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हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने बिहार यात्रा के दौरान राज्य में शराब प्रतिबंध नीति के लिए के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रशंसा की। मोदी ने कहा, “शराब के खिलाफ अभियान शुरू करने के लिए मैं तहेदिल से नीतीश कुमार को बधाई देता हूं। लेकिन इस अभियान को केवल नीतीश कुमार या एक पार्टी के प्रयासों से सफलता नहीं मिलेगी। इस अभियान को 'जन-जन का आंदोलन' बनाने के लिए सभी राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों और नागरिकों को भाग लेना होगा।”

अप्रैल 2016 में, नीतीश कुमार ने राज्य में देशी शराब की बिक्री और खपत पर प्रतिबंध की घोषणा की थी। यह प्रतिबंध नीतीश कुमार द्वारा 2015 के विधानसभा चुनावों में महिला मतदाताओं को किए गए वादे में से एक था। जाहिर है इस नए कानून के पीछे महिला मतदाताओं की बड़ी ताकत है।

शराब पर प्रतिबंध के तीस दिनों बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अप्रैल 2015 से अप्रैल 2016 तक के अपराध के आंकड़ों पर अपने ढंग से विश्लेषण किया और राज्य में अपराध के मामले में 27 फीसदी गिरावट का दावा किया।

राज्य में अपराध पर बिहार पुलिस आंकड़ों पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि शराब पर प्रतिबंध के नौ महीने या 270 दिनों के बाद संज्ञेय अपराध में अप्रैल और अक्टूबर 2016 के बीच 13 फीसदी की वृद्धि हुई है। संज्ञेय अपराध का मतलब ऐसे गुनाहों से है, जिसमें मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना पुलिस जांच कर सकती है। उपलब्ध नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल में अपराधों की संख्या 14,279 थी जो अक्टूबर में बढ़ कर 16,153 हुई है।

दूसरे शब्दों में, शराब पर प्रतिबंध का अपराध में गिरावट से कोई रिश्ता नहीं है। कम से कम बिहार में यह रिश्ता तो नहीं दिखता। हम बता दें कि शराबबंदी का नया कानून पटना उच्च न्यायालय द्वारा रोके जाने के बावजूद अस्तित्व में आया। कोर्ट का मानना था कि यह कानून, अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों की गोपनीयता के अधिकार से इनकार करता है। हालांकि बिहार में शुरु में ये केवल देसी शराब पर रोक थी जिसे बाद में सभी प्रकार की शराब की बिक्री पर लगा दिया गया।

बिहार में अपराधियों को सजा मिलने में 68 फीसदी की गिरावट हुई है। ये आंकड़े वर्ष 2010 में 14,311 से वर्ष 2015 में 4513 हुए हैं और इसी अवधि के दौरान संज्ञेय अपराधों में 42 फीसदी की वृद्धि हुई है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने मई 2016 में विस्तार बताया है।

बिहार में संज्ञेय अपराध, अप्रैल-अक्टूबर 2016

Source: Bihar Police

शराब प्रतिबंध के बाद के महीनों में हर बड़े अपराध जैसे कि हत्या, बलात्कार, अपहरण, दंगे में वृद्धि हुई है।

प्रकार के अनुसार बिहार में अपराध

Source: Bihar Police

बिहार का अपराध दर कई समृद्ध राज्य जैसे कि गुजरात, केरल, राजस्थान और मध्य प्रदेश की तुलना में कम है। इसके पीछे का मुख्य कारण घटनाओं का रिपोर्ट न होना है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने मई 2016 में विस्तार से बताया है।

पटना उच्च न्यायालय ने सितंबर 2016 में, बिहार आबकारी (संशोधन) अधिनियम 2016 को ‘अवैध’ करार देते हुए खारिज कर दिया था। नए विधेयक में सजा का प्रावधान है, जिसमें वयस्कों को शराब रखने और खपत पर गिरफ्तार किया जा सकता है। प्रतिबंध का उल्लंघन करने पर 10 साल की कैद और 10 लाख रुपए तक जुर्माने की सजा हो सकती है। अगर सरकारी विधेयक अदालतों द्वारा खारिज की जाती है तो विधायी मंजूरी इसे कानून में परिवर्तित कर सकते हैं जिसमें अदालत का हस्तक्षेप नहीं होगा। यही बिहार में भी हुआ है।

उच्च न्यायालय के आदेश के दो दिनों के भीतर, बिहार सरकार ने एक नया कानून अधिसूचित किया , बिहार निषेध एवं उत्पाद शुल्क अधिनियम, 2016 । इसके तहत भारत में बनी विदेशी शराब (आईएमएफएल) और "मसालेदार" और घरेलू शराब सहित राज्य में शराब की बिक्री और खपत पर प्रतिबंध जारी रखा गया।

(साहा स्वतंत्र पत्रकार हैं। वह ससेक्स विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज़ संकाय से वर्ष 2016-17 के लिए जेंडर एवं डिवलपमेंट के लिए एमए के अभ्यर्थी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 12 जनवरी 17 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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