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पश्चिम बंगाल के पश्चिम मिदनापुर ज़िले में सड़कों पर बाढ़ के पानी में चलते लोग

भारत के कुछ हिस्सों में भयंकर बाढ़ के बावजूद, 10 अगस्त तक देश भर में मानसून वर्षा 91 फीसदी ही दर्ज की गई है। मौसम संबंधी ताज़ा आंकड़ों के अनुसार देश के एक चौथाई हिस्से में बारिश की कमी है एवं अनुमान है कि इस सप्ताह से मानसून उत्तर-पश्चिम भारत से वापस होना शुरू हो जाएगा।

सबसे मजबूत एल नीनो दक्षिणी दोलन ( ईएनएसओ ) - एक वैश्विक परिघटना है। प्रशांत महासागर में एल-नीनो और ला नीनो परिघटनाएं, उष्णकटिबंधीय पूर्वी प्रशांत महासागर के सतही जल के तापमान में उतार-चढ़ाव का महत्वपूर्ण संकेत है – पिछले 17 वर्षों में एवं मानव प्रेरित ग्लोबल वॉर्मिंग का मौसम को कठिन बनाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार इनमें न केवल भारत बल्कि पड़ोसी देशों की गर्म हवाएं एवं बाढ़ शामिल हैं।

कुछ घटनाएं जैसे कि हाल ही में पिछले महीने ताइवान में आया एक प्रचंड तूफान एवं हांगकांग में उच्च तापमान का दर्ज होना, अलग प्रतीत होते हैं लेकिन एक बात तो स्पष्ट है कि एशिया भर में मौसम प्रणाली एक-दूसरे से जुड़ी हुई है एवं मौसम के तीन प्रभावों - एल नीनो , ग्लोबल वार्मिंग और स्थानीय वायु प्रदूषण का अनुभव कर रहे हैं।

गर्म हवाएं, ज़मीन एवं महासागरों पर बहती हैं एवं तूफान महासागरों के तापमान से नियंत्रित होता है। एल-नीनो का तापमान हर वर्ष भिन्न होता है जबकि साल दर साल ग्लोबल वॉर्मिंग के परिणाम बद्तर हो रहे हैं। इस वर्ष, 136 वर्षों में सबसे अधिक औसत तापमान का रिकॉर्ड दर्ज किया गया है।

केविन ट्रेनबर्थ, बोल्डर, अमेरिका में जलवायु और वैश्विक गतिशीलता , वायुमंडलीय अनुसंधान के लिए राष्ट्रीय केन्द्र में गणमान्य वरिष्ठ वैज्ञानिक के अनुसार “मानवों के बदलते प्रभावों के कारण जलवायु , वातावरण की संरचना बदल रही है और ग्लोबल वार्मिंग के लिए अग्रणी है। और इस कारण जलवायु और गर्म हो रहा है।”

प्रचंड तूफान सोउडेलर के द्वारा अंत-संबंधन के चिन्ह प्रकट होते हैं जो 9 अगस्त को ताइवान में कहर बरपाने के बाद उष्णकटिबंधीय तूफान के रूप में चीन की ओर बढ़ गया।

बॉब हेंसन , एक मौसम विज्ञानी और वेदर अंडरग्राउंड के ब्लॉगर एवं द थिंककिंग पर्सनस गाइड टू क्लाइमेट चेंज के लेखक के अनुसार, “कभी-कभी स्थानीय गर्मी से आंधी और अधिक तेज हो सकती है जहां हवा आंधी के भीतर ही बढ़ती हवा के प्रतिक्रिया में डूब रही होती है।”

हेंसन ने कहा कि “सोउडेलर तूफान के आस-पास इसी प्रक्रिया ने जगह ली एवं शायद यही हांगकांग में उच्च तापमान ( 9 अगस्त को 37.7 डिग्री सेल्सियस) दर्ज होने का एवं जापान में निरंतर गर्म तापमान रहने का यही कारण रहा। ”

रिकार्ड वैश्विक गर्मी , अल नीनो प्रभाव और ग्लोबल वार्मिंग

ट्रेनबर्थ के अनुसार सभी मौसम संबंधी घटनाएं “बड़ी प्राकृतिक परिवर्तनशीलता के संदर्भ में हम मौसम और जलवायु परिवर्तनशीलता का नाम देते हैं। ” क्योंकि यह प्राकृतिक घटनाएं हैं इसलिए यह मौसम घटनाएं घटित होंगी ही। ग्लोबल वार्मिंग के साथ उनके प्रभाव और परिणाम बद्तर हो रहे हैं : गर्मी बढ़ने के साथ भारी बारीश भी हो रही है।

हेंसन ने बताया कि “पूरी पृथ्वी के लिए यह पहले ही सबसे गर्म वर्ष साबित हुआ है। पूरे ग्रह के किए जनवरी से जुलाई तक वैश्विक तापमान ( ज़मीन एवं महासागर ) सबसे उच्च दर्ज की गई है।”

जहां तक वर्तमान में चल रहे एल-नीनो का सवाल है, इसका स्केल पर्याप्त है एवं गर्म और स्थिर के लिए प्रेरित करता है जिसके परिणामस्वरूप अधिक तूफान एवं मौसम संबंधी घटनाएं घटित होती हैं। हाल ही में 31 अगस्त को अमरिका के मैरीलैंड जलवायु पूर्वानुमान केंद्र ने एल नीनो के प्रभावों के दर्शाते हुए अवगत कराया कि पिछले सप्ताह के नीनो 3.4 सूचकांक के आधार पर आकलित समुद्र की सतह के तापमान में 2.2 डिग्री औसत से ऊपर था।

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Source: NOAA

ट्रेनबर्थ के अनुसार “एल नीनो के साथ बड़े स्केल पर पैटर्न जुड़े हैं जोकि प्रशांत रिम देशों को प्रभावित करती है लेकिन जैसा कि हमारे पास है इसका दूर तक विस्तार हो रहा है। यह हमें जानने में मदद करता है कि कहां बारिश हुई और कहां गर्म हवा या सूखा पड़ा।”

हालांकि तूफान जैसे कि सोउडेलर छोटे वायुमंडलीय गड़बड़ी विकसित कर सकते हैं, वे प्रशांत के गर्म पानी एवं वातावरण में जुड़े जल वाष्प पर निर्भर रहते हैं।

हेंसन ने बताया कि “ऐसा नहीं है कि जलवायु गर्म होने से सभी तूफान ऐसे ( पानी युक्त ) होंगे। जलवायु परिवर्तन से तूफान जैसे मौसम बदलाव नहीं होते, इस बात की पहचान कर पाना महत्वपूर्ण है। इसके बजाय, यह समग्र वातावरण में परिवर्तन लाता है जिसमें इन प्राकृतिक मौसम घटित होते हैं।”

एशिया की तीन मानसून में परिवर्तन

ग्लोबल वार्मिंग के व्यापक संदर्भ में देखा जाए तो तीन क्षेत्रीय मानसून परिसंचरण में परिवर्तन स्पष्ट नज़र आता है: दक्षिण एशियाई मानसून, पूर्व एशियाई मानसून , और दक्षिण पूर्व एशियाई मानसून। एल नीनो साल दर साल मानसून को प्रभावित करता है , जबकि लंबी अवधि के रुझान, ग्लोबल वार्मिंग का ही परिणाम है।

एशिया में बसंत ऋतु एवं शुरुआती गर्मी के मौसम के दौरान उष्णता में हुए वृद्धि पर ही मानसून निर्भर करता है। जैसे ही गर्म हवाएं बनती और बढ़ती है, निचले स्तर पर बदलाव के लिए नम हवाएं दक्षिण से फैलती हैं। यही वजह है कि पूरे एशिया में मानसून संभावित तौर पर गर्मियों में आता है।

मानसून के तीन परिसंचरण के तीन विशिष्ट लक्षण हैं – जयरामन श्रीनिवासन, वायुमंडलीय केंद्र एवं महासागर विज्ञान ( सीएओएस ), भारतीय विज्ञान संस्थान ( आईआईएससी ) के अनुसार “ भारतीय मानसून ( हिमालय के कारण ) की तुलना में पूर्व एशियाई मानसून मध्य अक्षांश स्थितियों से अधिक प्रभावित होते हैं। दक्षिण पूर्व एशियाई मानसून भारतीय मानसून की तुलना में पश्चिम प्रशांत महासागर से अधिक प्रभावित है।”

जयरामन ने आगे बताया कि “भारत एवं पूर्वी चीन में होने वाले वर्षा के बीच कुछ संबंध है क्योंकि यह दोनों एक ही विशाल एशियाई मानसून प्रणाली का हिस्सा हैं।”

हेंसन कहते हैं कि दुनिया भर में मानसून परिसंचरण में वर्षा की गिरावट , हाल के दशकों में बढ़ रही है एवं आने वाले दशकों में और आगे बढ़ने की उम्मीद है। इसका कारण है कि गर्म वातावरण महासागरों से अधिक जल वाष्प करने की अनुमति देती है। इसलिए वहां बारिश के लिए अधिक ईंधन होता है।

इंडियास्पेंड ने पहले ही अपनी खास रिपोर्ट में बताया है कि किस प्रकार स्थानीय और विश्व के मौसम में जटिल परिवर्तन के एक भाग के रूप में मध्य भारत ( मानसून प्रणाली का मूल ) में भारी वर्षा बढ़ रही है एवं सामान्य वर्षा घट रही है। भारतीय और वैश्विक अध्ययन की एक समीक्षा में यह बात सामने आई है।

हालांकि हर वर्ष सभी स्थानों में अधिक तीव्र मानसून देखने नहीं मिलेंगी। एक क्षेत्र में ताप बहाव से परिवर्तन को गति प्रदान कर सकते हैं।

ट्रेनब्रेथ के अनुसार “जैसे नदी में चट्टान रहने से लहरें फैल जाती हैं, वैसे तपन चट्टान की तरह होती है। यह तरंगे चक्रवात एवं प्रतिचक्रवात होती है जो अधिमान्य ढंग से एक ही स्थान पर अटक जाती है। पृथ्वी के घूर्णन से भी इन पर बड़ा प्रभाव पड़ता है।”

इसके अलावा स्थानीय प्रदूषण तो है ही। इसका तत्काल प्रभाव सूरज को ब्लॉक करना है, ठंडा करने के लिए अग्रणी, लेकिन यह सतह की कम तपन एवं कम वाष्पीकरण के लिए भी अग्रणी होती है। धूमल प्रदूषण, भूरा या काला, उस क्षेत्र की ज़मीन को भी तपाता है जहां वह है और यह जल चक्र को टाल देता है और इसलिए उस क्षेत्र में बारिश कम होती है।

( वर्मा आंध्र प्रदेश स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। वर्मा विज्ञान पर लिखते हैं एवं जलवायु विज्ञान , पर्यावरण और पारिस्थितिकी में इनकी विशेष रुचि है। )

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 8 अगस्त 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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