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इन सर्दियों में दिल्ली सरकार और न्यायपालिका ने शहर के वायु प्रदूषण को कम करने के उद्देश्य से कई नीतियों को लागू किया है। हाल ही में समपन्न हुई सम-विषम योजना की प्रायोगिक पहल से वाहन चालकों को हर दूसरे दिन परिवहन के वैकल्पिक साधन खोजना आवश्यक हुआ है। कार मुक्त दिन, पहले दिन गुड़गांव एवं दूसरे दिन दिल्ली में होने से, प्रदूषण स्तर में अस्थायी रुप से गिरवाट दिखाई देती है। रात के समय में जब दिल्ली में ट्रकों की आवाजाही की अनुमति होती है, उसमें कमी दिखाई दी है एवं नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने ट्रक यातायात को रात में शहर में आने से कम करने के लिए अतिरिक्त प्रवेश शुल्क लगाने निर्देश जारी किया है।

कुछ दिन वायु अधिक साफ हो सकती है। लेकिन जो बात साफ नहीं है वो यह है कि दिल्ली में इतना वायु प्रदूषण आता कहां से है। पिछले कई वर्षों में इसका कारण जानने की कोशिश की गई है (जिसे स्रोत प्रभाजन के अध्ययन कहा जाता है) जिससे विरोधाभासी परिणाम सामने आए हैं। वायु में प्रदूषण फैलाने के कई कारण समने आए हैं जैसे कि कारें, ट्रक, स्टीमर का धुआं, पंजाब एवं हरियाणा के खेतों में लगाने वाले आग एवं निर्माणस्थलों से निकलने वाला धूल। बिना यह जाने कि किस स्रोत की प्रदूषण फैलाने में कितनी हिस्सेदारी है, किसी भी प्रकार की नीति से बेहतर लाभ नहीं मिल सकता है।

लेकिन शायद इसमें बदलाव हो सकते हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर ने 2011 में दिल्ली पर्यावरण विभाग द्वारा कमीशन एक प्रमुख अध्ययन जारी किया है। यह अध्ययन प्रदूषण स्रोत प्रभाजन की स्पष्ट तस्वीर दिखाने का दावा करता है। इसके साथ ही वायु प्रदूषण पर गुणवत्ता की जानकारी के अन्य नए स्रोत भी दिख रहे हैं : सरकार दिल्ली में 10 नए वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों को जोड़ने की योजना बना रही है। साथ ही इंडियास्पेंड की #Breathe सहित कई समाचार केंद्र अपनी निगरानी व्यवस्थाएं स्थापित कर रहे हैं।

यह दिल्ली की वायु को प्रदूषित करने वाले स्रोतों के संबंध में हमारी समझ के साथ ही उन्हें कम करने के उदेश्य से बेहतर नीतियां बनाने की क्षमता में एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है। एविडेंस फॉर पॉलिसी डिज़ाइन (EPoD) में हम रिसर्चर, ऐसी प्रतिक्रियाओं को तैयार करने में सरकारी मंत्रालयों की सहायता करते हैं। हमारा मानना है कि कि इस समय (सार्वजनिक चिंता का विषय, नीति निर्माताओं का ध्यान, और शैक्षणिक योगदान का एक महत्वपूर्ण अभिसरण) यह ध्यान देना चाहिए कि कि अभी हम क्या जानते हैं और यह हमें कैसे पता चला है। इस स्पष्टता से नीति प्रतिक्रिया की ओर चर्चा एवं मार्गदर्शन में आसानी होगी।

स्रोत की खोज

स्रोत प्रभाजन के अध्ययन के संचालन के लिए दो तरीके हैं : रासायनिक विश्लेषण के आधार पर प्रत्यक्ष नमूना और निगरानी के आंकड़ों के आधार पर माध्यमिक डेटा विश्लेषण। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सबसे बेहतर परंपरा रिसेप्टर आधारित अध्ययन पर निर्भर करना है, लेकिन जहां बजट की कमी के कारण पर्याप्त नमूनों में मुश्किल आती है, वहां माध्यमिक डेटा का उपयोग कर विश्लेषण पर ज़ोर रह सकता है।

पिछले दस वर्षों में, हाल ही में आईआईटी कानपुर द्वारा जारी किए गए अध्ययन के अलावा, हम 15 स्रोत प्रभाजन के अध्ययन की गिनती करते हैं जो दिल्ली के कुल वायु प्रदूषण के लिए उत्सर्जन के स्रोतों और उनके संबंधित योगदान की ओर इंगित करता है। दस प्रत्यक्ष नमूनों पर आधारित हैं; अन्य पांच माध्यमिक डेटा पर निर्भर करते हैं। हालांकि सभी अध्ययन में मुख्य स्रोत की पहचान समान ही है लेकिन इन अध्ययनों द्वारा विभिन्न स्रोतों के संबंध में बड़ा अंतर दिखाई देता है। यह उन अध्ययनों को आयोजित करने में कठिनाई एवं वर्तमान में उपलब्ध अध्ययन की गुणवत्ता की व्यापक रेंज, दोनों पर ज़ोर देता है।

दिल्ली में वायु प्रदूषण के मुख्य कारण

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Note: the methodology followed by the IIT-Kanpur study is not yet available to the public. For analysis, click here.

दिल्ली के मौसम में होने वाले बदलाव एवं हर दिन, सप्ताह, और साल भर में लगातार उत्सर्जन का स्वरुप बदलने के कारण वायु प्रदूषण की एक विश्वसनीय तस्वीर निकाल पाना मुश्किल है। इसके अलावा, प्रदूषण के कुछ महत्वपूर्ण स्रोत, राजधानी दिल्ली क्षेत्र के बाहर स्थित हैं। इसलिए यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि प्रत्यक्ष वायु नमूने के अध्ययन इतने व्यापक होने चाहिए कि कई स्रोत उसके भीतर आ सकें और अलग अलग समय बिंदुओं पर नमूने ले सके। यह करने की असमर्थता (बजटीय विचारों की वजह से) एवं लिए गए नमूनों में परिणामस्वरूप मतभेद, अध्ययनों में बड़े अंतर के लिए स्पष्टीकरण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

ऐसी स्थितियों में, माध्यमिक डेटा के आधार पर विश्लेषण स्रोत प्रभाजन के अध्ययन के लिए सबसे अच्छा विकल्प हो सकता है, जब तक कि माध्यमिक स्रोत विश्वसनीय हैं और प्रासंगिक उत्सर्जन स्रोतों तक फैला हो। फिलहाल, इस स्थिति में हमारे पास इस उपाय की कमी है। मानकीकृत सर्वोत्तम प्रथाओं के बिना, किन माध्यमिक डेटा स्रोतों का उपयोग एवं किन मॉडल का उपयोग करना है, स्रोत प्रभाजन के अध्ययनों का आगे भी परस्पर विरोधी परिणाम देना जारी रहेगा।

तो केवल प्रदूषण संबंध में ही हमारी जानकारी में कमी नहीं है बल्कि दूसरा सबसे अच्छा निर्धारित करने के संबंध में आम सहमति की भी कमी है। इस लेख के दूसरे भाग में हम कल आईआईटी कानपुर द्वारा किए गए अध्ययन के निष्कर्षों पर चर्चा करेंगें कि किस प्रकार डेटा पदानुक्रम में फिट है एवं नीति की प्रतिक्रिया पैदा करने की अन्य जानकारी प्रणालियों की आवश्यकता है जिससे दिल्ली की वायु साफ सकेगी।

(पांडे हार्वर्ड केनेडी स्कूल पब्लिक पॉलिसी की मोहम्मद कमल प्रोफेसर हैं एवं एविडेंस फॉर पॉलिसी डिज़ाइन (EPoD) के सह- निर्देशक हैं। डॉज एविडेंस फॉर पॉलिसी डिज़ाइन में डाटा एनालिटिक्ल लीड हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 19 जनवरी 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

यह दो लेख श्रृंखला का पहला भाग है।

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