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अगस्त 2016 को, ओडिसा में अस्पताल प्रशासन द्वारा एंबुलेंस न दिए जाने पर एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी की लाश कंधे पर उठा कर 10 किमी का सफर तय किया।

29 अगस्त 2016 को उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में, अस्पताल में प्रवेश न मिलने पर एक व्यक्ति के बच्चे ने उसके कंधे पर अपना दम तोड़ दिया।

इस तरह के मामले तब दिखते हैं जब सोशल मीडिया और टेलीविज़न का ध्यान मिलता है लेकिन इस तरह के लाखों लोग हैं जिनकी भारत के अत्यधिक बोझ तले दबे अस्पतालों और पर्याप्त चिकित्सा सुविधाओं तक पहुंच नहीं है। सरकारी आंकड़ों पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि भारत में 500,000 डॉक्टरों की कमी है। यह विश्लेषण विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के 1: 1,000 आबादी के प्रतिमान पर आधारित है।

2014 के अंत तक 740,000 सक्रिय डॉक्टरों के साथ – 1: 1,674 डॉक्टर मरीज जनसंख्या अनुपात का दावा किया गया था जो वियतनाम, अल्जीरिया और पाकिस्तान से भी बदतर है - स्वास्थ्य और परिवार कल्याण संबंधी संसदीय समिति की इस रिपोर्ट में स्वास्थ्य प्रबंधन विफलताओं में डॉक्टरों की कमी का उल्लेख किया गया है। समिति ने 8 मार्च, 2016 को संसद के दोनों सदनों में रिपोर्ट के निष्कर्षों को पेश किया है।

निजी मेडिकल कॉलेजों में अवैध कैपिटेशन फीस, शहरी और ग्रामीण भारत के बीच स्वास्थ्य सेवाओं की असमानता और सार्वजनिक स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा प्रणाली के बीच असंबंधन कुछ मुद्दे थे जिसे समिति ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की जांच करते हुए हुए अन्वेषित किया है। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया 82 वर्ष पुरानी संगठन है जो चिकित्सा - शिक्षा के मानकों के लिए जिम्मेदार है।

भारत के 55,000 डॉक्टरों में से 55 फीसदी हर साल निजी कॉलेजों से ग्रैजुएट होते हैं जिनमें से कई पर अवैध दान, या "कैपिटेशन फीस" का आरोप है; तमिलनाडु में, इस तरह के कॉलेज से छात्रों को बैचलर ऑफ सर्जरी (एमबीबीएस) की डिग्री प्राप्त करने के लिए 2 करोड़ रुपए लगते हैं, जैसा कि 26 अगस्त 2016 को टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपनी रिपोर्ट में बताया है।

यह असंतुलन चिकित्सा शिक्षा के पहुंच के साथ शुरू होता है।

लगभग आधी आबादी के साथ वाले राज्यों में एमबीबीएस सीटों का केवल पांचवा हिस्सा है

एक अनाम विशेषज्ञ जो संसदीय समिति के समक्ष पेश हुए, उनके मुताबिक, “छह राज्यों, जो भारत की आबादी का 31 फीसदी का प्रतिनिधित्व करते हैं, वहां 58 फीसदी एमबीबीएस सीटें हैं; दूसरी ओर, आठ राज्य जहां भारत की आबादी के 46 फीसदी लोग रहते हैं, वहां केवल 21 फीसदी एमबीबीएस सीटें हैं।”

यह चिकित्सा - शिक्षा असंतुलन व्यापक सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दों को प्रतिबिंबित करते हैं। सामान्य रुप से स्वास्थ्य की कमी को गरीबी के साथ जोड़ा जाता है। उदाहरण के लिए, कुपोषित बच्चों के उच्चतम अनुपात के साथ वाले राज्यों में झारखंड और छत्तीसगढ़ में संस्थागत प्रसव के लिए सबसे खराब बुनियादी ढांचा है।

भारत के गरीब राज्यों के स्वास्थ्य संकेतक, कई गरीब देशों की तुलना में बद्तर हैं और भारत का स्वास्थ्य खर्च, ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत , चीन, दक्षिण अफ्रीका) देशों के बीच सबसे कम है, जैसा कि इसके स्वास्थ्य संकेतक हैं।

एक अन्य विशेषज्ञ के मुताबिक, हर साल देश भर में 55,000 डॉक्टर अपना एमबीबीएस और 25,000 पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा करते है। उन्होंने समिति से कहा कि विकास की इस दर के साथ, वर्ष 2020 तक 1.3 बिलियन आबादी के लिए भारत में प्रति 1250 लोगों पर एक डॉक्टर (एलोपैथिक) होना चाहिए और और 2022 तक प्रति 1075 लोगों पर एक डॉक्टर होना चाहिए (जनसंख्या: 1.36 बिलियन)।

दूसरे विशेषज्ञ का कहना है कि, “हालांकि, समिति को सूचित किया गया है ...एक रात में डॉक्टर नहीं बनाया जा सकता है और यदि हम अगले पांच सालों तक हर साल 100 मेडिकल कॉलेज जोड़ते हैं तभी वर्ष 2029 तक देश में डॉक्टरों की संख्या पर्याप्त होगी।”

रिपोर्ट कहती है कि, मेडिकल कॉलेजों में वृद्धि के बावजूद डॉक्टरों की कमी है। मेडिकल कॉलेजों की संख्या 1947 में 23 से बढ़ कर 2014 के अंत तक 398 हुआ है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि किसी भी अन्य देश की तुलना में भारत में अधिक मेडिकल कॉलेज हैं और 2014 में 49,930 दाखिले उपलब्ध थे।

रिपोर्ट के मुताबिक, “एक विशेषज्ञ जो समिति के समक्ष पेश हुआ उसने बताया कि भारत में डॉक्टरों की बहुत कमी है और इस कमी को पूरा करने के लिए भारत में चार सौ नहीं बल्कि एक हज़ार मेडिकल कॉलेजों की ज़रुरत है।”

इस बीच मेडिकल में दाखिले का विस्तार किया जाना जारी है

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा प्रकाशित एक ई-किताब के अनुसार,केंद्र सरकार ने पिछले दो साल में 1,765 सीटों के साथ 22 मेडिकल कॉलेजों को मंजूरी दी है।

नीति आयोग, एक सरकारी थिंक टैंक, ने भारत के स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा के बुनियादी ढांचे के पुनर्मूल्यांकन करने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा आयोग विधेयक, 2016 मसौदा तैयार किया है।

जबकि 1,100 सीटों के साथ 11 नए अखिल भारतीय मेडिकल साइंसेज संस्थान (एम्स) खोले गए हैं और साथ ही सरकार ने अतिरिक्त 4,700 एमबीबीएस की सीटों का प्रस्ताव दिया है।

ई-किताब के अनुसार, पिछले दो शैक्षिक सत्रों में कम से कम 5540 एमबीबीएस सीटों और 1,004 पीजी सीट जोड़े गए हैं।

चिकित्सा शिक्षा की कमी से राष्ट्रीय स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में कर्मचारियों की कमी है: सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में, विशेषज्ञ चिकित्सा पेशेवरों की 83 फीसदी की कमी है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने सितंबर 2015 में विस्तार से बताया है।

भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में सार्वजनिक- स्वास्थ्य केन्द्रों में - 29 राज्यों और सात केंद्र शासित प्रदेशों में 25308 – 3,000 से अधिक डॉक्टरों की कमी है। पिछले दस वर्षों में यह कमी 200 फीसदी बढ़ी है, जैसा कि फरवरी 2016 में इंडियास्पेंड ने विस्तार से बताया है।

इस तरह, समिति सरकार के डॉक्टर - जनसंख्या अनुपात के संबंध में संशयी है।

संसदीय रिपोर्ट कहती है, “इस तथ्य को देखते हुए कि इंडियन मेडिकल रजिस्टर एक जीवित डेटाबेस नहीं है और इनमें ऐसे डॉक्टरों के नाम शामिल हैं जिनका अब तक या तो निधन हो गया है या जो सक्रिय नहीं हैं या सेवानिवृत्त हो चुके हैं, साथ ही वे नाम भी शामिल हैं जिनके स्थायी पते देश के बाहर हैं और इस तरह के मामलों को छानने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है इसलिए समिति मंत्रालय के प्रति 1,674 की आबादी पर एक डॉक्टर के दावे पर उलझन में है। इस दृषटि में, समिति का मानना ​​है कि भारत में कुल डॉक्टरों की संख्या आधिकारिक आंकड़े की तुलना में काफी छोटी है और हमारे यहां प्रति 2000 जनसंख्या पर एक डॉक्टर है।

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 01 सितंबर 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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