divorce_620

भारत में एक तलाकशुदा मुसलमान पुरुष पर चार तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं का आंकड़ा है। यह जानकारी 2011 की जनगणना के आंकड़ों पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण में सामने आई है।

सिखों को छोड़कर सभी धार्मिक समुदायों में तलाकशुदा पुरुषों की तुलना में तलाकशुदा महिलाओं की संख्या अधिक है। लेकिन विशेष रुप से मुसलमानों में यह असंतुलन ज्यादा दिखता है।

मुसलमान समुदाय में यह आंकड़ा 79:21 हैं। अन्य धर्मं में यह अनुपात 72:28 का है और बौद्ध धर्म में 70:30 का।

वैवाहिक स्थिति के संबंध में भारत में की गई 2011 की जनगणना के अनुसार तलाकशुदा भारतीय महिलाओं में 68 फीसदी हिंदू हैं और 23.3 फीसदी मुसलमान हैं। द हिंदू की इस रिपोर्ट के अनुसार, ये आंकड़े हाल ही में नेशनल लॉ कमीशन की ओर से समान नागरिक संहिता और विशेष रुप से ट्रिपल तलाक पर बैन के विरोध में मुस्लिम संगठनों द्वारा साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया गया है।

तलाकशुदा पुरुषों की बात करें तो उनमें 76 फीसदी हिंदु हैं और 12.7 फीसदी मुसलमान हैं। ईसाई समुदाय में तलाकशुदा महिलाओं और पुरुषों का अनुपात 4.1 हैं।

सभी समुदायों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या ज्यादा

Source: Census 2011

क्या है अनुपात का मतलब?

महिला अधिकार कार्यकर्ताओं का मानना ​​है कि संख्या की दृष्टि से तलाकशुदा लोगों में लिंग असंतुलन का तात्पर्य महिलाओं की तुलना में अधिक पुरुषों का पुनर्विवाह करना है। कानून के जानकार और महिला अधिकार कार्यकर्ता फ्लाविया एग्नेस ने इंडियास्पेंड के साथ टेलीफोन पर बातचीत के क्रम में बताया – “यदि 100 तलाकशुदा जोड़े हैं तो यह 50:50 का लिंग अनुपात दिखना चाहिए। विषम अनुपात से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि तलाक के बाद पुरुषों के लिए न केवल विवाह करना आसान है, बल्कि उनमें शादी की अधिक आवश्यकता या जरुरत भी दिखती है।”

मुंबई स्थित मुस्लिम महिला संगठन ‘बेबाक कलेक्टिव’ की संस्थापक हसीना खान मानती हैं कि इस मामले में मुसलमानों में विषम अनुपात के दो कारण हैं।

खान कहती हैं “मेरी नजर में पहला कारण तो यह है कि मुस्लिम पर्सनल कानून के तहत ट्रिपल तलाक की अनुमति पुरुषों की मानसिकता को मजबूत करता है। महिलाओं के लिए विवाह आश्रय और भोजन का एक बड़ा आधार बनता है और यह उनके अधिकारों के साथ एक सौदे की तरह लगता है।”

खान आगे कहती हैं, अनुपात बिगड़ने के अन्य कारण राज्य के मुस्लिम महिलाओं को सशक्त कर पाने में विफल होना है।

इस समस्या पर विस्तार से बात करते हुए खान ने कुछ ठोस कारण भी बताए-“इस उप-समूह की जरूरतों को पूरा करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति बहुत कम है। अच्छी शिक्षा, रोजगार के अवसर और कई अन्य बुनियादी आवश्यकताओं की अभाव में भारत में मुस्लिम महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति लगातार बिगड़ रही है। ”

महाराष्ट्र में हैं सबसे अधिक तलाकशुदा महिलाएं

जनगणना में ग्रामीण इलाकों में असफल विवाह के अधिक मामले सामने आए हैं। ग्रामीण इलाकों में करीब 8.5 लाख तलाक के मामले पाए गए हैं। याद रहे, देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अभी भी ग्रामीण इलाकों में रहता है। शहरी भारत में 5.03 लाख तलाकशुदा लोगों की संख्या दर्ज की गई है।

महाराष्ट्र में तलाकशुदा लोगों की संख्या सबसे अधिक है। यहां 2.09 लाख तलाकशुदा लोगों की संख्या दर्ज है। दूसरी सर्वाधिक आबादी वाले राज्य, महाराष्ट्र में तलाकशुदा पुरुष-महिलाओं के बीच सबसे बड़ी विषमता देखी गई है। राज्य में करीब 73.5 फीसदी या 1.5 लाख तलाकशुदा महिलाएं हैं।

देश भर में सबसे अधिक तलाकशुदा पुरुषों की संख्या गुजरात में है। गुजरात के लिए लगभग 1.03 लाख पुरुषों का विवाह विच्छेद हो चुका है। और यह आंकड़ा राज्य की तलाकशुदा आबादी का 54 फीसदी है। 1,330 तलाकशुदा लोगों के साथ गोवा में असफल विवाह का रिकार्ड न्यूनतम है।

विवाह के बाद, पुरुषों की तुलना में ज्यादा संख्या में महिलाएं छोड़ दी जाती हैं !

जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, भारत में पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाएं औपचारिक तलाक के बिना अलग होती हैं। कार्यकर्ताओं का मानना ​​है कि यह भारत भर में व्यापक रुप से बहुविवाह के अभ्यास की ओर इशारा करता है।

एग्नेस कहते हैं, “ पत्नियों को छोड़ कर पुरुष अक्सर अलग रहने लगते हैं। इससे महिलाओं के पास पुनर्विवाह की स्वतंत्रता नहीं रह जाती है। आंकड़ों से स्पष्ट रुप से पता चलता है कि अधिक पुरुष बहुविवाह में हैं। जबकि समाज महिलाओं के लिए ऐसा कोई अधिकार नहीं देता है।”

धार्मिक समुदायों के भीतर, पुरुषों सो अलग रह रही महिलाओं का सबसे ज्यादा अनुपात मुसलमानों के बीच दर्ज किया गया है। इस समुदाय में अलग रह रही आबादी में 75 फीसदी महिलाएं शरीक हैं। इस संबंध में दूसरे स्थान पर ईसाई महिलाएं हैं, जो अपने समुदाय के भीतर अलग रह रही आबादी में 69 फीसदी हैं।

एक अन्य महत्वपूर्ण असमानता बौद्धों के बीच दर्ज किया गया है। इस समुदाय के भीतर अलग रह रही आबादी में से 68 फीसदी महिलाएं हैं।

अलग रह रहे 3 हिंदु में से 2 हैं महिलाएं

Source: Census 2011

2011 में समाप्त होने वाले दशक की बात करें तो इस दौर में भारत में अकेली रहने वाली महिलाओं में 39 फीसदी की वृद्धि हुई है। इनमें विधवाएं, तलाकशुदा, अविवाहित महिलाएं और पतियों द्वारा त्यागी गई महिलाएं भी शामिल हैं। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने नवंबर 2015 में विस्तार से बताया है। जनगणना के अनुसार, हालांकि अब भी अविवाहित पुरुषों की संख्या (58 फीसदी) महिलाओं की तुलना में अधिक है। यह महिलाओं पर विवाह करने की उच्च दवाब की ओर संकेत देता है।

ट्रिपल तलाक पर बहस

7 अक्टूबर, 2016 को राष्ट्रीय विधि आयोग ने 16 सवालों की एक सूची प्रकाशित की है, जिसमें भारत के लिए एक समान नागरिक संहिता की आवश्यकता पर जनता की राय मांगी गई है। सभी धर्मों में प्रचलित निजी कानूनों में लोगों की लैंगिक समानता के संबंध में राय जानने के अलावा एक सवाल ‘ट्रिपल तलाक’ के संबंध में भी पूछा गया है। जनता से पूछा गया है कि क्या ट्रिपल तलाक की प्रथा को जारी रखना चाहिए या सामप्त करना चाहिए या फिर इसमें संशोधन करना चाहिए। एक और सवाल हिन्दू महिलाओं के अधिकारों को मजबूत बनाने के लिए संपत्ति में वारिस होने के संबंध में भी पूछा गया है।

‘मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ ने कानूनी पैनल के इस प्रयोग की आलोचना की है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना है कि विधि आयोग स्वतंत्र रुप से कार्य नहीं कर रही है, जिसने उसी दिन सुप्रीम कोर्ट में ट्रिपल तलाक कानून का विरोध किया है।

टाइम्स ऑफ इंडिया की इस रिपोर्ट के अनुसार, इस मुद्दे पर गैर सरकारी संगठनों और महिलाओं के अधिकार समूहों की ओर से दायर सार्वजनिक हित याचिका के जवाब में केंद्र ने कहा है कि इस प्रथा को धर्म के अहम हिस्से के रुप में नहीं माना जा सकता है।

खान कहते हैं, “केवल मुसलमानों में ही नहीं, भारत के सभी धार्मिक समुदायों में लिंग भेदभाव कानून मौजूद है। हालांकि,यह कमजोर वर्गों की सहायता करने का दावा करती है, लेकिन सही मायनों में समान नागरिक संहिता के लिए विधि आयोग की योजना से इसका हल नहीं निकलेगा। इससे भारत की विविधता वाली संस्कृति कमजोर होंगी।”

इस पूरी समस्या को जानने के लिए भारत की जनसंख्या में सभी समुदायों की आबादी को भी समझना जरूरी है। भारत की जनसंख्या में 80 फीसदी हिस्सेदारी हिंदु की है। मुसलमानों की 14.23 फीसदी और ईसाई, सिख, बौद्ध और जैनों की क्रमश: 2.3 फीसदी, 1.72 फीसदी, 0.7 फीसदी और 0.37 फीसदी की हिस्सेदारी है।

(एलिसन सलदनहा सह-संपादक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 15 अक्तूबर 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। हमसे respond@indiaspend.org पर संपर्क किया जा सकता है। हम भाषा और व्याकरण के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार रखते हैं।

__________________________________________________________________

"क्या आपको यह लेख पसंद आया ?" Indiaspend.com एक गैर लाभकारी संस्था है, और हम अपने इस जनहित पत्रकारिता प्रयासों की सफलता के लिए आप जैसे पाठकों पर निर्भर करते हैं। कृपया अपना अनुदान दें :