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हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्म उड़ता पंजाब से एक दृश्य जोकि पंजाब में नशे की स्थिति को दर्शाता है। 2015 में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुमान के अनुसार, 28 मिलियन (280 लाख) की आबादी वाले इस राज्य में 232,000 ओपीएड (अफीमयुक्त मादक द्रव्य) के आदि हैं और करीब 860,000 ओपीएड उपयोगकर्ता हैं।

फरवरी 2016 में पंजाब के उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल, ने 2015 के एक अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि, “राज्य की 2.77 करोड़ जनसंख्या में से केवल 0.06 फीसदी लोगों में नशे की लत पाया गया है, जो देश भर में सबसे कम प्रतिशत है।” दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा पंजाब को नशे की लत वाला सबसे बड़े राज्य के रुप में पेश करने पर बादल उनकी आलोचना कर रहे थे।

जैसा कि पिछले वर्ष पूरे राज्य को चुनावी बुखार ने जकड़ लिया है, बादल पंजाब और पंजाबियों को नशे में डूबे हुए के रुप में दर्शाने पर कड़ा विरोध जता रहे हैं। लेकिन केजरीवाल पर बादल की प्रतिक्रिया 2015 के अध्ययन का गलत उद्धरण करती है (यह अध्ययन राष्ट्रीय औषध निर्भरता उपचार केन्द्र , अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान , या एम्स के सहयोग से एक गैर सरकारी संगठन, सोसाईटी फॉर प्रोमोशन ऑफ युथ एंड मासेज़ द्वारा आयोजित की गई थी।)

  • लीड अन्वेषक अतुल आंबेकर, अतिरिक्त प्रोफेसर, राष्ट्रीय औषध निर्भरता उपचार केन्द्र और मनोरोग, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के विभाग, कहते हैं, 2015 के अध्ययन में सभी प्रकार के नशीली दवाओं को शामिल नहीं किया गया था, “बल्कि केवल एक प्रकार की दवा, ओपीएड के संबंध में चर्चा की गई थी – ओपीएड अफीम के पौधों का उत्पाद होता है जैसे कि हेरोइन, मोरफाइन या सिंथेटिक दवाएं जो अफीम की तरह शरीर को प्रभावित करता है। ओपीएड (तम्बाकू और शराब) के अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दवाओं की निम्नलिखित श्रेणियों का वर्णन किया है जो निर्भरता का कारण हो सकता है: भांग, सीडेटिव, हैलूसीनोजेनस, कोकिन, एम्फ़ैटेमिन और कश लेने वाली दवाएं।”
  • पंजाब में 232,000 ओपीएड के आदि लोगों के अनुमान के लिए 2015 के अध्ययन में 3,620 ओपीएड पर निर्भर लोगों के एक नमूना का साक्षात्कार किया गया है। यह भी कहा गया था कि राज्य में 860,000 ओपीएड उपयोगकर्ता हो सकते हैं हालांकि यह घोषित लक्ष्य नहीं था।
  • एम्स के निष्कर्ष के अनुसार, पंजाब में प्रति 100,000 लोगों पर 837 ओपीएड के आदि लोग हैं, जो राज्य के 280 लाख की आबादी का 0.84 फीसदी है। यह आंकड़े अकेले ही, देश भर में नशे की दवाओं के आदि लोगों की संख्या में तीन गुना है। समाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अनुमान के अनुसार देशभर में 3 मिलियन या 30 लाख लोग नशे के आदि हैं यानि कि प्रति 100,000 लोगों पर 250 लोग या कुल जनसंख्या का 25 फीसदी लोग नशे की लत के शिकार हैं।

पंजाब में नशीली दवाओं के उपयोग का अनुमान चयनित नमूना समूहों के सर्वेक्षणों के माध्यम से किया गया है, जैसा कि वैज्ञानिक अध्ययनों में होता है। पंजाब में राज्य -व्यापी जनगणना प्रकार का सर्वेक्षण कभी नहीं हुआ है।

मई 2009 में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष कुछ दवा पुनर्वास केंद्र की ओर से दायर याचिका के उत्तर में हरजीत सिंह, सामाजिक सुरक्षा और महिला एवं बाल विकास राज्य के विभाग के सचिव, ने एक विभागीय सर्वेक्षण का हवाला देते हुए (शपथ पत्र से कुछ पंक्तियां भी पंजाब राज्य दस्तावेज़ में उद्धृत किया गया है, जो यहां अपलोड किया गया है) हलफनामा दायर किया है जिसके अनुसार, “पंजाब की करीब 16 फीसदी आबादी कड़े नशे की दवाओं की आदी है।”

तो पंजाब की आबादी का कितना प्रतिशत नशे की आदी है: 0.84 फीसदी या 16 फीसदी?

पंजाब : भारत की ओपीएड खपत राजधानी लेकिन कितने लोग अधिक हानिकारक दवाओं का उपयोग करते हैं?

ओपीएड - दवाइयां या अफीम - निर्भरता के आधार पर पंजाब में नशीले पदार्थों की समस्या की हद का आकलन तर्कसंगत है क्योंकि इससे कि पता चलता है कि बाज़ार में किसकी खपत सबसे अधिक है, हालांकि पिछली रिपोर्ट 12 वर्ष पुरानी है, जिसे अब भी व्यापक रूप से उद्धृत किया जाता है।

ड्रग्स एवं क्राईम पर संयुक्त राष्ट्र की 2004 की यह रिपोर्ट कहती है कि भारत में, पंजाब में 56 फीसदी अफीम उपयोगकर्ता हैं, जो कि देश में सबसे अधिक हैं। 11 फीसदी के साथ राजस्थान दूसरे एवं 6 फीसदी के साथ हरियाणा तीसरे स्थान पर है। तीनों राज्यों में केवल पंजाब में प्रोपोक्सीफीन के दुरुपयोग की रिपोर्ट दर्ज की गई थी, यह एक मादक नशा है जो दर्द से निजाद के लिए एक इंजेक्शन के रूप में उपयोग किया जाता है। देश भर में 203 भाग लेने वाले केन्द्रों से नशीली दवाओं के सेवन की निगरानी प्रणाली के आंकड़ों के आधार पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार इसका इस्तेमाल करने वाले दूसरे राज्य नागालैंड और मिजोरम हैं।

विभागीय सर्वेक्षण, जिसका हमने पहले भी उल्लेख किया है, उसका हवाला देते हुए, सामाजिक सुरक्षा और महिला एवं बाल विकास राज्य के विभाग के सचिव, सिंह द्वारा दायर की गई हलफनामा दूसरा निष्कर्ष प्रतीत होता है। इसमें कहा गया है : "ओपीएड, उनके संजात, और सिंथेटिक नशा का सेवन, 70 फीसदी नशा करने वाले लोगों द्वारा किया जाता है, इसके बाद ओपीएड के संयोजन और मोरफिन सहित और अन्य सीडेटिव का उपयोग होता है।"

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एम्स अध्ययन के लीड अन्वेषक आंबेकर मानते हैं कि उनका एक निष्कर्ष ओपीएड पर ध्यान केंद्रित करने के निर्णय की पुष्टि करता है। अध्ययन में पंजाब के मनोचिकित्सकों और एजेंसियों को शामिल किया गया है जो नशा मुक्ति सेवा प्रदान करते हैं: 80 व्यक्ति और 80 एजेंसियों ने भाग लिया है।

आंबेकर कहते हैं, “पेशेवरों और एजेंसियों द्वारा देखे जाने वाले चार में से एक मरीज़ ओपीएड की लत का शिकार था। जाहिर है, ओपीएड निर्भरता मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं पर अधिक बोझ डाल रहा है।”

लेकिन 2015 के अध्ययन अफीम या नशीले पदार्थ वाले दवाओं से हेरोइन की ओर बदलाव दिखाती है जोकि एक उच्च प्रसंस्कृत , अफीम के अधिक नशे की लत का रूप है। आंबेकर कहते हैं, “जहां अन्य अध्ययनों ने यह बताया है कि राज्य में सबसे अधिक अफीम या अन्य नशीली पदार्थों का इस्तेमाल कर रहे हैं, हमने पाया कि ओपीएड की लत वालों की पसंद हेरोइन है।”

पंजाब में ड्रग (शराब , तंबाकू, नशीले पदार्थों) की खपत में वृद्धि: अध्ययन

ड्रग्स की परिभाषा, शराब और तंबाकू के साथ-साथ नशीले पदार्थों सहित, जैसा कि कई अध्ययनों में नशीली दवाओं के इस्तेमाल के संबंध में बताया गया है, पंजाब में नशीली दवाओं का प्रयोग अधिक पाया गया है। जैसा कि हमने कहा है , हमने हलफनामे का हवाला दिया जिसमें सामाजिक सुरक्षा विभाग के सचिव द्वारा एक सर्वेक्षण उद्कृत किया गया है जो कहती है कि पंजाब में ग्रामीण परिवारों में से दो –तिहाई परिवारों में से कम से कम एक नशीली दवाओं का आदि है।

इंडियास्पेंड ने पंजाब में नशे की समस्या की हद का संप्रेषित करने के लिए इस डेटा का हवाल, जून, 2015 की इस रिपोर्ट में दिया है।

दक्षिण - पूर्वी पंजाब जिले के संगरूर के छजली गांव में किए गए दो अध्ययन से पता चलता है कि आकस्मिक / नशीली दवाओं के शौकिया इस्तेमाल (तंबाकू, शराब , अफीम, भांग , आदि सहित) में 9 प्रतिशत अंक में वृद्धि हुई है, 1979 में 30 फीसदी से 2011 में 39 फीसदी हुआ है।

अपने अनुभव के आधार, अमरप्रीत सिंह देओल का, गुरु नानक चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष, एक गैर सरकारी संगठन जो नशे के लत वाले लोगों से साथ काम करती है, अनुमान है कि “उत्पादक आयु वर्ग (15 से 60 वर्ष) के करीब आधे पुरुष शराब, तंबाकू, अफीम की भूसी और अन्य ओपीएड , आदि सहित सामान्य रुप से इस्तेमाल करते हैं जिसमें से 10 फीसदी लोग इस नशे के बिना 24 घंटे से अधिक नहीं रह सकते हैं।”

क्यों पंजाब में अधिक लोग हैं नशे के लत का शिकार?

मांग, आपूर्ति और पर्याप्त मुद्रा व्यापार के मिश्रण से पंजाब में नशे की समस्या पैदा हुई है।

प्रमोद कुमार, निदेशक , विकास और संचार (आईडीसी) संस्थान, चंडीगढ़ जिन्होंने 2001 में ड्रग उपयोगकर्ता पर एक अध्ययन का नेतृत्व किया जिसे 2008 में पंजाब राज्य विधानसभा में पेश किया गया था, कहते हैं कि मनोरंजन और अन्य प्रयोजनों के लिए पंजाब और उत्तर भारत के अन्य भागों में अफीम का सेवन करना आम बात है। 2007 की उस घटना का उल्लेख किया जा सकता है जब भारतीय जनता पार्टी के निष्कासित नेता जसवंत सिंह ने राजस्थान के अपने पैतृक गांव जसोल में एक कार्यक्रम में मेहमानों के लिए एक अफीम युक्त पेय वितरित की थी।

एक निष्क्रिय पंजाबी की नशे की दवा लेने की छवि के विपरीत, नशा करने वाले आईडीसी के नमूने का केवल 16 फीसदी बेरोज़गार थे। कुमार के अनुसार, “नशा करने वालों में से 24 फीसदी किसान थे और 25 फीसदी मजदूर थे, ज्यादातर बिहार और उत्तर प्रदेश से आए प्रवासी थे जो अधिक काम करने के लिए नशे की दवाइयों का इस्तेमाल करते हैं।”

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आपूर्ति आसान है क्योंकि अफगानिस्तान से हेरोइन की तस्करी कर सीमा पार पंजाब लाया जाता है और आगे पश्चिम के लिए पारगमन किया जाता है। अन्य नशे की दवाओं में अफीम, पोस्त की भूसी, चरस और गांजा हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, आदि से राज्य में प्रवेश करता है। दवा की दुकानों और अन्य विक्रेताएं निर्धारित औषधि की आपूर्ति करते हैं।

कुमार कहते हैं, “हरित क्रांति और विदेशों से स्वस्थ प्रेषण से मध्यम वर्ग के हाथों में ज्यादा पैसा आया है। और विशिष्ट माल जैसे कि शराब और ड्रग्स की खपत के लिए मांग में वृद्धि हुई है।”

बेहतर पुलिस सेवाएं, परिवार की भागीदारी और सबसे ऊपर कौशल

“नशीली दवाओं की बिक्री से कई लोग कमाते हैं मोटी कमाई”

23 वर्षीय रवि (बदला हुआ नाम) एक नशेड़ी, जो अभी कुछ ही महीने पहले नशे की लत से बाहर आया है, ने रिपोर्टर से बात करते हुए बताया कि आसान आपूर्ति और साथियों के दबाव के कारण पांच साल पहले अपने कॉलेज के समय में नशे की चंगुल में फंसा था।

आईडीसी के कुमार कहते हैं, “पंजाब को आपूर्ति पक्ष के हस्तक्षेप की जरूरत है, जैसे कि अवैध नशीली दवाओं के व्यापार की जाँच और नशीली दवाओं के व्यापार में शामिल लोगों के अवैध रूप से अर्जित संपत्ति जब्त, (स्वापक औषधि और मन: प्रभावी पदार्थ की धारा 68 अधिनियम, 1988) जिसकी कानूनी रुप से अनुमति है”।

कुमार कहते हैं, “मांग को कम करने के हस्तक्षेप में युवाओं को रोज़गार देने की पहल, रोकथाम के लिए लीडर बनाने के लिए माता-पिता और समुदाय के नेताओं के साथ भागीदारी का निर्माण और नशीली दवाओं के दुरुपयोग के उपचार शामिल हैं।”

गुरु नानक ट्रस्ट के देओल कहते हैं, “यह युवाओं के लिए खेल और अन्य मनोरंजन सुविधाओं बनाने की ज़िम्मेदारी राज्य की है; अनिवार्य रूप से मनोरंजन के लिए स्वस्थ तरीके पर होना चाहिए ध्यान केंद्रित होना चाहिए और नशीली दवाओं के बिना जीवन का आनंद लेना सीखना चाहिए।”

नशे की दवा की मांग की कम करने के लिए उपचार है अभिन्न

1979 में ब्रिटिश जर्नल ऑफ एडिकशन में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि छजली के 6,699 जनसंख्या के नमूने का 9 फीसदी (तब) अफीम का इस्तेमाल करता है, ज्यादातर निर्भर उपयोगकर्ताओं के रूप में; 6 फीसदी बार्बीचुरेट्स और 2 फीसदी भांग का इस्तेमाल करते हैं।

2011 में इसी गांव पर किए गए अध्ययन जिसे दिल्ली मनोरोग जर्नल में प्रकाशित किया गया, उसके अनुसार नमूने का केवल 3.4 फीसदी अफीम के आदी थें एवं अफीम के उपयोग में 82 फीसदी गिरावट अंकन किया गया। डॉ बलवंत सिंह सिद्धू , प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, मनोरोग , राजेंद्र अस्पताल, सरकारी मेडिकल कालेज , पटियाला और अध्ययन के सह लेखक कहते हैं, “नशीली दवाओं के प्रयोग की समस्या के प्रति ग्रामीणों को जागरूक एवं उन्हें इलाज कराने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए सरकारी मेडिकल कालेज, पटियाला से स्नातकोत्तर छात्रों के प्रयासों के कारण यह गिरावट हुई।”

एम्स के अध्ययन का एक बड़ा निष्कर्ष यह है कि, जबकि पांच में चार मरीज़ नशे की आदत से मुक्ति पाने की कोशिश कर रहे हैं वहीं, तीन में से केवल एक को किसी प्रकार का समर्थन प्राप्त हुआ है। छह में से केवल एक मरीज़ को चिकित्सा उपचार प्राप्त हुआ है और 10 में से केवल एक ओपीएड आश्रति मारीज को ओपीएड सब्सट्यूशन थेरेपी (ओएसटी) एक नशा मुक्ति इलाज, प्राप्त हुआ है।

आंबेकर कहते हैं, “इसका कारण राज्य में मौजूदा नियमों की गलत व्याख्या हो सकती है। ओएसटी केवल लाइसेंस रोगी केन्द्रों को दी जाती है। बेहतर परिणाम के लिए पंजाब को ओएसटी को क्लिनिक आधारित स्वास्थ्य सेवाओं के साथ एकिकृत करना चाहिए। एक तरह के उपचार को नशा मुक्ति केन्द्रों तक सीमित करने से अधिक मरीज़ लाभ नहीं उठा पाते हैं।”

अप्रैल 2012 में, नशे की लत के कम करने के लिए रणनीति बनाने के उदेश्य से उप मुख्यमंत्री ने पोस्ट ग्रैजुएट इंस्ट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, चंडीगढ़ के मनोचिकित्सकों से परामर्श किया था।

मनोचिकित्सकों के साथ परामर्श की सिफारिशों के लिए बादल प्रशासन को पाँच मॉडल नशा मुक्ति केंद्र (अमृतसर , फरीदकोट , पटियाला , जालंधर, और बठिंडा में) और 25 मध्यवर्ती स्तर के नशा मुक्ति केंद्र का निर्माण करने और चिकित्सा पेशेवरों को प्रशिक्षित एवं मौजूदा सेवाओं के लिए आवश्यक दवाएं उपलब्ध कराए जाने की आवश्यकता है।

Punjab Opioid Dependence Survey: Key findings

To arrive at the number of opioid addicts, the investigators of the Punjab Opioid Dependence Survey 2015 interviewed 3,620 opioid addicts in 10 of 22 districts of the state, home to 60% Punjab’s people. A key question put to each user in the sample was: Did you check into a treatment centre in your district in 2014?

Only 1.8% of the sample answered “yes”, while the actual admissions for treatment in those 10 districts were 2,414 in 2014. This yielded a figure of 134,000 opioid addicts for the 10 districts and 232,000 for the entire state.

Some key findings of the profile of opioid-addicts in Punjab:

  • 76% are in the age group of 18 to 35 years
  • 99% are males, 54% are married
  • 89% are literate and have some degree of formal education
  • Only 27% are unskilled workers, 21% farmers, 15% businessmen, 14% transport workers, 13% skilled workers
  • 56% belong to rural areas
  • 53% are addicted to heroin, 33% to opium/doda/phukki, 14% to pharmaceutical opioids
  • 75% got hooked on due to peer influence
  • 29% inject drugs, of these 90% inject heroin

(बाहरी माउंट आबू, राजस्थान स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 18 जून 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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