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Policemen stand next to a damaged vehicle after a protest by garment workers in Bengaluru on Tuesday.

बैंगलुरू के कपड़ा श्रमिकों- उनमें से लगभग पाँच लाख, अधिकांश महिलाओं- के पास पेंशन, रोजगार सुरक्षा, स्वास्थ्य बीमा नहीं है और जीवन लगभग गरीबी रेखा के आसपास ही है। ये अभी तक की बड़े पैमाने पर चुप्पी अचानक केंद्र सरकार के एक आदेश पर फट पड़ी जिसमें कर्मचारी भविष्य निधि की रकम की पूर्व निकासी पर रोक लगाई गई थी।

हजारों श्रमिकों ने मुख्य सड़कों को रोक दिया, जिसकी वजह से सड़कों पर यातायात जाम हो गया, और जब प्रदर्शन दंगा का रूप लेने लगा, वाहन जलाये जाने लगे, पुलिस फायरिंग हुई, केंद्र सरकार ने ईपीएफ निकासी पर रोक लगाने वाला आदेश निलंबित कर दिया।

कर्मचारी भविष्य निधि भारत में 1951 से है। भारतीय संसद ने कानून पास किया जिसके तहत कर्मचारी को अपने वेतन के निश्चित हिस्से का अंशदान अपने ईपीएफ खाते में करना होता है, इतना ही अंशदान नियोक्ता को भी करना होता है। यह ऐसे काम करता है:

आपके मूल वेतन के प्रत्येक 100 रुपये के लिए

कर्मचारी अपने ईपीएफ खाते में जमा रकम पर सालाना 9.75% चक्रवृद्धि ब्याज कमाता है।

नियोक्ता का अंशदान करमुक्त है। कर्मचारी के अंशदान पर टैक्स लगता है। लेकिन बाद में निकाली गई बचत पर टैक्स नहीं लगता है।

इस साल के बजट में, वित्त मंत्री अरुण जेटली ने घोषणा की कि ईपीएफ निकाले जाने पर इस पर टैक्स लगेगा- सेवानिवृत्ति से पहले बचत की रकम निकालने से रोकने के लिए ऐसा कदम उठाया गया था- इस कदम को उन्हें वापस लेना पड़ा। लोग नहीं चाहते कि उन्हें उनकी बचत का उपयोग करने में सरकार रोके।

कर्मचारी भविष्य निधि कार्यालय (ईपीएफओ) के इस अगस्त 2015 के न्यूजलेटर के अनुसार- सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में 6.56 करोड़ सक्रिय ईपीएफ खाते हैं।

ये तीन कारण हैं कि क्यों बैंगलुरू के कपड़ा श्रमिक दंगे पर उतारू हो गए थे:

1) ईपीएफ बचत निकालने पर प्रतिबंध

इस विवादास्पद आदेश तक, कर्मचारी यदि रोजगार पर नहीं है तो वो अपनी ईपीएफ रकम ब्याज समेत निकाल सकता था।

अब, 10 फरवरी 1016 को जारी अधिसूचना के अनुसार, ईपीएफ धारक अपना पैसा विवाह, बच्चों की पढ़ाई, गंभीर बीमारी या संपत्ति खरीदने के लिए नहीं निकाल सकता।

ये आदेश कपड़ा श्रमिकों के लिए एक झटका था, जिन्हें ठीक उपरोक्त कारणों के लिए वक्त-वक्त पर पैसे की जरूरत होती है।

2) सेवानिवृत्ति पर निकासी, अब तीन साल की देरी से

नया आदेश कहता है कि आप ईपीएफ की अपनी पूरी रकम सेवानिवृत्ति पर ही निकाल सकते हैं, सेवानिवृत्ति की आयु 55 साल से बढ़ाकर 58 साल कर दी गई है। यह नियम 31 जुलाई 2016 तक स्थगित कर दिया गया है।

3) 92% निजी क्षेत्र के सेवानिवृत्तियों के पास कोई पेंशन, स्वास्थ्य बीमा नहीं

भारत का औपचारिक, या संगठित कर्मचारियों की संख्या 2.89 करोड़ है, जिन्हें सुरक्षित रोजगार, पेंशन और चिकित्सा लाभ मिले हुए हैं। सरकारी अनुमानों के अनुसार, इनमें से, 40% (1.1 करोड़) निजी क्षेत्र में काम करते हैं।

भारत में संगठित कर्मचारियों की संख्या

सामान्य तौर पर, निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के मुकाबले सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी अच्छी और अधिक नियमित पेंशन, स्वास्थ्य लाभ और आय सुरक्षा का आनंद उठाते हैं।

हम जिन 40% निजी क्षेत्र के कर्मचारियों की बात कर रहे हैं, वो सिर्फ वो हैं जिन्हें सरकार की सांख्यिकीय एजेंसियां संगठित क्षेत्र के वर्ग में रखती हैं। इंडियास्पेंड का विश्लेषण बताता है कि इनमें से, 92% के पास आय सुरक्षा, पेंशन या स्वास्थ्य बीमा नहीं है। कपड़ा श्रमिक भी इन असुरक्षित कामगारों की श्रेणी में शामिल हैं, जिन्हें जीवन की महत्वपूर्ण जरूरतों को पूरा करने के लिए नियमित रूप से ईपीएफ खाते से निकासी की आवश्यकता पड़ती है।

भारत के असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों के बढ़ते संकट

जबकि कई निजी क्षेत्र के कर्मचारी, जैसे कि कपड़ा उद्योग में काम कर रहे श्रमिक, अनिश्चित जीवन व्यतीत करते हैं, वे असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे अपने जैसे कर्मचारियों से बेहतर हैं।

सरकार की परिभाषा के अनुसार, “असंगठित श्रमिक वो हैं जो असंगठित क्षेत्र या घरों में काम करते हैं, इसमें वे नियमित कर्मचारी शामिल नहीं हैं जिन्हें नियोक्ता द्वारा प्रदान किए गए सामाजिक सुरक्षा लाभ हासिल हैं और औपचारिक क्षेत्र में वो कर्मचारी जिनके पास नियोक्ताओं द्वारा प्रदान किये गए रोजगार और सामाजिक सुरक्षा लाभ हासिल नहीं हैं।”

इंडियास्पेंड ने बताया है कि 2011-12 के अंत तक भारतीय श्रमिकों में लगभग 72% (4.72 करोड़ में से 3.4 करोड़) असंगठित क्षेत्र में काम कर रही थी।

इसी तरह, निजी क्षेत्र के असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिक भी ईपीएफ खातों की रकम पर निर्भर होते हैं- यदि उनके पास पैसा निकालने के लिए ऐसे खाते हैं।

(तिवारी इंडियास्पेंड के साथ एक विश्लेषक हैं)

यह लेख मूलतः अंग्रेजी में 21 अप्रैल, 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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