कार्यकर्ता हिंगोले ने कहा कि उन्होंने नगर निगम की मदद से अपना पंजीकरण कराया था, जिससे उन्हें 90 दिनों का प्रमाणपत्र मिला।

महाराष्ट्र का दावा है कि निर्माण श्रमिकों का 90 फीसदी बीओसीडब्लू अधिनियम के तहत पंजीकृत है। यह एक आंकड़ा है, जिसे कार्यकर्ता चुनौती देते हैं। एनसीसी-सीएल के भटनागर कहते हैं, “यह बिल्कुल गलत है। मैं शर्त लगा सकता हूं कि इनमें से आधे पंजीकरण धोखाधड़ी वाले हैं। वे गैर-निर्माण श्रमिक हैं। महाराष्ट्र में पंजीकरण की बहुत खराब स्थिति है।”

कांबले कहते हैं, “किए गए कई पंजीकरण गलत हैं या ठीक से पंजीकृत नहीं किए गए हैं। ऐसे मौसमी श्रमिक भी हैं, जो रोजगार का मौसम समाप्त होने के बाद चले जाते हैं और उनके पंजीकरण कार्ड हमारे पास ही रहते हैं। ''

महाराष्ट्र में सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा और वित्तीय सहायता के लिए लगभग 16 कल्याणकारी योजनाएं हैं, जिनके तहत उपकर का उपयोग श्रमिकों को लाभ पहुंचाने के लिए किया जा सकता है। "लेकिन सरकारी अधिकारी यह कहते हुए बहाने बनाते हैं कि 'आज बॉस यहां नहीं है', 'आपको इंतजार करना पड़ेगा', 'पंजीकरण प्रक्रिया में हैं' या 'हमें अभी तक बोर्ड से पैसा नहीं मिला है", जैसा कि कांबले बताते हैं।

कार्यकर्ताओं का कहना है, जब फंड वितरित की जाती हैं, तो यह सिर्फ यह दिखाने के लिए है कि पैसा खर्च किया जा रहा है। एनसीसी-सीएल के भटनागर ने कहा," ट्रेड यूनियनों द्वारा इसका विरोध किया जाना चाहिए था। जो उन्हें मिलता है, वह वास्तव में दुर्घटना के मामले में, जब कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की आयु, आवास ऋण और जब स्वास्थ्य का दावा होता है तो स्वास्थ्य सेवा पहुंच और बच्चों की शिक्षा के लिए शिक्षा प्रोत्साहन में राहत मिलनी चाहिए। " कांबले ने कहा, “कोई भी श्रमिकों को पंजीकृत करने के लिए कोई पहल नहीं करता है। सरकारी अधिकारी जारी किए गए जीआर से अनजान हैं। विनियमन की हमारी व्याख्या के बावजूद, वे सहयोग करने से इनकार करते हैं। अधिकारियों में से एक ने मुझे यह भी बताया कि वह जीआर के बारे में परवाह नहीं करता है।” उन्होंने आगे बताया कि, आगे वाले चुनावों के साथ, 2018 में पंजीकरण शिविर आयोजित किए गए- "बहुत सारे मीडिया और गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे। उन्होंने एक दिन के लिए ऑन-द-स्पॉट पंजीकरण भी प्रदान किया। हालांकि, 2014 से 2017 तक कोई शिविर नहीं लगाया गया था। पिछली सरकार के सत्ता में आने पर कोई फर्क नहीं पड़ा।”

पंजीकृत श्रमिकों को भी आती हैं मुश्किलें

हिंगोले ने कहा, "भले ही मेरा पंजीकरण हो गया है, मुझे अभी तक कोई लाभ नहीं मिला है। नगर निगम कार्यालय में नए लोग हैं और वे अब 90-दिवसीय कार्य प्रमाणपत्र पर सवाल उठा रहे हैं, जो हमें उसी कार्यालय ने हमें दिया था।"

महाराष्ट्र श्रम विभाग अब पंजीकरण बढ़ाने और प्रक्रिया को तेज करने के लिए जिला स्तर पर 'कार्यकर्ता सुविधा केंद्र' स्थापित करने की योजना बना रहा है। यह सालाना 600,000 श्रमिकों को पंजीकृत करने के लक्ष्य के साथ जिला-स्तरीय सुविधा केंद्र स्थापित करने के लिए एक एजेंसी नियुक्त करना चाहता है। विभाग के प्रस्ताव को एक उच्चाधिकार समिति द्वारा अनुमोदन की प्रतीक्षा है।

भटनागर कहते हैं, “एजेंसी की नियुक्ति अनावश्यक है। यदि आप एक केंद्र चलाते हैं, तो आपकी कितनी दिलचस्पी है अधिक से अधिक श्रमिकों को पंजीकृत करने के लिए। मान लीजिए कि आपको प्रति पंजीकरण 10 रुपये या 20 रुपये मिलते हैं, तो आप लक्ष्य प्राप्त करने के लिए हर किसी को पंजीकृत करेंगे, चाहे वह ऑटो-रिक्शा चालक हो या दुकानदार, क्योंकि आपको पैसे लाने हैं। आप केवल निर्माण श्रमिकों को पंजीकृत करने के लिए क्यों परेशान होंगे? ”

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श्रम पर स्थायी समिति की 38 वीं रिपोर्ट ने पंजीकरण की एक दोहरी प्रणाली की सिफारिश की, ऑनलाइन और ऑफलाइन, सभी राज्यों में निर्माण श्रमिकों के लिए विकसित किया जा सकता है, और दोहराव से बचने के लिए श्रम पहचान पत्र को आधार कार्ड से जोड़ा जाना चाहिए।

इसके बाद, श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा भवन और निर्माण श्रमिकों को श्रम मंत्रालय के श्रम सुविधा पोर्टल पर पंजीकरण करने के लिए ई-चालान द्वारा पंजीकरण शुल्क का भुगतान करने में सक्षम करने के लिए एक गजट अधिसूचना जारी की गई थी। प्रत्येक श्रमिक को पंजीकरण के बाद एक लेबर आइडेन्टफकैशन नंबर (लिन) सौंपी जाएगी। 3 अप्रैल, 2019 तक 2,685,058 लिन दिए गए हैं।

हालांकि, प्रक्रिया सभी के लिए आसान नहीं रही है। कांबले ने कहा, "साइट अटकती रहती है और हम कार्यकर्ता की तस्वीर अपलोड नहीं कर पा रहे हैं। हमने किसी पंजीकरण के लिए साइट का इस्तेमाल नहीं किया है। "

एक नया सामाजिक सुरक्षा कोड

श्रम कानूनों और विनियमन के लिए प्रस्तावित नए श्रम और कोडों में ‘सोशल सिक्योरिटी एंड वेलफेयर बिल’ पर एक मसौदा श्रम संहिता शामिल है, जो 2018 में सामाजिक सुरक्षा और श्रमिकों के कल्याण से संबंधित दर्जनों अतिव्यापी या परस्पर विरोधी कानूनों को सरल और समाप्‍त करने के लिए लाया गया है।

यह सुझाव देता है कि बीओसीडब्ल्यू उपकर को जारी रखा जाना चाहिए, और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा और कल्याणकारी योजनाओं के प्रशासन की एक आम व्यवस्था लागू की जानी चाहिए।

भटनागर ने कहा, "बिल में कई बातें हैं, जिन्हें महसूस नहीं किया जा सकता है, जैसे कि सभी श्रमिक लाभ पाने के लिए हर साल अपने वेतन का 20 फीसदी योगदान करने में सक्षम होंगे। यह उस कर्मचारी की दुर्दशा पर विचार नहीं करता है, जिनके पास वर्ष के प्रमुख दिनों में कोई नियोजन नहीं है। इसे केवल इसलिए लागू नहीं किया जा सकता है, क्योंकि प्रत्येक कार्यकर्ता से इस 20 फीसदी के संग्रह की कोई रूपरेखा नहीं है।” उन्होंने कहा कि बीओसीडब्ल्यू अधिनियमों को जारी रहना चाहिए।

इंडियास्पेंड ने जिन एक्टिविस्ट्स और श्रमिकों से बात की,उन्होंने इस बात पर असहमति व्यक्त की कि निर्माण श्रमिकों को नए कानूनों या कार्यक्रमों की आवश्यकता है, या मौजूदा के प्रभावी कार्यान्वयन की आवश्यकता है।

नए प्रस्तावों में फरवरी 2019 में घोषित असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए प्रधान मंत्री श्रम योगी मान-धान (पीएमएलवाईएम) पेंशन योजना है, जो एक स्वैच्छिक, अंशदायी पेंशन योजना है। साथ ही भवन और निर्माण श्रमिकों के लिए संशोधित मॉडल कल्याण योजना, जो जीवन और विकलांगता कवर के साथ-साथ स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास और पेंशन प्रदान करती है।

मीना बेन कहती हैं, "हम सरकारी प्रक्रियाओं और पंजीकरण के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं। हम परेशानी नहीं चाहते हैं। हर दूसरे साल कोई न कोई हमारे पास आता रहता है और हमसे आधार कार्ड मांगता है। हम इसे हर रोज नहीं ले जाते हैं। हम दिन रात यहां खड़े रहते हैं, अपना पैसा कमाते हैं और घर जाते हैं। हमें नहीं पता कि सरकार हमारे लिए क्या करती है।”

महिला निर्माण श्रमिकों को आम तौर पर पुरुषों की तुलना में कम वेतन मिलता है और उन्हें अपने बच्चों को अपने साथ उन निर्माण स्थलों पर ले जाना पड़ता है, जहां पर बाल देखभाल के लिए प्रावधान नहीं हैं।

(बनर्जी, वडोदरा के एमएसयू में राजनीति विज्ञान में मास्टर के छात्र हैं। रायबागी एक डेटा विश्लेषक हैं और कार्डिफ विश्वविद्यालय में कम्प्यूटेशनल और डेटा पत्रकारिता से ग्रैजुएट हैं। दोनों इंडियास्पेंड में इंटर्न हैं। )

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 20 अप्रैल, 2019 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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