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उत्तरी भारत के एक शहर, अमृतसर के बैंक में पैसे जमा करता एक व्यक्ति। वहां के लोग बैंक में पैसे, विश्वास की कमी के कारण या फिर रोज़मर्रा के खर्चों से बचत न हो पाने के कारण जमा नहीं कराते थे। यह बात तीन गांवों और 11 शहरी क्षेत्रों में किए गए एक सर्वेक्षण में सामने आई है।

विश्व बैंक के एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2011 में, 15 वर्ष की आयु के उपर केवल 35 फीसदी लोगों (26.5 फीसदी महिलाएं एवं 43 फीसदी पुरुष) के पास बैंक खाते हैं। विश्व बैंक के आंकड़ों पर नज़र डालें तो पता चलता है कि 2014 तक, यह संख्या,जब आंध्र प्रदेश और ओडिशा के तटीय राज्यों में, फैलिन एवं हुड हुड चक्रवात से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, 53 फीसदी तक बढ़ी है (43 फीसदी महिलाएं एवं 62 फीसदी पुरुष)।

हालांकि, एक ही दिन में 10 मिलियन बैंक खाते खुले हैं - गरीबों के पास बैंक खाते हों, यह सुनिश्चित करने के लिए ,प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राष्ट्रव्यापी योजना के हिस्से के रूप में यह एक वैश्विक रिकॉर्ड है – लेकिन 30 फीसदी से अधिक बैंक खातों में पैसे नहीं हैं। इस संबंध में सरकारी आंकड़ों का हवाला देते हुए, इंडियास्पेंड ने पहले भी रिपोर्ट किया है।

यह पता लगाने के प्रयास में कि इन आपदाओं के समय लोग किस प्रकार वित्तीय रुप से सुरक्षित थे, हमने इन दोनों राज्यों के सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया है एवं तीन गांवों एवं 11 शहरी क्षेत्रों के परिवारों से बात की है। यह लगभग 200 परिवारों के छोटे यादृच्छिक नमूनों का प्रारंभिक निष्कर्ष है:

94 फीसदी परिवारों के पास बैंक खाते हैं

लोकप्रिय राय के विपरीत, साक्षात्कार किए गए 94 फीसदी परिवारों ने कहा है कि उनके पास कम से कम एक बैंक खाता है। कई लोगों के पास विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए कई बैंक खाते हैं। यह योजनाएं उन्हें मौजूदा खातों का उपयोग करने की अनुमति नहीं देती है।

जबकि 28 फीसदी लोगों के पास प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) खाते हैं, 16 फीसदी लोगों ने बताया कि उन्होंने यह खाते चक्रवात क्षति मुआवजा प्राप्त करने के लिए खोला है; 13 फीसदी लोगों ने अन्य सरकारी योजनाओं और उनका लाभ उठाने के लिए खाते खोले हैं।

अधिकतर लोग इन खातों का इस्तेमाल योजनाओं का लाभ उठाने के लिए कर रहे हैं: केवल 7 फीसदी लोग काम संबंधित लेन-देन के लिए इनका उपयोग करते हैं एवं 19 फीसदी लोग बचत योजनाओं के लिए इन खातों का इस्तेमाल करते हैं।

बैंक खाते खोलने का कारण

लोग बैंक में पैसे या तो विश्वास की कमी के कारण या फिर रोज़मर्रा के खर्चों से बचत न हो पाने के कारण बैंकों में पैसे जमा कराने से कतराते हैं।

लेकिन लोगों के अन्य तरह के निवेश करने का दावा किया है।

विकल्पों की कमी के कारण, या बेहतर रिटर्न मिलने की उम्मीद में, कई लोग अब भी, धोखाधड़ी का इतिहास जानने के बावजूद, प्राइवेट चिट फंड में हिस्सा लेते हैं। कई महिलाएं अनौपचारिक स्व-सहायता समूहों या सामाजिक - किटी सिस्टम का हिस्सा हैं जहां 20 से 25 महिलाएं एक-साथ आती हैं एवं प्रति व्यक्ति 10,000 रुपए से 20,000 रुपए तक एक की खाते में जमा करती हैं। वह अपनी ज़रुरतों के हिसाब से यह फंड लेती हैं एवं एक निश्चित अवधि में ब्याज के साथ लौटाती हैं।

यह सिस्टम, लोगों का एक-दूसरे पर सामाजिक विश्वास के कारण चलता है लेकिन कई लोगं जिनके पास परिसंपत्ति आधारित आजीविका है, जैसे कि किराने की दुकान, उन्होंने पैसे तरल रखने के बजाय अपनी दुकानों के लिए और अधिक संपत्ति में निवेश किया है।

तो, क्या बैंक खाते बेहतर वित्तीय सुरक्षा प्रदान करती हैं या आपदाओं के समय यह लोगों की मदद करते हैं?

संकट के समय सबसे पहले मदद दोस्त करते हैं, सरकार नहीं

साक्षात्कार लिए गए लोगों में से 73 फीसदी लोगों ने बताया कि चक्रवात के प्रभाव से उबरने के लिए सबसे पहले उनकी मदद दोस्त या रिश्तेदारों ने की है। ऐसे मामले ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में कम हैं। संभवत: इसका कारण दूरी या साझा करने के लिए सीमित संसाधन का होना हो सकता है। यह संकेत देता है कि लोगों को न केवल सामाजिक - सुरक्षा नेटवर्क पर भरोसा है बल्कि यही नेटवर्क सबसे अधिक उपलब्ध भी है।

चक्रवात के प्रभाव से उबरने के लिए कम से कम 76 फीसदी उत्तरदाताओं ने या तो अपने दोस्तों से पैसे लिए या फिर साहूकार से पैसे लिए हैं। यह ऋण 2 फीसदी से 5 फीसदी से मासिक ब्याज पर 3,000 रुपए से 2 लाख रुपए के बीच है।

चूंकि इनमें से अधिकतर लोगों के पास बैंक खाते थे, निश्चित लेकिन अपर्याप्त मुआवजा की तुलना में कम ब्याज दर सरकारी ऋण अधिक प्रभावी साबित हो सकते थे। इससे बैंकिंग प्रणाली को जोड़ते हुए अतिब्याजी ब्याज़ दर कम करने में मदद मिलेगी।

घरों, दुकानों एवं श्रमिकों के रुप में काम करने वाले कई लोगों ने, कम से कम या बिना ब्याज दरों के साथ उनके नियोक्ताओं से पैसे , कपड़े, दवाएं और अन्य खाद्य आपूर्ति उधार लिया है। खाजा साही , बरहामपुर, ओडिशा के एक झुग्गी बस्ती, जो चक्रवात की चपेट में आया था, वहां एक मुस्लिम ट्रस्ट ने अनौपचारिक सुरक्षा तंत्र का एक और उदाहरण देते हुए, लोगों के जीवन के पुनर्निर्माण में मदद की है।

चक्रवात प्रभाव से उबरने के लिए मिलने वाली सहायता

अधिकांश लोगों के पास जीवन बीमा है लेकिन इनके अन्य संरक्षण के बारे में पता नहीं है – या उसका इस्तेमाल नहीं करते हैं।

अधिकांश लोगों के पास, किसी न किसी रुप में जीवन बीमा है लेकिन हमने जितने भी लोगों से बात की है उनमें से किसी की भी उन तक पहुंच या अन्य प्रकार की बीमा, विशेष रूप से काम से संबंधित संपत्ति या आवास के संबंध में जानकारी नहीं थी, सिवाय विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित आवास परियोजनाओं से लाभान्वित को छोड़कर। इसका कराण, बाज़ार में अधिक संख्या में बीमा उत्पादों का, विशेष रूप से अनौपचारिक क्षेत्र में काम कर रहे या रहने वाले लोगों के लिए, उपलब्ध ना होना हो सकता है।

कम से कम 26 फीसदी उत्तरदाताओं ने कहा कि उनके पास किसी रुप में जीवन बीमा है; 25 फीसदी लोगों ने कहा कि उनके पास जीवन बीमा निगम की पॉलिसी है एवं 1 फीसदी लोगों के पास प्रधानमंत्री बीमा योजना पॉलिसी है, हालांकि इनमें अधिकांश लोगों को पता नहीं था कि इसे संचालित कैसे करते हैं।

करीब 43 फीसदी लोगों ने कहा कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना द्वारा कवर किया गया है, लेकिन करीब 21 फीसदी लोगों ने इसे इस्तेमाल करने की बात कही है, जैसा कि यह केवल प्रमुख चिकित्सा उपचार और आपात स्थितियों में ही लागू होता है।

लोगों के जीवन को क्या बनाता है असुरक्षित?

करीब एक तिहाई परिवारों ने स्वास्थ्य को बचत के लिए प्राथमिक कारण के रुप में बताया है, शिक्षा को 27 फीसदी , भविष्य हालात को 17 फीसदी, जिसमें चक्रवात, बारिश और किसी भी अन्य रोजमर्रा की चुनौतियां शामिल हैं, बाल विवाह को 9 फीसदी एवं आजीविका संबंधित जोखिम को 8 फीसदी फीसदी लोगों ने बचत का कारण बताया है। करीब 7 फीसदी लोगों ने घर की मरम्मत को बचत का प्रेरणा बताया है।

यह संकेत है कि अधिकांश लोग स्वास्थ्य, शिक्षा और भविष्य के जोखिम को बचत का कारण समझते हैं जबकि चक्रवात और आपदाएं इनमें शामिल नहीं हैं।

यह नीति जलवायु संबंधी जोखिम को कम करने के लिए काम कर रहे निर्माताओं को एक अंतर्दृष्टि दे सकता है एवं स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी सार्वजनिक सेवाओं के अविश्वास का संकेत देती है। लोगों ने इनके लिए बचत का जिम्मा खुद पर ले लिया है।

बचत के कारण

आपदा के समय, जब लोगों के पास सीमित तरल संपत्ति या वित्तीय सुरक्षा होती है, बैंक खाता होना एक महत्वपूर्ण कदम है लेकिन वित्तीय सुरक्षा के लिए पर्याप्त नहीं है।

(जैन, इंडियन इंस्टट्यूट ऑफ ह्यूमन सेटलमेंट में सलाहकार हैं एवं आपदा जोखिम से संबंधित मुद्दों पर काम करती हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 22 फरवरी 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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