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जहाँ भारत में हम गर्व पूर्वक प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में लगभग शत प्रतिशत नामांकन प्राप्ति का दावा कर सकते हैं जिसका श्रेय केंद्रीय सरकार द्वारा प्रायोजित शिक्षा अधिकार (आरटीई) तथा सर्व शिक्षा अभियान, जैसे सार्वभौमिक शिक्षा कार्यक्रमों को दिया जा सकता है वहीं उच्च शिक्षा के क्षेत्र मे स्थिति गंभीर है , जैसा की हमने पहले की रिपोर्टों में कहा भी है ।

और यह अंतर बहुत स्पष्ट हो जाता है, जब हम शिक्षण प्रणाली के निर्माण स्तम्भ -अर्थात शिक्षक संकाय की बात करते हैं

अक्सर भारत में उच्च शिक्षा की स्थिति पर संकलित आंकड़ों में छात्रों के सकल नामांकन अनुपात और छात्र-शिक्षक अनुपात पर तो प्रकाश डाला जाता है , लेकिन अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण (AISHE) जैसी सरकारी रिपोर्ट्स आमतौर पर विश्वविद्यालयों में पड़े खाली शिक्षण पदों जैसे एक महत्त्वपूर्ण पहलू की अनदेखी कर देती हैं ।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार भारत भर में 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में उपलब्ध 15,862 शिक्षक पदों में से, 5998 पद रिक्त हैं। अर्थात लगभग 38%, अथवा एक तिहाई शिक्षण पद नियुक्ति का इंतज़ार ही कर रहे हैं।

केंद्रीय विश्वविद्यालय संसद के अधिनियम द्वारा स्थापित किए जाते हैं और इन्हे फंड भी भारत सरकार द्वारा ही उपलब्ध कराया जाता है । अधिकतम रिक्त पदों के साथ कुछ विश्वविद्यालय इस प्रकार हैं :

Source: Universities’ Grants Commission

रिक्त पदों की संख्या अनुसार शीर्ष 10 केन्द्रीय विश्वविद्यालय

हरियाणा और तमिलनाडु के केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में रिक्त पदों का अनुपात अधिकतम 87% है । कुछ नवगठित केन्द्रीय विश्वविद्यालयों जैसे नालंदा विश्वविद्यालय बिहार और नगालैंड विश्वविद्यालय अपने प्रारंभिक चरणों में ही हैं और वहां नए कर्मचारियों की भर्ती की जा रही है।

ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार शिक्षा की अपेक्षा केंद्रीय सेवाओं के लिए कर्मचारियों की भर्ती में ज्यादा रूचि रखती है।अगर हम वित्त मंत्रालय के आंकड़ों से तुलना करते हैं, तो ग्रुप ए पदों में से 12% पद ही केंद्रीय सेवाओं में खाली थे जो कि विश्वविद्यालयों में पड़े शिक्षकों के रिक्त पदों से तुलनीय हैं । ( की तुलना में बहुत कम हैं )

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इन विश्व विद्यालयों में शिक्षको की कमी, शिक्षा की गुणवत्ता का संकेत सूचक है। नवीनतम AISHE रिपोर्ट से प्राप्त आंकड़ों से पता चलता है की कैसे निजी विश्विद्यालयों में अध्यापक-छात्र अनुपात सरकारी विश्वविद्यालयों की तुलना में बेहतर है ।

Source: Ministry of Human Resource and Development, Government of India

केंद्रीय और राज्य विश्वविद्यालयों में उच्च अध्यापक-छात्र अनुपात, अपर्याप्त शिक्षा कर्मचारी से संबंधित गुणवत्ता का सूचक है।

जहां एक ओर शिक्षक संकाय की भर्ती में सरकार की निष्क्रियता एक समस्या है, वहीं कुछ रिपोर्ट्स में दूरदराज के क्षेत्रों में स्थित संस्थानों में शिक्षण संकाय की यथास्थिति (बरकरार) बनाए रखने की चुनौती पर भी प्रकाश डाला गया है।

उदाहरण के लिए, श्रीनगर में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय, गढ़वाल की पहाड़ियों की छोटी सी घाटी में स्थित उत्तराखंड नगर , उड़ीसा के केन्द्रीय विश्वविद्यालय में, या कोरापुट जिले में 140 के शिक्षण पदों पर केवल 21 ही नियुक्तियाँ की जा सकी हैं।

Image Credit:Dreamstime/Paulwest5

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