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भारतीय महिलाओं का अपने जीवन के विभिन्न फैसलों पर कितना नियंत्रण होता है? शायद बहुत कम !

वर्ष 2004-2005 और वर्ष 2011-2012 में मैरीलैंड विश्वविद्यालय और नेश्नल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च द्वारा आयोजित भारतीय मानव विकास सर्वेक्षण ( आईएचडीएस ) में ऐसे सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिश की गई थी। पाया गया कि भारतीय महिलाओं का अपने जीवन के विभिन्न फैसलों पर नियंत्रण बहुत कम रहता है।

वर्ष 2012 के आईएचडीएस सर्वेक्षण में पाया गया कि भारत में केवल 4.99 फीसदी महिलाएं खुद अपना जीवन साथी चुन सकती हैं। 79.8 फीसदी महिलाओं को स्वास्थ्य केंद्र तक जाने के लिए घर में अनुमति लेने की जरुरत होती है। वैसे इस सर्वेक्षण में वर्ष 2012 के आंकड़े वर्ष 2005 के आंकड़ों से थोड़े अलग थे। अगर वर्ष 2005 के आईएचडीएस सर्वेक्षण के आंकड़ों को देखा जाए तो केवल 5 फीसदी महिलाओं को ही अपने पति चुनने के अधिकार पर नियंत्रण था। 74.2 फीसदी महिलाओं को स्वास्थ्य केंद्र तक जाने के लिए अनुमति की आवश्यकता थी।

वर्ष 2012 के आईएचडीएस सर्वेक्षण में 34 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से 15 और 81 की उम्र के बीच 34,000 से अधिक शहरी और ग्रामीण महिलाओं को शामिल किया गया था।

कुल मिलाकर, सर्वेक्षण में शामिल 73 फीसदी महिलाओं ने बताया कि उनके माता-पिता या रिश्तेदार ही उनकी शादी के लिए जीवनसाथी का चुनाव करते हैं। जबकि 5 फीसदी महिलाओं ने बताया कि जीवनसाथी के चुनाव पर वह खुद फैसला ले सकती हैं।

पुरुषों के लिए ऐसे सर्वेक्षण का आयोजन नहीं हुआ है।

जीवनसाथी चुनने के नियंत्रण के मामले में पूर्वोत्तर राज्य की महिलाएं अधिक स्वतंत्र

जीवनसाथी चुनने के नियंत्रण के मामले में उत्तर भारत की महिलाएं कम स्वतंत्र

Source: India Human Development Survey 2012

Top five and bottom five states, 2012

किराने की दुकान और स्वास्थ्य केंद्र तक जाने के लिए भी महिलाओं को लेनी पड़ती है अनुमति

समानता और संविधान की बातें अलग हैं। व्यवहार में यह मामला बेहद पेचिदा है कि महिलाओं को उनकी जिंदगी के फैसले लेने का कितना अधिकार है? बहुतों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस देश में महिलाओं को किराने की दुकान या स्वास्थ्य केंद्र तक जाने के लिए अनुमति लेनी पड़ती है। करीब 80 फीसदी महिलाओं ने स्वीकार किया कि उन्हें स्वास्थ्य केंद्र का दौरा करने के लिए किसी परिवार के सदस्य से अनुमति लेनी पड़ती थी। इनमें से 80 फीसदी महिलाओं ने कहा कि उन्हें पति से अनुमति लेनी पड़ती है। जबकि 79.89 फीसदी का कहना था कि वे परिवार के किसी वरिष्ठ पुरुष सदस्य से अनुमति लेते हैं, वहीं 79.94 फीसदी महिलाओं का कहना है कि उन्हें परिवार से किसी वरिष्ठ महिला सदस्य से पूछ कर जाना पड़ता है।

इसके अलावा, करीब 58 फीसदी महिलाओं का कहना था कि उन्हें किराने की दुकान तक जाने के लिए अनुमति की जरुरत पड़ती है। जबकि वर्ष 2005 में किए गए सर्वेक्षण में यही आंकड़े 44.8 फीसदी थे।

इस तरह के प्रतिबंध अन्य संकेतकों में भी दिखाई देते हैं। उदाहरण के लिए, केवल 27 फीसदी भारतीय महिलाएं श्रम बल का हिस्सा हैं। श्रम बल में हिस्सेदारी के संबंध में ये आंकड़े पाकिस्तान के बाद दक्षिण एशिया में दूसरा सबसे कम है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने अप्रैल 2016 में विस्तार से बताया है।

दूसरी तरफ, घर में खाने में क्या पकाना है, इस संबंध में महिलाओं का काफी नियंत्रण रहता है। 92.89 फीसदी महिलाओं ने बताया कि घर में क्या पकाना है, यह फैसला वह खुद लेती हैं। करीब 50 फीसदी महिलाओं ने बताया कि घर में क्या पकाना इस निर्णय में उनके पति भी हिस्सा लेते हैं। वर्ष 2005 के बाद से, घर में खाना पकाने के निर्णय के संबंध में महिलाओं के प्रतिशत में कमी हुई है। 2005 में यह आंकड़े 94.16 फीसदी थे। वहीं दूसरी तरह इस निर्णय में पुरुषों की भागीदारी में वृद्धि हुई है। 2005 में पुरुषों के लिए ये आंकड़े 40.89 फीसदी थे।

महिलाएं (प्रतिशत में) जो स्वास्थ्य केंद्र का दौरा करने की अनुमति लेती हैं

ग्राफ 1 – टॉप पांच राज्य

ग्राफ 2 – नीचे के पांच राज्य

उन्हीं राज्यों में...

ग्राफ 1- खाना पकाने के संबंध में पूरा निर्णय लेने वाली महिलाएं

ग्राफ 2 – कुछ राज्यों में पुरुष भी लेते हैं हिस्सेदारी

Source: India Human Development Survey 2012

महिलाओं के लिए निर्णय लेने की आजादी उनके रहने की जगह पर निर्भर

वर्ष 2012 के आईएचडीएस के आंकड़ों के अनुसार, उत्तरी भारत में रहने वाली महिलाओं की तुलना में उत्तर-पूर्वी और दक्षिणी राज्यों की अधिक महिलाएं खुद अपने जीवनसाथी को चुनती हैं।

राजस्थान , पंजाब , और बिहार ऐसे राज्य हैं जहां महिलाओं को खुद अपना जीवनसाथी चुनने पर सबसे कम नियंत्रण है। आंकडों पर देखें तो राजस्थान में 0.98 फीसदी, पंजाब में1.14 फीसदी और बिहार में1.19 फीसदी। वहीं मणिपुर में सबसे ज्यादा महिलाएं खुद अपना जीवनसाथी चुनने पर नियंत्रण रखती हैं। लगभग 96 फीसदी।

इस संबंध में 88 फीसदी के साथ दूसरे स्थान पर मिजोरम है और तीसरे स्थान पर मेघालय है, जहां 76.9 फीसदी महिलाओं खुद अपना जीवन साथी चुनती रही हैं।

इस सर्वेक्षण में कम से कम 65 फीसदी महिलाओं ने बताया कि पति के साथ उनकी सबसे पहली मुताकात शादी के दिन ही हुई थी। लेकिन इस संबंध में अलग-अलग राज्यों के निष्कर्ष अलग-अलग हैं।

जैसे सर्वेक्षण में शामिल मणिपुर की सभी महिलाओं ने बताया कि उनके अभी जो जीवन साथी हैं, उनसे उनकी मुलाकात शादी से पहले हो चुकी थी। लेकिन बिहार की 94 फीसदी महिलाओं का कहना है कि उनकी अपने पति के साथ पहली मुलाकात शादी की रात ही हुई थी।

इससे भारत में शादी की व्यवस्था या अरेंज विवाह की प्रकृति भी सामने आती है। यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें आमतौर पर शादी करने वाली लड़की अपने माता-पिता द्वारा चुने गए लड़के से शादी करने के इरादे से पहली बार मिलते हैं।

ऐसी महिलाएं, जिन्हें स्वास्थ्य देखभाल केंद्र का दौरा करने के लिए अनुमति की जरूरत होती है, उनके प्रतिशत में भी क्षेत्रीय भिन्नता देखी जा सकती है। झारखंड में करीब 94 फीसदी महिलाओं ने स्वास्थ्य केंद्र का दौरा करने के लिए अनुमति की जरुरत होने की बात कही है। यह आंकड़े अन्य राज्यों की तुलना में अधिक हैं। जबकि इस संबंध में सबसे कम आंकड़े, करीब 4.76 फीसदी मिजोरम में दर्ज हुए हैं।

इस तरह के मामले में मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों का प्रदर्शन वर्ष 2005 में बढ़िया नहीं रहा था। लेकिन इसके बाद इन आंकड़ों में थोड़ा सुधार हुआ है। हालांकि, 2005 की तुलना में 2012 में नीचे से

क्या अधिक पढ़ाई से निर्णय लेने की शक्ति विकास होता है? शायद नहीं !

स्वास्थ्य केंद्र तक जाने या शादी के निर्णय लेने का संबंध राज्य स्तर पर साक्षरता या लिंग अनुपात से नहीं है। यह सामाजिक मापदंडों से जुड़ा मामला है और इसके आंकड़ें राज्य अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं।

उदाहरण के लिए छत्तीसगढ़ का लिंग अनुपात 991 है। यानी महिलाओं के मामले में यह राज्य दूसरे राज्यों से आगे है। यहां केवल 7.57 फीसदी महिलाओं ने कहा कि उन्हें स्वास्थ्य केंद्र का दौरा करने के लिए परिवार के सदस्य से अनुमति की जरूरत नहीं थी।

लिंग अनुपात और स्वास्थ्य केंद्र का दौरा करने के बीच संबंध नहीं

Source: India Human Development Survey 2012

Note: States with the the highest sex ratio in India

ऐसा विरोधाभास पहली बार नहीं देखा जा रहा है। पहले की तुलना में उच्च साक्षरता होने के बावजूद वर्ष 1951 के बाद से भारत में शिशु लिंग अनुपात सबसे कम है। यह निश्चित रुप से देश में बेटियों की तुलना में बेटों की वरियता को दर्शाता है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने दिसंबर 2016 में विस्तार से बताया है।

महाराष्ट्र के गोव में ओटावा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कैरोल वल्सोफ द्वारा 30 वर्ष की अवधि के दौरान किए गए अध्ययन में यह निष्कर्ष निकला है कि "बेटियों के खिलाफ पूर्वाग्रह को केवल तभी समाप्त किया जा सकता है , जब महिलाओं को शिक्षा के साथ-साथ सामाजि और आर्थिक मोर्चे पर भी सहयोग प्राप्त हो।" इस संबंध में इंडियास्पेंड ने दिसंबर 2016 में विस्तार से बताया है।

दिल्ली में साक्षरता दर 86.21 फीसदी है। यहां केवल 2.09 फीसदी महिलाओं ने बताया कि उनका शादी के निर्णय पर नियंत्रण है। जबकि दिल्ली की साक्षरता दर 74.04 फीसदी के राष्ट्रीय औसत से अधिक है।

मेघालय की साक्षरता दर 74.43 फीसदी है। ये आंकड़े दिल्ली की तुलना में कम है। जीवनसाथी चुनने के निर्णय के संबंध में मेघालय का स्थान ऊपर से तीसरे स्थान पर है। मेघालय के लिए ये आंकड़े 76.9 फीसदी हैं।

उच्च साक्षरता मतलब जीवनसाथी चुनने पर नियंत्रण नहीं

Source: India Human Development Survey 2012

Note: States with the the highest literacy rates in India

संसद में महिलाओं के आरक्षण और महिलाओं के खिलाफ हिंसा जैसे मुद्दों पर काम कर रही दिल्ली स्थित ‘ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव विमनस एसोसिएशन’ की सचिव कविता कृष्णन कहती हैं, “सांस्कृतिक परिदृश्य की भी एक महत्वपूर्ण भूमिका है। दिल्ली और दिल्ली के आस-पास कठोर पितृसत्तात्मक संस्कृति है, जो महिलाओं को जीवन साथी चुनने की आजादी नहीं देती।

कृष्णन आगे कहती हैं, “इस अध्ययन से पता चलता है कि स्वायत्तता का इनकार अपने आप में भारतीय महिलाओं के लिए मुख्य समस्याओं में से एक है। इस समस्या को अकेले साक्षरता के बूते हल नहीं किया जा सकता है । सरकार की ओर से इस मामले में सीधे हस्तक्षेप की जरूरत है। ”

(गर्ग मिशिगन विश्वविद्यालय में रिसर्च एसोसिएट है।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 13 फरवरी,17 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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