Solar620

पिछले दो वर्षों में सौर ऊर्जा की कीमतों में करीब आधे की गिरावट हुई है। 2015 में कीमतें 10-12 रुपए प्रति यूनिट से गिर कर 4.63 रुपए प्रति यूनिट हुई हैं। इस कीमत पर हाल ही में एक अमरिकी कंपनी, सन एडिसन ने आंध्र प्रदेश में बिजली की आपूर्ति करने की पेशकश की है। इसके साथ एक और परियोजना शुरु होने की भी संभावना है।

इन स्तरों पर, सौर ऊर्जा, नव निर्मित थर्मल , हाइड्रो और परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के साथ प्रतिस्पर्धी है। हालांकि इसकी उपलब्धता मुख्यत: सुर्य की रोशनी पर निर्भर होने के मुद्दे का सामना कर रही है। फिर भी, इनकी दरें, भारत की बिजली ग्रिड की बजाए सीधे सौर ऊर्जा की ओर उपभोक्ताओं की बढ़ती संख्या को प्रोत्साहित कर रही हैं।

यह कीमतें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी सौर - ऊर्जा योजनाओं को भी बढ़ावा देगा। Factchecker.in की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2022 तक 175 गीगा वाट या अक्षय ऊर्जा क्षमता की 175,000 मेगावाट तक का लक्ष्य है, सौर ऊर्जा, 100 गीगावॉट के लिए ज़िम्मेदार होगा। वर्तमान में भारत के पास 5,000 मेगावाट की सौर ऊर्जा प्रतिष्ठान हैं; अगले सात सालों में सरकार का लक्ष्य 20 गुना अधिक वृद्धि करना है।

अप्रत्यक्ष कार्बन टैक्स के रूप में भारत के बिजली क्षेत्र अधिनियम में विकार, कुछ उपभोक्ताओं को बिजली ग्रिड की तुलना में बहुत तेजी से सौर बिजली अपनाने पर जोर दे रहे हैं, लेकिन इस पर हम बाद में चर्चा करेंगे, सौर की तरफ यह बेपरवाह ज़ोर, आगे गंभीर जोखिम वहन करती है। इन विकार के लिए दो कारण हैं:

सबसे पहले, औद्योगिक और वाणिज्यिक उपयोगकर्ताएं भारत में बिजली के लिए, बाजार की कीमतों से अधिक भुगतान करते हैं और यह उन्हें सौर ऊर्जा की ओर बढ़ने पर ज़ोर दे रहा है। दूसरा, अनियमित आपूर्ति के कारण कई औद्योगिक उपयोगकर्ताओं पर बैकअप के लिए डीजल जनरेटर लगाने का दबाव पड़ता है जोकि और अधिक महंगा होता है। भारत के पास अब 36,500 मेगावाट की सीमित-उत्पादन की क्षमता है जो कि देश की पारंपरिक ऊर्जा - उत्पादन क्षमता के 15 फीसदी के बराबर है।

इंडियास्पेंड ने पहले ही अपनी रिपोर्ट में बताया है कि भारत की राज्य बिजली कम्पनियों को उत्पन्न बिजली का 23 फीसदी नुकसान संचारन नुकसान के रुप में होता है एवं 22 फीसदी बिजली सब्सिडी या किसानों को मुफ्त दी जाती है। इन नुकसान की भरपाई के लिए, अन्य उपभोक्ताओं, विशेष रूप से औद्योगिक और अन्य व्यावसायिक उपयोगकर्ताओं से 50 से 90 फीसदी अधिक भुगतान लिया जाता है।

बिजली के लिए कौन करता है कितना भुगतान, 2013-14

तीन केंद्रीय सरकारी बिजली कम्पनियां, नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन (एनटीपीसी), नेशनल हाइड्रो पावर कारपोरेशन (एनएचपीसी) और भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम (एनपीसीआईएल), जोकि कोयला, पनबिजली और परमाणु ऊर्जा के उपयोग से बिजली उत्पन्न करती हैं, ने वित्त वर्ष 2014-15 के दौरान प्रति यूनिट बिजली के लिए 2.8 रुपए से 3.6 रुपए का भुगतान लिया है। यह कंपनियां कई पुराने संयंत्र संचालित करती हैं जो बिजली की कीमत को नीचे लाती हैं।

बिजली के लिए केन्द्र सरकार कंपनियों द्वारा लिया गया भुगतान, 2014-15

यदि इन कंपनियों की कीमतों पर बिजली बेची जा रही होती तो सौर ऊर्जा को वहां तक पहुंचने में काफी देर लगती। हालांकि, औद्योगिक और वाणिज्यिक उपयोगकर्ताएं औसतन इन तीनों बड़ी कंपनियों द्वारा उत्पन्न सस्ती बिजली से दोगुना भुगतान करते हैं। इन कीमतों पर पावर ग्रिड से सौर ऊर्जा की ओर स्थानांतरण होना वाणिज्यिक आवश्यकता हो जाती है।

क्यों हवाई अड्डों, तेल कंपनियों और घरों को पसंद है सौर ऊर्जा

इस साल अगस्त में , कोचीन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे को 12 मेगावाट कैप्टिव सौर खेत के साथ पूरी तरह सौर बना दिया गया है। नागरिक उड्डयन मंत्री के और अधिक हवाई अड्डों को सौर बनाने के बात कहने के साथ इस विचार को काफी सराहना मिली है। कोलकाता हवाई अड्डे ने 2 मेगावाट की छत सौर संयंत्र की स्थापना की है और 15 मेगावाट सौर खेत स्थापित करना चाहता है।

सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों ने भी अपने कार्य के लिए अक्षय ऊर्जा को अपनाना शुरू कर दिया है- 3135 पेट्रोल पंपों सौर ऊर्जा का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस संबंध में इंडियन ऑयल आगे है- 2,600 पेट्रोल पंपों को सौर ऊर्जा पर संचालन में परिवर्तित कर दिया है। टैकनोलजी कंपनी इंफोसिस ने तेलंगाना के अपने सॉफ्टवेयर विकास केंद्रों में 6.6 मेगावाट सौर संयंत्र पूरा कर लिया है जो अब पूरी तरह से अक्षय ऊर्जा से चलाया जाता है। इन समाचार रिपोर्ट के अनुसार इंफोसिस ने पहले ही 40 मेगावाट सौर खेत का निर्माण किया है अगले दो साल में 110 मेगावाट की सौर क्षमता जोड़ने की योजना कर रही है। आरबीएल बैंक , एक छोटे से निजी क्षेत्र का बैंक, ने अपनी 10 शाखाओं में छत पर सौर पैनलों के साथ पूरी तर सौर बनाने का निर्णय लिया है। हाल ही में टाटा पावर ने अमृतसर की एक शैक्षिक संस्थान में 2 मेगावाट सौर छत संयंत्र स्थापित किया है।

हालांकि यह पूरी कहानी नहीं है।

सौर - बिजली की लागत , पावर ग्रिड के साथ प्रतिस्पर्धी है, लेकिन यह दिन में केवल पांच या छह घंटे के लिए ही उपलब्ध होती है। पांच-छह घंटों के अलावा, उपयोगकर्ताओं को ग्रिड पर निर्भर होना पड़ेगा या बैटरी से बिजली प्राप्त करना होगा जो कि काफी महंगा हो सकता है।

एक और बाजार विरूपण ने यहां मदद की है : जैसा कि राज्य बिजली कम्पनियों को पैसों का नुकसान होता है वे चौबीसों घंटे बिजली की आपूर्ति करने में असमर्थ हैं। परिणाम स्वरुप, कई औद्योगिक और व्यावसायिक उपयोगकर्ताओं को बिजली के लिए डीजल जनरेटर का सहारा लेना पड़ता है। वर्ष 2013-14 के दौरान अनियमित बिजली आपूर्ति के लिए औद्योगिक उपयोगकर्ताओं द्वारा 2 मिलियन टन डीजल से अधिक उपयोग किया गया है।

डॉ टोबियास एनजिल्मिर , ब्रिज टू इंडिया, एक सौर बिजली परामर्श फर्म के संस्थापक और निदेशक, कहते हैं “छत सोलर की लागत 200 किलोवाट या उससे अधिक की व्यवस्था के लिए प्रति किलोवाट घंटा 6.5 रुपए आती है। बैटरी के साथ, बिजली की कीमत दोगुनी हो जाती है। जिसका वर्तमान में कोई मतलब नहीं है। लोग अभी डीजल जेनरेटर सेट (जिसकी लागत प्रति किलोवाट घंटा 15 रुपए से अधिक आता है) को बदल रहे हैं लेकिन यह अभी बहुत शुरुआती चरण में है।”

ब्रिज टू इंडिया के अनुमान के अनुसार, ‘छत सौर’ (घरों, कारखानों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की छतों पर लगे सौर पैनल ) अक्टूबर 2015 तक भारत भर में 525 मेगावाट तक पहुँच गया है जिसमें से 75 फीसदी या तो औद्योगिक या वाणिज्यिक उपयोगकर्ताओं द्वारा स्थापित किया गया है। कंपनी का कहना है कि अगले 12 महीनों में और 455 मेगावाट की छत सौर क्षमता बढ़ सकती है। मेरकॉम, एक और परामर्श फर्म, 2016 में 3,645 मेगावाट और अधिक जुड़ने की उम्मीद करता है।

दूसरे शब्दों में, इन दो वर्षों में जितनी सौर क्षमता जुड़ी है वह 2014 तक जुड़े पूरे सौर क्षमता से अधिक है जोकि एक महत्वपूर्ण संकेत है।

छत सौर संयंत्र आमतौर पर एक उपयोगकर्ता , एक घर के मालिक या एक कारखाने के लिए ही पर्याप्त होती हैं। उनकी लोकप्रियता दर्शाता है कि लागत प्रतिस्पर्धी हैं। इस प्रकार अब तक , केवल बड़े उपयोगकर्ता ही अपनी बिजली उत्पन्न कर पा रहे हैं।

ऊर्जा सुधारों के बिना, प्रधानमंत्री की सौर शक्ति सपने हैं मुश्किल

बिजली ग्रिड से औद्योगिक और व्यावसायिक उपयोगकर्ताओं का दूसरी ओर जाने का मतलब उच्च भुगतान ग्राहकों को राज्य के स्वामित्व वाली बिजली वितरण कंपनियों को छोड़ने के लिए जारी रखना होगा जिसे वर्ष 2013-14 के दौरान 62,154 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।

ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार ने ऊर्जा सुधार की आवश्यकता को स्वीकार किया है और हाल ही में एक योजना, उज्जवल डिस्कॉम आश्वासन योजना (उदय) की शुरुआत की है। योजना का उदेश्य बिजली वितरण कंपनियों के ऋण का पुनर्गठन और बिजली की लागत को कम करना है।

हालांकि, यह उपाय ऊर्जा चोरी या नुकसान या किसानों को मुफ्त दी जाने वाली बिजली की ओर ध्यान नहीं देते हैं। इन नुकसान का बोझ करदाताओं पर आता है एवं नए बुनियादी सुविधाओं या सौर ऊर्जा जैसे प्रौद्योगिकियों में निवेश करने से वितरण और उत्पादन कंपनियों को रोकता है।

(भंडारी मीडिया, अनुसंधान और वित्त पेशेवर हैं। इन्होंने आईआईटी -बीएचयू से एक बी - टेक और आईआईएम- अहमदाबाद से एमबीए किया है|)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 7 जनवरी 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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