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मुंबई के मनीष बाज़ार में चीन की क्रॉकरी बिक्री के लिए। छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से सटे 500 दुकानों के इस बाज़ार में मुख्य रूप से चीनी सामान बेचे जाते हैं, सजावटी लाइटों से लेकर खिलौनों तक।

भारतीय राजनेता अभी चीनी सामानों का बहिष्कार करने के अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं। लेकिन इंडियास्पैंड का एक विश्लेषण दिखाता है कि क्यों विफल होगा: चीन भारत में व्यापार का सबसे बड़ा हिस्सेदार है। भारत के कुल आयात की गई सामग्रियों का छठा हिस्सा चीन से आता है। 2011-12 में ये आयात के अनुपात में चीन दसवें नंबर पर था। जबकि प्रतिद्वंदी को भारत का निर्यात इसी अवधि में आधा है।

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पिछले दो सालों में चीन से आयात 20% की दर से बढ़ा है और पिछले साल में 5% की दर से बढ़कर 6,100 करोड़ डॉलर पहुँच गया है। आयातित सामग्रियों में बिजली सयंत्रों और सेट टॉप बॉक्स से लेकर गणेश प्रतिमाएं तक हैं। पिछले पांच साल में भारत का आयात आमतौर पर घटा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में गिरावट से ये 49,000 करोड़ डॉलर (33 लाख करोड़ रुपये) से घटकर 38,000 करोड़ डॉलर (25 लाख करोड़ रुपये) रह गया है।

चीन को भारत का निर्यात 2011-12 में 1,800 करोड़ डॉलर (86,000 करोड़ रुपये) से घटकर 2015-16 में 900 करोड़ डॉलर (58,000 करोड़ रुपये) का रहा। कपास, तांबा, पेट्रोलियम और औद्योगिक मशीनरी को छोड़कर, भारत चीन को ज्यादा कुछ निर्यात नहीं करता। इसका मतलब है कि भारत जितना सामान चीन को बेचता है, उससे छह गुना अधिक चीन से ख़रीदता है।

चीन को निर्यात आधा, आयात में बढ़ोतरी

Source: Trade between India and China, Export Import Data Bank, Ministry of Commerce; figures in $ billion

निर्यात-आयात असंतुलन

वाणिज्य मंत्रालय से जारी डाटा पर हमारे विश्लेषण के अनुसार भारत प्रमुख रूप से चीन से सेलफोन, लैपटॉप, सौर सेल, उर्वरक, कीबोर्ड डिस्प्ले और संचार उपकरणों- ईयरफोन सहित- का आयात करता है।

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Source: Export Import Data Bank, Ministry of Commerce; figures in $ billion

चीन से आयात किए जाने वाले अन्य सामनों में तपेदिक और कुष्ठ रोग दवाएं, एंटीबायोटिक दवाएं, बच्चों के खिलौने, औद्योगिक स्प्रिंग्स, बॉल बेयरिंग, एलसीडी और एलईडी डिस्प्ले, राउटर, टीवी के रिमोट कंट्रोल और सेट टॉप बॉक्स शामिल हैं।

राजनीतिक तूफान

इसके बावजूद, बिहार के जनता दल (यूनाइटेड) के नेता शरद यादव, असम के नवनियुक्त वित्त मंत्री हेमंत बिश्व सरमा, हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल बिज ‘मेड इन चाइना’ सामानों बहिष्कार करने की अपील कर रहे हैं।

“लोगों को चीनी सामान नहीं खरीदना चाहिए. इसके बजाय भारतीय सामान का उपयोग करना चाहिए। चीन के साथ व्यापार हमारे देश को प्रभावित कर रहा है। चीन हमारा मित्र देश नहीं है। चीन जो भी पैसा कमाता है उससे हथियार खरीद सकता है। इस बात की संभावना है कि ये हथियार शत्रु देशों को दिए जाएं...हमें मेक इन इंडिया पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए,” इंडियन एक्सप्रेस ने 4 अक्टूबर 2016 को विज के हवाले से कहा।

स्थिर विनिर्माण आंकड़े

फरवरी 2006 के शोध पत्र में भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने चीन को ‘दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग पावरहाउस’ बताया था। अमरीका स्थित नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च में प्रकाशित पत्र में कहा गया है कि हालांकि, भारत, “इस प्रक्रिया में अपने पड़ोसी की बराबरी करने में विफल रहा।”

विनिर्माण क्षेत्र के लिए स्थिर इंडेक्स दिखाता है कि भारत चीन से प्रतिस्पर्धा करने में अब भी जूझ रहा है। 2015-16 में रिकॉर्ड $55 अरब के विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के बावजूद, विनिर्माण में निजी निवेश अब भी सुस्त है।

चीन के बाजार क्यों लोकप्रिय हैं

इंडियास्पैंड ने मुंबई के बीचोंबीच आयातित चीनी सामानों के केंद्र मनीष बाजार का भ्रमण किया। यहां चीन के उत्पाद सस्ते हैं, बड़ी मात्रा में उपलब्ध हैं, साफ सुथरी पैकेजिंग में हैं और आसानी से खरीदने योग्य हैं।

एक वितरक और खुदरा व्यापारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा, “ मैं 50 अलग-अलग तरह के एलईडी लैंप्स बेचता हूं। मुझे मान लीजिए ये सब सूरत से सस्ते दाम पर और मेरे दरवाजे पर मिल रहे हों तो मैं चीनी लैंप क्यों खरीदूंगा?” उन्होंने कहा, “यदि मुझे इन्हें भारत में खरीदना पड़ा तो मेरी लागत दोगुनी आएगी।”

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चीन ने 1980 के दशक में विशेष सामाजिक आर्थिक संरचना के द्वारा तेजी से अपने बाजार में सुधार किया। भूमि और श्रम सुधारों ने उसकी उत्पादन क्षमता बढ़ाने में सहायता की। नतीजा यह रहा कि भारत का लौह, स्टील और उर्वरक उत्पाद चीन का दसवां हिस्सा है।

Source: Department of Fertilisers, Government of India, XFA Finance, Wikipedia; figures in million tonnes

चीन की निर्यात कहानी बाजार तक आसान पहुंच से आगे बढ़ी है। सुमंत कासलीवाल का उदाहरण लीजिए, जो कि मुंबई में कपड़ों का ई-कॉमर्स स्टार्ट अप चलाते हैं। दो साल तक व्यापार के लिए भारत में खरीददारी करने के बाद उन्होंने दो साल पहले चीन का रुख कर लिया। उसके बाद से उनकी बिक्री तीन गुना हो गई है।

चीन में बाजार तक पहुंच आसान है

कासलीवाल का कहना है कि चीन में ग्राहकों को बाज़ार और उत्पादों के लिए विरले ही समय बर्बाद करना होता है। ज्वैलरी से लेकर कपड़े तक की तीन महीने की खेप खरीदने के लिए एक हफ्ते से भी कम का समय लगता है।

वह कहते हैं, “यहां तक कि आबादी की लिहाज से वाराणसी की तुलना में छोटे यीवू जैसे नगरों में भी सभी उपभोक्ता वस्तुओं के लिए निश्चित बाजार है, जिसमें फैशन के कपड़ों से लेकर घर के सामान शामिल हैं और वो भी मूल्य और गुणवत्ता के विकल्पों के साथ। भारत में ऐसी खरीददारी करने में हमें कई हफ्ते लगेंगे।”

भारत-चीन व्यापार असंतुलन

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Source: Trade between India and China, Export Import Data Bank, Ministry of Commerce; figures in $ billion

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(वाघमारे विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)

यह लेख मूलत:अंग्रेज़ी में 12 अक्टूबर 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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