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गोवा के मापुसा में एक इमारत की दीवारों पर स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी किया गया परिवार नियोजन का संदेश। पिछले आठ सालों में भारत में गर्भनिरोधक के उपयोग में 52 फीसदी और पुरुष नसबंदी में 73 फीसदी की गिरावट हुई है। ये आंकड़े पुरुषों द्वारा गर्भनिरोधक इस्तेमाल करने की अनिच्छा का संकेत देते हैं।

स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, पिछले आठ वर्षों से 2016 तक, जनसंख्या में वृद्धि हुई है, गर्भनिरोधक के इस्तेमाल में 35 फीसदी की गिरावट हुई है। जबकि गर्भपात और एमर्जेंसी गोलियों की खपत दोगुनी हुई है। हम बता दें की ये दोनो ही स्वास्थ्य के लिए घातक हैं।

वर्ष 2011 तक, एक दशक के दौरान राष्ट्रीय साक्षरता में 14 प्रतिशत तक वृद्धि होने के बावजूद, गरीब और अमीर, बेहतर शिक्षित भारतीयों के लिए जन्म-नियंत्रण के हानिकारक उपाय, आपातकालीन जन्म नियंत्रण की दवा और गर्भपात पहली पंसद बन रही है। इसका परिणाम है कि भारत की जनसंख्या का अनुमान अब 132 करोड़ है और अगले छह वर्षों में चीन की आबादी को पार कर वर्ष 2050 तक 170 करोड़ तक पहुंचने की संभावना है। ये आंकड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमानों में सामने आई है। हालांकि, असुरक्षित गर्भपात से लाखों महिलाओं की मृत्यु भी होती है।

पिछले आठ वर्षों में गर्भनिरोधक के इस्तेमाल में में 52 फीसदी और पुरुष नसबंदी में 73 फीसदी की गिरावट हुई है। ये आंकड़े निश्चित रुप से पुरुषों द्वारा गर्भनिरोधक इस्तेमाल करने की अनिच्छा का संकेत देते हैं। आंकड़ों पर नजर डालें तो 2008 और 2016 के बीच ओरल गर्भनिरोध गोलियों के उपयोग में 30 फीसदी की गिरावट हुई है।

भारत में गर्भनिरोधक का उपयोग, 2008-16

Source: Health Management Information System, Ministry of Health & Family Welfare

वर्ष 2008-09 में 300,000 पुरुषों के नसबंदी के लिए सहमति की तुलना में इसी अवधि के दौरान गर्भावस्था से बचने के लिए 55 लाख महिलाएं इन्ट्रयूटरिन कान्ट्रसेप्टिव डिवाइस (आईयूसीडी ) यानी अंतर्गर्भाशयी गर्भनिरोधक डिवाइस के उपयोग के लिए सहमत हुई हैं। इन वर्षों में इन उपकरणों के सहारा लिए महिलाओं की संख्या स्थिर बनी हुई है।

आईयूसीडी के उपयोग में सबसे ज्यादा गिरावट वाले पांच राज्य, 2008-16

Source: Health Management Information System, Ministry of Health & Family Welfare
Note: Excluding northeastern states and union territories due to incomplete data

भारत के प्रसूति और स्त्रीरोग संबंधी सोसायटी ‘एफओजीएसआई’ के उप महासचिव नोजर शेरियर कहते हैं, “लोगों को लगता है कि महिलाओं को ही हर स्थिति से गुजरना चाहिए।”

जनवरी 2017 में आगामी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में महिलाओं के लिए विवादास्पद इंजेक्शन वाले गर्भ निरोधकों के शुभारंभ के मौके पर भारत के स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा ने कहा कि सरकार गर्भनिरोधक विकल्प और उपयोग का विस्तार करने की कोशिश कर रही है। गर्भनिरोधक का उपयोग जन्मों के बीच बेहतर अंतराल और आकस्मिक गर्भधारण और जनसंख्या वृद्धि की संभावना को कम करता है।

साक्षर केरल में कंडोम का इस्तेमाल ज्यादा; बिहार में भी वृद्धि

क्या पारंपरिक गर्भ निरोधकों के इस्तेमाल का साक्षरता दर के साथ संबंध है? यह स्पष्ट नहीं है। दरअसल, कुछ ऐसे साक्ष्य हैं, जो इसके विपरीत जाते हैं।

उद्हारण के लिए, वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, कर्नाटक की साक्षरता दर (75.6 फीसदी) 74 फीसदी के राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है। फिर भी, राज्य उन राज्यों में से है, जहां पुरुषों की नसबंदी, आईयूसीडी और गर्भनिरोधक गोलियों के उपयोग में सबसे ज्यादा गिरावट दर्ज की गई है।

बिहार में, 73 फीसदी पुरुष साक्षरता दर (कुल 64 फीसदी) के साथ, 2008 से 2016 के बीच गोलियों के इस्तेमाल में चार गुना बढ़ोतरी हुई है। साथ ही इसी अवधि के दौरान कंडोम का इस्तेमाल दोगुना हुआ है। वहीं केरल में, जहां पुरुष साक्षर दर 96 फीसदी है, कंडोम के इस्तेमाल में 42 फीसदी की गिरावट हुई है।

पुरुषों के लिए डॉक्टर कंडोम या नसबंदी की सिफारिश करते हैं। नसबंदी में शुक्राणु को ले जाने वाली नली स्थायी रूप से अवरुद्ध किए जाते हैं। वहीं, महिलाओं के लिए गोलियां या आईयूसीडी की सिफारिश की जाती है। आईयूसीडी को गर्भाशय में डाला जाता है और शुक्राणु को अंडे से गर्भाधान करने से रोकता है।

असुरक्षित गर्भपात से मौत और विकलांगता को रोकने की दिशा में काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन, आईपास, के प्रशिक्षण टीम के सदस्य उमेश कुलकर्णी कहते हैं, “हालांकि भारतीय पुरुषों का मानना ​​है कि कंडोम यौन सुख को कम करता है और नसबंदी उनकी मर्दानगी को कम करती है, महिलाओं के लिए आईयूसीडी और गोलियों से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव भी चिंता के विषय हैं।”

गर्भनिरोधक के उपयोग में गिरावट उस समय देखा गया है, जब परिवार के आकार को सीमित करना आसान था।

एक दशक से वर्ष 2016 तक ,राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 का हिस्सा रहे 14 में से 10 राज्यों में प्रसव उम्र (15 से 49) की महिलाओं के बीच परिवार नियोजन के किसी भी आधुनिक विधि के उपयोग में 6 फीसदी की गिरावट हुई है। हालांकि, जन्म नियंत्रण के तरीकों में जागरुकता और परिवार नियोजन सेवाओं में सुधार है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने अगस्त 2016 में विस्तार से बताया है।

तो, गर्भनिरोधक के उपयोग में गिरावट क्यों हो रही है? कुलकर्णी का मानना ​​है कि इसके लिए सरकार का ‘जबरिया नजरिया’ जिम्मेदार हो सकता है।

क्या सरकार के उपाय भारतीयों को गर्भ निरोधकों से दूर कर रहे हैं?

आईपास के सदस्य डॉक्टर कुलकर्णी कहते हैं, सरकार कs 'आक्रामक रुख' का परिणाम उल्टा हो रहा है। हम बता दें कि सार्वजनिक स्वास्थ्य केन्द्रों में डॉक्टरों को लक्ष्य और पुरुष नसबंदी एवं आईयूसीडी सम्मिलन के लिए प्रोत्साहन दिया जाता है। साथ ही सरकारी स्कूल में शिक्षकों को इन परिवार नियोजन के तरीकों अपनाने पर वेतन में वृद्धि की पेशकश की जाती है।

कुलकर्णी कहते हैं कि जब डॉक्टर और शिक्षक इन गर्भ निरोधकों की वकालत करते हैं तो लोगों की उलझन बढ़ जाती है। उनकी उलझन होती है कि क्या वास्तव यह प्रक्रिया सुरक्षित है और चिकित्सक या शिक्षक के दावों की तरह फायदेमंद है या फिर वे मिलने वाले प्रोत्साहन के कारण इसकी वकालत कर रहे हैं?

पुरुषों के बीच नसबंदी के लिए अनिच्छा सरकार द्वारा ज़ोरदार बिक्री के लिए तय रणनीति के खिलाफ एक प्रतिक्रिया भी हो सकती है। हालांकि, 2008-09 में 290,000 भारतीय पुरुषों ने स्थायी गर्भनिरोधक को चुना है, लेकिन 2015-16 के लिए यह आंकड़ा 80,000 है।

नसबंदी में सबसे ज्यादा गिरावट वाले पांच राज्य, 2008-16

Source: Health Management Information System, Ministry of Health & Family Welfare
Note: Excluding northeastern states and union territories due to incomplete data

आंध्र प्रदेश और बिहार में 95 फीसदी और 90 फीसदी की गिरावट दर्ज।

एफओजीएसआई के शेरियर कहते हैं, “पुरुष नसबंदी को पुंसत्व-हरण के रुप में देखते हैं।” विशेषज्ञ कहते हैं कि, न केवल भारतीय समाज में पुरुष नसबंदी के संबंध में सूचना, शिक्षा और संचार अपर्याप्त है, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में भी इन चीजों की व्यापक रुप से कमी है। कंडोम के उपयोग में गिरावट इन कमियों को प्रतिबिंबित कर सकते हैं।

कंडोम के इस्तेमाल स्थिर, गर्भनिरोधकों के उपयोग में वृद्धि

अन्य गर्भनिरोधक तरीकों की तुलना में कांडोम एक बेहतर विकल्प हैं लेकिन भारतीय पुरुष उन्हें इस्तेमाल करने के लिए उत्सुक नहीं हैं।

हालांकि, वर्ष 2008-09 में राष्ट्रीय स्तर पर 66 करोड़ कांडोम वितरित किए गए थे। यही आंकड़े वर्ष 2015-16 में गिरकर कर आधे, 32 करोड़ हुए । आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा गिरावट, 83 फीसदी और 79 फीसदी दर्ज की गई है।

कांडोम के इस्तेमाल में सबसे ज्यादा गिरावट होने वाले पांच राज्य, 2008-16

Source: Health Management Information System, Ministry of Health & Family Welfare
Note: Excluding northeastern states and union territories due to incomplete data

इसी आठ साल की अवधि के दौरान, महिलाओं द्वारा गोलियों के इस्तेमाल में 30 फीसदी की गिरावट हुई है। तमिलनाडु और केरल सबसे ज्यादा गिरावट दर्ज की गई।

गर्भ निरोधक गोलियों के इस्तेमाल में सबसे ज्यादा गिरावट वाले पांच राज्य, 2008-16

Source: Health Management Information System, Ministry of Health & Family Welfare
Note: Excluding northeastern states and union territories due to incomplete data

गर्भनिरोधक-उपयोग में गिरावट से पिछले आठ सालों में आपातकालीन गर्भनिरोधक गोलियों की बिक्री में100 फीसदी की वृद्धि हुई है, इस पर भी सवाल उठ खड़ा हुआ है। वर्ष 2008-09 में राष्ट्रीय स्तर पर 10 लाख आपातकालीन गोलियां बेची गईं । ये आंकड़े वर्ष 2015-16 में बढ़ कर 20 लाख हुए। यह जानकारी स्वास्थ्य मंत्रालय के राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रबंधन प्रणाली के आंकड़ों में सामने आई है।

गर्भनिरोधक का उपयोग में सबसे ज्यादा वृद्धि वाले दस राज्य, 2010-16

Source: Health Management Information System, Ministry of Health & Family Welfare

जैसा कि नाम से पता चलता है, आपातकालीन गर्भनिरोधक गोली ही इस्तेमाल तब किया जाना चाहिए, जब पारंपरिक गर्भ निरोधक असफल हो गए हों या आकस्मिक यौन संबंध स्थापित किया गया हो। आईपास के कुलकर्णी कहते हैं, इन गोलियों का अत्यधिक इस्तेमाल करने से महिलाओं की मासिक धर्म चक्र बाधित हो सकती हैं या रुक-रुक कर रक्तस्राव हो सकता है । कभी-कभी वे बांझपन का भी शिकार हो सकती हैं।

विज्ञापन का छलावा, अंतिम उपाय अब पहली पसंद

"कभी कभी, एक अनियोजित गर्भावस्था अपने पूरे जीवन को परेशान कर सकते हैं।"

एक शोक संगीत के साथ यह 2009 में आई-पिल के विज्ञापन की ये शुरुआती लाइनें थी। विज्ञापन कुछ इस तरह जारी रहता है: "तो, अगर आप चिंतित हैं कि कल रात के बाद आप गर्भवती हो सकती है, नई आइ-पिल, आपातकालीन गर्भनिरोधक गोली लें।"

आईपीएएस के 'कुलकर्णी के अनुमान के अनुसार इस तरह के विज्ञापनों का "अनुचित प्रभाव" पड़ता है। इससे उनकी बिक्री में तेजी आ रही है। इससे जो अंतिम उपाय होने चाहिए थे, वह पहली पसंद बन रही है।

आपातकालीन गोलियों के दुष्प्रभाव में मितली, वजन बढ़ना, मूड में बदलाव, मासिक धर्म अनियमित होना, कम कामेच्छा और सिर में दर्द होना शामिल हैं।

वर्ष 2007-08 में, भारत के सबसे कम लिंग अनुपात के साथ हरियाणा राज्य में 8958 से ज्यादा आपातकालीन गोलियों की बिक्री नहीं हुई थी। आठ साल बाद यह संख्या 128,000 हुई । यानी 13 गुना वृद्धि हुई । इसी अवधि के दौरान राज्य में पुरुष नसबंदी, आईयूसीडी और कंडोम की बिक्री में क्रमवार से 34 फीसदी, 30 फीसदी और 32 फीसदी की गिरावट हुई है।

आपातकालीन गोलियों की बिक्री में बिहार में 1,305 फीसदी, उत्तराखंड में 724 फीसदी और झारखंड में 383 फीसदी की चिंताजनक बढ़ोतरी हुई है। आठ वर्षों में तमिलनाडु, जहां इन गोलियों की बिक्री पर 2006 में प्रतिबंधित लगाया गया ( यहां केवल डॉक्टर के पर्चे के साथ खरीदा जा सकता है) उसकी खपत दोगुनी हुई है।

इन गर्भ निरोधकों की बिक्री का रास्ता काफी आकर्षक है। इन आपातकालीन गोलियों के निर्माताओं प्रिंट, ऑनलाइन और टेलीविजन मीडिया में व्यापक विज्ञापन के माध्यम से अपने लक्षित दर्शकों तक पहुंचते हैं। जबकि सरकार डॉक्टरों, नर्सों और सरकारी अस्पतालों और स्कूलों के शिक्षकों द्वारा परम्परागत गर्भ निरोधकों बढ़ावा देने के लिए मौखिक प्रचार पर भरोसा करती है।

अपने लक्षित दर्शकों के साथ संवाद करने के लिए सरकारी विज्ञापन की अक्षमता गर्भनिरोधक उपयोगकर्ताओं के साथ बातचीत में स्पष्ट था।

आठ साल पहले केरल की रहने वाली 52 वर्षीय प्रिया एम ( बदला हुआ नाम ) ने कॉपर टी ( एक आईयूसीडी ) लगवाया था। दो बच्चों की मां एवं स्कूल शिक्षिका प्रिया ने हमें बताया कि उन्हें हमेशा यह डर लगा रहता है कि अंदर लगाई गई चीज या तो बाहर गिर सकता या फिर भीतर जा सकता है। चार साल बाद उन्होंने डॉक्टर से आईयूसीडी हटाने के लिए कहा।

45 वर्षीय थॉमस मैसी (बदला हुआ नाम ) तमिलनाडु के कोयम्बटूर में व्यापारी हैं। वे कहते हैं कि नसबंदी को लेकर उनकी कुछ आशंकाएं हैं, क्योंकि इसमें सर्जरी की आवश्यकता होती है। वे कहते हैं, “जब गोलियां मौजूद हैं तो फिर किसी और विकल्प की क्या जरुरत है।”

जब सब विफल होता है तो भारतीय गर्भपात चुनते हैं। अभी पहले से ज्यादा संख्या में हो रहा है गर्भपात

गर्भपात के खतरों और कुप्रभावों के बावजूद इस पर रोक नहीं

वर्ष 2016 में, भारत के करीब हर रोज 2,500 गर्भपात हुए हैं। स्वास्थ्य आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले आठ वर्षों में ये आंकड़े दोगुने हुए हैं।

एक अनुमान के अनुसार, 1 करोड़ से अधिक महिलाएं हर साल चुपके से गर्भपात से कराती हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने नवंबर 2016 में बताया है।

मेडिकल जर्नल ‘लैंसट’ में जून 2006 की एक रिपोर्ट के अनुसार, 10 लाख से कम दर्ज की गई वार्षिक गर्भपात की तुलना में भारत में गर्भपात दवाओं माइफरप्रिस्टोन और मिसोप्रोसटोल की 1.1 करोड़ बिक्री दर्ज की गई ।

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2008-09 में 400,000 गर्भपात की रिपोर्ट हुई, जो बढ़ कर 2015-16 में 900,000 हुआ । इन आठ वर्षों में भारत में 54 लाख गर्भपात की सूचना है।

गर्भपात में सबसे ज्यादा वृद्धि होने वाले दस राज्य, 2008-16

Source: Health Management Information System, Ministry of Health & Family Welfare

विशेषज्ञों के अनुसार, महिलाएं अक्सर गर्भपात के संबंध में बात करने से झिझकती हैं। कुछ महिलाओं में यह अफसोस के रुप में झलकता है तो कुछ में गर्व के रुप में।

एफओजीएसआई के शेरियर कहते हैं, “हर महिला के पास बताने के लिए कहानी है। एक भी महिला ऐसी नहीं है जिसके पास कहानी न हो, फिर चाहे वो विवाहित हो या अविवाहित।”

शेरियार ने एक ऐसी महिला को याद करते हुए उसकी चर्चा की जो जो परिवार में पति या दूसरों की सहमति के बिना उनसे सलाह लेने आई थी। इसका कारण उसे किसी से समर्थन की उम्मीद न थी। उन्होंने उन महिलाओं के बारे में भी बताया, जो गर्भपात कराने लंबी यात्रा तय करके आती हैं।

गर्भावस्था अधिनियम की मेडिकल टर्मिनेशन (एमटीपी एक्ट), 1971 के आने तक, गर्भपात अवैध था। फिर भी 46 साल बाद गर्भपात अभी भी वर्जित माना जाता है। इसकी चर्चा भी कभी-कभी होती है। लेकिन उन महिलाओं द्वारा चर्चा की जाती है, जो स्पष्ट रूप से अनचाहे गर्भधारण को समाप्त करना चाहती है।

घर पर गर्भपात का प्रयास करने वाली महिलाओं की संख्या ज्यादा, नीम-हकीमों के पास जाने वाली महिलाएं भी काफी

जैसा कि हमने बताया है, भारत की गर्भनिरोधक दर (यौन सक्रिय जोड़ों द्वारा गर्भ निरोधकों के इस्तेमाल) 52.4 फीसदी है।

जैसा कि विशेषज्ञ कहते हैं , गरीब घरों से आने वाली और शिक्षित होने के बावजूद यौन रूप से सक्रिय युवा महिलाओं के लिए गर्भपात "प्रॉक्सी गर्भनिरोधक" बन गया है।

‘लैंसेट’ में अक्टूबर 2006 के एक अध्ययन के अनुसार 28 फीसदी तक महिलाओं में आत्म-गर्भपात के प्रयास दर्ज हुए हैं। जबकि द हिन्दू की मई 2013 की रिपोर्ट कहती है कि गलत तरीके के हुए गर्भपात के कारण हर दो घंटे पर एक भारतीय महिला की मौत होती है।

बैंगलुरु स्थित एक गैर लाभकारी संगठन ‘फैमली प्लैनिंग असोसीऐशन’ की प्रबंधक, रेखा जी कहती हैं, “कई युवा यौन रूप से सक्रिय है, लेकिन गर्भावस्था के खिलाफ सावधानियों और गर्भपात के जोखिम से अनजान हैं। ”

गर्भपात के लिए अक्सर महिलाएं नीम-हकीमों के पास भी जाती हैं। शेरियार कहते हैं, उनके द्वारा गलत तरीके से किया गया इलाज भारत में मातृ मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण है।

महाराष्ट्र में, पिछले आठ वर्षों से 2016 तक कंडोम, गर्भनिरोधक गोलियां और नसबंदी के उपयोग में क्रमश: 38 फीसदी, 22 फीसदी और 61.5 फीसदी की गिरावट हुई है। इसी अवधि के दौरान, राज्य में गर्भपात की सबसे उच्च संख्या 10 लाख दर्ज की गई है। शेरियार कहते हैं, गरीब महिलाओं के लिए गर्भनिरोधक खोजना भी एक समस्या है।

‘इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च’ में वर्ष 2015 के एक अध्ययन के अनुसार, कम से कम 21 फीसदी भारतीय महिलाएं गर्भावस्था से बचने के लिए गर्भनिरोधक का इस्तेमाल करना चाहती हैं।

शेरियार कहते हैं, “गर्भ निरोध के मामले में हमें लंबा रास्ता तय करने की जरुरत है। ”

(पॉल स्वतंत्र पत्रकार हैं और बैंगलुरु में रहते हैं। पॉल 101reporters.com के सदस्य भी है। यह जमीनी स्तर पर पत्रकारों का एक भारतीय नेटवर्क है।)

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