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13 नवंबर, 2017 को नई दिल्ली में प्रदुषित वायु के कारण वाहनों की संख्या में कमी देखी गई है। कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से उत्सर्जित SO2 वायु प्रदूषण का बड़ा कारक है। बढ़ती बिजली की मांग के साथ, भारत के उत्तरी राज्यों में प्रदूषण को कम करना एक लंबा रास्ता लगता है।

भारत अधिक बिजली चाहता है और इसे प्राप्त करने के लिए अधिक बिजली संयंत्रों की जरूरत है, लेकिन सरकार इन संयंत्रों में प्रदूषण मानकों को लागू नहीं कर पा रही है।

इसका नतीजा यह है कि उत्तरी भारत का वायु ज्यादा जहरीली हो रही है और इसमें सुधार होने की बहुत थोड़ी उम्मीद है जब तक कि सरकार प्रदूषिन फैलाने वाले विद्युत संयंत्रों पर रोक और विभिन्न प्रदूषण नियंत्रण उपायों को लागू न करे।

कोयला जलाने के कारण भारत में सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) उत्सर्जन में 50 फीसदी की वृद्धि हुई है, जबकि 2007 के बाद से चीन में सल्फर डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में 75 फीसदी की गिरावट हुई है, जैसा कि ‘यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड’ और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन’ (नासा) द्वारा 9 नवंबर 2017 को जारी एक अध्ययन में बताया गया है।

विश्व स्तर पर, चीन और भारत कोयले का सबसे बड़ा उपभोक्ता है और दुनिया में सबसे ज्यादा SO2 उत्सर्जन में भारत चीन से आगे है।

अध्ययन कहता है, " खतरनाक धुंध चीन और भारत में एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता है। दोनों देश ऊर्जा के लिए कोयला पर ज्यादा निर्भर हैं और कोयला आधारित बिजली संयंत्रों और उद्योगों से उत्सर्जित SO2 वायु गुणवत्ता की समस्या को लगातार बढ़ा रहा है। "

10 अगस्त, 2017 को लोकसभा में दिए गए जवाब के अनुसार, भारत में बिजली उत्पादन में कोयले की हिस्सेदारी लगभग 72 फीसदी है, और पिछले 3 वर्षों में काफी हद तक ऐसी ही बनी हुई है।

पिछले 10 वर्षों में, बिजली संयंत्रों द्वारा खपत की गई कोयले की मात्रा में 74 फीसदी की वृद्धि हुई है। यह वर्ष 2007-08 में 330 मिलियन टन से बढ़कर 2016-17 में 574.9 मिलियन टन हुई है।

बिजली उत्पादन के लिए कोयला खपत

Source: Lok Sabha/Central Electricity Authority of India

वायु गुणवत्ता स्वतंत्र रूप से शोध कर रहे ऐश्वर्य सुधीर ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए बताया, “कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के लिए उत्सर्जन नियंत्रण मानकों को लागू करने में भारत की विफलता से वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। ”

सुधीर कहते हैं, दिल्ली में 13 कोयला आधारित बिजली संयंत्र हैं, जिसमें SO2 और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड को नियंत्रित करने के लिए कोई उत्सर्जन नियंत्रण नहीं है, जो पर्टिकुलेट मैटर के वृद्धि में योगदान देता है।

‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी’ (आईआईटी) कानपुर द्वारा जनवरी 2016 की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में SO2 उत्सर्जन भार प्रतिदिन 141 टन होने का अनुमान है। औद्योगिक स्रोतों से कुल उत्सर्जन 90 फीसदी से अधिक है और इसमें से ज्यादातर बिजली संयंत्रों से।

बिजली के लिए कोयला जलाने से SO2 उत्सर्जन बढ़ता है

कोयला जलाने से बड़ी मात्रा में SO2 उत्सर्जन होता है। यह एक विषैला वायु प्रदूषक है, जो कि सल्फेट एयरोसोल बनाती है। यह भारत और चीन में वर्तमान धुंध को प्रमुख कारण है। ‘यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड’ का अध्ययन कहता है कि इस तरह के प्रदूषण से हर साल 10 लाख से अधिक लोगों की मौत समय से पहले हो जाती है। भारत में सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन का प्रभाव सीमित है क्योंकि SO2 एकाग्रता घनी आबादी वाले भारत-गंगा के मैदानों में अपेक्षाकृत कम है। लेकिन यह बदल सकता है क्योंकि बिजली की मांग बढ़ती जा रही है। "

रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2005 और 2016 के बीच भारत में SO2 सांद्रता का उत्सर्जन बढ़ रहा है, जो मुख्य रूप से ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ राज्यों में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के कारण है। पश्चिमी तट पर भी उत्सर्जन बढ़ा है।

भारत का सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन एकाग्रता, 2005-2016

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चीन का सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन एकाग्रता, 2005-2016

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Source: NASA; Credits: NASA’s Earth Observatory/Jesse Allen

नासा के ऑरा उपग्रह पर ओजोन निगरानी उपकरण 2005 और 2016 के बीच भारत और चीन में SO2 सांद्रता में परिवर्तन को दर्शाता है। 2005 और 2016 के बीच कोयला खपत में 50 फीसदी की वृद्धि और 100 फीसदी तक बिजली उत्पादन के बावजूद चीन में SO2 के स्तर में कमी आई है। SO2 स्तरों में कमी कड़े प्रदूषण नियंत्रण उपायों को अपनाने, गैर कोयला आधारित ऊर्जा स्रोतों में बदलाव, और चीनी अर्थव्यवस्था की हाल ही में मंदी के कारण हुई है।

चीन की सबसे बड़ी सफलता ताप विद्युत संयंत्रों (95 फीसदी) पर मूल प्रदूषण क्षरण उपकरणों की स्थापना है जबकि भारत में केवल 10 फीसदी बिजली संयंत्र हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 21 नवंबर, 2016 की रिपोर्ट में बताया है।

2013 में भारत में लगभग 13 मिलियन लोग SO2 के 0.5 डॉबसन इकाइयों (डीयू) के संपर्क में थे, जो 2016 में दोगुना होकर (154 फीसदी) 33 मिलियन तक पहुंचा है। इसके विपरीत, चीन में SO2 के 0.5 डीयू से संपर्क में आने वाले लोगों में 78 फीसदी गिरावट हुई है, 2013 में 457 मिलियन से कम हो कर 2016 में 99 मिलियन हुआ है।

SO2> 0.5 डीयू के संपर्क में आबादी

Source: Scientific Reports; University of Maryland and NASA study.

बढ़ती बिजली की मांग के साथ उत्तर भारत में प्रदूषण के स्तर को रोकना मुश्किल काम

‘यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड’ के ‘अर्थ सिस्टम साइंस इंटरडिसीप्लिनरी सेंट’र और मैरीलैंड के नासा के ‘गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर’ में ग्रीनबेल्ट के सहयोगी अनुसंधान वैज्ञानिक कैन ली के अनुसार, "भारत में सल्फर डाइऑक्साइड के बढ़ते उत्सर्जन बहुत से स्वास्थ्य या धुंध समस्याओं का कारण नहीं हैं जैसा कि चीन में है क्योंकि बड़े उत्सर्जन स्रोत भारत के सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्र में नहीं हैं। हालांकि, जैसा कि भारत में बिजली की मांग बढ़ रही है, इसका प्रभाव पड़ सकता है। "

भारत में अब तक चालीस मिलियन घरों में बिजली नहीं है, जिसके लिए लगभग 28,000 मेगावाट अतिरिक्त बिजली और प्रति वर्ष लगभग 80,000 मिलियन यूनिट अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता होगी। सरकार के रीयल-टाइम जीएआरवी डैशबोर्ड के अनुसार, 18,452 अप्रकाशित गांवों के लगभग 13 फीसदी या 2,457 गांवों को 14 नवंबर 2017 तक विद्युतीकरण नहीं किया गया है।

देश का 70 फीसदी बिजली उत्पादन थर्मल पावर पर निर्भर होने और बढ़ती मांग के साथ भारत के उत्तरी राज्यों में प्रदूषण के स्तर को कम करना मुश्किल काम लगता है।

दिल्ली और उसके आस-पास के क्षेत्रों में जहरीले हवा की ओर अग्रसर होने वाले एकमात्र कारक बिजली संयंत्रों या कोयले को जलाना ही नहीं है।

आईआईटी कानपुर के अध्ययन के अनुसार, वार्षिक उत्सर्जन के आधार पर दिल्ली में पार्टीकुलेट मैटर ( पीएम ) 2.5 उत्सर्जन में शीर्ष चार योगदानकर्ता सड़क के धूल (38 फीसदी), वाहन (20 फीसदी), घरेलू ईंधन जलावन (12 फीसदी) और औद्योगिक बिंदु स्रोत (11 फीसदी) है।

दिल्ली के पड़ोसी राज्यों में पुआल या खूंटी और अन्य बायोमास को जलाने से हवा की गुणवत्ता में 90 फीसदी सुधार हो सकती है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 17 अक्टूबर, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

नासा ने पंजाब और आसपास के इलाकों में 25 अक्टूबर 2017 को सक्रिय फसल की सैटेलाइट छवियों को जारी किया, इसके बाद 8 नवंबर, 2017 को मोटी और धूसर से ढंका आसमान दिखाया गया था, जो उत्तर भारत में प्रदूषण के स्तर में वृद्धि को दर्शाता है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 10 नवंबर, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

#Breathe वायु गुणवत्ता सेंसर ने सात उत्तरी भारतीय शहरों में आठ स्थानों में से चार में वायु गुणवत्ता "गंभीर" श्रेणी में दर्ज किया है >250 µg/m³ या विश्व स्वास्थ्य संगठन के सुरक्षित स्तर से 10 गुना ज्यादा), जो 7 नवंबर, 2017 को 24-घंटा औसत पीएम 2.5 के स्तर पर आधारित है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 10 नवंबर, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

यह सुनिश्चित करने के लिए कि वायु प्रदूषण संयुक्त रूप से शहर और राज्य सीमाओं में संबोधित किया जाता है चीन ने क्षेत्रीय वायु गुणवत्ता वाले नियमों की स्थापना की है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 21 नवंबर, 2016 की रिपोर्ट में विस्तार से बताया है। इसने 900 शहरों में 1,500 वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों का एक नेटवर्क विकसित किया है,। जबकि अगर भारत में देखा जाए तो केवल 23 शहरों में 39 निगरानी स्टेशन हैं।

11 माह में, दिल्ली 150 वायु गुणवत्ता वाले सचेतक जारी करने में विफल

ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रैपी) के आंकड़ों के पर सुधीर के विश्लेषण के अनुसार, “2 जनवरी 2017 के बाद से राष्ट्रीय राजधानी में पिछले 11 महीनों में 150 सचेतक जारी नहीं किए गए हैं। सरकार की चेतावनी प्रणाली, वायु गुणवत्ता का स्तर, ‘खराब’ श्रेणी को 95 बार पार कर चुका है जबकि ‘खराब से बहुत गंभीर’ 49 बार और ‘आपातकाल’ को छह बार पार कर चुका है, जैसा कि विश्लेषण में पता चलता है।

दिल्लीवासियों के लिए मानसून एकमात्र राहत था, क्योंकि जुलाई और अगस्त में हवा की गुणवत्ता के सूचकांक में सुरक्षित स्तर दर्ज किया गया था।

दिल्ली में वायु गुणवत्ता सचेतक जारी नहीं किए गए

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अक्टूबर और नवंबर 8, 2017 के बीच 30 सचेतक जारी नहीं किए गए थे, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 9 नवंबर, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

सुधीर कहते हैं, "दिल्ली की श्रेणीबद्ध प्रतिक्रिया कार्य योजना स्पष्ट रूप से किसी भी अंतर को बनाने में विफल रहा है। "

"सरकार को ग्रैप को लागू करने और अंतरराज्यीय समन्वय सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त समय था। ग्रैप को लागू करने और और स्रोत पर प्रदूषण को संबोधित करते हुए परस्पर अनन्य नहीं होते हैं। यदि दीर्घकालिक समाधान नहीं होते हैं, तो समस्या को कम करने के लिए प्रासंगिक कार्रवाई में मदद नहीं मिलेगी क्योंकि चूंकि ज्यादातर एजेंसियां ​​इस क्षेत्र में क्रियान्वयन योजनाओं को कार्यान्वित करने के लिए बिना किसी जवाबदेही के साथ चलना जारी रहता है। ”

(मल्लापुर विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 15 नवंबर 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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