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दक्षिण-पश्चिम राजस्थान के सिरोही में अपनी मां के साथ बैठी पूनी गरासिया (दाएं)। 14 वर्षीय पूनी जनजातीय समुदाय से है। अक्टूबर 2016 में जब पूनी को टीबी होने का पता चला, तब उसका वजन केवल 20 किलोग्राम था। उनका बॉडी मास इंडेक्स 9.9 किग्रा / एम 2 था। यह स्तर इतना कम है कि जब हमने इस संबंध में विशेषज्ञ से बात की तो इसे "जिंदगी के लिए अयोग्य" बताया है। भारत में अल्प-पोषण 90 फीसदी फुफ्फुसीय टीबी मामलों की हकीकत है।

माउंट आबू / अबू रोड: दक्षिण-पश्चिम राजस्थान के सिरोही में धूल भरे और लगभग उजाड़ वाले इलाकों में 56 छोटे-छोटे गांवों के लिए एक चैरेटी मोबाइल क्लिनिक सेवा का संचालन करने वाले अशोक दवे ने देखते ही कह दिया कि 14 वर्षीय पूनी टीबी से ग्रसित है।

ग्लोबल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के साथ काम करने वाले डॉ दवे कहते हैं, “उसके शरीर में केवल हड्डियां और चमड़ी थी।”

24 मार्च 2017 को विश्व टीबी दिवस पर सरकार ने एक दिशानिर्देश जारी किया है- भारत में टीबी के मरीजों के लिए पोषण संबंधी देखभाल और समर्थन। यह टीबी रोगियों के पोषण संबंधी देखभाल और समर्थन के लिए वर्ष 2013 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देश का पहला देश-स्तर पर अनुकूलन है। टीबी का सबसे पहला लक्षण वजन कम होना है। यह वसा और मांसपेशियों को कमजोर कर देने वाली एक बीमारी है।

अल्प-पोषण टीबी की मारक क्षमता को बढ़ाता है। रोगियों की ठीक होने की गति को धीमा करता है और दवाओं के दुष्प्रभाव की भी संभावना बढ़ जाती है।

मैंगलोर के येनपुयो मेडिकल कॉलेज के चिकित्सा विभाग में प्रोफेसर अनुराग भार्गव कहते हैं कि जब सिरोही जिले के भाईससिंग गांव की आदिवासी पूनी, मोबाइल क्लिनिक आई थी तो उनका वजन 20 किलो और बॉडी मास इंडेक्स 9.9 किग्रा / एम 2 का (बीएमआई) था, जो ‘जिंदगी के लिए प्रयाप्त नहीं’ था। डॉ. भार्गव ने दिशानिर्देशों के प्रारूप तैयार करने में पोषण विशेषज्ञों के साथ काम किया है। वांछनीय बीएमआई स्तर 18.5 किग्रा / एम 2 है, आदर्श 21 किग्रा / एम 2 है।

बुखार से पीड़ित और एक लगातार खांसी होने पर एक बलगम जांच से पता चला कि वह वास्तव में मायकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस से ग्रसित है।

इस अक्टूबर 2016 निदान के बाद छह महीने में,, पूनी की गांव में रहने और काम करने वाले स्वास्थ्य कर्मचारी, जयंती लाल ने व्यक्तिगत रूप से भारत सरकार के संशोधित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम (आरएनटीसीपी) के तहत मुक्त टीबी दवाइयों की हर खुराक को वितरित किया है। साथ ही दवे के लिए काम करने वाले उसी चैरेटी क्लीनिक द्वारा टीबी रोगियों के लिए एक पोषण-समर्थन पहल के तहत छह- छह किलो भुने हुए सोया बीन और चने का वितरण किया गया है।

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टीबी के लिए निर्धारित उपचार, प्रत्यक्ष रूप से अस्थिर उपचार, लघु कोर्स या डीओटीएस मुफ्त में उपलब्ध है। हालांकि, इस बीमारी में वसा और मांसपेशी की हानि से बचने के लिए के लिए रोगियों को पर्याप्त भोजन की जरुरत होती है। टीबी रोगियों को प्रतिदिन 1.2-1.5 ग्राम / किग्रा / प्रोटीन के सेवन की सिफारिश की जाती है। जबकि सामान्य लोगों के लिए प्रतिदिन 1 ग्रा / किग्रा की जरूरत होती है।

बीसवीं सदी के मध्य में एंटी-टीबी ड्रग्स बनने से पहले अच्छा भोजन, खुली हवा, एक शुष्क जलवायु और आराम ही टीबी का मुख्य उपचार था।

केमोथेरेपी के आगमन के साथ दवाओं के बड़े पैमाने पर वितरण पर , सरकार का ध्यान गया । इस बदलाव में, नई नीति ने रोगी के ठीक होने में एक संतुलित आहार की भूमिका पर ध्यान नहीं दिया है।

वर्ष 1959 में मद्रास (अब चेन्नई) में किए गए एक महत्वपूर्ण अध्ययन में, टीबी उपचार की सफलता का मूल्यांकन किया गया था कि क्या दवाओं से टीबी जीवाणुओं को दूर किया जा सकता है। हालांकि इस मूल्यांकन में पाया गया था कि घर में इलाज कराने वाले मरीजों की तुलना में अस्पताल में इलाज करने वाले रोगियों का वजन दोगुना है। इस निष्कर्ष को नजरअंदाज किया गया, मरीजों के इलाज में पोषण असुरक्षा को एक महत्वपूर्ण बाधा के रूप में देखा गया था।

ग्रामीण भारत से 1,700 मरीजों पर किए गए 2013 के एक अध्ययन के आधार पर भार्गव कहते हैं, “ भारत में अल्प-पोषण 90 फीसदी फुफ्फुसीय टीबी मामलों की हकीकत है। ”

टीबी और अल्प-पोषण के बीच दोहरा संबंध

कम वजन होना, टीबी का कारण और परिणाम दोनों है।

भार्गव द्वारा ग्रामीण भारत पर 2013 में किए गए एक अध्ययन में, निदान के समय पुरुष रोगी का औसत वजन और बीएमआई 42.1 किलोग्राम और 16 किग्रा / एम 2 था। महिला रोगियों की स्थिति और बद्तर थी। उनका औसत वजन और बीएमआई 34.1 किग्रा और 15 किग्रा / एम 2 था। कुछ रोगियों में राजस्थान की पूनी की तरह बीएमआई 10 किलो / एम 2 था। (वांछनीय बीएमआई स्तर 18.5 किग्रा / एम 2, आदर्श 21 किग्रा / एम 2 है।)

भार्गव कहते हैं, 52 फीसदी रोगी स्टंड ( आयु के अनुसार कम कद ) से ग्रसित थे और यह भी देखा गया कि उनके खराब पोषण की स्थिति बहुत दिनों से चली आ रही थी।

ग्रामीण भारत में टीबी के रोगियों का औसत वजन और बॉडी इंडेक्स मास

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Source: Nutritional Status of Adult Patients with Pulmonary Tuberculosis in Rural Central India and Its Association with Mortality

वर्ष 2010 के ‘इंटरनेश्नल जर्नल ऑफ एपिडीमीआलजी’ की ओर से एक अध्ययन के अनुसार, बीएमआई में हर एक यूनिट की कमी से टीबी का जोखिम लगभग 14 फीसदी बढ़ जाता है।

टीबी का कारण कुपोषण और वजन घटना भी है। सबसे पहले रोग भूख कम कर देता है और रोगी धीरे-धीरे आहार का सेवन भी कम कर देता है। दूसरा, बुखार बेसल मेटाबोलिक दर को बढ़ाता है। इससे कैलोरी खर्च होने वाली दर बढ़ती है। और अंत में, टीबी प्रोटीन और मांसपेशियों के टूटने का कारण बनती है, जिससे वेस्टिंग ( कद के अनुसार कम वजन ) होने की संभावना बढ़ जाती है।इसके अलावा मरीजों के उपचार के दौरान और बाद में भी , अल्प-पोषण एक चुनौति बनी रहती है।यह बीमारी से ठीक होने वाले समय को बढ़ा सकता है। साथ ही पर्याप्त रूप से पोषित मरीजों की तुलना में गंभीर कुपोषित रोगियों को मरने की संभावना दो से चार गुना अधिक होती है।

‘इंटरनेशनल जर्नल ऑफ ट्यूबरक्युलोसिस एंड लंग्स डिसीज’ के 2014 के इस अध्ययन में 17 किग्रा / एम 2 से कम बीएमआई को दवा प्रेरित हेपोटोटॉक्सिसिटी के पांच गुना जोखिम या यकृत विकृति के साथ जोड़कर गया है। यह टीबी थेरेपी का एक संभावित दुष्प्रभाव है।

उपचार के पूरा होने के बाद भी अल्प-पोषण से बीमारी को दोबारा होने की संभावना बढ़ जाती है। साथ ही खराब मांसपेशियों की कम ताकत के कारण रोगी की शारीरिक गतिविधि कम हो जाती है।

पर्याप्त पोषण के बिना, टीबी रोगियों को चुनौतियों का करना पड़ता है सामना

वेस्टिंग को दूर करने के लिए टीबी रोगियों को प्रतिदिन 1.2-1.5 ग्राम / किग्रा प्रटिन सेवन करने की सिफारिश की गई है। जबकि सामान्य रोगियों के लिए यह सिफारिश प्रतिदिन 1 ग्रा / किग्रा की है। आदर्श रूप से, एक मरीज को इलाज के पहले दो महीनों में अपने शरीर के वजन का 5 फीसदी और तीन महीने में 10 फीसदी बढ़ाना चाहिए।

भारत में गरीबों को टीबी होने की संभावना ज्यादा होती है, इसलिए वे भोजन असुरक्षा का सामना भी ज्यादा करते हैं।

‘इंटरनेशनल जर्नल ऑफ ट्यूबरक्युलोसिस एंड लंग्स डिसीज’ के वर्ष 2007 के इस अध्ययन के अनुसार, घर के प्रकार, शौचालय सुविधा, कृषि भूमि और घर आदि के स्वामित्व जैसे मानदंडों के आधार पर मध्यम या उच्च स्तर के रहने वाले लोगों की तुलना में जीवन स्तर पर कम सुविधाओं के साथ रहने वाले लोगों में टीबी का प्रसार 3.7 गुना अधिक था।

कृषि भूमि मालिकों की तुलना में भूमिहीन लोगों में टीबी का प्रसार 3.3 गुना अधिक था, और पक्के घरों में रहने वाले लोगों की तुलना में कच्चे घरों में रहने वाले लोगों में 2.5 गुना ज्यादा था।

अधिक संवेदनशील टीबी रोगियों को खाद्य सहायता वितरित करने वाली चेन्नई की गैर-लाभकारी संस्था ‘रिसोर्स ग्रुप फॉर एजुकेशन एंड एडवोकेसी फॉर कम्युनिटी हेल्थ’ ( आरईएसीएच ) में डिप्टी प्रोग्राम डायरेक्टर, शीला अउगिएस्टीन कहती हैं, “ अगर दैनिक मज़दूरी ही आजीविका का स्रोत हो तो बीमारी के दौरान रोगी का भोजन घट सकता है। ”

‘इंडियन जर्नल ऑफ ट्यूबरकुलोसिस’ के वर्ष 2009 के इस अध्ययन के अनुसार, वांछनीय और वास्तविक कैलोरी सेवन के बीच अंतर को कम करने के लिए खाद्य सहायता के बिना, टीबी रोगियों के सीमान्त वजन केवल 3.22 किलोग्राम है।

भारतीय टीबी उन्मूलन योजना में पोषण के लिए नकद हस्तांतरण का प्रस्ताव

भार्गव कहते हैं, जब परिवार का कमाऊ सदस्य टीबी जैसी बीमारी से ग्रसित होता है तो परिवार की औसतन 83 दिनों की मजदूरी कम हो जाती है, जैसा कि अब भी प्रासंगिक माना जाने वाला 1999 के इस अध्ययन से पता चलता है। आय के इस नुकसान से परिवार खाद्य सुरक्षा के साथ समझौता करता है, जिससे रोगी के करीबी रिश्तेदारों को भी टीबी होने का जोखिम बढ़ता है।

नया पोषण दिशानिर्देश गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को भोजन प्रदान करने के लिए सरकारी कल्याण कार्यक्रम ‘सार्वजनिक वितरण प्रणाली’ से मिलने वाले अनाजों को दोगुना करने की सिफारिश करता है। यह सिफारिश टीबी से पीड़ित एक सदस्य वाले परिवार को बारह महीने के लिए है। उपचार के छह महीने के लिए, और उसके बाद छह महीने के लिए।

दिशा-निर्देशों के अनुसार, एक टीबी रोगी को दाल, तिलहन, सूखे दूध पाउडर या मूंगफली जैसे स्रोत से प्रतिदिन 30-40 ग्राम की अतिरिक्त प्रोटिन की जरुरत है।

स्वास्थ्य सेवा के महानिदेशालय में टीबी नियंत्रण के लिए उप महानिदेशक सुनील खापर्डे ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए बताया , “स्वास्थ्य मंत्रालय ने भारत के टीबी नियंत्रण कार्यक्रम के तहत टीबी रोगियों के लिए विशेष भोजन राशन या पोषण की खुराक बांटने से इनकार कर दिया है, क्योंकि यह ‘स्वास्थ्य मंत्रालय के दायरे से परे’ है। वह कहते हैं। हम टीबी के रोगियों को वित्तीय सहायता प्रदान करने की योजना बना रहे हैं, ताकि देखभाल पर खर्च की भरपाई हो सके। लेकिन यह सब फंड उपलब्ध होने पर है। "

मार्च 2017 में, वर्ष 2017 से 2025 के बीच कार्यान्वित कार्यक्रम टीबी के उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय सामरिक योजना में उपचार के दौरान रोगियों के पोषण संबंधी समर्थन के लिए 2,000 रुपये का प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण और उपचार पूरा करने के लिए 500 रुपये का मासिक समर्थन करने का प्रस्ताव दिया गया है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने मार्च 2017 में विस्तार से बताया है।

इस कार्यक्रम में अगले तीन वर्षों में 3,600 करोड़ रुपये खर्च करने की बात की गई है। इसमें सिर्फ मरीजों के लिए पोषण संबंधी सहायता पर खर्च 3,323 करोड़ रुपये से अधिक है। ये आंकड़े पिछले तीन वर्षों टीबी कार्यक्रम को मिले संयुक्त राशि से अधिक है।

सवाल यह भी है कि क्या यह भुगतान मरीजों के पोषण संबंधी आवश्यकताओं को कवर करने के लिए पर्याप्त होगा? राज्य सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ में जल्द ही एक ‘सब्सक्रिप्शन कार्यक्रम’ शुरू किया जायेगा। इस कार्यक्रम के तहत प्रति माह (या छह महीने के उपचार के लिए 3,600 रुपये) 34.7 ग्राम प्रोटीन और 818 किलो कैलोरी के लिए प्रति महीने 600 रुपए देने की बात कही गई है, जो टीबी रोगियों के लिए आवश्यक है।

छत्तीसगढ़ में पोषण सहायता के लिए कई तरह के हस्तांतरण

वर्ष 2016 में, जिन मरीजों को प्रतिदिन 676 किलो कैलोरी और 25 ग्राम प्रोटीन युक्त शाकाहारी भोजन वितरित किया गया, उन्हें उपचार के पहले दो महीनों में औसतन 2 किलोग्राम का वजन का लाभ मिला। यह छत्तीसगढ़ में राजनांदगांव जिले के छह ब्लॉक में एक पायलट परियोजना का हिस्सा था। पायलट में नामित माइक्रोस्कोपी केंद्रों का इस्तेमाल किया गया है, जहां उच्च ऊर्जा और प्रोटीन खाद्य सहायता की जरूरत के लिए ‘स्टेम’ नमूनों का परीक्षण किया जाता है।

राज्य स्वास्थ्य संसाधन केंद्र के कार्यकारी निदेशक प्रभाबीर चटर्जी ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए बताया कि छत्तीसगढ़ सरकार ने टीबी रोगियों के लिए पोषण के महत्व को बताने, पात्र रोगियों की ऊंचाई को मापने, मरीजों को परामर्श देने और भोजन भंडारण के लिए प्रयोगशाला कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया है।

जब पूरे राज्य में इस पहल की शुरूआत की जाएगी तो मरीजों को दिए गए भोजन की मात्रा बढ़ाई जाएगी, जिसमें 818 किलो कैलोरी और 34.7 ग्राम प्रोटीन रोजाना उपलब्ध होगा।

धूल भरे राजस्थान में पूनी की बात करें तो वो अब टीबी मुक्त है। उपचार के दौरान उसका वजन 6 किलोग्राम बढ़ा है। अकेले पहले दो महीनों में 4 किलोग्राम वजन की वृद्धि हुई। उसकी बीएमआई 12.9 किग्रा / एम 2 तक बढ़ी है, जो नई सरकार के दिशानिर्देशों द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार वांछित स्तर से 30 फीसदी और आदर्श स्तर से 38.5 फीसदी कम है।

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छह महीने के उपचार के दौरान सही पोषण से टीबी से पीड़ित पूनी का वजन छह किलोग्राम बढ़ा है। लेकिन अब बेहतर भोजन के बिना उसका वजन बढ़ना संभव नहीं, क्योंकि उसके परिवार के पास भोजन सुरक्षा नहीं है।

सामुदायिक चिकित्सक दवे कहते हैं, "वह अब टीबी के रोगी की तरह दिखती नहीं है।"

(बाहरी एक स्वतंत्र लेखक और संपादक हैं और राजस्थान के माउंट आबू में रहती हैं। दो दशकों से बाहरी ‘ग्लोबल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर’ से जुड़ी हुई हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 13 मई 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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