जलवायु-परिवर्तन प्रतिबद्धताओं और घरेलू प्रदूषण की चिंताओं के साथ, भारत में दुनिया के सबसे बड़े कार्यक्रमों में से एक नवीनीकरण का विस्तार होना है। अगले पांच वर्षों में क्षमता का तीन गुना। लेकिन रिकार्ड विस्तार के दो साल बाद, जीएसटी (माल और सेवा कर) को सब्सिडी देने के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा टैक्स के मोड़ में प्रेरित घाटे और सौर उपकरणों के घरेलू निर्माताओं की रक्षा के लिए एक नया आयात शुल्क भारत के महत्वाकांक्षी 2022 लक्ष्य को भटका सकता है।

यही वजह है कि 1 फरवरी, 2018 का ( जिस दिन सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी 2019 के आम चुनावों से पहले अपना पूरा अंतिम बजट पेश करेगी ) अक्षय क्षेत्र के लिए विशेष महत्व है, जिसमें सौर, पवन, जल और जैव बिजली और बायो-पावर शामिल है।

ये ऐसे मुद्दे हैं, जिनके लिए बजट में संघर्ष करना होगा। भारत वर्ष 2016 से सालाना नवीकरणीय विस्तार लक्ष्य खो चुका है। जीएसटी नुकसान को सब्सिडी देने के लिए 2017 में 56,700 करोड़ रुपए देने के साथ पिछले छह वर्षों में साफ ऊर्जा उपकर ( देश में अक्षय ऊर्जा के वित्तपोषण के लिए एक प्रमुख स्रोत ) का 29 फीसदी से अधिक खर्च नहीं किया गया है। चीन, ताइवान और मलेशिया से आने वाले सौर मॉड्यूल पर एक नया आयात शुल्क उत्पादन लागत बढ़ा देता है और इससे सौर उर्जा की दर कम हो सकती है। और अगर कर्मचारियों को प्रशिक्षित नहीं किया गया तो ग्रामीण इलाकों के गरीब इस नए क्षेत्र की नौकरियों में पीछे छूट सकते हैं।

अगर भारत पेरिस जलवायु समझौते 2015 के अनुसार वर्ष 2022 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के 175 गिगाट (जीडब्ल्यू) स्थापित करने की अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करना चाहता है तो इन मुद्दों पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है। यह 1,000 मेगावाट के 175 कोयला बिजली संयंत्रों को वापस रखने और जीवाश्म ईंधन पर भारत की निर्भरता कम करने ( भारत की 92 फीसदी बिजली जीवाश्म ईंधन से आती है ) के लिए पर्याप्त है, जो ग्रीनहाउस गैसों का उत्पादन करता है और ग्लोबल वार्मिंग तेज करता है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत के वर्ष 2022 नवीकरणीय लक्ष्य में से 100 गीगावॉट सौर और 60 गीगावॉट पवन ऊर्जा से आने की उम्मीद है। भारत ने नवंबर, 2017 तक 62 जीडब्ल्यू नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित की, जिसमें से 27 जीडब्ल्यू, या 43.5 फीसदी मई 2014 से चार वर्षों में स्थापित किया गया था।

नतीजतन, 2014-15 और 2017-18 के बीच अक्षय ऊर्जा के लिए बजट आवंटन में 38.9 फीसदी की वृद्धि हुई है।

नई और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के लिए परिव्यय, 2007-2018

नवीकरणीय विकास तेज,लेकिन लक्ष्य से चूके

नवंबर, 2017 तक, भारत की स्थापित 331 जीडब्लू क्षमता में से नवीकरणीय क्षमता 18 फीसदी थी, जो कि वर्ष 2014 में 13 फीसदी थी, जब भाजपा सरकार ने पदभार संभाला था। लेकिन दो साल से 2017 तक, भारत अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्य से काफी हद तक पीछे रह गया है।

वर्ष 2017-18 के दौरान, प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) द्वारा 27 दिसंबर, 2017 को प्रकाशित एक विज्ञप्ति के अनुसार, 14 जीडब्ल्यू के लक्ष्य के लिए, 30 नवंबर 2017 तक 4.8 जीडब्ल्यू नवीकरणीय क्षमता को जोड़ा गया था। भारत को अब मार्च, 2018 के अंत तक अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए प्रत्येक माह लगभग 3 जीडब्ल्यू जोड़ने की जरुरत है।

भारत ने वर्ष 2016-17 में 16.66 गीगावॉट के लक्ष्य के मुकाबले अक्षय ऊर्जा से 11.31 गीगावॉट की ग्रिड से जुड़ी बिजली उत्पादन क्षमता शामिल की है, जिसका मतलब है कि इसका लक्ष्य 32 फीसदी तक कम है।

वर्ष 2016-17 के दौरान, भारत ने 5.5 गीगावाट की पवन ऊर्जा क्षमता को जोड़ा है। यह इसकी सबसे बड़ी वृद्धि है और 38 फीसदी तक के लक्ष्य से कहीं अधिक है। हालांकि, तब से नवंबर 2017 तक, भारत 88 फीसदी तक अपने लक्ष्य से कम हो गया, 4 जीडब्ल्यू की बजाय केवल 0.46 गीगावॉट जोड़ा गया है।

इसी तरह, भारत ने 5.52 गीगावॉट-सौर ऊर्जा क्षमता का सबसे बड़ा हिस्सा नवंबर, 2017 तक बढ़ाया, लेकिन लेकिन वर्ष 2017-18 के गीगीवॉट के लक्ष्य से 44.8 फीसदी पीछे रह गया है।

वर्ष 2022 तक रूफटॉप सौर परियोजनाओं के 100 गीगावॉट के भारत के सौर लक्ष्य में 40 फीसदी (40 गीगावॉट) प्राप्त करने का अनुमान है। सरकार ने 1.7 गीगावॉट की ऐसी परियोजनाओं को मंजूरी दे दी है और वर्ष 2017 में 0.86 गीगावॉट क्षमता से अधिक स्थापित नहीं किया गया है। इस दर पर, 2022 के लक्ष्य को पूरा होने में 2064 तक का समय लगेगा।

सौर मॉड्यूल के आयात पर शुल्क से कम टैरिफ रिकॉर्ड को नुकसान

घरेलू निर्माताओं की सुरक्षा के लिए, भारत ने चीन, ताइवान और मलेशिया से आयात किए गए सौर मॉड्यूल और इकाइयों पर 70 फीसदी शुल्क का प्रस्ताव किया है, जिससे वर्तमान में भारत की आवश्यकताओं का 90 फीसदी मिलता है।

सौर इकाइयों के लिए भारत की वार्षिक घरेलू उत्पादन क्षमता लगभग 3 गीगावॉट या देश की 20 गीगावॉट की आवश्यकता का 15 फीसदी है। भारत निर्मित सौर कोशिकाओं के लिए एक वाट की लागत लगभग 62 रुपए है और चीनी सौर इकाइयों के लिए इसकी लागत करीब 25 रुपए है।

सौर परामर्शदाता, ब्रिज टू इंडिया के सीनियर मैनेजर, मुदित जैन ने 9 जनवरी, 2018 को इकोनॉमिक टाइम्स को बताया है, "अगर शुल्क लगाया जाता है तो परियोजना लागत लगभग 40 फीसदी तक बढ़ जाएगी, जो अंत में सौर ऊर्जा दरों में बढ़ोतरी करेगी।"

भारत ने वर्ष 2017 में कम सौर और वायु टैरिफ का रिकॉर्ड देखा है, कोयला आधारित परियोजना द्वारा उत्पन्न बिजली की दर से भी कम। कोयला आधारित पॉवर के लिए 3.20 रुपए की तुलना में सबसे कम सौर टैरिफ 2.44 प्रति यूनिट बिजली की थी और हवा के लिए 2.64 रुपए प्रति यूनिट थी।

राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा और पर्यावरण निधि का स्थानांतरण

राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा और पर्यावरण निधि (एनसीईईएफ) 2010-11 में राष्ट्रव्यापी स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं को निधि देने के लिए, कार्बन टैक्स का उपयोग ( कोयला उत्पादकों और आयातकों को लगाए गए कोयला पर एक स्वच्छ ऊर्जा उपकर ) कर लगाया गया था।

लेकिन उस निधि का उस तरह इस्तेमाल नहीं किया गया जैसा उसे होना चाहिए था।पिछले छह वर्षों से 2016-17 तक 53,967.23 करोड़ रुपये स्वच्छ ऊर्जा सेस के रूप में एकत्रित किए गए थे।

सरकार के लेखापरीक्षक, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक द्वारा जारी दिसंबर 2017 की ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, इसमें से 15,483.21 करोड़ (28.7 फीसदी) से अधिक एनसीईईएफ को स्थानांतरित कर दिया गया था।

सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, मार्च 2018 तक अतिरिक्त 29,700 करोड़ रुपए जुटाए जाएंगे। सरकार द्वारा स्वच्छ ऊर्जा सेल के लिए एकत्रित धन के एक तिहाई से थोड़ा अधिक एनसीईईएफ को स्थानांतरित कर दिया गया है, और परियोजनाओं पर 7,000 करोड़ रुपए से कम खर्च किया गया है।

56,700 करोड़ रुपए का अव्ययित एनसीईईएफ धन 2017 में जीएसटी के रोलआउट के दौरान हुए नुकसान के लिए क्षतिपूर्ति के लिए दिया गया है, जैसा कि वेबसाइट Scroll.in द्वारा सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत दायर एक अनुरोध की प्रतिक्रिया से पता चला है।

एनसीईईएफ 2011 के बाद से नई और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) के लिए वित्त का एक प्रमुख स्रोत रहा है। 2017-18 के बजट में, एमएनआरई के बजट का 97.6 फीसदी एनसीईईएफ से आया था।

एनसीईएफ फंड की अनुपस्थिति में, 2018-19 के बजट से पता चलेगा कि भारत अपने नवीकरणीय ऊर्जा मुहिम को कैसे निधि दिलाना चाहता है।

नवीकरणीय ऊर्जा की तुलना में सब्सिडी का ज्यादा पक्ष जीवाश्म ईंधन को

भारत ग्रिड बिजली के बिना 240 मिलियन लोगों को बिजली प्रदान करना चाहता है। बिजली की आपूर्ति की गुणवत्ता में सुधार करना और प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत को बढ़ावा देना चाहता है, जो 1,075 किलोवाट (2015-16) पर वैश्विक औसत का एक तिहाई है।

इन लक्ष्यों को हासिल करने में ऊर्जा सब्सिडी एक प्रमुख भूमिका निभाती है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 8 जनवरी, 2018 की रिपोर्ट में बताया है। और यह न सिर्फ भविष्य में बिजली के विकल्प बल्कि प्रदूषण के रुझान को भी तय करेगा।

जीवाश्म ईंधन वर्तमान में भारत की 92 फीसदी बिजली प्रदान करता है, और मुख्य रूप से बिड़ते वायु प्रदूषण, रोग और मृत्यु के लिए जिम्मेदार हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 29 जुलाई, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

हालांकि, भारत घोषणा करता है कि यह नवीकरणीय ऊर्जा के हिस्से में वृद्धि करना चाहता है, ऊर्जा सब्सिडी का सबसे बड़ा हिस्सा अब भी जीवाश्म ईंधन के पक्ष में है, जैसा कि इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आईआईएसडी) और ओव्हरसीज डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट, और एक संस्था, आईसीएफ इंडिया द्वारा 2017 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया है।

वर्ष 2015-16 के लिए भारत की 1.35 लाख करोड़ रुपए की ऊर्जा सब्सिडी का 6.9 फीसदी से अधिक नवीनीकरण के लिए नहीं गया है।

आईआईएसडी में एसोसिएट और रिपोर्ट के सह-लेखक विभूति गर्ग ने इंडियास्पेंड से बातचीत में कहा, "सरकार को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि केरोसिन और एलपीजी सहित जीवाश्म ईंधन की कीमतों को प्रतिस्पर्धात्मक रूप से निर्धारित किया जा रहा है। "

ग्रीन क्षेत्र की नौकरियों में तेजी लाने के लिए अकुशल ग्रामीण भारतीयों को प्रशिक्षण की जरूरत

अगले पांच वर्षों में, तीन गुना नवीनीकरण के लिए भारत का स्वच्छ-ऊर्जा पर जोर 330,000 नौकरियां उत्पन्न कर सकती हैं, लेकिन यह एक कुशल कार्यक्रम के बिना संभव नहीं होगा, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 20 दिसंबर, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

कई प्रशिक्षण कार्यक्रम शहरी केंद्रों में हैं, जिससे गरीब ग्रामीणों का नामांकन मुश्किल होता है। घर का काम, बच्चों की देखभाल और सामाजिक मानदंड महिलाओं के प्रशिक्षण कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए लगभग असंभव बनाते हैं। यहां तक ​​कि अगर वे इन सभी चुनौतियों का सामना करते हैं, तो प्रशिक्षण संस्थानों का पाठ्यक्रम अक्सर उद्योग की जरूरतों के अनुरूप नहीं होता है, जैसा कि हमने पहले भी बताया है।

इन चुनौतियों के समाधान के अलावा, बजट में ध्यान देने की भी आवश्यकता हो सकती है।

(त्रिपाठी प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं। )

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 25 जनवरी, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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