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नोटबंदी पर हुए लगातार हंगामे के कारण संसद के शीतकालीन सत्र में सबसे कम काम हो पाया है। विचार मंच ‘पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च’ के विश्लेषण के अनुसार, पिछले 15 वर्षों में इस साल शीतकालीन सत्र में हंगामा ज्यादा और काम सबसे कम हुआ है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, लोकसभा में काम की हानि (काम करने के तय घंटे के दौरान बिना किसी रुकावट के काम के घंटे) का प्रतिशत 83 रहा, जबकि राज्यसभा में 80 फीसदी नुकसान हुआ।

वर्ष 2016 के शीतकालीन सत्र में लोकसभा में हुए व्यवधान के 92 घंटों से भारतीय करदाताओं पर 144 करोड़ रुपए का बोझ आया है , जैसा कि इंडियास्पेंड ने दिसंबर 2016 में बताया है।

बजट और मानसून सत्र में लोकसभा में 100 फीसदी काम हुआ था।

कुछ ऐसे महत्वपूर्ण बिल निम्नांकित हैं, जो दोनों सदनों में लंबित हैं:

1. सेरोगेसी विनियम वेधेयक - 2016

विधेयक में सरोगेसी पर कुछ नियम तय किए गए हैं, जिसमें , किराये की कोख के व्‍यापारिक इस्‍तेमाल पर रोक लगाने की बात कही गई है, लेकिन जरूरत पड़ने पर बारतीय दंपत्तियों के लिए निस्वार्थ भाव से सरोगेसी की अनुमति के नियम का प्रस्ताव दिया गया है।

इसका उदेश्य सरोगेट मां के शोषण को रोकने और सरोगेसी के जरिए पैदा हुए बच्चों के अधिकारों की रक्षा करना है। बिल में दंपत्ति के 25 से 55 वर्ष की उम्र के बीच के करीबी रिश्तेदारों के बीच से किराए की कोख हासिल करने की अनुमति दी गई है।

प्रस्ताव में विदेशियों, समलैंगिक जोड़ों, एकल, लिव-इन रिलेशन वाले जोड़ों और विवाह के पांच वर्षों के बाद ही सरोगेसी की सुविधा की मांग पर रोक की आलोचना की गई है, जैसा कि द हिंदू ने सितंबर 2016 की रिपोरट में बताया है।

भारत में सरोगेसी के बाजार के बारे में पर्याप्त जानकारी के बिना ही सरोगेसी के चलन को नियंत्रित करने का प्रयास किया जा रहा है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने अक्टूबर 2016 में विस्तार से बताया है।

स्थिति: लोकसभा में लंबित

2.कारखाना (संशोधन) विधेयक, 2016

कर्चारियों के कल्याण, सुरक्षा और स्वास्थ्य से संबंधित इस विधेयक में कारखाना अधिनियम-1948 में संशोधन करने का प्रस्ताव है, जिससे राज्य सरकार ओवरटाईम घंटे नियंत्रित कर सके और और एक तिमाही में ओवरटाईम के घंटे 50 घंटे से 100 घंटे तक बढ़ सके। इसके अलावा यह विधेयक राज्य और केंद्र सरकारों को जनता के हित में एक तिमाही में ओवरटाईम घंटे 115 से बढ़ा कर 125 करने की अनुमति देता है।

स्थिति: लोकसभा में पारित

3. पगार भुगतान (संशोधन) विधेयक- 2016

15 दिसंबर, 2016 को लोकसभा में मजदूरी भुगतान (संशोधन) विधेयक- 2016 पेश किया गया था। मजदूरी भुगतान अधिनियम -1936 में संशोधन द्वारा कैशलेस लेन-देन को बढ़ावा देने का लक्ष्य है।

वर्तमान कानून के तहत, सभी मजदूरों को सिक्का या नोटों या दोनों में भुगतान किया जाना चाहिए। जबकि नियोक्ता चेक का उपयोग कर या बैंक खातों में जमा कर भी मजदूरों को भुगतान कर सकते हैं, लेकिन इसमें कर्मचारियों से लिखित सहमति आवश्यक है।

नए विधेयक में चेक या बैंक खातों के माध्यम से मजदूरों के भुगतान के लिए लिखित प्राधिकार को अलग करने का प्रस्ताव है।

यह राज्य सरकारों को औद्योगिक या अन्य प्रतिष्ठानों को निर्दिष्ट करने की अनुमति देता है, जिससे वे वेतन भुगतान के लिए डिजिटल तरीके अपना सकते हैं।

आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, केरल और हरियाणा ने पहले से ही इस अधिनियम में राज्य संशोधन किए हैं।

नोटबंदी पर चल रहे हंगामे के बीच संसद के शीतकालीन सत्र में इस विधेयक को रखा गया था। बिल में कहा गया है कि संशोधन से मजदूरों को भुगतान न होने या न्यूनतम मजदूरी से कम भुगतान की शिकायतों पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी और इससे डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा मिलेगा।

स्थिति: लोकसभा में लंबित। केंद्रीय सरकार ने 21 दिसंबर , 2016 को मजदूरों के लिए कैशलेस भुगतान के लिए एक अध्यादेश (छह महीने के लिए वैध) जारी किया है।

4. मातृत्व लाभ (संशोधन) विधेयक- 2016

विधेयक मानसून सत्र के दौरान राज्यसभा में पेश किया गया था। विधेयक का उदेश्य मातृत्व लाभ अधिनियम- 1961 में संशोधन करना है, जिससे सभी महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश 12 सप्ताह से बढ़ा कर 26 सप्ताह किया जा सके।

महिलाएं जो कानूनी तौर पर तीन महीने से छोटे बच्चे को गोद लेती हैं या जो "कमीशन" माँ हैं (एक जैविक मां जो अपने अंडे का उपयोग कर किसी अन्य महिला में भ्रूण प्रत्यारोपित करती है) उन्हें भी बच्चा सौंपे जाने से लेकर 12 सप्ताह का मातृत्व अवकाश प्रदान किया जाएगा।

मातृत्व लाभ उठाने के बाद यदि महिलाओं का काम घर से हो सकता है तो विधेयक में इसकी भी अनुमति दी गई है। नियोक्ता और महिलाएं अवधि और संबंधित स्थितियों पर परस्पर सहमत हो सकते हैं।

50 या इससे अधिक कर्मचारियों के साथ वाले हर प्रतिष्ठान की ओर से एक निर्धारित दूरी के भीतर कर्मचारियों के बच्चों के लिए क्रेच प्रदान करना आवश्यक है। जहां नियोक्ता महिलाओं को सुविधा के तौर पर एक दिन में चार बार जाने की अनुमति दे सकता है।

स्थिति: राज्यसभा में पारित

5. मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक, 2016

मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक-2016 मानसून सत्र के दौरान लोकसभा में पेश किया गया था। विधेयक में मोटर वाहन अधिनियम- 1988 में संशोधन करने का प्रस्ताव है, विशेष रूप से सड़क परिवहन सुरक्षा कानूनों में सुधार पर ध्यान देने प्रस्ताव दिया गया है। मोटर वाहन अधिनियम के 223 वर्गों में से 68 में परिवर्तन का प्रस्ताव इस विधेयक में दर्ज है।

यह विधेयक सड़क हादसों में जख्मी लोगों के लिए कैशलेस इलाज की अनुमति देता है।

विधेयक में हिट एंड रन के केस में पीड़ितों को मुआवजे के रुप में मिलने वाली राशि 25,000 रुपए से बढ़ा कर 200,000 रुपए करने का प्रस्ताव है । यह विधेयक सड़क दुर्घटनाओं में मरने वाले के परिजनों को 10 लाख रुपए तक मुआवजा प्रदान करने की भी बात करता है।

अधिनियम के तहत कई अपराधों के लिए दंड भी बढ़ाए गए हैं। उदाहरण के लिए शराब पीकर गाड़ी चलाने के लिए जुर्माना अब 2,000 रुपए की बजाय 10,000 रुपए किया गया है, जबकि तेज गति से गाड़ी चलाने के लिए के लिए दंड 500 रुपए से बढ़ा कर 5,000 रुपए करने का प्रस्ताव है।

विधेयक मुसीबत में मदद करने वाले लोगों की भावनाओं का सम्मान भी करता है, जो अच्छे विश्वास, स्वेच्छा से और किसी भी पुरस्कार या मुआवजे की उम्मीद के बिना दुर्घटना के शिकार लोगों के मदद के लिए आगे आते हैं और उन्हें अस्पताल तक पहुंचाते हैं। विधेयक में कहा गया है कि ऐसे व्यक्ति दुर्घटना के शिकार के लोगों के किसी भी चोट या मौत के लिए किसी भी नागरिक या आपराधिक कार्रवाई के लिए उत्तरदायी नहीं होगें।

विधेयक में एग्रीगेटर सेवाओं या डिजिटल बिचौलियों, जैसे कि उबर और ओला जैसी कंपनियों को ध्यान में रखकर बनाया गया है।

इन एग्रीगेटर्स के लिए अनिवार्य लाइसेंस और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम- 2000 के पालन करने की आवश्यकता के अलावा अन्य सख्त निर्देश भी दिए गए हैं।

स्थिति: लोकसभा में लंबित

नीचे दोनों सदनों में पारित कुछ महत्वपूर्ण विधेयक दिए गए हैं:

1. संविधान विधेयक (122 वां संशोधन) (जीएसटी) विधेयक-2014

सबसे पहले इसे वर्ष 2014 में संसद में पेश किया गया था। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) विधेयक का प्रस्ताव निर्माण, बिक्री और माल की खपत पर एक व्यापक अप्रत्यक्ष कर लेवी लागू करने के लिए किया गया था। यह राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा लगाए गए अन्य अप्रत्यक्ष करों को बदलने के लिए तैयार है। 23 राज्यों ने विधेयक पर समर्थन जताया है, 1 अप्रैल 2017 से प्रभाव में आ जाएगा।

2. विकलांग व्यक्ति अधिकार बिल- 2014

यह विधेयक विकलांग व्यक्ति अधिनिम- 1995 (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) को बदलता है और विधेयक के तहत मान्यता दी जाने वाली सात विकलांगता सूचक को बढ़ा कर 19 करता है। यह बिल ‘संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन ऑफ पर्सनस विद डिसेबिलिटिज- 2007’ के अनुरुप है, जिसका भारत एक हस्ताक्षरकर्ता है। किसी प्रकार की विकलंगता के साथ लोग अब विकलांगता के अनुकूल सार्वजनिक भवनों, अस्पतालों और परिवहन के साधनों के उपयोग करने के हकदार हैं। कम से कम 40 फीसदी के साथ किसी प्रकार की विकलांगता के साथ वाले लोग अब शिक्षा और रोजगार में आरक्षण का लाभ ले सकेंगे और सरकारी योजनाओं में उन्हें वरीयता मिलेगी।

3. आधार विधेयक (वित्तीय सब्सिडी, लाभ और सेवाओं के लक्षित वितरण)-2016

विधेयक एक विशिष्ट पहचान संख्या या आधार संख्या के माध्यम से भारत के निवासियों के बैंक खातों में सीधे वित्तीय सब्सिडी के वितरण को सुनिश्चित करता है। हालांकि यह अभी तक अनिवार्य नहीं है, लेकिन सरकार निवासी की पहचान सत्यापित करने के एक साधन के रूप में आधार संख्या की मांग कर सकती है। भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण, जो आधार संख्या जारी करता है, उसे एकत्रित की गई जानकारी साझा करने के लिए अनुमति नहीं है। राष्ट्रीय सुरक्षा के या अदालत के आदेश अपवाद हैं।

4. रियल एस्टेट (नियमन एवं विकास) विधेयक, 2016

विधेयक राज्य सभा के बजट सत्र में पेश किया गया था। विधेयक में रियल एस्टेट सेक्टर में पारदर्शिता, जवाबदेही और दक्षता बढ़ाने के माध्यम से घर खरीदारों और आवंटियों के हितों की रक्षा का प्रावधान है। विधेयक निर्माणकर्ता और खरीदार के बीच अनुबंध लागू करता है और विवादों को निपटाने के लिए एक फास्ट ट्रैक सहायता प्रदान करता है।

उदाहरण के लिए, यह प्रत्येक राज्य के रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (रेगुलेटरी अथॉरिटी) के साथ रियल एस्टेट परियोजनाओं के लिए अनिवार्य पंजीकरण का प्रावधान देता है। इससे बिल्डरों की जवाबदेही बढेगी। किसी भी भूखंड, फ्लैट या इमारत को बेचने के लिए इच्छुक अचल संपत्ति दलालों और एजेंटों का प्राधिकरण के साथ पंजीकृत होना भी अनिवार्य है। विधेयक में पंजीकृत परियोजनाओं के लिए सभी जानकारी, जैसे कि प्रमोटरों के विवरण की जानकारी, लेआउट योजना, भूमि की स्थिति, निष्पादन और विभिन्न मंजूरी की स्थिति की सूची के प्रकटीकरण को भी अनिवार्य किया गया है।

5. राष्ट्रीय जलमार्ग विधेयक, 2016

विधेयक बजट सत्र में पेश किया गया था। भारत भर में 111 अंतर्देशीय जलमार्ग को राष्ट्रीय परिवहन जलमार्ग के रूप में घोषणा की की गई है। संविधान की सातवीं अनुसूची में संघ सूची की 24 प्रविष्टि के तहत केंद्र सरकार केवल संसद द्वारा राष्ट्रीय जलमार्ग के रूप में वर्गीकृत अंतर्देशीय जलमार्ग पर शिपिंग और नेविगेशन पर कानून बना सकती है।

यह विधेयक महत्वपूर्ण है, क्योंकि 3.5 फीसदी से ज्यादा भारत का व्यापार जलमार्ग के माध्यम से नहीं होता है, जैसा कि डीएनए ने मार्च 2016 में बताया है। जबकि चीन में जलमार्ग से जुड़े व्यापार 47 फीसदी, यूरोप में 40 फीसदी, जापान और कोरिया में 44 फीसदी और बांग्लादेश में 35 फीसदी होता है।

(यदवार प्रमुख संवाददाता हैं और सलदनहा सहायक संपादक हैं। दोनों इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 29 दिसंबर 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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