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नई दिल्ली: महाराष्ट्र के वेंगुर्ला और पंचगनी जैसे कुछ छोटे शहर, और केरल के आलप्पुजा और तिरुवनंतपुरम जैसे मध्यम स्तर के शहर अन्य बड़े शहरों की तुलना में बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन कर रहे हैं। यह जानकारी 10 राज्यों में 20 शहरों पर हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में सामने आई है।

दिल्ली स्थित एक संस्था, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) द्वारा 7 जून, 2018 को जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का ( पूर्वी दिल्ली, दक्षिण दिल्ली और गुरुग्राम ) का प्रदर्शन सबसे बुरा रहा है। दस लाख या उससे अधिक लोगों की आबादी वाले शहर, जैसे इंदौर और मैसूर का प्रदर्शन बेहतर रहा है।

ये शहर सीएसई द्वारा स्रोत-पृथक्करण और अपशिष्ट प्रबंधन के विकेन्द्रीकृत मॉडल को बढ़ावा देने और कार्यान्वित करने के लिए लॉन्च किए गए 'फोरम ऑफ सिटीज सेग्रगेट ' नामक एक मंच के हिस्से हैं। 90 फीसदी से अधिक भारत के पास उचित अपशिष्ट निपटान प्रणाली नहीं है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 12 मई, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

अपशिष्ट प्रबंधन शहरी भारत में एक बड़ी समस्या है, क्योंकि यह सालाना 62 मिलियन टन ठोस अपशिष्ट उत्पन्न करता है, जैसा कि ‘द फाइनेंशियल एक्सप्रेस’ ने 2 अगस्त, 2016 की रिपोर्ट में बताया है। यह 6.2 मिलियन ट्रकलोड (10 टन प्रति ट्रक पर) या प्रति दिन लगभग 17,000 ट्रकलोड के बराबर है।

2016 के पर्यावरण मंत्रालय के इस नोट के मुताबिक भारतीय शहरों में केवल 75-80 फीसदी कचरा नगर निगम निकायों द्वारा एकत्रित किया जाता है।

देश भर में उत्पन्न होने वाले प्रतिदिन 143,000 टन प्रति दिन (टीपीडी) ठोस कचरे का केवल 24 फीसदी संसाधित किया जाता है, जैसा कि ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ ने 11 मार्च, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।

अपशिष्ट प्रबंधन क्षमताओं के आधार पर शहरों के स्कोर

प्रदर्शन का आकलन करने के लिए, शहरों को तीन अलग-अलग श्रेणियों के तहत वर्गीकृत किया गया है। छोटे (100,000 मिलियन से कम आबादी), मध्यम आकार (100,000 से 10 लाख की आबादी) और 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहर।

2017-18 के लिए, शहरों को विभिन्न मानकों पर उनके प्रदर्शन पर स्कोर किया गया, जिसमें स्रोत, संग्रह, परिवहन, अपशिष्ट प्रसंस्करण, विकेन्द्रीकृत प्रणालियों को अपनाने, अनौपचारिक क्षेत्र को शामिल करने और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन उप-कानूनों और प्लास्टिक के प्रवर्तन सहित अपशिष्ट प्रबंधन नियम शामिल हैं।

बेहतर परिवहन, लेकिन कम निपटान

रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकांश फोरम शहरों में, जैसा कि हमने उल्लेख किया है, कि कुशल संग्रह और परिवहन व्यवस्था है। लेकिन केवल कुछ शहरों ने कचरा भराव क्षेत्र में न्यूनतम निपटान सुनिश्चित करने और अधिकतम संसाधन का उपयोग किया है।

20 फोरम शहरों में से केवल चार ने अपने 90 फीसदी से अधिक कचरे को अलग आकलन किया है। मध्यप्रदेश में इंदौर, महाराष्ट्र में पंचगनी और वेंगुर्ला, और केरल के आलप्पुजा।

दक्षिण दिल्ली नगर निगम (एसडीएमसी), पूर्वी दिल्ली नगर निगम (ईडीएमसी), पटना, गया, इम्फाल और गुरुग्राम 33 फीसदी से कम अपशिष्ट अलग करने में असफल रहे हैं।

छह फोरम शहर ( इंदौर, मसूरु, आलप्पुजा, पंचगनी, बालाघाट और वेंगुर्ला ) 90 फीसदी से अधिक अपशिष्ट संसाधित करता है।

एसडीएमसी और ईडीएमसी 33-75 फीसदी गीला और सूखा अपशिष्ट संसाधित करता है। गुरुग्राम एक वर्ष में उत्पन्न होने वाले गीले और सूखे अपशिष्ट का 33 फीसदी से कम संसाधित करता है।

एनसीआर जैसे बड़े क्षेत्रों में, जमा असंसाधित कचरा भूमिगत पानी प्रदूषित कर रहा है, जैसा कि ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ ने 9 जून, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।

निपटान प्रतिशत के आधार पर शहरों का स्कोर

Cities' Score On The Basis Of Disposal Percentage
Disposal PercentageCities
>75 %Patna, Gaya, Gurugram
50 -75 %Bengaluru, Imphal, Bhopal, Muzaffarpur
33-50 %SDMC, EDMC, Vaijapur, Greater Hyderabad
10-33 %Mysuru, Balaghat, Bobbili, Gangtok, Thiruvananthapuram, Indore
<10%Panchgani, Vengurla, Alappuzha

Source: Centre For Science And Environment

शहर की सफाई पर केंद्र सरकार द्वारा वार्षिक सर्वेक्षण, सर्वेक्षण 2018 में अधिकांश शहर 'प्रत्यक्ष रूप से' साफ हैं, लेकिन कई लोगों के पास अपशिष्ट की प्रसंस्करण और निपटान के लिए उपयुक्त सिस्टम नहीं हैं। वे कचरा इकट्ठा करना जारी रखते हैं और इसे कम-कार्यात्मक प्रसंस्करण साइटों, कचरा भराव क्षेत्र या डंप साइट्स में डंप करते हैं, जैसा कि सीएसई के डिप्टी डायरेक्टर जनरल चंद्र भूषण कहते हैं।

भूषण कहते हैं,”प्रभावी निपटान तंत्र के साथ पृथक्करण का समर्थन करने के लिए शहरों को एंड-टू-एंड सिस्टम बनाने की दिशा में ध्यान केंद्रित करना होगा। देश में ठोस कचरा प्रबंधन परिदृश्य को बदलने में सहायता मिलेगी।”

अपशिष्ट प्रबंधन के आकांक्षापूर्ण तरीकों को अपनाने वाले छोटे शहर

रिपोर्ट में कहा गया है कि छोटे शहर अपने अपशिष्ट के प्रबंधन में अधिक प्रयास कर रहे हैं। तिरुवनंतपुरम और आलप्पुजा ने अपशिष्ट प्रबंधन के लिए विकेन्द्रीकृत सिस्टम बनाने में निवेश किया है। कुछ शहर घरेलू स्तर पर विकेन्द्रीकृत प्रसंस्करण को भी बढ़ावा दे रहे हैं।

पंचगनी, वेंगुर्ला और आलप्पुजा जैसे कुछ फोरम शहरों ने शून्य लैंडफिल मॉडल को अपनाने के लिए सिस्टम बनाए हैं। वेंगुर्ला में कोई डंप साइट या कचरा भराव क्षेत्र नहीं है।

सीएसई के कचरा प्रबंधन इकाई, की प्रोग्राम मैनेजर स्वाती सिंह संबायल कहती हैं, "हमारे आकलन में यह स्पष्ट है कि बड़े शहरों के मुकाबले स्रोत-पृथक्करण को लागू करने में छोटे शहर अधिक सफल रहे हैं। वे अपने दृष्टिकोण में भी अभिनव रहे हैं और इसलिए अच्छा प्रदर्शन किया है।"

उप-नियमों को अमल में लाना चुनौती

केवल कुछ शहरों ने एसडब्ल्यूएम नियम, 2016 के अनुसार उप-कानून लागू किए हैं । वे शहर हैं इंदौर, एसडीएमसी, ईडीएमसी, मुजफ्फरपुर, वेंगुर्ला और बॉबबिली। उप-नियमों को अमल में लाना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि केवल इंदौर और वेंगुर्ला ने उप-नियमों के अमल के कुछ स्तर सुनिश्चित किए हैं।

(त्रिपाठी प्रमुख संवाददाता है और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 18 जून, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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