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मुंबई: एक नए अध्ययन के मुताबिक, महिलाओं के विवाह में एक वर्ष की देरी, उन्हें घरेलू हिंसा से बचा सकती है।

एक दशक से 2016 तक, भारत में 18 साल की उम्र से पहले विवाहित लड़कियों की संख्या में 20 प्रतिशत अंक की कमी आई है। यूनिसेफ के मुताबिक, ये आंकड़े 2006 में 47 फीसदी से 2016 में 27 फीसदी हुए हैं। लकिन अब भी, बाद के विवाह करने वाली महिलाओं की तुलना में 1.5 मिलियन लड़कियां घरेलू हिंसा के प्रति अधिक संवेदनशील बनी हुई हैं, जैसा कि भारतीय प्रबंधन संस्थान, इंदौर और शिव नादर विश्वविद्यालय द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित अध्ययन के निष्कर्ष कहते हैं। 2018 के अध्ययन के मुताबिक, विवाह में सिर्फ एक साल की देरी के साथ ‘कम गंभीर शारीरिक हिंसा’ की घटनाओं ( जैसे कि जैसे धक्का, हाथ मोड़ना, बालों को खींचना या थप्पड़ मारना ) तक पहुंचने वाली कुल 25 फीसदी महिलाओं की संख्या 18 फीसदी तक पहुंच सकती है। हिंसा की अधिक गंभीर घटनाओं ( जैसे कि लात मारना, मारना, चकमा देना, जलाना, धमकाना या हथियार से हमला करना ) में 6 फीसदी प्रसार है, जो 2 फीसदी तक आ सकती है। यदि राष्ट्रीय महिला आबादी (2011 की जनगणना के अनुसार 586 मिलियन, 50 फीसदी जिनमें से विवाहित हैं) पर लागू होता है, तो इसका मतलब है कि कम गंभीर हिंसा से ग्रस्त महिलाओं की संख्या 20 मिलियन तक कम हो सकती है। अध्ययन के अनुसार 73 मिलियन से 53 मिलियन पर। गंभीर शारीरिक हिंसा के संपर्क में आने वाले लोगों की संख्या 18 मिलियन से 6 मिलियन हो सकती है।

विवाह में युवा महिलाओं को हिंसा का सामना करने की अधिक संभावना क्यों है? अध्ययन के मुताबिक, जो महिलाएं जल्दी शादी करती हैं, उनकी पढ़ाई में बाधा आती है, वे घरेलू हिंसा के लिए कम आक्रामक और कम प्रतिरोधी होते हैं, और इसलिए उनके पीड़ित होने की आशंका ज्यादा होती है। साथ ही, जिन महिलाओं को पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते औपचारिक शिक्षा से अलग होने का दवाब दिया जाता है, उनके पास कम सामाजिक और आर्थिक संसाधन होते हैं । उनके लिए उपलब्ध वैवाहिक परिस्थिति के भीतर सशक्तिकरण के अवसर कम होते हैं।

पार्टनर द्वारा शारीरिक या यौन दुर्व्यवहार के संपर्क में आने वाले लोगों की कम वजन वाले बच्चों को जन्म देने की 16 फीसदी संभावना, गर्भपात होने की दोगुनी से अधिक संभावना और अवसाद का अनुभव करने की लगभग दोगुनी संभावना के साथ महिलाओं के खिलाफ हिंसा एक महत्वपूर्ण वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है।

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे -4 (2015-2016) के मुताबिक, भारत में 52 फीसदी महिलाएं महसूस करती हैं कि पतियों के लिए अपनी पत्नियों को सजा के रूप में मारना कोई गलत बात नहीं है। कम उम्र में शादी और घरेलू हिंसा के संपर्क के बीच का जो संबंध है वह इस बात पर जोर देता है कि लड़कियों की शिक्षा जारी रखने और उनकी शादी में देरी करने के लिए परिवारों को प्रोत्साहित किया जाए और बाल विवाह के मामले को कम किया जाए।

भारत में, राज्य कई तरह के कार्यक्रम कर रहे हैं( उदाहरण के लिए पश्चिम बंगाल में कन्याश्री प्रकाल और हरियाणा में अपनी बेटी अपना धन,) और देरी से विवाह के लाभों पर समुदायों को संवेदनशील बनाने के लिए ‘सुकन्या समृद्धि योजना’ जैसी सरकारी योजनाएं हैं।

विशेष रूप से कम सामाजिक-आर्थिक और रूढ़िवादी समूहों में माता-पिता युवावस्था के तुरंत बाद लड़की की शादी की संभावनाओं के बारे में सोचना शुरू करते हैं। यह चिंता विभिन्न कारकों से प्रेरित होती हैं, जैसे कि बच्ची की देखभाल से मुक्त होने की जरूरत, कुछ दहेज राशि और कई बार अवांछित गर्भावस्था का डर भी।

भारत की बाल संरक्षण प्रणाली को मजबूत करने के लिए काम कर रहे एनजीओ आंगन ट्रस्ट के संस्थापक निदेशक सुप्रणा गुप्ता कहते हैं, "विवाह को जोखिम के बजाए एक सुरक्षात्मक रणनीति के रूप में देखा जाता है। समाज में एक डर है कि किशोर लड़कियां असुरक्षित हैं और वे अवांछित यौन हमलों का शिकार हो सकती हैं। "

गुप्ता कहते हैं कि एक किशोर लड़की का विवाह कर देने का मतलब है, एक किशोर लड़के को काम में धकेलना और उसे शिक्षा से बाहर करना है।

लिंग असमानता को महिलाओं के खिलाफ हिंसा का प्राथमिक कारण माना जाता है, जो सामाजिक मानदंडों और प्रथाओं से प्रेरित है, जहां महिलाओं को कम तरजीह दी जाती है और घरेलू हिंसा को सामान्यीकृत किया जाता है। घरेलू हिंसा को सहन या स्वीकार कल लेने का माहौल यहीं से बनता है।

28 फीसदी उत्तरदाताओं ने घरेलू हिंसा के एक या एक से अधिक रूपों का अनुभव किया था

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण - 4 (2015-2016) से डेटा का उपयोग करके, शोधकर्ता 9, 343 सर्वे उत्तरदाताओं के बीच विभिन्न प्रकार की घरेलू हिंसा के प्रसार को स्थापित करने में सक्षम थे।

यह पहली बार है कि शादी में उम्र और घरेलू हिंसा के संपर्क में एक कारण संबंध स्थापित किया गया है, जिसे चार अलग-अलग प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है: गंभीर शारीरिक हिंसा, कम गंभीर शारीरिक हिंसा, यौन हिंसा और भावनात्मक हिंसा।

अध्ययन में कहा गया है कि सर्वे उत्तरदाताओं में से 28 फीसदी ने ऊपर वर्णित घरेलू हिंसा के एक या एक से अधिक रूपों का अनुभव किया था। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों से मेल खाता है, जो कहता है कि वैश्विक स्तर पर तीन महिलाओं में से एक ने अपने पार्टनर की ओर से हिंसा का अनुभव किया है।

नए सर्वेक्षण में एक चौथाई उत्तरदाताओं ने बताया कि उन्हें कम गंभीर शारीरिक हिंसा (25 फीसदी) का सामना करना पड़ा था। 6 फीसदी ने गंभीर शारीरिक हिंसा की बात कही। 6 फीसदी को यौन हिंसा और 11 फीसदी को भावनात्मक हिंसा का सामना करना पड़ा था।

घरेलू हिंसा की हर श्रेणी में, 19 वर्ष से पहले विवाहित महिलाएं बाद में शादी करने वाली लड़कियों की तुलना में हिंसा के उच्च स्तर का अनुभव करती थीं।

आयु वर्ग के बीच सबसे बड़ा अंतर भौतिक हिंसा की ‘गंभीर’ और ‘कम गंभीर’ श्रेणियों में पाया गया था। यौन और भावनात्मक हिंसा को शादी की उम्र के लिए कोई सांख्यिकीय रूप से प्रासंगिक सहसंबंध नहीं मिला था।

उम्र, विवाह और घरेलू हिंसा का प्रसार

Source: The causal impact of women’s age at marriage on domestic violence in India, 2018

कम आयु में मासिक धर्म से कम उम्र में विवाह की संभावनाओं में बढ़ोतरी

कम उम्र में (14 साल की उम्र से पहले ) मासिक धर्म शुरू हो जाने शादी जल्द होने की संभावना (0.75 फीसदी) बढ़ जाती है। 15 साल की उम्र में मासिक धर्म शुरू हो जाने से शादी जल्द होने की संभावना 0.49 फीसदी थी।

मासिक धर्म पर आयु द्वारा विवाह में महिला आयु का वितरण

Source: The causal impact of women’s age at marriage on domestic violence in India

अध्ययन के निष्कर्ष के अनुसार, यदि सामाजिक मानदंड जो मासिक धर्म की शुरुआत में शादी का समर्थन करता है, उसे बदला जा सकता है, घरेलू हिंसा से अधिक महिलाओं को संरक्षित किया जा सकता है, जैसा कि परिणाम में सुझाया गया है। गुप्ता कहते हैं, "हालांकि हालात बदल रहे हैं - सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के अलावा, राजनीतिक इच्छाशक्ति भी है। बिहार में, मुख्यमंत्री ने बाल विवाह में कमी को प्राथमिकता दी है और 2017 तक इस लक्ष्य को प्राप्त करने की घोषणा की है। पुलिस भी इस मुद्दे से जुड़ी हुई है। "

घरेलू हिंसा से भी निपट सकती हैं शिक्षित महिलाएं

अध्ययन में पाया गया कि उम्र और साझेदार की ओर से हिंसा का संबंध हमेशा नकारात्मक नहीं होता है। बाद में शादी करने वाली महिलाएं अधिक शिक्षा, शादी के भीतर अधिक सौदा करने वाली शक्ति और अधिक दृढ़ होने की क्षमता हो सकती हैं लेकिन उन्हें अपने साथी से ‘कठिन प्रतिक्रिया’ का सामना करना पड़ सकता है।

सार्वजनिक स्वास्थ्य पर केंद्रित गैर-लाभकारी, स्नेहा में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हिंसा की रोकथाम पर कार्यक्रम के निदेशक नारायण दारुवाला ने कहा, "अधिक शिक्षा निस्संदेह अच्छी है क्योंकि यह महिलाओं को अधिक अवसर, अधिक संसाधन देती है, लेकिन साथ ही, इन संसाधनों के बावजूद कई अन्य निर्धारक हैं जो महिलाओं को उस हिंसक रिश्ते में रखते हैं।"

"हमने पिछले 18 वर्षों में 13,000 से अधिक महिलाओं के मामले को निपटाया है और हम हिंसा के गंभीर रूपों से ग्रस्त महिलाओं को भी बहुत शिक्षित करने की कोशिश करते हैं। दुर्भाग्य से यह हिंसा भारत में परिवारों की संरचना में बहुत ही अंतर्निहित है।"

अध्ययन के मुताबिक, महिलाओं की बढ़ती शिक्षा का सशक्त प्रभाव तलाक या अकेलेपन से जुड़े लांछन को कम कर सकता है।

( संघेरा लेखक और शोधकर्ता हैं। इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं। )

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 9 नवंबर, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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