Faridabad: A farmer inspects his crops after rains left them damaged in Faridabad, Haryana on Sept 23, 2017. (Photo: IANS)

मुंबई: दुनिया के टॉप 10 कार्बन प्रदूषकों में से, भारत और कनाडा सिर्फ दो देश ऐसे हैं, जो जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपायों के साथ स्पष्ट प्रगति कर रहे हैं। यह जानकारी एक नए विश्लेषण में सामने आई है। लेकिन भारत के चालू कृषि संकट को बद्तर बनाने वाले और इसकी आय में असमानताओं को और गहरा बनाने वाले, ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के लिए भारत के प्रयास पर्याप्त नहीं हैं।

क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर (सीएटी) द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक, यदि सभी देश जलवायु परिवर्तन को लेकर अपनी सभी प्रतिबद्धताओं को प्राप्त करने में कामयाब होते हैं, तो भी पृथ्वी 2100 तक 3 डिग्री सेल्सियस गर्म हो जाएगी, जो 2015 के पेरिस समझौते में 1.5 डिग्री सेल्सियस सीमा पर हुई सहमति से दोगुनी है। सीएटी तीन अनुसंधान संगठनों का एक संगठन है, जो 32 देशों की जलवायु परिवर्तन नीतियों का विश्लेषण करता है।

यह रिपोर्ट 11 दिसंबर, 2018 को जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के हाल ही में हुए 24 वें सम्मेलन (सीओपी 24) में जारी की गई थी। 2015 पेरिस समझौते को लागू करने के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित करने के लिए 196 देशों और यूरोपीय संघ के प्रतिनिधियों ने पोलैंड के केटोवाइस में मुलाकात की। सभी देशों ने दो सप्ताह की लंबी चर्चा और वार्ता के बाद केटोवाइस जलवायु पैकेज पर हस्ताक्षर किए।

सीओपी 24 के अर्थशास्त्री और राष्ट्रपति मीकल कुर्तिका ने कहा, "केटोवाइस जलवायु पैकेज में निहित दिशानिर्देश, 2020 तक समझौते को लागू करने के लिए आधार प्रदान करते हैं।" लेकिन जलवायु परिवर्तन से बदतर बाढ़, सूखा और चरम मौसम से त्रस्त राज्यों ने कहा है कि पैकेज में दुनिया के उत्सर्जन में कटौती करने की मजबूत महत्वाकांक्षा की कमी है।

मिस्र के राजदूत और जी-77 प्लस के अध्यक्ष, वायल अबूल्मगद ने कहा, "विकासशील देशों की तत्काल अनुकूलन आवश्यकताओं ने उन्हें दूसरी श्रेणी की स्थिति में भेज दिया गया है।" 1.5 डिग्री सेल्सियस पर जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) के विशेष रिपोर्ट की कैसे पहचान करनी है और क्या इस तापमान सीमा से नीचे रहने के लिए अधिक महत्वाकांक्षा की आवश्यकता है, इस पर देशों के बीच मतभेद है, जैसा कि यू.के स्थित वेबसाइट कार्बन ब्रीफ ने 16 दिसंबर 2018 की रिपोर्ट में बताया है। कार्बन ब्रीफ जलवायु विज्ञान और ऊर्जा नीति पर रिपोर्ट करती है। 1.5 डिग्री सेल्सियस के ग्लोबल वार्मिंग के साथ स्वास्थ्य, आजीविका, खाद्य सुरक्षा, जल आपूर्ति, मानव सुरक्षा और आर्थिक विकास के लिए जलवायु संबंधी जोखिम बढ़ने का अनुमान है, और 2 डिग्री सेल्सियस के साथ यह और बढ़ सकता है, जैसा कि 8 अक्टूबर, 2018 को जारी आईपीसीसी विशेष रिपोर्ट में कहा गया है।

जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए देशों द्वारा किए गए प्रयास

Source: Climate Action Tracker

सीएटी, तापमान बढ़ाने के मामले में विश्लेषण करने वाले देशों की नीतियों का मूल्यांकन करता है। इस विश्लेषण में शामिल 32 देशों में से किसी के पास भी ऐसी नीतियां नहीं हैं, जिससे ग्लोबल वार्मिंग 1.5 डिग्री सेल्सियस कम हो। केवल मोरक्को और गैंबिया ने तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के पेरिस समझौते के लक्ष्य का पालन किया है। इसके अलावा, नवंबर 2018 में जारी संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) द्वारा एमिशन गैप रिपोर्ट-2018 के अनुसार तीन साल के अंतर के बाद वैश्विक सीओ 2 का स्तर बढ़ गया और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन रिकॉर्ड उच्च पर पहुंच गया है। इसका कोई संकेत नहीं है कि यह प्रवृति विपरीत होगी, जैसा कि रिपोर्ट में कहा गया है। रिपोर्ट आगे कहती है कि, पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए राष्ट्रों को अपने प्रयासों को तीन गुना करने की आवश्यकता होगी।जब तक कि उत्सर्जन तेजी से न घटे, तापमान के ऊपर बढ़ने की संभावना है, जिससे अगले 10-12 वर्षों के शुरुआत में जलवायु परिवर्तन तेज होगा, जैसा कि दिल्ली स्थित जलवायु शोध फर्म क्लाइमेट ट्रेंड्स द्वारा नवंबर 2018 की एक रिपोर्ट में भविष्यवाणी की गई है। ग्लोबल वार्मिंग से संबंधित घटनाएं जैसे कि बाढ़, सूखा, लू और चक्रवात दुनिया के गरीबों को और अधिक प्रभावित करेंगे और उन्हें और गरीबी में डालेंगे, जैसा कि 30 नवंबर, 2018 को नई दिल्ली में जारी रिपोर्ट में कहा गया है।

ग्लोबल वार्मिंग से गरीब होंगे सबसे ज्यादा प्रभावित

‘क्लाइमेट ट्रेंड्स’ की रिपोर्ट कहती है, “ उच्च आय वाले क्षेत्रों की तुलना में कम आय वाले क्षेत्रों में प्राकृतिक खतरों से लोगों के मरने की आशंका सात गुना अधिक है, और छह गुना अधिक घायल होने या विस्थापित होने की आशंका है। 2016 की विश्व बैंक की एक रिपोर्ट, 'शॉक वेव्स, मैनेजिंग का इंपैक्ट्स ऑफ क्लाइमेट चेंज ऑन पोवर्टी' के अनुसार हालांकि उच्च आय वाले क्षेत्रों में पूर्ण आर्थिक नुकसान होगा, लेकिन गरीब अपनी संपत्ति और आय का एक बड़ा हिस्सा खो देंगे। गरीब समुदायों में अधिकांश संपत्तियां आवास या पशु के रूपों में होती हैं, जो प्राकृतिक खतरों को लेकर कम प्रतिरोधी होती हैं। उदाहरण के लिए, बाढ़ में, झुग्गी वाले घर, शहर के अधिक समृद्ध क्वार्टरों की तुलना में ज्यादा नष्ट होते हैं। प्राकृतिक आपदाओं का मतलब गरीबों के लिए बीमारियों और आजीविका के नुकसान का जोखिम है।

आधे भारत में मध्यम से गंभीर स्तर के प्रभाव

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के लिए भारत 14 वां सबसे संवेदनशील देश है; चरम मौसम की घटनाओं के कारण 2017 में भारत में 2,726 लोग मारे गए हैं। और भविष्य में ऐसी घटनाएं और होने की और संभावना है। भारत की वर्तमान आबादी का लगभग 44.8 फीसदी (60 करोड़) आज उन स्थानों पर रहता है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रयास मौजूदा स्तर पर बने रहने पर 2050 तक मध्यम या गंभीर रूप से जलवायु परिवर्तन का दंश झेल सकते हैं, जैसा कि जून 2018 विश्व बैंक की रिपोर्ट, “साउथ एशियाज हॉटस्पॉट: इंपैक्ट्स ऑफ टेम्प्रेचर एंड प्रीसिपिटेशन चेंजेज ऑन लीविंग स्टैंडर्ड ” में कहा गया है। 2050 तक, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश टॉप दो जलवायु परिवर्तन के हॉटस्पॉट होंगे और इन राज्यों के जीवन मानक में 9 फीसदी की कमी आएगी, जैसा कि रिपोर्ट में कही गई है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र का स्थान टॉप पांच राज्यों में है।भारत भविष्य में दो विपरीत रुझानों को देखेगा: यहां और अधिक बारिश होगी जिससे बाढ़ होगी और कमजोर मानसून होगा जिससे मध्य भारत में कम वर्षा आएगी, जैसा कि क्लाइमेट ट्रेंड्स की रिपोर्ट में कहा गया है। इस तरह के अनियमित वर्षा पैटर्न देश में खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करेंगे। याद रहे, अपने देश में 56 फीसदी खेत असिंचित हैं।

ग्रामीण भारतीय और किसान अधिक तेजी से प्रभावित होंगे

असिंचित क्षेत्रों में तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी, खरीफ (सर्दियों) के मौसम में किसानों की आय में 6.2 फीसदी और रबि ( मानसून ) के मौसम में किसानों की आय में 6 फीसदी की कमी होती है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 22 मार्च 2018 की रिपोर्ट में बताया है।

और औसत वर्षा में हर 100 मिमी गिरावट के साथ खरीफ मौसम के दौरान किसान आय 15 फीसदी कम होती है और रबी के दौरान 7 फीसदी कम होती है। यह भारत की खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करेगा, जिससे खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों में गरीबों को कमजोर बना दिया जाएगा। यह भारत की आधी आबादी पर भी प्रभाव डालेगा जो कृषि क्षेत्र पर निर्भर है। ‘क्लाइमेट ट्रेंड रिपोर्ट’ में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन से शहरी इलाकों में रहने वाले लोगों से ज्यादा ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को प्रभावित करता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ग्रामीण समुदायों के पास आपदा से निपटने और खुद को फिर से बसाने ( बाजार, पूंजी और बीमा के लिए कम पहुंच) के लिए कम संसाधन हैं।

10 करोड़ से अधिक लोग गरीबी में

जलवायु परिवर्तन का असर केवल गरीबी में रहने वाले लोगों तक ही सीमित नहीं है। जलवायु परिवर्तन के बिना परिदृश्य की तुलना में नीचे के 40 फीसदी लोगों की आय 2030 तक कम हो जाएगी, जैसा कि 2016 विश्व बैंक की रिपोर्ट में भविष्यवाणी की गई है। इसमें कहा गया है कि 10 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी में जा सकते हैं। धन में अंतर की खाई को बड़ा करने और गरीबी को बद्तर करने के मामले में जलवायु परिवर्तन का असर उन देशों में बहुत कम होगा, जहां विकास तेजी से, समावेशी और जलवायु-सूचित है, जैसा कि रिपोर्ट में कहा गया है।

2016 ‘वर्ल्ड बैंक शॉक वेव्स रिपोर्ट’ ने जलवायु परिवर्तन से लड़ने में दुनिया के मौजूदा विकल्पों के प्रभाव को समझने के लिए दो परिदृश्यों पर विचार किया - 'समृद्ध परिदृश्य' और 'गरीब परिदृश्य'।

समृद्ध परिदृश्य मानता है कि दुनिया में चरम गरीबी 2030 तक 3 फीसदी से कम हो जाएगी। गरीब परिदृश्य मानता है कि 11 फीसदी आबादी चरम गरीबी में बनी रहेगी।

अध्ययन में पाया गया है कि, गरीब परिदृश्य की तुलना में समृद्ध परिदृश्य में गरीबी पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव में काफी कमी आई है।

गरीबी पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

Note: Increase in number of extreme poor people due to climate change in the high-impact climate scenario (% of total population)

रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के दीर्घकालिक खतरे को कम करने के लिए सरकारों को गरीबों और समावेशी विकास नीतियों को चुनने की जरूरत है।

इसके अलावा, कृषि, स्वास्थ्य और पारिस्थितिक क्षेत्रों में लक्षित क्रियाएं, जो गरीबी में रहने वालों को जलवायु परिवर्तन के प्रति कम संवेदनशील बनाती हैं, धन के अंतर को कम करने में मदद कर सकती हैं।

(श्रेया रमन एक डेटा विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 21 दिसंबर, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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