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पिछले महीने प्रकाशित विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार लगातार हो रहा जलवायु परिवर्तन, भारत की आर्थिक प्रगति को प्रभावी ढ़ंग से बेअसर कर सकता है।

विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के अभाव में वर्ष 2030 तक गरीबी में ( यानि कि एक दिन में 1.9 डॉलर या 27 रुपए से कम ) रहने वाले भारतीयों की संख्या 189 मिलियन होगी । जलवायु परिवर्तन से यह संख्या 234 मिलियन तक पहुंच सकती है।

हाल ही में संशोधित 1.9 डॉलर- एक दिन- गरीबी रेखा का इस्तेमाल करते हुए विश्व बैंक कहती है कि वर्ष 2011 में 263 मिलियन भारतीय गरीबी में रह रहे थे।

ऐसी परिस्थिति में जब 45 मिलियन लोग , जलवायु परिवर्तन के कारण गरीब होंगे, विश्व बैंक की रिपोर्ट – “शॉक वेव्स – मैनेजिंग का इंपैक्ट्स ऑफ क्लाइमेट चेंज ऑन पोवर्टी” - में वर्णित स्थितियों में से केवल एक है।

नरेंद्र मोदी के लिए दुविधा

ताजा गरीबी की भविष्यवाणी की ज्वार वापस पकड़ रखने के लिए बैंक के सुझावों में से कुछ, नरेंद्र मोदी की सरकार की आर्थिक नीतियों के प्रतिकूल दिखाई देते हैं। उद्हारण के तौर पर, जैसा कि इस साल के शुरुआत में इंडियास्पेंड ने अपनी खास रिपोर्ट में बताया है कि यहां तक ​​कि राज्यों के लिए कम पैसे के साथ, हस्तांतरण के बाद भी, रिपोर्ट स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे में अधिक से अधिक निवेश का सुझाव देती हैं ।

इनमें और अधिक रियायती स्वास्थ्य, स्वास्थ्य बीमा और उभरते स्वास्थ्य संकट के बारे में चेतावनी देने की प्रक्रिया भी शामिल है। हाल ही में, भारत में गरीबों के लिए एक स्वास्थ्य बीमा योजना में सुधार करने के लिए, राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना इस दिशा में एक सही कदम है।

अन्य सुझाव जैसे कि शीघ्र सहायता, आरोह्य एवं लक्षित बनाने के लिए भारत के विशाल सब्सिडी कार्यक्रम में सुधार के लिए सरकार के कदम के साथ कतार में है।

जूली रोज़ेनबर्ग , सह लेखक और विश्व बैंक के अर्थशास्त्री कहती हैं कि, “हमने यह रिपोर्ट सबको याद दिलाने के लिए प्रकाशित किया है कि जलवायु परिवर्तन चुनौती पर्यावरण और जलवायु के बारे में ही नहीं है। यह गरीब और कमजोर लोगों के भविष्य के संबंध में भी है और हमारी गरीबी उन्मूलन के लिए हमारी क्षमता के संबंध में भी है। और भारत जैसे देश के लिए जो ग्रीन हाउस गैसों के वैश्विक उत्सर्जन को कम करने में नाकाम रहा है ,कई मिलियन लोगों की समृद्धि एवं भविष्य के लिए खतरा बन सकता है।”

भारत और दुनिया के लिए चार परिदृश्यों

गरीबी और जलवायु परिवर्तन विभिन्न तरीकों से एक दूसरे को प्रभावित करती है एवं अगले 15 वर्षों में चीज़ों की अनिश्चितता को दिखाते हुए रिपोर्ट में वर्ष 2030 में भारत एवं दुनिया किस प्रकार बदलेगी इसके चार परिदृश्यों का निर्माण किया गया है।

यह परिदृश्य 1) कम प्रभाव एवं 2) उच्च प्रभाव जलवायु परिवर्तन और सामाजिक-आर्थिक राह के विभिन्न संयोजन हैं जिसे रिपोर्ट में 1) गरीबी - उच्च जनसंख्या वृद्धि , कम जीडीपी विकास दर और उच्च गरीबी और असमानता के लक्षण – एवं 2) ' समृद्धि - कम जनसंख्या वृद्धि , उच्च जीडीपी विकास दर और कम गरीबी और असमानता – के रुप में वर्णित किया गया है।

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Source: World Bank

जलवायु परिवर्तन से गरीब होने के तीन कारण

जलवायु परिवर्तन से लोगों की समृद्धि पर प्रभाव पड़ने के मुख्यत: तीन कारण हैं : फसल की पैदावार में गिरावट, प्राकृतिक विपत्ति एवं स्वास्थ्य और श्रम उत्पादकता में कमी।

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Source: World Bank

पहला कारक: जलवायु परिवर्तन से फसल की पैदावार में गिरावट हो सकती है (सबसे खराब स्थिति 2030 तक वैश्विक फसल की उपज में 5 फीसदी गिरावट हो सकती है ) जिस कारण भोजन महंगा हो सकता है। और इस कारण से लोग अन्य चीज़ों पर कम खर्च कर पाएंगे।

उदाहरण के तौर पर हाल ही में खाद्य मूल्य में उछाल से विश्व भर में वर्ष 2008 में 100 मिलियन एवं 2010-11 में 44 मिलियन लोग गरीबी के वर्ग में दर्ज किए गए हैं।


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Source: World Bank

दूसरा कारक: दूसरा कारक बुरा स्वास्थ्य एवं उतपादकता है। रिपोर्ट कहती है कि, “तापमान में 2 से 3 डिग्री सेल्सियस अधिक वृद्धि होने से विश्व भर में मलेरिया का जोखिम 5 फीसदी एवं दस्त का खतरा 10 फीसदी बढ़ सकता है।”

जलवायु परिवर्तन का एक और परिणाम अविकसित होना हो सकता है क्योंकि भोजन महंगी होगी एवं लोग ज़रुरी पोषक तत्व को पूरा लेने में असमर्थ हो सकते हैं।

रिपोर्ट कहती है कि तापमान में वृद्धि होने से श्रम उत्पादकता में 1 से 3 फीसदी की कमी हो सकती है।

रोगों के इलाज के लिए स्वास्थ्य पर खर्च करना लोगों की जेब पर सबसे अधिक असर डालता है। गरीब देशों में लोगों की वित्तीय सहायता (ऋण या बीमा ) तक पहुंच बहुत कम होती है। रिपोर्ट के अनुसार, “वे अपनी बजट का 50 फीसदी रोग पर खर्च करते हैं।”

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Source: World Bank


तीसरा कारक प्राकृतिक विपत्तियों, जैसे कि बाढ़, सूखा और उच्च तापमान जैसी घटनाओं तीव्रता के साथ वृद्धि हो सकता है।

2030 के लिए सबसे बुरी स्थिति में, जलवायु में परिवर्तन न होने से दुनिया भर में सूखे की मार झेलने वाले लोगों की संख्या में 9 से 17 फीसदी की वृद्धि एवं बाढ़ की मार झेलने वालों की संख्या में 4 से 15 फीसदी की वृद्धि हो सकती है।

इन प्रकृतिक विपत्तियों का शिकार अमिर लोगों की तुलना में आर्थिक रुप से प्रभावित लोग अधिक होते हैं। आमतौर पर उनकी अपनी संपत्ति जैसे कि आवास एवं पशु जिन्हें काफी पैसे एवं समय लगा कर वे बनाते हैं, वे पल भर में प्राकृत्क विपत्ति की बलि चढ़ जाते हैं।

स्वास्थ्य कारक के मामले में , जैसा कि आर्थिक रुप से कमज़ोर लोगों की पहुंच वितीय सहायता तक कम होती है, इसलिए इस तरह के झटके से उबरने के लिए उनकी क्षमता भी कम है।


क्या कर सकती है सरकार

यहां तक कि किसी प्रकार की जलवायु परिवर्तन शमन नीति को अपना कर यदि सरकारें सबसे बुरी स्थिति से बचने की कोशिश भी करें तो अब इसका ज़्यादा असर नहीं दिखेगा क्योंकि 2030 तक जो भी परिवर्तन होंगे वह पिछले उत्सर्जन का परिणाम हैं और नई नीतियों का केवल दीर्घकालिक प्रभाव हो सकता है, 2030 तक इससे परिणाम की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। शायद जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के संबंध में कुछ नहीं किया जा सकता है लेकिन सरकारें गरीबी में पड़ने वाले लोगों की संख्या के बारे में अवश्य कुछ कर सकते हैं। सरकार सबसे अधिक जोखिम में रहने वाले लोगों को सुरक्षा और सहायता प्रदान कर सकते हैं।

रिपोर्ट कहती है कि, सरकार की ओर से शीघ्र सहायता ( यदि सहायता में देरी हो रही है , तो परिवारों जीवित रहने के लिए अपनी संपत्ति को बेचने की कोशिश कर सकता है ), आरोह्य ( शामिल प्रयास सदमे की गंभीरता के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए), और लक्षित ( यह सुनिश्चित करना की, सबसे कमज़ोर वर्ग के लोगों तक योजना की पहुंच हो। ) होनी चाहिए।

कृषि उत्पादकता में गिरावट का मुकाबला करने के लिए रिपोर्ट जलवायु प्रतिरोधी फसलों और पशुओं के उपयोग करने का सुझाव देती है। रिपोर्ट पॉलिकल्चर प्रथा (एक ही क्षेत्र में कई फसलें उगाने से कीट प्रतिरोध का मुकाबला ) की शुरुआत करने किसानों के बीच इन प्रथाओं के बारे में जागरूकता में सुधार करने का सुझाव भी देती है। परिवहन में सुधार होने से किसानों किसानों को मदद मिलेगी।

जहां तक प्राकृतिक आपदाओं का सवाल है, इससे निपटने के लिए सुरक्षित बुनियादी ढांचे में सुधार जैसे कि बाढ़ से बचने के लिए डाइक एवं जल निकासी व्यवस्था एवं पूर्व चेतावनी प्रणाली को शुरु करने की सिफारिश की गई है। लोगों को बाढ़ से बेहतर ढ़ंग से निपटने के लिए मदद करने के लिए रिपोर्ट लोगों को संपत्ति का अधिकार देने का सुझाव देती है ताकि उन्हें अपने घरों को मजबूत और अधिक लचीला बनाने के लिए प्रोत्साहन मिल सके।

रिपोर्ट कहती है कि जब आपदा के बाद की राहत की बात हो तो बड़े कार्य कार्यक्रमों की स्थापना प्रभावित लोगों को एक स्थिर नौकरी और आय प्रदान किया जा सकता है।

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 08 दिसंबर 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित किया गया है।


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