upwomen_620

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में एक महिला सम्मेलन में भाग लेती भारतीय जनता पार्टी महिला मोर्चा की सदस्य। राज्य में मतदाताओं की संख्या में बढ़ोतरी के साथ ही महिला उम्मीदवारों के खिलाफ अधिक प्रत्याशी खड़े हो रहे हैं। चुनाव में कम महिलाओं की जीत हो पाती है और अधिकतर महिला उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा पाती हैं।

भारत का एक गरीब लेकिन सर्वाधिक आबादी वाला उत्तर प्रदेश पहला भारतीय राज्य था, जहां पहली बार महिला मुख्यमंत्री ने राज्य की सत्ता संभाली थी। वर्ष 1963 से वर्ष1967 तक सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रही हैं। लेकिन वर्षों पहले की इस उपलब्धि और स्थिति से शायद राज्य ने कुछ नहीं सीखा। आज भी यहां के चुनाव में महिलाओं के लिए संभावनाएं नहीं दिखतीं।

‘इंडियास्पेंड’ और ‘स्वनीति इनिश्यटिव’ द्वारा वर्ष 2002 के बाद से राज्य स्तर के उत्तर प्रदेश में पिछले तीन चुनाव के आंकड़ों के विश्लेषण में यह बात सामने आई कि राज्य में मतदाताओं की संख्या में बढ़ोतरी के साथ ही महिला उम्मीदवारों के खिलाफ अधिक प्रत्याशी खड़े हो रहे हैं। चुनाव में कम महिलाओं की जीत हो पाती है और अधिकतर महिला उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा पाती हैं।

अपवाद केवल अनुसूचित जाति (एससी) के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित सीटों पर है। सामान्य सीटों की तुलना में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर महिलाओं की जीत का प्रतिशत दोगुना है। यह सब आज की बात है, जब भारत में सबसे अधिक आबादी वाले इस राज्य में महिलाएं ज्यादा स्वस्थ हैं । बेहतर शिक्षित हुई हैं। इससे साफ है कि इन संकेतकों और महिलाओं की ओर से बेहतर राजनीतिक प्रतिनिधित्व के बीच कोई संबंध नहीं है।

जिन राज्यों में सबसे बद्तर लिंग अनुपात है, वहां विधानसभा में अधिक महिला सदस्य हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने सितंबर 2015 में विस्तार से बताया है।

मोटे तौर पर इसी अवधि के दौरान हमारे अध्ययन में, उत्तर प्रदेश में महिला साक्षरता वर्ष 2001 में 42.2 फीसदी से बढ़ कर वर्ष वर्ष 2011 में 59.3 फीसदी हुआ है। लिंग अनुपात 898 से सुधर कर 908 हुआ। यह जानकारी नीति आयोग द्वारा संकलित जनगणना के आंकड़ों में भी सामने आई है।

महिलाओं में खून की कमी के मामले में भी सुधार हुआ है और सुविधाओं के चलते प्रसव के दौरान मरने की संभावना भी कम हुई है। मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) सामान्य स्वास्थ्य प्रगति का सूचक होता है। उत्तर प्रदेश का मातृ मृत्यु दर वर्ष 2004-06 में प्रति 100,000 जीवित जन्मों पर 440 लोगों की मृत्यु से गिर कर वर्ष 2011-13 में 285 हुआ है।

अधिक महिलाएं लड़ रहीं है चुनाव, अधिक महिलाओं का जमानत भी हो रहा है जब्त

सामान्य रुप में, चुनाव में महिला प्रतियोगियों की संख्या में वृद्धि हुई है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने मई 2016 में बताया है, लेकिन हमने उत्तर प्रदेश में जमानत जब्त होने के ज्यादा मामले भी पाए हैं। जिसका मतलब है कि उम्मीदवार अपने निर्वाचन क्षेत्रों में हुए चुनाव में कुल दिए गए मत का छठा हिस्सा भी प्राप्त नहीं कर पाई।

राजनीतिक पार्टियां इसी बहाने के आधार पर कम महिला उम्मीदवारों को टिकट देती हैं, जिससे आगे उनके लिए राजनीतिक अवसर कम होते चले जाते हैं।

कैसे करता है यह काम?

इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमने पिछले तीन विधानसभा चुनावों से आंकड़ों का विश्लेषण किया है। विश्लेषण में सामान्य और अनुसूचित जाति के आरक्षित सीटों पर जमानत जब्त महिला उम्मीदवारों के प्रतिशत और सामान्य और आरक्षित सीटों से विजयी महिला उम्मीदवारों को प्राप्त मतों का अध्ययन किया गया है।

हमने यह जानने की कोशिश की कि क्या मतदाताओं की संख्या ज्यादा होने से, दोनों श्रेणियों की सीटों पर महिला उम्मीदवारों की जीत की संभावना कम होती जाती है।

यूपी चुनाव फैक्ट फाइल: 2002 से 2012

There were 314 general and 89 SC seats for the 2002 and 2007 assembly elections, while in 2012 there were 318 general and 85 SC seats.

The turnout in 2002 was 53.8%; 45.95% in 2007; and 59.52% in 2012.

हमने यह पाया है।

एक दशक के दौरान मतदान में वृद्धि, 2002-12

Source: Election Commission of India data for 2002, 2007 and 2012

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर ज्यादा महिलाओं की जमानत सुरक्षित

जैसा कि दिए गए ग्राफ से पता चलता है, कि ऐसी महिला उम्मीदवारों का अनुपात, जो चुनाव में जमानत जब्त होने से बचा पाई हैं या दूसरे शब्दों में कहें तो इतने वोट पाए कि राजनीतिक परिदृश्य पर उनकी मौजूदगी को गंभीरता से लिया जाए, अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर अधिक रहा है।

महिला उम्मीदवार जिनके जमानत जब्त हुए, वर्ष 2002 से 2012

Source: Election Commission of India data for 2002, 2007 and 2012; *As % of total female candidates in the category

अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित सीटों पर महिलाओं का बेहतर प्रदर्शन

वर्ष 2002 में, सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए 314 सीटों में से महिलाओं ने 11 सीटों (3.5 फीसदी) पर जीत हासिल की है। जबकि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 89 सीटों में से 15 सीटों (16.9 फीसदी) पर महिलाओं ने जीत हासिल की है। वर्ष 2012 तक 318 सामान्य सीटों में से महिलाओं ने 22 सीटें (6.9 फीसदी ) जीती हैं जबकि आरक्षित 85 सीटों में से 13 ( 15.3 फीसदी ) महिलाओं के नाम रही है। अनुसूचित-जाति की सीटों से चुनाव लड़ने वाली महिलाओं को पास जीतने का मौका दोगुना था।

सामान्य और आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में महिला विजेता, वर्ष 2002 से 2012

Source: Election Commission of India data for 2002, 2007 and 2012

कुछ प्रतिवाद के तथ्य –

  • हमारे द्वारा किए गए तीन चुनावों के विश्लेषण में हमने पाया कि आरक्षित सीटों की तुलना में सामान्य सीटों में मतदान ज्यादा हुआ था। यह दो चीजों में से एक का संकेत देती है कि उत्तर प्रदेश के मतदाताओं की पसंद महिला उम्मीदवार नहीं है या फिर मतदान निर्णय में लिंग एक कारक नहीं है।
  • आरक्षित सीटों की तुलना में सामान्य सीटों में अधिक महिला उम्मीदवार थे।

महिलाओं द्वारा जीते विधानसभा क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा, 2002-2012

Source: Election Commission of India data for 2002, 2007 and 2012; *Average number of candidates in constituencies with a female victor

क्या आरक्षण से या पार्टियों द्वारा महिलाओं से जुड़े एजेंडा पर काम करने से बदलेंगे हालात ?

महिला आरक्षण विधेयक [संविधान (108 वां संशोधन) विधेयक, 2008], राज्य सभा द्वारा पारित किया गया था लेकिन 15 वीं लोकसभा के विघटन के साथ 2014 में यहां पास होने से बाकी रह गया। इस विधेयक में संसद और राज्य विधान सभाओं में सीटों पर महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण का प्रावधान था, लेकिन इसका पुरुष नेताओं द्वारा व्यापक प्रतिरोध किया गया था।

इंडियास्पेंड के एक विश्लेषण के अनुसार, वर्ष 2001 के बाद से, महिला उन्मुख राजनीतिक एजेंडे के साथ काम करने वाले कम से कम 14 राजनीतिक दल भारत भर में उभरे हैं।

लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव के सांख्यिकीय रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 15 वर्षों में, इनमें से पांच पार्टियों ने या तो आम चुनाव या किसी राज्य विधानसभा चुनाव लड़ा है।

कम सफलता दर के बावजूद ( सभी मामलों में 100 फीसदी जमानत जब्त ) इनमें से ज्यादातर पार्टियां बची हुई हैं और पिछले कुछ वर्षों में एक ऐसे देश में जहां संसद में महिलाओं की हिस्सेदारी 11.4 फीसदी से ज्यादा नहीं है, महिलाओं के मुद्दों पर आधारित पार्टियों के पंजीकरण दर बढ़ रही है।

(शर्मा ‘स्वनीति इनिश्यटिव’ के फेलो हैं। दिल्ली स्थित यह गैर-लाभकारी संस्था विकास क्षेत्र में कार्य करती है।)

हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। हमसे respond@indiaspend.org पर संपर्क किया जा सकता है। हम भाषा और व्याकरण के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार रखते हैं।

__________________________________________________________________

"क्या आपको यह लेख पसंद आया ?" Indiaspend.com एक गैर लाभकारी संस्था है, और हम अपने इस जनहित पत्रकारिता प्रयासों की सफलता के लिए आप जैसे पाठकों पर निर्भर करते हैं। कृपया अपना अनुदान दें :