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देश में एक तरफ जहां गोमांस पर प्रतिबंध को लेकर विवाद गहरा रहा है वहीं राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ), सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के एक प्रभाग द्वारा जारी आंकड़ों पर नज़र डालें तो पता चलता है कि देश के ग्रामीण एवं शहरी इलाकों में गोमांस की खपत में वृद्धि हुई है। हालांकि खपत में वृद्धि मामूली ही है।

एनएसएसओ द्वारा जारी ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2010 से 2012 के बीच भारत के ग्रामीण इलाकों में गोमांस की खपत 3.9 फीसदी से बढ़ कर 4 फीसदी हुई है जबकि शहरी इलाकों में यह आंकड़े 4.3 फीसदी से बढ़ कर 5 फीसदी दर्ज की गई है। भारत में कम से कम 80 मिलियन लोग गोमांस खाते हैं जिसमें भैंस का मांस भी शामिल है।

पिछले 19 वर्षों के दौरान देश में प्रोटीन आधारित खाद्य पदार्थों की मांग तथा खपत दोनों ही बढ़ी हैं। गोमांस के अलावा भारत में दूध, अंडे एवं चिकन की खपत में भी वृद्धि हुई है। इनमें से सबसे अधिक मांग चिकन की है।

प्रोटीन स्रोतों के अनुसार ग्रामीण परिवारों का प्रतिशत, 1993-94 से 2011-12

Source: NSSO 68th, 66th and 61st rounds

प्रोटीन स्रोतों के अनुसार शहरी परिवारों का प्रतिशत, 1993-94 से 2011-12

Source: NSSO 68th, 66th and 61st rounds

ग्रामीण इलाके वाले परिवारों में दूध की खपत में 66.3 फीसदी से बढ़कर 78 फीसदी हुई है जबकि शहरी इलाकों में 80 फीसदी से 84.9 फीसदी की वृद्धि हुई है। ग्रामीण इलाकों में अंडे की खपत भी 22 फीसदी से बढ़ कर 29.2 फीसदी हुई है वहीं शहरी इलाकों में अंडे की खपत 34.9 फीसदी से बढ़ कर 37.6 फीसदी हुई है।

2013 के कृषि मंत्रालय के एक अध्ययन के अनुसार, “हाल के ही वर्षों में भारत में हुए आय वितरण एवं आय स्तर के बदलाव के कारण प्रोटीन आधारित खाद्यों जैसे कि दाल, अंडे, दूध ,दूध उत्पादों एवं मांस उत्पादों की मांग में वृद्धि हुई है। ”

मांग बढ़ने से मछली एवं मटन की कीमतों में वृद्धी

भारत में प्रोटीन का तीसरा सबसे बड़ा श्रोत चिकन है। गौरतलब है कि देश में चिकन की खपत तीन गुना बढ़ी है। ग्रामीण इलाकों में इसकी खपत 7.5 फीसदी से बढ़ कर 21.7 फीसदी हुई है जबकि शहरी इलाकों में यह 9 फीसदी से बढ़कर 27 फीसदी हुई है।

हालांकि बढ़ती मांग से कीमते भी बढ़ी हैं और साथ ही महंगे प्रोटीन स्रोतों की खपत में गिरावट हुई है।

कृषि मंत्रालय के अध्ययन के मुताबिक प्रोटीन युक्त भोजन जैसे कि दूध , मछली, मांस, अंडे और चिकन, फलों और सब्जियों की कीमतें अनाज उत्पादों की तुलना में आसमान छूने लगी है क्योंकि इन उत्पदों की आपूर्ति इनकी मांग के बराबर नहीं हो रही है।

बढ़ती कीमतों के कारण मछली, झींगा एवं मांस की खपत में गिरावट हुई है। ग्रामीण इलाकों में मछली एवं झींगा की खपत 30.7 फीसदी से गिरकर 26.5 फीसदी हुई है जबकि शहरी इलाकों में इनकी खपत 27.1 फीसदी से गिरकर 21 फीसदी हुई है।

2004-05 तक एनएसएसओ ने गोमांस / भैंस के मांस एवं बकरे के मांस का इक्कठा आकलन किया है। ग्रामीण इलाकों में मांस खाने वाले परिवारों के प्रतिशत में गिरावट हुई है। आंकड़ों पर नज़र डालें तो वर्ष 1993 से 2005 के बीच ग्रामीण इलाकों में मांस की खपत 20.3 फीसदी से गिरकर 17.9 फीसदी हुई है जबकि शहरी इलाकों में यह 28.3 फीसदी से गिरकर 25.2 फीसदी हुई है।

एनएसएसओ के बकरे के मांस एवं गोमांस पर जानकारी इक्कठा करना शुरु करने के बाद मटन की खपत ग्रामीण इलाकों में 7.2 फीसदी से गिरकर 6.4 फीसदी हुई है जबकि शहरी इलाकों में 12.3 फीसदी से 10 फीसदी की गिरावट हुई है।

परिवारों के व्यय करने के तरीके हमें बताते हैं कि भारतीय भोजन पर क्या खर्च कर रहें हैं।

खाद्य वस्तुओं पर ग्रामीण घरेलू खर्च का प्रतिशत , 1999-00 से 2012-12

Source: NSSO rounds 68, 66 and 61

खाद्य वस्तुओं पर शहरी घरेलू खर्च का प्रतिशत , 1999-00 से 2012-12

Source: NSSO rounds 68, 66 and 61

भोजन व्यय में हुई है गिरावट

उपर दिए गए टेबल विभिन्न खाद्य पदार्थों पर खर्च किए गए घरेलू प्रति व्यक्ति खर्च का प्रतिशत ( एमपीसीई ) दिखाता है।

पिछले 13 वर्षों में भोजन पर व्यय में गिरावट हुई है। वर्ष 1999 से 2002 के दौरान ग्रामीण इलाकों में यह 59.4 फीसदी से गिरकर 52.9 फीसदी हुई है जबकि शहरी इलाकों में यह 48.1 फीसदी से गिरकर 42.6 फीसदी दर्ज हुई है।

आय के प्रतिशत के रुप में भारतीय अनाज एवं दूध पर कम खर्च करते हैं। हालांकि शहरी इलाकों में सब्ज़ियों पर भी कम खर्च होते हैं लेकिन अंडे, मछली, मांस, प्रसंस्कृत खाद्य और पेय पदार्थों और सब्जियों पर (भारत ग्रामीण ) पर अधिक खर्च किए जाते हैं।

दीपक मोहंती , कार्यकारी निदेशक, भारतीय रिजर्व बैंक के मुताबिक, “जैसे कि प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई है, भोजन की मांग प्रोटीन , फल और सब्जियों की ओर स्थानांतरित हुआ है।”

ग्रामीण इलाकों में अनाज और अनाज के विकल्प पर व्यय में 22.2 फीसदी से 10.8 फीसदी गिरावट हुई है एवं शहरी इलाकों में 12.4 फीसदी से 6.7 फीसदी की गिरावट हुई है।

ग्रामीण इलाकों में सब्ज़ियों के व्यय पर 6.2 फीसदी से बढ़ कर 6.6 फीसदी हुई है लेकिन शहरी इलाकों के खर्च में गिरावाट हुई है। आंकड़ों के मुताबिक शहरी इलाकों में 5.1 फीसदी से गिरकर 4.6 फीसदी हुई है।

दूध एवं दूध उत्पादों पर व्यय में गिरावट हुई है। ग्रामीण इलाकों में यह 8.8 फीसदी से गिरकर 8 फीसदी हुआ है जबकि शहरी क्षेत्रों में 8.7 फीसदी से गिरकर 7 फीसदी हुई है।

ग्रामीण एवं शहरी इलाकों में पेय पदार्थ और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों पर होने वाले खर्च में वृद्धि हुई है – ग्रामीण इलाकों में यह 4.2 फीसदी से बढ़कर 7.9 फीसदी हुआ है जबकि शहरी इलाकों में 6.4 फीसदी से बढ़कर 9 फीसदी हुई है।

ऐसी ही प्रवृति फलों पर होने वाले व्यय में भी है – ग्रामीण इलाकों में 1.7 फीसदी से 2.8 फीसदी की वृद्धि हुई है जबकि शहरी क्षेत्रों में 2.4 फीसदी से बढ़कर 3.4 फीसदी हुई है।

ग्रामीण इलाकों में अंडे, मांस और मछली पर व्यय में 3.3 फीसदी से बढ़ कर 4.8 फीसदी हुई है वहीं शहरी इलाकों में यह बढ़ कर 3.1 फीसदी से 3.7 फीसदी हुई है।

( सालवे इंडियास्पेंड के साथ नीति विश्लेषक हैं। )

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 23 अक्टूबर 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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