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नई दिल्ली: भारत की राष्ट्रीय विमानन कंपनी एयर इंडिया, ब्रांड जिसमें आज की तारीख में इंडियन एयरलाइंस और एयर इंडिया दोनों शामिल है, मार्च 2007 में विलय के बाद से लगातार आठवें वर्ष भी नुकसान ( 5,547 करोड़ रुपए ) दर्ज किया है।

सार्वजनिक उद्यम विभाग से इंडियास्पेंड द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार अब संचित घाटा 44,000 करोड़ रुपए ( 7.3 बिलियन डॉलर ) से अधिक हो गया है। यह आंकड़ा भारत की वार्षिक स्वास्थ्य बजट के बराबर है। साथ ही कंपनी का उधार 38,000 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है।

जैसा कि इस श्रृंखला के पहले भाग में हमने बताया है कि वर्ष 2013-14 में 71 पीसीयू द्वारा दिखाए गए 20,000 करोड़ रुपए के नुकसान में एयर इंडिया की हिस्सेदारी 25 फीसदी है ( बीएसएनएल की हिस्सेदारी 35 फीसदी है जैसे कि दूसले भाग में बताया गया है )। एयर इंडिया को होने वाले नुकसान पर काबू पाने से भारत सरकार के पास राज्यमार्गों से लेकर चिकित्सालय तक पर खर्च करने के लिए अधिक पैसा होगा।

कमज़ोर प्रबंधन, 2004 में विमानन क्षेत्र के उदारीकरण के बाद प्रतिस्पर्धा सहित विश्लेषक अक्सर विलय के बाद के युग से संबंधित कारणों का उल्लेख करते हैं जिसके बाद बाज़ार में उसकी हिस्सेदारी 50 फीसदी से घट कर 17 फीसदी हो गई एवं दस वर्षों में श्रमबल में 66 फीसदी की वृद्धि हुई है।

लेकिन मंदी वर्ष 2007 के पहले शुरू हुआ है। वर्ष 1996 से 2006 के बीच 10 वर्षों में एयर इंडिया ने पांच एवं इंडियन एयरलाइंस ने चार वर्षों में नुकसान दिखाया है। इन कंपनियों के विलय के समय संचित घाटा 1,111 करोड़ रुपए था।

इंडियन एयरलाइंस और एयर इंडिया के लाभ / हानि, पूर्व विलय

इस विलय से, दो वर्ष की अवधि में करीब 996 करोड़ रुपए की बचत होने की अपेक्षा की गई थी।

हालांकि इस कंपनियों का विलय एवं वैश्विक मंदी और ईंधन की बढ़ती कीमतों एक ही समय में हुई। इसके अगले साल एयर इंडिया को 2,200 करोड़ का नुकसान हुआ। विलय के दूसरे साल कंपनी का नुकसान बढ़ कर 5,548 करोड़ रुपए हो गया। इसके बाद से कोई प्रतिलाभ नहीं हुआ है और कंपनी का कर्ज अब बढ़कर 38,000 करोड़ रुपये ( 6.3 बिलियन डॉलर ) हो गया है।

एयर इंडिया, विलय के बाद के लाभ / हानि

ऐसा प्रतीत होता है कि नुकसान के पीछे कंपनी का अधिक व्यय करना है। वर्ष 2007 के बाद से 44,000 करोड़ रुपए की लागत से 111 विमानों को जोड़ा है एवं तीव्र प्रतिस्पर्धा के युग में अपने कार्य करने की क्षमता में वृद्धि की है।

नवंबर 2014 में नागरिक उड्डयन महेश शर्मा राज्य मंत्री से संसद में एक सवाल के लिखित जवाब के अनुसार परिणाम यह है कि एयरलाइन के 370 मार्गों के से केवल नौ ही मुनाफा कमाती हैं।

इंडियास्पेंड की टीम ने अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक , बोर्ड के सदस्य गार्गी कौल और नागरिक उड्डयन मंत्रालय के संयुक्त सचिव बलविंदर सिंह भुल्लर से कई बार संपर्क करने की कोशिश की है लेकिन निराशा ही हाथ लगी।

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) एवं राजग सरकार, जिसने 2015-16 के बजट में 2500 करोड़ रुपये उपलब्ध कराए, टुकड़ों में राष्ट्रीय विमानन कंपनी निधि जारी रखा।

मुंबई स्थित विमानन विशेषज्ञ विपुल सक्सेना ने कहा "सरकार को भारी ब्याज भुगतान से छुटकारा पाने के दायित्व को समाप्त करने के लिए एक रोड मैप रखना चाहिए।"

यहां राष्ट्रीय विमानन कंपनी के पतन के लिए यह तीन कारण हैं :

1) ' आपदा के लिए एक नुस्खा ': अधिक विमानों और अधिक लक्ष्य "

वर्ष 2005-06 में एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस ने 44,000 करोड़ रुपए की लागत से 111 विमान खरीदने का फैसला किया, इसमें से 325 करोड़ रुपये की इक्विटी के लिए छोड़कर मुख्य रुप से उधार लेने का निर्णय किया गया था।

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) रिपोर्ट में इसे ‘रेसीपी फॉर डिज़ासटर ’ का नाम दिया गया है। इन विमानों की खरीद से ही नकद की समस्या शुरु हुई है।

एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के कुल उधार

कैग रिपोर्ट के अनुसार, जब एयरलाइन ने विमान खरीदने का निर्णय लिया था, एयर इंडिया का डेट-इक्विटी अनुपात , इंडियन एयरलाइंस के मामले में बहुत अधिक और नकारात्मक था। तीन वर्षों के भीतर प्रभाव स्पष्ट थे।

ब्याज दरों में और मूल्यह्रास शुल्क के रूप में वित्तपोषण की लागत में वृद्धि शुरु हो गई – जो तीन वर्षों में पांच गुना बढ़ा - 2005-10 के दौरान अन्य लागत स्थिर रही।

एयर इंडिया के लिए महत्वपूर्ण लागत अवयव

वर्ष 2006-07 में 985 करोड़ रुपए की वार्षिक औसत से ब्याज और मूल्यह्रास शुल्क वर्ष 2009-10 तक बढ़कर 5,016 करोड़ रुपए तक हो गई थी।

एयर इंडिया के लिए ब्याज और मूल्यह्रास शुल्क

जॉर्ज अब्राहम , विमानन उद्योग के कर्मचारियों गिल्ड के महासचिव ने कहा कि “एयर इंडिया को 111 विमान की आवश्यकता नहीं थी।”

सक्सेना ने कहा कि एयर इंडिया के नए विमानों की जरूरत है, लेकिन 111 की नहीं और ऋण के साथ उनके लिए भुगतान करना एक बुरा निर्णय था। उन्होंने कहा कि “देखरेख के लिए प्रशिक्षित स्टाफ की कमी एवं विमान की तैनाती, स्थिति को और संकट की ओर ले गया।”

2) सामाजिक दायित्वों के लिए रुट्स का चयन, अन्य दवाब

सरकार के नियमों के अनुसार एयर इंडिया घाटे में चल रही मार्गों के लिए उड़ान भरने के लिए बाध्य नहीं है।

हालांकि इस पर सरकार का स्वामित्व है इसलिए कंपनी को कई मंत्रियों, संसद के सदस्यों, उद्योगों एवं अन्य से सुझाव प्राप्त होते रहते हैं जिससे एयर इंडिया के मार्ग निर्णय प्रभावित होते हैं जिसे एयर इंडिया के अधिकारियों ने सार्वजनिक उपक्रमों ( COPU ) पर संसद की स्थायी समिति के समक्ष स्वीकार किया है। इसकी 2010 की रिपोर्ट बताती है कि किस प्रकार राष्ट्रीय वाहक " सामाजिक क्षेत्र मार्गों " के तहत घाटे में चल रही मार्गों पर चल रही है।

उद्हारण के तौर पर एयर इंडिया नागरिक उड्डयन महानिदेशालय ( डीजीसीए ) की आवश्यकता की तुलना में उत्तर- पूर्व, जम्मू-कश्मीर , पोर्ट ब्लेयर और लक्षद्वीप क्षेत्र में मार्गों पर लगभग दोगुनी क्षमता से तैनात है।

डीजीसीए के दिशा-निर्देशों के 10 फीसदी की तुलना में सामाजिक क्षेत्र मार्गों में एयरलाइन की 18 फीसदी उड़ाने चलती हैं।

कभी कभी, उड्डयन मंत्रालय एयर इंडिया के कुछ स्थानों के लिए सेवाएं प्रदान करने के लिए बाध्य करती हैं। सीओपीयू की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली से अगाती के लिए उड़ान (लक्षद्वीप द्वीपसमूह में ) एवं कोचीन से अगाती लींक के लिए उड़ान मंत्रालय के एक आदेश के बाद शुरू की गई हैं।

कैग रिपोर्ट के अनुसार, 2010 तक उत्तरी अमेरिका, ब्रिटेन, दक्षिण पूर्व एशिया और मध्य - पूर्व मार्गों सहित 29 अंतरराष्ट्रीय मार्गों पर भी घाटा हो रहा है।

अंतर्राष्ट्रीय मार्गों से एयर इंडिया के शुद्ध राजस्व

सक्सेना ने कहा कि “यह स्पष्ट नहीं है कि भारी नुकसान होने के बावजूद प्रबंधन ने क्यों इन मार्गों पर विमान जारी रखा एवं इसमें वृद्धि भी की है। ” उन्होंने कहा कि एक निष्पक्ष समीक्षा और परिचालन मार्गों के आकलन से घाटे को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

कुछ अज्ञात कारणों से एयर इंडिया का लाभदायक मार्गों से अध्यर्पित करने से स्थिति और खराब हो गई है। सीओपीयू की रिपोर्ट के अनुसार, "एक तरफ विमान खरीद और फिर अध्यर्पित या फिर जो मार्ग बेहतर कर रहे हों उन्हें अदला-बदली करना एक-दूसरे से परस्पर संबंध या सहयोग नहीं करते हैं।”

3) उदारीकरण : कैसे हुई एयर इंडिया की स्थिति खराब

नौ वर्ष पहले सरकार ने अप्रतिबंधित प्रतियोगिता के लिए खुले आकाश नीति का शुभारंभ किया था। इसने एयर इंडिया को पंगु बना दिया क्योंकि इसके कुछ भाग निष्पक्ष प्रकट नहीं होते हैं।

2012 की कैग रिपोर्ट के अनुसार, द्विपक्षीय हकदारी के उदारीकरण, विशेषकर 2004-05 से खाड़ी, दक्षिण पूर्व एशिया और यूरोप के बाद, " वांछित होने के लिए छोड़ दिया"।

द्विपक्षीय हकदारी देशों के बीच उड़ानों, सीटें, स्थलों और संबंधित मुद्दों को लेकर किए गए समझौते हैं। अब्राहम ने कहा कि 2005 से 2009 के बीच, एयर इंडिया को विदेशी एयरलाइनों को लगभग 16 लाख सीटों के समक्ष अध्यर्पित किया है।

कैग रिपोर्ट के अनुसार, एयर इंडिया की सुरक्षित अधिकार के बावजूद 2004-2010 के दौरान विदेशी और भारतीय विमानन हकदारी, प्रति वर्ष 51 मिलियन सीटों से बढ़ कर 180 मिलियन ( करीब 253 फीसदी ) हो गई है।

उदारीकरण का समय एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के लिए एक समान स्तर प्रदान नहीं किया गया। एयर इंडिया के महत्वपूर्ण विमान खरीद केवल 2006 के बाद निर्धारित किया गया था जब हकों का उपयोग करने के लिए भारत के पास कोई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा नहीं था। विदेशी एयरलाइनों ने अपनी हकों का 65 फीसदी इस्तेमाल किया जबकि भारतीय एयरलाइन केवल एक तिहाई ही इस्तेमाल करती रहीं।

यह लेख हमारी तीन भाग की श्रृंखला का अंतिम भाग है। पहला एवं दूसरा भाग आप यहां पढ़ सकते हैं।

( पाटिल नई दिल्ली स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं। पाटिल इकोनोमिक्स टाइम्स, डीएनए और न्यू इंडियन एक्सप्रेस के साथ काम कर चुके हैं। )

यह लेख मूलत: 18 सितंबर को अंग्रेज़ी में indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।


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