Discoms_620

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में बिजली वितरण कंपनी (डेसकॉम) 2016 तक कुल 21,486 करोड़ रुपये (3.2 बिलियन डॉलर) के नुकसान तक पहुंची हैं। यह रकम एक महीने से ज्यादा के लिए 100 मिलियन घरों के बिजली बिलों (प्रति परिवार प्रति दिन 10 इकाइयों पर 5 रुपये प्रति यूनिट) का भुगतान करने के लिए पर्याप्त है।

इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आईआईएसडी) की एक शाखा, ‘ग्लोबल सब्सिडी इनिशिएटिव’ (जीएसआई) के एक अध्ययन के मुताबिक, डेसकॉम को लाल रंग में रखते हुए सरकारों ने राजनीतिक लाभ के लिए बिजली की कीमतें कम रखी हैं। अन्य कारणों में तकनीकी नुकसान, बिजली चोरी और बिल में दर्ज रकम को प्राप्त करने में विफलता शामिल है।

नतीजा यह है कि नकद की कमी से जूझ रहा डेसकॉम, बिजली इस्तेमाल का विस्तार करने में असमर्थ हैं और राज्य में बिना बिजली की पहुंच वाले लोगों की संख्या ज्यादा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, नवंबर 2017 में राज्य के 38 मिलियन घरों में से 49 फीसदी घरों में बिजली की पहुंच नहीं थी। 2022 तक केंद्र सरकार की '24 × 7 पावर फॉर ऑल ' के लक्ष्य को पूरा करने के लिए राज्य को प्रति माह 300,000 घरों में बिजली पहुंचानी होगी।

जीएसआई के अध्ययन में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश की डेसकॉम ज्ज्वल डिस्क्मॉम एश्योरेंस योजना से लाभ लेने में विफल रही है। यह योजना 2015 में केंद्र सरकार द्वारा डेसकॉम को कर्ज से बाहर लाने के लिए शुरु की गई थी। मार्च 2017 में इस योजना में शामिल होने के बाद से उत्तर प्रदेश सरकार और राज्य में डिस्कोम ने 323 करोड़ रुपये की बचत की है ( कुल नुकसान का सिर्फ 15.46 फीसदी ) और और लक्षित किए लगभग 18 लाख बिना बिजली कनेक्शन घरों में से केवल 12 फीसदी को बिजली देने में कामयाब रहे हैं।

दोष राजनीतिक दलों में

लगातार सत्तारूढ़ दलों ने लोकलुभावन उपायों को अपनाया है। जैसे घरों के लिए बिजली की दरों में कमी और औद्योगिक और वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों के लिए टैरिफ बढ़ाने से कटौती और गरीब परिवारों को मुफ्त बिजली प्रदान करना, जैसा कि जीएसआई पर दिल्ली स्थित थिंक टैंक ‘सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च’ ( सीपीआर ) ने जून 2017 एक अध्ययन में बताया है। प्रत्येक सरकार ने आने आने वाली सरकार पर सुधार लागू करने का जिम्मा छोड़ दिया है।

सीपीआर में कहा गया है कि, "इससे कई सुधारों के निष्पादन में देरी हुई है, विशेष रूप से बिजली क्षेत्र में,जहां सालों के दौरान सब्सिडी की मात्रा में वृद्धि हुई है और बिजली की गुणवत्ता और विस्तार डेसकॉल द्वारा कम लगात में दिया गया है, जो वित्तीय कठिनाइयों में हैं।"

सीपीआर अध्ययन में दिखाया गया था कि कैसे राजनीतिक लाभ के लिए राजनीतिक दलों ने कम-लागत वाली बिजली की लोकप्रियता का फायदा उठाया है। वर्ष 2000 में, यूपीपीसीएल के पास अपने रिकार्ड में कोई कर्ज नहीं था, लेकिन उसके बाद सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी की सरकार मुख्य मंत्री राजनाथ सिंह ( जो अब देश के गृह मंत्री हैं ) ने 2002 के चुनावों के लिए टैरिफ में वृद्धि करने से इनकार कर दिया था, जैसा कि सीपीआर अध्ययन का हवाला देते हुए जीएसआई ने कहा, "इस प्रकार अन्य राजनैतिक दलों के लिए अनुकरण करने की मिसालें पैदा हुई हैं।"

आम तौर पर, सत्तारूढ़ राजनीतिक दल, टैक्स दरों में बढ़ोतरी में देरी के लिए डेसकॉम को प्रभावित करती है, जैसा कि जीएसआई अध्ययन के सह-लेखक श्रुति शर्मा ने इंडियास्पेंड को बताया है- “कभी-कभी, वे वांछित वोट बैंकों के लिए टैरिफ कम करते हैं- जैसा कि 2007 की चुनावों से पहले, समाजवादी पार्टी (सपा) ने बुनकरों के लिए चुना था।”

2007 में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी के सामने चुनाव हार गई। लेकिन 2012 के चुनावों के बाद सत्ता में आने पर, समाजवादी पार्टी ने फिर सब्सिडी का प्रस्ताव दिया, जैसा कि जीएसआई अध्ययन में कहा गया है। हालांकि, उत्तर प्रदेश विद्युत विनियामक आयोग (यूपीईआरसी) ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया, क्योंकि सरकार ने बिजली अधिनियम के तहत डेसकॉम को आवश्यक वित्तपोषण नहीं दिया था।

इसके बावजूद, सपा सरकार ने यूपीईआरसी को बायपास करने और बुनकरों को बिजली आपूर्ति पर सब्सिडी जारी रखने का आदेश जारी कर दिया, जैसा कि अध्ययन में कहा गया है।

ग्रामीण उपभोक्ताओं से कम राजस्व वसूली

मार्च, 2017 तक उत्तर प्रदेश में कुल 28.9 मिलियन ग्रामीण परिवारों में से 31.83 फीसदी बिजली का उपयोग कर रहे थे। शहरी क्षेत्रों में विद्युतीकृत घरों की संख्या अधिक थी, जिसमें 9.3 मिलियन घरों में 7.8 मिलियन या 84 फीसदी घरों तक बिजली की पहुंच थी, जैसा कि जीएसआई की रिपोर्ट में कहा गया है।

शेष 21 मिलियन या 55 फीसदी परिवार (दोनों शहरी और ग्रामीण) को 2022 से पहले '24 × 7 पावर फॉर ऑल' योजना के तहत ग्रिड से जुड़ा होने का लक्ष्य रखा गया है, जिसका उद्देश्य सभी घरों को प्रतिदिन 18-20 घंटे बिजली प्रदान करना है। जैसा कि पहले बताया गया है, उत्तर प्रदेश को इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए प्रति माह 350,000 घरों तक बिजली पहुंचानी होगी।

यह डेसकॉम को मजबूत करने से संभव होगा, जो कई चुनौतियों का सामना करता है। मुख्यतः, राजस्व की कमी के कारण पर्याप्त नुकसान, जिसके लिए ट्रांसमिशन नुकसान, बिजली चोरी और बिल संग्रह की कमी जिम्मेदार है, जैसा कि अध्ययन में कहा गया है।

अध्ययन में पाया गया कि ग्रामीण बिजली आपूर्ति राजस्व संग्रह में सबसे बड़ी कमी का कारण बनती है। कुल आवासीय खपत में आधी हिस्सेदारी ग्रामीण उपभोक्ताओं की है, लेकिन 25 फीसदी से अधिक ग्रिड बिजली का उपयोग करने वाले ग्रामीण घरों में मीटर स्थापित नहीं किया गया है। जबकि शहरी क्षेत्रों के लिए यह आंकड़े 85 फीसदी है। 10 फीसदी से कम ग्रामीण आबादी मीटर-आधारित ग्रिड बिजली का भुगतान करता है।

पूरी खपत के बावजूद गैर-मीटर वाले घर बहुत ही कम तय शुल्क का भुगतान करते हैं, जो राजस्व को काफी प्रभावित करते हैं, जैसा कि अध्ययन में पाया गया है।

निष्कर्ष कृषि उपभोक्ताओं के लिए समान हैं। अध्ययन के अनुसार, बिजली पंपों का इस्तेमाल करने वाले केवल 8 फीसदी किसानों ने मीटर स्थापित किया है और उनमें से 53 फीसदी ने बिजली बिल प्राप्त नहीं किया है।

निरंतर गड़बड़ी से हुए नुकसान ने डेसकॉम के तकनीकी और वित्तीय प्रदर्शन पर काफी असर डाला है, जैसा कि शर्मा ने कहते हैं। विद्युतीकरण के विस्तार के साथ, सरकार पर सब्सिडी का बोझ बढ़ेगा और बुनियादी ढांचे के विकास को प्रभावित करते हुए आगे डेसकॉम का वित्तीय स्वास्थ्य बिगड़ता जाएगा, जैसा कि जीएसआई रिपोर्ट के सह-लेखक, विभूति गर्ग ने इंडियास्पेंड को बताया है।

गर्ग कहते हैं, “हालांकि बिजली कवरेज बढ़ाने के प्रयास चल रहे हैं। लेकिन बस एक कनेक्शन प्रदान करने से कोई फायदा नहीं होने वाला, जब तक कि, विश्वसनीय और गुणवत्तापूर्ण आपूर्ति नहीं की जाती है। इसके लिए ‘डेसकॉम’ को अपने परिचालन और वित्तीय प्रदर्शन में सुधार करने की आवश्यकता है।

टैरिफ वृद्धि से ग्रामीण उपभोक्ताओं को सबसे ज्यादा असर होगा

जीएसआई के अध्ययन में कहा गया है कि सभी राज्यों के डेसकॉम की तरफ से, लागत में सुधार के लिए, यूपीपीसीएल ने सभी श्रेणी के उपभोक्ताओं के लिए 22 फीसदी तक टैरिफ बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है, लेकिन किसी भी उपभोक्ता ( आवासीय, कृषि या वाणिज्यिक ) ने इस वृद्धि को सही नहीं पाया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि, यदि वृद्धि को मंजूरी दे दी गई है, तो ग्रामीण उपभोक्ताओं ( मीटर और गैर-मीटर ) सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे।

प्रतिशत शब्दों में सबसे ज्यादा वृद्धि अनमृहीत ग्रामीण उपभोक्ताओं के लिए होगी, जिनकी 2 किलोवाट (केडब्ल्यू) कनेक्शन के लिए निर्धारित मासिक शुल्क 200 फीसदी से ज्यादा बढ़ कर वर्तमान के प्रति किलोवॉट 180 रुपये से 650 रूपये होगा।

मीटर वाले ग्रामीण उपभोक्ताओं के लिए, प्रस्तावित टैरिफ संशोधन 85 रुपये प्रति किलोग्राम निर्धारित मासिक शुल्क और और 4.4 रुपये किलोवाट-घंटे (केडब्ल्यूएच) के लिए इस्तेमाल किया गया है। संबंधित शुल्क वर्तमान में 50 रुपये प्रति किलोवॉट और 2.2 रुपये प्रति किलोवाट है।

उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग ने अभी तक वृद्धि को मंजूरी नहीं दी है।

केंद्रीय योजना से मदद नहीं मिली

2015 में केंद्र सरकार द्वारा कर्ज से डेसकॉम को राहत दिलाने के लिए शुरू की गई वित्तीय सहायता, उदय योजना भी उत्तर प्रदेश में मदद करने में विफल रहा है।

उदय योजना, ऑपरेटिंग क्षमता में सुधार, बिजली और ब्याज लागत को कम करती है, औसत तकनीकी एवं वाणिज्यिक (एटी एंड सी) नुकसान की निगरानी के माध्यम से वित्तीय अनुशासन को लागू करती है ( जिसमें ट्रांसमिशन नुकसान, बिजली चोरी और पैमाइश की कमी शामिल है ) । 10-15 साल की परिपक्वता अवधि के साथ बांड के माध्यम से वित्त पोषण किया जाता है, और डेसकॉम को लक्ष्य दिए जाते हैं।

मार्च 2017 में इस योजना में शामिल होने के बाद से यूपी सरकार और राज्य के डेसकॉम ने 49,847 करोड़ रुपये (7.5 बिलियन डॉलर) के बांड जारी किए हैं। कथित तौर पर, कम ब्याज लागत के माध्यम से इसने राज्य में 3,323 करोड़ रुपये (506 मिलियन डॉलर) की बचत की है ( इनके कुल घाटे में से 15.46 फीसदी ), जैसा कि अध्ययन में कहा गया है।

उदय योजना से कुछ लाभ हासिल हुए हैं। जैसा कि अध्ययन में पाया गया है।

फीडर की मीटरिंग (100 फीसदी; फीडर पावर लाइन है, जिससे बिजली संचारित होती है), एलईड (<100 फीसदी) का वितरण, असंबद्ध घरों में बिजली पहुंच का प्रावधान (12.5 फीसदी) और ग्रामीण फीडर (40 फीसदी) की लेखापरीक्षा पर प्रगति की गई है, जैसा कि अध्ययन में उल्लेख किया गया है।

हालांकि, अन्य मील पत्थर जैसे कि वितरण ट्रांसफार्मर मीटिंग (13 फीसदी शहरी और 1.47 फीसदी ग्रामीण), स्मार्ट मीटरिंग (0 फीसदी), फीडर अलगाव (0 फीसदी), उपभोक्ता अनुक्रमण (0 फीसदी), उपभोक्ता अनुक्रमण (0 फीसदी), जीआईएस मानचित्रण हानि (0 फीसदी) और तकनीकी और वाणिज्यिक घाटे में कमी (9 फीसदी के लक्ष्य के खिलाफ 2017 से एक साल में 2.46 फीसदी की कमी) में कम या थोड़ी भी प्रगति नहीं हुई है।

जीएसआई शोधकर्ताओं के साक्षात्कार में यूपीपीसीएल के अधिकारियों ने इस तथ्य पर आंशिक रुप से देरी का आरोप लगाया है। जनवरी 2016 में उदय पर हस्ताक्षर किए गए थे, लेकिन 2017 के मध्य तक कार्यान्वयन शुरू नहीं हुआ था।

उपभोक्ताओं ने टैरिफ में वृद्धि को अनुचित कहा

किसी भी टैरिफ से संबंधित सुधारों को उपभोक्ताओं के सहयोग की जरूरत होती है, जो कि सबसे बड़ा हितधारक समूह है। जीएसआई शोधकर्ताओं ने विभिन्न पृष्ठभूमि से उपभोक्ताओं का साक्षात्कार किया, जिससे यह मूल्यांकन किया जा सके कि क्या वे भारी सब्सिडी से परिचित हैं जो अपने बिजली के बिलों को कम रखते हैं और क्या टैरिफ वृद्धि पर अपने विचार प्राप्त करने के बारे में जानते हैं।

सर्वेक्षण किए गए लगभग सभी घरों में लोग बिजली पर प्राप्त सब्सिडी के अनुपात से अनजान थे। बिजली के पंपों का उपयोग करने वाले लगभग 10 फीसदी किसानों ने कहा कि वे जानते हैं कि उनके टैरिफ सब्सिडी वाले हैं। घरेलू और किसान इस विचार से सहमत नहीं हैं कि डेसकॉम को अपनी लागत वसूलने के लिए टैरिफ वृद्धि करना चाहिए।

लगभग 80 फीसदी ग्रामीण और शहरी परिवारों ने कहा कि कम आय वाले घरों को मुफ्त बिजली मिलनी चाहिए। शहरी घरों में, केवल 65 फीसदी इस बात से सहमत थे कि किसानों को मुफ्त बिजली मिलनी चाहिए; 30 फीसदी परिवार इस बात से स्पष्ट रूप से असहमत हैं।

हालांकि कई उत्तरदाताओं ने कहा कि कमजोर घरों और किसानों को संरक्षित किया जाना चाहिए, औद्योगिक क्षेत्र से 81 फीसदी और वाणिज्यिक साक्षात्कारकर्ताओं से 68 फीसदी ने बताया कि वे लगातार ‘क्रास-सब्सिडी’ के पक्ष में नहीं हैं, जहां वे कृषि और घरेलू टैरिफ को कम रखने के लिए उच्च टैरिफ का भुगतान करते हैं।

(त्रिपाठी प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 2 अप्रैल, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। हमसे respond@indiaspend.org पर संपर्क किया जा सकता है। हम भाषा और व्याकरण के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार रखते हैं।

__________________________________________________________________

"क्या आपको यह लेख पसंद आया ?" Indiaspend.com एक गैर लाभकारी संस्था है, और हम अपने इस जनहित पत्रकारिता प्रयासों की सफलता के लिए आप जैसे पाठकों पर निर्भर करते हैं। कृपया अपना अनुदान दें :