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नई दिल्ली: यदि भारतीय महिलाएं शिक्षित और आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं और वे घरेलू हिंसा का कम सामना करती हैं, तो विशेषज्ञों के मुताबिक उनमें आत्महत्या करने की दर में गिरावट होने की संभावना है। भारत में महिलाओं के आत्महत्या की दर वैश्विक औसत दर से दोगुना ज्यादा है।

भारत में प्रति 100,000 महिलाओं पर 15 महिलाएं आत्महत्या कर लेती हैं, जो वैश्विक औसत से 2.1 गुना ज्यादा है और 2016 में विश्व में छठा सबसे ज्यादा है, जैसा कि सितंबर 2018 में एक चिकित्सा पत्रिका ‘द लंसेट’ में प्रकाशित 2016 के अध्ययन, ‘जेंडर डिफ्रेंश्यल एंड स्टेट इन सुसाइड डेथ्स इन इंडिया: द ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजिज स्टडी 1990 में बताया गया है। भारतीय महिलाओं की आयु में मानकीकृत आत्महत्या मृत्यु दर (एसडीआर) में 27 फीसदी की कमी आई है. जबकि पुरुषों के लिए आयु मानकीकृत एसडीआर 1990 से 2016 तक नहीं बदला है। आयु मानकीकृत दर विभिन्न आबादी के बीच प्रसार की तुलना में मदद करती है।

भारत की वैचारिक संस्था, ‘पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया’ में पब्लिक हेल्थ के प्रोफेसर राखी डंडोना कहती हैं, "यह शिक्षा स्तर बढ़ने, महिलाओं में विवाह की उच्च आयु और 1990 से 2016 के बीच आर्थिक प्रगति के कारण हो सकता है।"

अध्ययन में कहा गया है कि, भारत में महिलाओं के बीच आत्महत्या में उच्चतम अनुपात विवाहित महिलाओं का है और यह इस तथ्य के बावजूद है कि विश्व भर में विवाह को आत्महत्या के खिलाफ सुरक्षात्मक कारक के रुप में जाना जाता है।

अध्ययन में कहा गया है कि इसे अरेंज मैरेज, कम आयु में विवाह, युवा मातृत्व, निम्न जीवन स्तर, घरेलू हिंसा और आर्थिक स्वतंत्रता की कमी जैसे कारकों द्वारा समझाया जा सकता है।

कम आयु में विवाह और निम्न स्तर

भारत में कम आयु में विवाह अभी भी आम है। नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस -4) के अनुसार 27 फीसदी लड़कियों का विवाह 18 वर्ष की आय़ु से पहले हुआ है और 8 फीसदी लड़कियां (15-19 साल) 19 वर्ष की आयु से पहले गर्भवती थी।

दुनिया भर में घरेलू हिंसा का महिलाओं में आत्महत्या विचारधारा के साथ सीधा संबंध है। भारत में 15-49 साल के आयु वर्ग में लगभग 29 फीसदी विवाहित महिलाओं ने अपने पार्टनर द्वारा हिंसा का अनुभव किया है और गर्भावस्था के दौरान 3 फीसदी महिलाओं ने हिंसा का सामना किया है, जैसा कि एनएफएचएस-4 के आंकड़ों से पता चलता है। 15-49 साल की उम्र में केवल 36 फीसदी भारतीय महिलाओं ने 10 साल से ज्यादा शिक्षा प्राप्त किया है। इसलिए, कम उम्र में विवाह, मातृत्व और घरेलू हिंसा के साथ, भारतीय महिलाओं के पास शिक्षा या आर्थिक आजादी नहीं आती है।

चेन्नई के स्नेहा इंडिया से जुड़े और स्वैच्छिक स्वास्थ्य सेवाओं और अध्ययन के लेखकों में से एक लक्ष्मी विजयकुमार कहती हैं, "पुरुषों के विपरीत, शिक्षा आत्महत्या के खिलाफ महिलाओं के लिए एक सुरक्षात्मक कारक है। पुरुषों के बीच आत्महत्या का सबसे आम कारण वित्तीय ऋण है, जबकि महिलाओं के लिए यह परिवार और वैवाहिक समस्या है।”

विजयकुमार ने कहा कि बाल विवाह को रोकना, लड़कियों को शिक्षित करना और दहेज पर रोक से महिलाओं में आत्महत्या को रोकने में मदद मिलेगी।

महिलाओं द्वारा आत्महत्या के लिए एक और महत्वपूर्ण कारक पुरुषों के बीच शराब का सेवन है। उन्होंने बताया कि "कई अध्ययनों में पुरुषों द्वारा शराब के सेवन, घरेलू हिंसा और महिलाओं द्वारा आत्महत्या के बीच सीधा रिश्ता नजर आया है। " यौन और अंतरंग साथी हिंसा में कमी महिलाओं में आत्महत्या को कम कर सकती है। एक अनुमान के अनुसार, यौन दुर्व्यवहार न हो तो जीवन भर में महिला आत्महत्या के प्रयास में 28 फीसदी कमी आएगी जबकि पुरुषों के लिए यह आंकड़े 7 फीसदी हो सकते हैं।

पुरुषों और महिलाओं में अंतर

डंडोना ने कहा, "हालांकि विभिन्न सामाजिक कारकों के कारण महिलाओं की आत्महत्या में कमी आई है, लेकिन यह चिंता की बात है कि पुरुषों की आत्महत्या दर लगभग तीन दशकों में नहीं बदली है।"

1990 में महिलाओं के बीच आत्महत्या के कारण मौतें प्रति 100,00020 में थीं और 2016 में प्रति 100,000 पर 15 थीं। पुरुषों में, यह आंकड़ा 1990 में प्रति 100,000 पर 22 और 2016 में प्रति 100,000 पर 21 था। वैश्विक स्तर पर, महिलाओं की तुलना में पुरुषों में आत्महत्या का जोखिम दो गुना ( 200 फीसदी ) ज्यादा है। भारत में, अंतर छोटा है, महिलाओं की तुलना में केवल 50 फीसदी अधिक है।

15-39 साल के आयु वर्ग में मृत्यु का प्रमुख कारण आत्महत्या थी। महिलाओं में 71 फीसदी मौत और पुरुषों में 58 फीसदी मौतें आत्महत्या से हुई थीं।

भारत में आत्महत्याएं – महिलाएं बनाम पुरुष

Source: The Lancet

नोट: ईटीएल महामारी विज्ञान संक्रमण स्तर को संदर्भित करता है - यानी, इस क्षेत्र के विकास के साथ संक्रमणीय से गैर-संक्रमणीय बीमारियों में संक्रमण। कम ईटीएल संक्रमणीय बीमारियों के उच्च बोझ को संदर्भित करता है और उच्च ईटीएल गैर-संक्रमणीय बीमारियों के उच्च बोझ को संदर्भित करता है।

महिलाओं की आत्महत्या के प्रयासों की रिपोर्ट न होती

हालांकि ये अनुमान भारत में आत्महत्या की सीमा को समझने में महत्वपूर्ण हैं, लेकिन वे आत्महत्या के प्रयासों और आत्महत्या के प्रयास में जिनकी मौत नहीं होती, उनको रिपोर्ट करने में चूक जाते हैं

महिलाओं की वास्तविक आत्महत्या अक्सर रिपोर्ट नहीं की जाती है, क्योंकि शादी के सात साल के भीतर आत्महत्या होने पर परिवार जिम्मेदार होते हैं। 2014 आत्महत्या मृत्यु दर अध्ययन के मुताबिक, पुरुषों द्वारा आत्महत्या के मामले में 25 फीसदी अंतर के मुकाबले नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो द्वारा रिपोर्ट की गई महिलाओं के मुकाबले महिलाओं में अनुमानित आत्महत्या में 37 फीसदी अंतर था। सीईएचएटी के समन्वयक संगीता रेगे कहती हैं कि महिलाओं द्वारा जहर के द्वारा की कई आत्महत्या प्रयासों को आकस्मिक घटना मान ली जाती है। सीईएचएटी स्वास्थ्य पर काम करने के प्रयास का नाम है, जिसने भारत में हिंसा का सामना करने वाली महिलाओं के लिए पहली बार अस्पताल स्थित संकट केंद्र शुरू किया है।

सरकारी अस्पतालों में प्रति माह औसतन 25 महिलाएं "जहर लेने की आकस्मिक घटना" के तहत भर्ती कराई जाती हैं।

"हमने जहर लेने वाली ऐसी कई महिलाओं से मिलने के बाद 2000 में पहली बार दिलासा (अस्पताल स्थित संकट केंद्र) शुरू किया था। अस्पतालों में, इन महिलाओं को चिकित्सा उपचार मिला लेकिन उन्हें कोई ऐसा समर्थन नहीं मिला, जिससे वे भविश्य में आत्महत्या का प्रयास न करें। "

उन्होंने कहा कि अस्पताल में मनोचिकित्सक महिलाओं को प्रतिकूल परिस्थितियों के रूप में देखते हैं, जबकि वह उस असुविधाजनक माहौल की अनदेखी करते हैं, जिसमें रहते हे वह ऐसा कदम उठाती है।

अध्ययन के मुताबिक किशोरावस्था में आत्महत्या के दर में भी वृद्धि हुई है। 15-19 साल की उम्र में लड़कियों की हुई मौतों में लगभग 17 फीसदी आत्महत्या के कारण थीं और सभी उम्र समूहों में यह तीसरी सबसे ज्यादा घटनाएं थीं।

रेगे ने कहा, " माता-पिता के नजरिये के बारे में शायद ही कभी बात की जाती है, लेकिन माता-पिता बेहद नियंत्रण रखने वाले होते हैं। युवा लड़कियों के पास अपने निर्णय लेने के लिए कोई स्वायत्तता या आजादी नहीं है।”

राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक कम से कम 30 फीसदी घरेलू हिंसा माता-पिता या सौतेले माता-पिता द्वारा की जाती है।

अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग कारण

15-29 साल की महिलाओं के लिए 31 राज्यों में से 26 में आत्महत्या मृत्यु का प्रमुख कारण था। ‘द लंसेट’ के अध्ययन में कहा गया है कि विकासशील और विकसित राज्यों की तुलना में, कम विकसित राज्यों में आत्महत्या ने मृत्यु के निम्न अनुपात में योगदान दिया है।

दोनों लिंगों के लिए उम्र मानकीकृत आत्महत्या मृत्यु दर, 2018

Source: The Lancet (Image 4, age standardised SDR in 2016)

तमिलनाडु, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में उच्चतम एसडीआर था, प्रति 100,0000 आबादी पर 18 से अधिक; केवल तीन देशों ( ग्रीनलैंड (38.1), लेसोथो (35.3) और युगांडा (18.7) ) में उच्च एसडीआर है।

देश के अन्य हिस्सों की तुलना में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु के दक्षिणी राज्यों में पुरुषों और महिलाओं के लिए उच्च एसडीआर था।

डंडोना ने कहा, "आत्महत्या बहुत जटिल चीज है और इसका एक कारण नहीं है, इसलिए इसे कम करने के लिए अलग ढंग की रणनीति चाहिए।"

"दक्षिणी राज्य अधिक शहरीकृत हैं। वहां छोटे परिवार और महंगे जीवन शैली जैसे तनाव वाले कारक होते हैं। समय के साथ, ये स्थिर हो जाते हैं और फिर ग्रामीण इलाकों में एसडीआर में वृद्धि होती है, क्योंकि अधिक लोग शहरों में जाते हैं और विकास की कमी होती है। "

1990 से 2016 तक महिलाओं के बीच आत्महत्या में सबसे ज्यादा गिरावट उत्तराखंड (45 फीसदी), सिक्किम (43 फीसदी), हिमाचल प्रदेश (40 फीसदी) और नागालैंड (40 फीसदी) में थी।

भारत में आत्महत्या पर अधिक शोध की जरूरत

आत्महत्या युवाओं (15-39 साल) के बीच मौत का एक प्रमुख कारण हैं, लेकिन आत्महत्या और किसान आत्महत्या के प्रति सार्वजनिक ध्यान के अलावा उन्हें कैसे रोकें, इस पर बहुत कम काम हुआ है।

पुरुषों में आत्महत्या की अपरिवर्तनीय दरों पर खोज की जरूरत है। ‘द लंसेट’ के अध्ययन में कहा गया है, "भारत में पुरुषों के बीच आत्महत्या को देखते हुए ऐसा लगता है कि युवा वयस्क बहुत कमजोर समूह है। विवाह उनके लिए भी सुरक्षात्मक प्रतीत नहीं होता है।"

पुरुष तनाव को आंतरिक बनाते हैं और भावनात्मक मुद्दों का सामना करते समय मदद मांगने में परेशानी होती है। डंडोना ने कहा, "ऐसे कई मामले हैं जहां ​​आदमी ने जब तक अपना जीवन नहीं समाप्त कर दिया, तब तक परेशानी का कोई संकेत नहीं दिखा है।"

अध्ययन में कहा गया है कि 2017 में आत्महत्या के फैसले के साथ-साथ राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम के उत्तीर्ण होने से मानसिक स्वास्थ्य उपचार और कलंक में कमी और आत्महत्या की रिपोर्टिंग में सुधार की उम्मीद है।

कीटनाशकों के उपयोग को सीमित करना, जो आत्महत्या करने का सबसे आम तरीका पाया गया था, वैसे ही मदद कर सकता है जैसे कि शराब की बिक्री को विनियमित करने से हो सकता है। विजयकुमार कहते हैं, "सामान्य चिकित्सकों को अवसाद, अकेलापन और आत्महत्या के संकेतों का पता लगाने में मदद मिल सकती है और पारस्परिक संघर्षों को सुलझाने और क्रोध जैसी भावनाओं से निपटने में मदद करने के लिए स्कूल स्तर की शिक्षा में मदद मिल सकती है।"

हार्वर्ड टी चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के प्रोफेसर और भारत में आत्महत्या पर हुए 2014 के एक अध्ययन के लेखक विक्रम पटेल कहते हैं, “हमें पहले आत्महत्या को राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राथमिकता घोषित करके शुरुआत करने की जरुरत है।” उन्होंने आत्महत्या को कम करने के लिए रणनीतियों को प्राथमिकता देने, लागू करने और मूल्यांकन करने के लिए एक क्रॉस सेक्टरल / मिनिस्टीरीअल कमीशन की स्थापना का सुझाव दिया। पटेल कहते हैं कि भारत को चीन और श्रीलंका से प्रेरणा लेनी चाहिए, जहां पिछले दशक में आत्मघाती दरों में कमी आई है।

( यदवार प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं। )

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 24 अक्टूबर, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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