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इस बात में कोई शक नहीं कि स्वच्छ भारत अभियान ने भारत में शौचालय निर्माण के काम को गति दी है, लेकिन जनवरी 2015 से दिसंबर 2016 के बीच देश भर के 51.6 फीसदी परिवारों ने एक बेहतर स्वच्छता सुविधा का उपयोग नहीं किया है।

वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री के रुप में नरेंद्र मोदी ने अपने पहले स्वतंत्रता दिवस के भाषण में कहा था, “भाईयों और बहनों, हम 21 वीं सदी में रह रहे हैं। क्या हम कभी उस दर्द महसूस कर पाते हैं कि हमारी माताओं और बहनों को खुले में शौच जाना पड़ता है? क्या महिलाओं की गरिमा हमारी सामूहिक जिम्मेदारी नहीं है ? क्या हम माताओं और बहनों की गरिमा के लिए शौचालयों की व्यवस्था नहीं कर सकते हैं? ”

पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के आंकड़ों (22 मई 2017 तक) से पता चलता है कि वर्ष 2017 में घरेलू शौचालय की उपलब्धता में सुधार हुआ है। वर्ष 2014 में जहां ये आंकड़े 41.93 फीसदी थे। वहीं वर्ष 2017 में ये बढ़ कर 63.98 फीसदी हुए हैं। इसके साथ ही वर्ष 2017 में ही और हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और केरल ने 100 फीसदी खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) स्थिति हासिल की है। हालांकि, मंत्रालय द्वारा प्रदत लगभग सभी आंकड़ों का तीसरा पक्ष सत्यापित नहीं हुआ है। इस कारण ही विश्व बैंक ने 1.5 बिलियन डॉलर के ऋण देने का वादा पूरा नहीं किया है।

हाल ही में भाजपा ने अपने कार्यकाल के तीन वर्ष पूरे किए हैं। इंडियास्पेंड ने भाजपा के पांच मुख्य चुनावी वादे ,रोजगार, स्वच्छ भारत, सड़क, बिजली और आतंकवाद के खात्मे, का विश्लेषण किया है। इस श्रृंखला के पहले भाग में हमने देखा कि रोजगार सृजित करने के मामले में भाजपा सरकार का प्रदर्शन कैसा रहा है। आज दूसरे भाग में, हम देखेंगें कि स्वच्छ भारत अभियान की स्थिति कैसी रही है।

कोई स्वतंत्र निगरानी नहीं

हालांकि स्वच्छ भारत मिशन(ग्रामीण) के दिशा निर्देशों में स्पष्ट रूप से ग्रामीण क्षेत्रों की स्वच्छता की स्थिति का एक वार्षिक, देशव्यापी, स्वतंत्र तृतीय-पक्ष मूल्यांकन की कल्पना की गई है, लेकिन अब तक इसकी स्वतंत्र रुप से कोई निगरानी नहीं है।

विश्व बैंक ने स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण के लिए 1.5 बिलियन डॉलर का ऋण देने का वादा किया था। लेकिन विश्व बैंक ने जुलाई 2016 की पहली किस्त जारी नहीं की है, क्योंकि भारत ने एक स्वतंत्र सत्यापन सर्वेक्षण के संचालन और घोषणा की शर्त पूरी नहीं की है, जैसा कि द इकोनॉमिक टाइम्स ने जनवरी 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

विश्व बैंक ने इस कार्यक्रम की संपूर्ण कार्यान्वयन प्रगति को "मामूली रूप से असंतोषजनक" बताया है।

निर्माण में तेजी

वर्ष 2014 से अब तक 4 करोड़ घरेलू शौचालयों का निर्माण किया गया है। 22 मई, 2017 को स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण वेबसाइट के अनुसार 01 मई और 21 मई 2017 के बीच, देशभर में 48 9, 710 व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों का निर्माण किया गया। प्रति दिन लगभग 25,000 शौचालयों का निर्माण किया जाता रहा है।

स्वच्छ भारत मिशन(ग्रामीण) के लिए जिम्मेदार पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के अनुसार ग्राम पंचायतों ने स्वयं को 1 9 03,081 गांवों को ओडीएफ घोषित किया है, लेकिन इनमें से 53.9 फीसदी को सत्यापित नहीं किया गया है। हम बता दें कि भारत मिशन(ग्रामीण) की स्वच्छ भारत मिशन के बजट में 85 फीसदी की जिम्मेदारी है। ( आंकड़े 22 मई, 2017 को लिए गए हैं। )

गांवों को 'खुले में शौच-मुक्त' तब माना जाता है, जब कोई भी खुले में शौच करते दिखाई नहीं देता है और हरेक घर और सार्वजनिक / सामुदायिक संस्था ऐसे तरीके से शौच निपटान के लिए सुरक्षित तकनीक का उपयोग करती है कि सतह की मिट्टी, भूजल या सतह का पानी प्रदूषित नहीं होता। मल तक मख्खियों और जानवर की पहुंच नहीं होती है और वातावरण में किसी तरह का दुर्गंध नहीं रहता है। आमतौर पर, गांव या ग्राम पंचायत द्वारा 'ओडीएफ गांव' की घोषणा की जाती है। राज्य सरकार को तीन महीने के भीतर पहली बार इस घोषणा सत्यापन करना चाहिए और स्व-घोषणा के छह महीने बाद दूसरा सत्यापन होना चाहिए।

राज्य अनुसार खुले में शौच मुक्त गांव

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Source: Ministry of Drinking Water & Sanitation; Data accessed on May 22, 2017

शौचालय निर्माण और शौचालय उपयोग एक बराबर नहीं

वर्ष 2016 तक, ग्रामीण परिवारों में 36.7 फीसदी और शहरी परिवारों में 70.3 फीसदी ( कुल मिला कर 48.4 फीसदी परिवार ) ने विकसित स्वच्छता सुविधा का उपयोग किया था, जैसा कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 4 के आंकड़ों से पता चलता है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 4 जनवरी 2015 से दिसंबर 2016 के बीच आयोजित किए गए थे। 51.6 फीसदी परिवारों ने विकसित स्वच्छता सुविधा का उपयोग नहीं किया है।

बेहतर स्वच्छता सुविधा का अर्थ ऐसी प्रणाली के प्रयोग से है जो मल को मानव संपर्क से दूर करता है। इसमें पाइप सिवर प्रणाली, सेप्टिक टैंक, गड्ढे शौचालय आदि शामिल हैं।

वर्ष 2014 में खुले में शौच करने के उच्च दर के साथ पांच राज्यों में 3,200 परिवारों के साथ एक सर्वेक्षण किया गया। इस दौरान सवालों का जवाब देने वाले 47 फीसदी लोगों ने कहा कि वे इसलिए खुले में जाते हैं क्योंकि यह सुखद, सुविधाजनक और आरामदायक है। एक गैर-लाभकारी संस्था ‘रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर कम्पैशनेट इकोनॉमिक्स’ द्वारा आयोजित एक अध्ययन में पाया गया कि जिन घरों में शौचालयों का निर्माण हुआ था, उनमें से 40 फीसदी ऐसे परिवार थे, जिनका कम से कम एक सदस्य अब भी खुले में शौच जाता है।

रिपोर्ट के लेखक कहते हैं, “शौचालयों के निर्माण के बजाय, कार्यक्रमों को व्यवहार में परिवर्तन और शौचालय उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए। यद्यपि शौचालयों का निर्माण सफल नीति पैकेज का हिस्सा हो सकता है, लेकिन उन शौचालयों को बनाने से पहले उसके उपयोग के लिए व्यवहार में परिवर्तन भी जरूरी है, नहीं तो शौचालय बनेंगे और इस्तेमाल नहीं होगा।”

इसी संस्थान द्वारा 2017 के अध्ययन के अनुसार, खुले शौच के लिए भारतीयों की प्राथमिकता का संबंध अस्पृश्यता और पवित्रता के विश्वास से भी है।

मात्रात्मक और गुणात्मक अध्ययनों के माध्यम से, उन्होंने पाया कि लोग पिट शौचालयों का निर्माण और उपयोग को अशुद्ध और प्रदूषणकारी मानते हैं। अध्ययन के अनुसार, “इसके विपरीत, खुले में शौच, शुद्धता और शक्ति को बढ़ावा देने के रूप में देखा जाता है, विशेष रूप से पुरुषों द्वारा, जो आम तौर पर ग्रामीण परिवारों में पैसा खर्च करने का निर्णय लेते हैं। ”

सूचना, शिक्षा और संचार की उपेक्षा

क्योंकि स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण का ध्यान व्यवहार परिवर्तन पर है, इसलिए दिशा निर्देशों में इस बात की जरूरत पर बल दिया जाना चाहिए कि 8 फीसदी धन सूचना, शिक्षा और संचार (आईईसी) गतिविधियों के लिए आवंटित किया जाए।

‘अकाउन्टबिलिटी इनिशटिव’ के बजट ब्रीफ के अनुसार, वर्ष 2016-17 के वित्तीय वर्ष के दौरान, जनवरी 2016 तक आईईसी पर 01फीसदी खर्च किया गया था। इसके विपरीत, 98 फीसदी धन व्यक्तिगत घरों में शौचालयों के निर्माण पर खर्च किए गए थे।

अविश्वसनीय लाभार्थी आंकड़े

दिसंबर 2015 के अध्ययन में 10 जिलों और पांच राज्यों में 7,500 घरों में सरकार के स्वच्छता के हस्तक्षेप के लाभार्थियों को ट्रैक करते हुए प्रतिरुप प्रविष्टियां, लाभार्थियों की लिस्ट में मरे हुए लोगों के नाम और लापता परिवार ऐसे बाधा थे, जिसका सामाना ‘अकाउन्टबिलिटी इनिशटिव ऑफ सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च’ के शोधकर्ताओं को सामना करना पड़ा ।

आखिरकार, उन्होंने 1,500 घरों का अध्ययन किया, जिन्हें वे सूची से पहचान सकते थे। उन्होंने पाया कि सरकारी रिकॉर्ड में ‘स्वच्छता की स्थिति’ हासिल किए गए एक तिहाई परिवार में वास्तव में शौचालय थे, जबकि 36 फीसदी ऐसे शौचालय का निर्माण किया गया था, जो उपयोग करने लायक नहीं थे।

शौचालय के साथ वाले परिवारों में कम से कम एक सदस्य ऐसा था, जो खुले में शौच जाता है। इसके पीछे सबसे सामान्य कारण पानी का अभाव और गड्ढे बहुत छोटा होना है।

इसके अलावा, शौचालय बनाने के लिए सरकार से पैसे के लिए आवेदन देने वाले 40 फीसदी लोगों ने बताया कि उन्हें राशि प्राप्त नहीं हुई है।

स्वच्छ भारत मिशन-शहरी प्रगति भी धीमी

स्वच्छ भारत मिशन-शहरी वेबसाइट के मुताबिक, शहरी क्षेत्रों में 31 लाख (88 फीसदी) घरेलू शौचालय बनाए गए हैं। हम बता दें कि वर्ष 2017-18 के लिए 35 लाख शौचालय निर्माण का लक्ष्य रखा गया था। इसके अलावा, 204,000 के लक्ष्य की तुलना में 115,786 (56 फीसदी) समुदाय शौचालय बनाए गए हैं।

वर्ष 2016 के स्वच्छता स्थिति रिपोर्ट के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में केवल 36.8 फीसदी वार्डों ने समुदाय और सार्वजनिक शौचालयों के लिए एक उचित तरल-अपशिष्ट निपटान प्रणाली की सूचना दी है।

‘अकाउन्टबिलिटी इनिशटिव’ के कार्यक्रम बजट के जनवरी 2017 विश्लेषण के अनुसार स्वच्छ भारत मिशन(शहरी) का ध्यान धीरे-धीरे शौचालयों के निर्माण से ठोस कचरा प्रबंधन की ओर जा रहा है। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में कचरा संग्रह, परिवहन और भंडारण; साथ ही साथ प्रसंस्करण, उपचार और अंत में इसे निपटाना भी शामिल है।

वर्ष 2015-16 में जारी कुल राशि का 25 फीसदी ठोस कचरा प्रबंधन और शौचालय निर्माण के लिए था और 70 फीसदी शौचालय निर्माण के लिए था। वर्ष 2016-17 में जारी कुल राशि का 45 फीसदी धन ठोस कचरा प्रबंधन और 45 फीसदी शौचालय निर्माण के लिए था।

अध्ययन के अनुसार, गुजरात, असम और केरल सहित छह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अब तक कार्यक्रम शुरू होने के बाद से ठोस कचरा प्रबंधन के लिए कोई धन प्राप्त नहीं हुआ है।

विश्लेषण में कहा गया है कि वर्ष 2016-17 के वित्तीय वर्ष में 18 जनवरी 2017 तक, 23 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को ठोस कचरा प्रबंधन के लिए अब तक कोई धन प्राप्त नहीं हुआ है।

(यादवार प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

‘भाजपा सरकार के वादों की स्थिति’ का विश्लेषण करते पांच लेखों की श्रृंखला का यह दूसरा भाग है। पहला लेख आप यहां पढ़ सकते हैं।

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 24 मई 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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