pharmacist_620

नवी मुंबई इलाके में ऐरोली का संदीप मेडिकल स्टोर। यह बाहर से किसी भी अन्य फार्मेसी की तरह दिखता है, लेकिन यहां बाहर लगा बोर्ड कहता है, "डॉट प्रदाता केंद्र, टीबी के लिए मुफ्त दवाएं यहां दी जाती हैं "। यह दुकान केवल 75,000 (राष्ट्रीय स्तर पर 850,000 में से 9 फीसदी ) में से एक है, जिन्हें डॉट्स केंद्रों के रूप में मान्यता दी गई है। पिछले प्रयासों की सफलता के बावजूद सरकार ने टीबी से लड़ने के लिए निजी फ़ार्मेसियों की क्षमता का पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं किया है।

देश भर में 8,50,000 से अधिक निजी फार्मेसियों या दवाखाने हैं। फिर भी, उनमें से केवल 9 फीसदी टीबी जैसे गंभीर बीमारी पर नियंत्रण के प्रयासों में लगे हुए हैं। यह जानकारी ‘जर्नल ऑफ फार्मास्युटिकल प्रैक्टिस एंड पॉलिसी’ में जनवरी 2017 में प्रकाशित पेपर में सामने आई है। ये आंकड़े निश्चित रुप से सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के पर्याप्त नहीं हैं।

‘एंगेजमेंट ऑफ फार्मास्यूटिकल सेक्टर फॉर टीबी कंट्रोल: रेटरिक ऑर रिएलिटी ’ नाम के पेपर में टीबी से लड़ने के लिए सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य सेवाएं आपस में मिलकर कैसे काम कर सकते हैं, इस हस्तक्षेप की समीक्षा की गई है। साथ ही वर्ष 2003 से वर्ष 2015 तक पांच चरणों में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और स्टॉप टीबी साझेदारी के वैश्विक स्तर के दस्तावेजों का विश्लेषण भी किया गया है।

यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत ने टीबी को समाप्त करने के लिए वर्ष 2025 तक की समय सीमा निर्धारित किया है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए नए मामलों में 95 फीसदी की कमी की आवश्यकता होगी, जैसा कि ‘फैक्ट चेकर’ ने मार्च 2017 में विस्तार से बताया है।

स्वास्थ्य में निजी क्षेत्र के प्रदाताओं से सूचनाओं के कारण टीबी से होने वाली मौत की संख्या दोगुनी हुई है। ये आंकड़े वर्ष 2014 में 220,000 से बढ़ कर 480,000 हुए हैं। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने अक्टूबर 2016 में विस्तार से बताया है।

नए सिरे से तैयार ‘नेशनल टुबर्क्यलोसिस कंट्रोल प्रोगाम’(आरएनटीसीपी) के हिस्से के रूप में, टीबी के पता लगाने और नियंत्रित करने के लिए सार्वजनिक-निजी साझेदारी के तहत चार साल की अवधि (2010-14) के दौरान चार राज्यों के करीब 12 जिलों में लगभग 75,000 फार्मेसी को इस काम में शामिल किए गया था। अध्ययन में पाया गया कि करीब 7,000 फार्मासिस्टों द्वारा संदर्भित किए गए 10 से 15 फीसदी संदिग्ध मामले सकारात्मक पाए गए और उन्हें इलाज के लिए भेजा गया।

अध्ययन से जुड़े स्वास्थ्य लेखकों ने कहा, "स्पष्ट रूप से, यह उदाहरण न केवल खुदरा दवा दुकानों को संलग्न करने की सफलता को दर्शाता है, लेकिन राष्ट्रीय कवरेज को बढ़ाने के लिए एक स्थिर पैमाने की भी जरूरत है।"

स्थानीय पान वाला शामिल, केमिस्ट पर ध्यान नहीं

वर्ष 1997 के बाद से सीधे चिकित्सा उपचार कोर्स (डीओटीएस) के अंतर्गत उपलब्ध टीबी के लिए मुफ्त दवाओं और उपचार के बावजूद भारत में करीब 22 लाख या करीब 50 फीसदी टीबी के मरीज निजी क्षेत्र में उपचार के लिए जाते हैं। इस बारे में ‘मेडिकल जर्नल लैनसेट’ में नवम्बर 2016 को छपे इस अध्ययन रिपोर्ट को देखा जा सकता है।

देखभाल और नियंत्रण के लिए सभी टीबी रोगियों तक पहुंचने के लिए भारत सरकार अपने प्रयासों में निजी प्रदाताओं को एक मजबूत साधन के रूप में देखती है। फरवरी 2017 में जारी ‘ट्यूबरकुलोसिस एलिमिनेशन’- 2017-2025 के राष्ट्रीय सामरिक योजना के मसौदा में ऐसा कहा भी गया है। फिर भी, पिछले प्रयासों की सफलता के बावजूद सरकार ने टीबी से लड़ने के लिए निजी फ़ार्मेसियों की क्षमता का पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं किया है।

डॉट्स रणनीति के तहत उपचार के पहले 2-4 महीनों में मरीजों को डॉट्स प्रदाता की सीधी निगरानी के तहत अपने सभी खुराक लेने पड़ते हैं । यह खुराक सप्ताह में तीन बार का है। हालांकि अब पांच राज्यों में इसे दैनिक आहार नियम में शामिल किया गया है और इसका विस्तार किया जाना निर्धारित है।

dotscourse_620

नवी मुम्बई में डॉट्स केंद्र में एक टी-ट्यूबरकुलोसिस दवा बॉक्स। बॉक्स में एक मरीज के लिए उपचार के पूरे कोर्स की दवा शामिल हैं।

नवी मुम्बई में डॉट्स केंद्र में एक टी-ट्यूबरकुलोसिस दवा बॉक्स। बॉक्स में एक मरीज के लिए उपचार के पूरे कोर्स की दवा शामिल हैं।

‘इंडियन फार्मास्युटिकल एसोसिएशन’ के उपाध्यक्ष और ‘सामुदायिक फार्मेसी डिवीजन’ के अध्यक्ष मंजिरी घरत कहती हैं, “यहां तक ​​कि स्थानीय पान वालों को भी डॉट्स प्रदाताओं के रूप में शामिल किया गया था, लेकिन केमिस्टों को छोड़ दिया गया था। ”

स्थानीय औषध बिक्रता तक पहुंच और चौकसी आसान

निजी औषधि विक्रेता स्थानीय समुदाय के भीतर से होते हैं, निवासियों से परिचित होते हैं, लंबे समय तक उपलब्ध होते हैं और आसानी से उन तक पहंचा जा सकता है।

वर्ष 2006 में आईपीए ने टीबी का पता लगाने के लिए औषधि बिक्रताओं को प्रशिक्षित करने के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत की और लक्षणों को देखते हुए टीबी मरीजों को मुंबई के सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों तक भेजा। लगभग 150 बिक्रेताओं में से आधे डॉट्स प्रदाता बन गए और अपने केंद्रों को दुकानों में बदल लिया।

चूंकि औषधि बिक्रेताओं ने उन रोगियों को चुना जो अक्सर टीबी के लक्षणों जैसे कि लंबे समय तक खांसी के साथ आए थे, वे मरीजों को सरकारी सुविधाओं की ओर परीक्षण के लिए भेज सकते थे और समय पर उनका इलाज हो सकता था। इसके अलावा मरीजों को स्थानीय फार्मेसी तक पहुंना आसान भी लगा था।

वर्ष 2010 तक इस परियोजना को आगे बढ़ाया गया, जैसा कि हमने कहा, देश भर में 4 राज्यों और 12 जिलों तक इसका विस्तार किया गया।

वर्ष 2012 में आरएनटीसीपी ने आईपीए, ऑल इंडिया ऑर्गेनाइजेशन ऑफ केमिस्ट्स एंड ड्रिगिस्ट्स, फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया और अन्य के साथ भारत में टीबी देखभाल और नियंत्रण के लिए आरएनटीसीपी में आषधि बिक्रेताओं को जोड़ने के लिए एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किया ।

वर्ष 2017 तक यह लिली एमडीआर-टीबी साझेदारी देश के आठ राज्यों - महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक और गोवा- में चल रही थी। अकेले महाराष्ट्र में, चार नगरपालिका निगमों में 134 औषधि बिक्रेताओं को शामिल किया गया था, जिनमें से 70 डॉट्स प्रदाता बने थे और उसके बाद से 68 मरीजों को सरकारी केंद्रों तक भेजा गया और 500 मरीजों का उन केंद्र में इलाज किया गया।

नवी मुंबई में औषधि बिक्रेताओं द्वारा भेजे गए 30 फीसदी रोगियों में टीबी के लक्ष्ण

नवी मुंबई में ऐरोली इलाके के सेक्टर-1 के तंग गली में संदीप मेडिकल स्टोर स्थित है। दवाओं और औषधि उत्पादों की साफ-सुथरी बोतलों के साथ, यह किसी भी अन्य फार्मेसी की तरह दिखता है, लेकिन बाहर एक बोर्ड कहता है, "डॉट प्रदाता केंद्र, टीबी के लिए नि: शुल्क दवाएं यहां दी जाती हैं"।

इसके मालिक संदीप देशमुख वर्ष 1989 से फार्मेसी चला रहे हैं। उनकी फार्मेसी को वर्ष 2010 में डॉट्स प्रदाता के रूप में मान्यता प्राप्त हुई थी और उन्होंने पिछले सात वर्षों में 30 मरीजों का इलाज किया है। इंडियास्पेंड से बात करते हुए देशमुख ने बताया कि, "मैं इसे एक तरह की सामाजिक सेवा के रूप में देखता हूं, जिससे मुझे बहुत संतुष्टि मिलती है।"

इस आईपीए के अनुसार, नवी मुम्बई में फार्मासिस्टों द्वारा संदर्भित कम से कम 30 फीसदी मामले जांच में टीबी के लिए सकारात्मक पाए गए।

नवी मुंबई केमिस्ट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष सतीश शाह कहते हैं, “लंबे समय तक प्रतीक्षा करने के कारण मरीजों को आम तौर पर सरकारी अस्पताल जाने से डर लगता है । महीनों तक खांसी से पीड़ित होने के बावजूद निजी डॉक्टर अक्सर बलगम का परिक्षण करने की परवाह नहीं करते हैं । यही वह जगह है जहां केमिस्ट मदद कर सकते हैं। ”

शाह कहते हैं, “अधिकांश रोगियों को यह नहीं पता है कि टीबी का इलाज करने वाली दवाएं सरकारी केंद्र में मुफ्त उपलब्ध हैं या छह महीने में टीबी का इलाज किया जा सकता है। फार्मासिस्टों की मदद से इस जानकारी को फैलाया जा सकता है।

संसाधनों को संवारने और प्रयासों को बढ़ाए जाने का समय

वर्ष 2012 के विश्व सम्मेलन से इस उद्धरण के अनुसार, आईपीए के प्रयासों के माध्यम से लगभग 500,000 फार्मेसी तक पहुंचने के लिए आरएनटीसीपी ने अनुबंध बढ़ाए जाने की योजना बनाई है। वर्ष 2015 तक केवल 75,000 तक या लक्ष्य के 15 फीसदी तक ही पहुंच बन पाई थी।

भारत में टीबी से लड़ने के लिए निजी फार्मेसियों की पूरी क्षमता का इस्तेमाल नहीं

pharmacy-desktop

Source: Journal of Pharmaceutical Policy and Practice

यह कई मायनों में गवाए हुए अवसर जैसा है।

जनवरी 2017 के एक मेडिकल पेपर के सह-लेखक और ‘यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट, सिस्टम फॉर इम्प्रूव्ड ऐक्सेस टू फार्मसूटिकल एंड सर्विसिज प्रोग्राम” के मुख्य तकनीकी सलाहकार, निरंजन कोंडुरी ने एक ईमेल के जरिए साक्षात्कार में इंडियास्पेंड को बताया कि, “हम जानते हैं कि क्या काम करता है और अब हमें 'पायलट पहल' की आवश्यकता नहीं है-यह आरएनटीसीपी की व्यापक निजी क्षेत्र की रणनीति के हिस्से के रूप में निजी फार्मेसी के प्रयासों को बढ़ाने और बड़े पैमाने पर संसाधन विकसित करने का समय है”।

आईपीए की घरत कहती हैं, “यदि आरएनटीसीपी पूरे देश भर में फार्मासिस्ट को जोड़ता है, तो इसका प्रभाव बहुत ज्यादा सकारात्मक होगा। ”

(यादवार प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 04 अप्रैल 17 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। हमसे respond@indiaspend.org पर संपर्क किया जा सकता है। हम भाषा और व्याकरण के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार रखते हैं।

__________________________________________________________________

"क्या आपको यह लेख पसंद आया ?" Indiaspend.com एक गैर लाभकारी संस्था है, और हम अपने इस जनहित पत्रकारिता प्रयासों की सफलता के लिए आप जैसे पाठकों पर निर्भर करते हैं। कृपया अपना अनुदान दें :