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भारत में प्रजनन दर धार्मिक विश्वासों की तुलना में शिक्षा स्तर और राज्य के भीतर सामाजिक-आर्थिक विकास से अधिक जुड़ा हुआ है। यह जानकारी सरकारी आंकड़ों और अनुसंधान साक्ष्यों पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण में सामने आई है।

साक्ष्यों पर किए गए हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि अमीर परिवारों, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं और उच्च महिला साक्षरता के साथ वाले राज्यों में प्रजनन दर कम है। वैश्विक स्तर पर, धर्म और प्रजनन दर का गरीब, संघर्ष ग्रस्त राज्यों और उच्च जनसंख्या वृद्धि दर रिपोर्टिंग कम महिला सशक्तिकरण के साथ देशों के साथ धर्म और प्रजनन दर से जोड़ने के लिए कम साक्ष्य हैं।

जब भारत के महापंजीयक और जनगणना आयुक्त के कार्यालय ने पिछले साल भारतीय आबादी के लिए प्रजनन दर जारी की तब बातचीत में धर्मों में जनसंख्या वृद्धि दर में अंतर का मुद्दा छाया रहा। कई अखबारों ने इस बार पर जोर दिया कि आंकड़ों से पता चलता है कि गैर मुस्लिम महिलाओं की तुलना में मुस्लिम महिलाओं की प्रजनन दर अधिक है और आबादी में मुसलमानों का प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है।

संख्या से पता चला है कि, 2011 में भारत में मुसलमानों का अनुपात कुल आबादी का 14.2 फीसदी तक पहुंचा है, जो 2001 की तुलना में 13.4 फीसदी से ऊपर है जबकि हिंदुओं का अनुपात 80.5 फीसदी से गिरकर 79.8 फीसदी हुआ है। ईसाई और जैन के प्रतिशत में कोई खास बदलाव नहीं हुआ है जो कि 2.3 फीसदी और 0.4 फीसदी पर हैं जबकि बौद्धों का अनुपात 0.8 फीसदी से गिरकर 0.7 फीसदी हुआ है और सिखों का अनुपात 1.9 फीसदी से गिरकर 1.7 फीसदी हुआ है।

यह अंतर्निहित सुझाव है कि अन्य धार्मिक समुदायों की तुलना में मुस्लिमों के अधिक बच्चे हैं, आंकड़ों से पता चलता है कि किस प्रकार जनसंख्या वृद्धि दर और कुल प्रजनन दर (टीएफआर) – या बच्चे को जन्म देने की उम्र तक एक महिला की औसत बच्चे बच्चे को जन्म देने की क्षमता - भारत के राज्यों में व्यापक रूप से भिन्न है। टीएफआर राज्य में प्रति व्यक्ति आय, स्वास्थ्य और अन्य बुनियादी सुविधाओं से अधिक संबंधित लगता है।

विकास और प्रजनन क्षमता : केरल और उत्तर प्रदेश के मामले

उदाहरण के लिए, केरल और उत्तर प्रदेश (यूपी) की तुलना करते हैं। 2011 में, जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश का टीएफआर, 3.3, 2.4 के भारतीय औसत से अधिक था, और केरल में टीएफआर 1.8 की तुलना में अधिक है। उत्तर प्रदेश में 2001 से 2011 के बीच मुस्लिम जनसंख्या की 25.19 फीसदी की वृद्धि हुई जबकि केरल में मुस्लिम जनसंख्या में 12.83 फीसदी की वृद्धि हुई है। इसी अवधि के दौरान , हिंदू आबादी की उत्तर प्रदेश में 18.9 फीसदी और केरल में 2.8 फीसदी की वृद्धि हुई है।

एन सी सक्सेना, भारत के योजना आयोग के पूर्व सचिव ने द वायर, एक गैर-लाभकारी पत्रकारिता पोर्टल को दिए एक साक्षात्कार में कहा, “उत्तरी राज्यों में मुसलमानों की उच्च विकास दर, मुस्लिम संस्कृति की तुलना में कहीं न कहीं उत्तरी संस्कृति का हिस्सा अधिक है।” यह उत्तरी और मध्य राज्यों में उच्च औसत टीएफआर के साथ समकालीन है जैसे कि 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, दक्षिणी राज्यों आंध्र प्रदेश (1.8), कर्नाटक (1.9), केरल (1.8) और तमिलनाडु (1.7) की तुलना में उत्तर प्रदेश (3.3) , बिहार (3.5) , छत्तीसगढ़ (2.7), और मध्य प्रदेश (2.9)।

भारत में सबसे ज्यादा प्रजनन दर वाले राज्यों में उत्तर और मध्य भारत के राज्य हैं - बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान (टीएफआर 2.9) , झारखंड (2.8 ), और छत्तीसगढ़।

यह समग्र प्रजनन दर राज्य के विकास से अधिक संबंधित लग रहे हैं। उदाहरण के लिए, 2011 में उत्तर प्रदेश में 69.7 फीसदी साक्षरता दर की तुलना में केरल की साक्षरता दर 93.9 फीसदी है। इसी वर्ष में, केरल की 99.7 फीसदी माताओं कों चिकित्सा ध्यान प्राप्त किया है जबकि इसी संबंध में उत्तर प्रदेश के आंकड़े 48.4 फीसदी रहे हैं। केरल में 74.9 फीसदी महिलाओं की शादी के समय उम्र 21 वर्ष से अधिक थी जबकि यही आंकड़े उत्तर प्रदेश के लिए 47.6 फीसदी रहे हैं।

जनसंख्या वृद्धि दर की व्याख्या करने का एक और तरीका गरीब और अमीर राज्यों में अंतर के माध्यम से है। सशक्त कार्रवाई समूह (ईएजी) राज्यों, जिसमें भारत के गरीब राज्य शामिल हैं - राजस्थान, उत्तर प्रदेश , उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, और छत्तीसगढ़ – की जनसंख्या वृद्धि दर अधिक है। 2001 और 2011 के बीच ईएजी राज्यों की वृद्धि 21 फीसदी के दर पर बढ़ी है जबकि शेष भारत में यह आंकड़े 15 फीसदी रहे हैं। फिर भी, 1991 और 2001 के बीच, यहां तक ​​कि ईएजी राज्यों में दशकीय जनसंख्या वृद्धि दर, 24.99 फीसदी की दशकीय वृद्धि दर में गिरा है।

राज्य अनुसार हिंदू बनाम मुस्लिम प्रजनन दर

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फिर भी, वहाँ धार्मिक समूहों के बीच टीएफआर में राज्यों के भीतर अंतर है। तीसरे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, 2005-2006 में, उत्तर प्रदेश की टीएफआर 3.3 था, जोकि 2.4 के अखिल भारतीय औसत से अधिक है। केरल का टीएफआर 1.93 था। 2005-2006 में, केरल में मुस्लिमों का टीएफार 2.46 था जोकि केरल में हिंदुओं के 1.53 के टीएफआर की तुलना में अधिक है। लेकिन केरल में मुस्लिम टीएफआर उत्तर प्रदेश में हिंदू टीएफआर तुलना में कम थी जो 3.73 था। उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों का टीएफआर 4.33 था।

राज्य के भीतर उच्च मुस्लिम प्रजनन के लिए एक कारण धन संबंधी कारक हो सकते हैं।

सर्वेक्षण जानकारी से पता चलता है कि अमीर परिवारों की तुलना में कम धन पंचक में अधिक बच्चे होते हैं। उदाहरण के लिए, बिहार में, सबसे कम धन पंचक में महिलाओं की टीएफआर 5.08 है जबकि उच्चतम पंचमक में महिलाओं की टीएफआर 2.12 है। अमीर राज्यों के लिए भी यही सत्य है, जैसे कि महाराष्ट्र, जहां सबसे कम धन पंचक का टीएफआर 2.78 है जबकि सबसे अमीर धन पंचक का टीएफआर 1.74 है।

औसतन, भारत भर में हिंदुओं की तुलना में मुस्लिम गरीब हैं। 2009-2010 के आंकड़ों के आधार पर 2013 राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार, मुस्लिमों के लिए औसत प्रति व्यक्ति मासिक घरेलू खर्च 833 रुपए है जबकि हिंदुओं के लिए 888 रुपए, ईसाइयों के लिए 1,296 रुपए और सिखों के लिए 1,498 रुपए है।

शोधकर्ता श्रीया अय्यर, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्रोफेसर का कहना है कि, प्रजनन क्षमता पर धर्म का सांख्यिकीय महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं है यदि अन्य कारक जैसे कि “शिक्षा (मात्रा और गुणवत्ता) की पहुंच, आय , चाहे युगल बच्चे की देखभाल में है या नहीं, स्थानीय स्वास्थ्य देखभाल के प्रावधान (मात्रा और गुणवत्ता) के साथ मदद की है कि शिशु मृत्यु दर को कम करती है और इसलिए बच्चे के लिए उपयोग अस्तित्व, और समुदाय के शहरीकरण की डिग्री बढ़ जाती है” ध्यान में न ली जाय। आगे कर्नाटक तालुका (एक जिले के एक प्रशासनिक उप प्रभाग) में उनका 2002 के अध्ययन में पाया गया कि हिंदू और मुस्लिम दोनों के ही ईसाई की तुलना में अधिक बच्चे हैं लेकिन यह कहा गया कि धर्म प्रजनन क्षमता और अन्य सामाजिक-आर्थिक कारकों के माध्यम से गर्भनिरोधक को प्रभावित करता है जैसे कि धर्म के वैचारिक सिद्धांतों के बदले बच्चों को शिक्षित करने के लिए एक परिवार का फैसला।

सामाजिक- आर्थिक कारकों अलग अलग तरीकों से धार्मिक समूहों की प्रजनन क्षमता प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा, और पुरुषों के लिए माध्यमिक शिक्षा, मुसलमानों की प्रजनन क्षमता को कम करती है लेकिन हिंदुओं या ईसाइयों की नहीं, रिपोर्ट कहती है, और सुझाव देती है कि इन मतभेदों को ध्यान में रखते परिवार नियोजन कार्यक्रमों को तैयार किया जा रहा है हो सकता है।s.

इसके आगे, अय्यर कहती हैं, भारत के साक्ष्यों से पता चलता है कि धार्मिक समूहों के बीच दीर्घकालिक टीएफआर एकाग्र होने का अनुमान है जैसा कि सभी धार्मिक समुदायों की महिलाओं अपनी दादी या मां की तुलना में कम बच्चे को जन्म दे रही हैं।

विकास और प्रजनन

भारतीय महिलाएं, कई मुस्लिम देशों में अपने समकक्षों की तुलना में अधिक बच्चों को जन्म देती हैं।

अंतरराष्ट्रीय स्तर धर्म और प्रजनन दर के बीच संबंध के कम ही साक्ष्य हैं।

उदाहरण के लिए, विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, 2014 में, बांग्लादेश, भारत के मुस्लिम बहुल पड़ोसी की कुल प्रजनन दर, 2.2 थी। ईरान, एक अन्य मुस्लिम देश का टीएफआर 1.7 था, जो प्रतिस्थापन स्तर के नीचे है, यानि कि वर्तमान जनसंख्या प्रचलित जनसंख्या वृद्धि दर से बदला नहीं जा सकता है।

इसी तरह, मलेशिया और इंडोनेशिया, दोनों मुस्लिम बहुल देशों का प्रजनन दर 1.9 और 2.5 है। अन्य मुस्लिम बहुल देश जैसे कि सऊदी अरब (2.8), और मिस्र (3.3) का प्रजनन दर उच्च है। प्यू रिसर्च सेंटर के आंकड़ों के अनुसार, पाकिस्तान में हिंदु और मुस्लिम आबादी दोनों का कुल प्रजनन दर 3.2 है।

एक अन्य पड़ोसी देश, श्रीलंका, एक बौद्ध बहुमत के साथ, 2014 में टीएफआर 2.1 है। 2010 से 2015 के बीच इसकी बौद्ध आबादी का टीएफआर 2.2 था जबकि हिंदू और मुस्लिम दोनों का टीएफआर उच्च, 2.3 और 2.8 था।

प्रजनन दर की तुलना

प्रजनन क्षमता महिला सशक्तिकरण सहित कई सामाजिक-आर्थिक कारकों से संबंधित है

प्रजनन दर कई अन्य कारकों पर भी निर्भर है जो धार्मिक समूह से असंबंधित हैं। पी अरोकीसमई, विकास अध्ययन विभाग के प्रमुख, अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (आईआईपीएस) मुंबई स्थित, के अनुसार, उदाहरण के लिए, सामाजिक-आर्थिक कारकों, शिक्षा, आधुनिकीकरण, गर्भ निरोधकों के लिए उपयोग, और विकास के लिए राज्य की नीतियां, सभी प्रजनन क्षमता को प्रभावित करती हैं।

इसके अलावा, जनसंख्या वृद्धि दर क अन्य कारकों पर भी निर्भर करती है जैसे कि महिलाओं के लिए काम करने के अवसर, गर्भनिरोध के लिए उपयोग, शादी में उम्र, और घर के भीतर निर्णय लेने की शक्ति। उदाहरण के लिए, अध्ययन की एक मेटा-विश्लेषण, 2014 में प्रकाशित, में महिला सशक्तिकरण और कम प्रजनन, लंबे जन्म अंतराल, और अनायास ही गर्भावस्था की कम दर के बीच सकारात्मक संबंध पाया गया है।

भारत में जनसंख्या वृद्धि दर कम हो रही है, हिंदू दर की तुलना में मुस्लिम दर में तेजी से गिरावट हो रही है।

प्यू रिसर्च सेंटर, अमेरिका स्थित एक थिंक टैंक, द्वारा जनसंख्या अनुमानों, के अनुसार वर्ष 2050 तक भारत की जनसंख्या का 18.4 फीसदी मुस्लिम होंगे जोकि दुनिया के किसी भी देश के मुकाबले मुस्लिमों की सबसे अधिक आबादी होगी। लेकिन भारत की हिंदू आबादी अभी भी भारत, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, नाइजीरिया और बांग्लादेश की कुल मुस्लिम आबादी, दुनिया में सबसे बड़ा मुस्लिम आबादी वाले पांच देशों से अधिक होगी।

भारत में कुल जनसंख्या वृद्धि कम हो रही है, और दशकीय वृद्धि दर 1991 और 2001 के बीच 21.54 फीसदी से गिर कर 2001 और 2011 के बीच 17.64 फीसदी हुआ है जो वैश्विक प्रवृति के साथ लाइन में है जो दिखाता है कि देश के विकसित और साक्षर होने के साथ जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट होती है।

भारत में मुस्लिम वृद्धि दर हिंदुओं की वृद्धि दर की तुलना में तेजी से गिर रही है।

जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, मुसलमानों की दशकीय जनसंख्या वृद्धि दर 4.9 प्रतिशत अंक गिरी है, 2001 में 29.5 फीसदी से गिरकर 2011 में 24.6 फीसदी हुआ है जबकि हिंदुओं में 3.5 प्रतिशत अंक की गिरावट हुई है, 20.3 फीसदी से गिर कर 16.8 फीसदी हुआ है। 2001 में, सभी हिंदुओं का 65.1 फीसदी जिनकी आयु 7 वर्ष से ऊपर थी वे साक्षर थे जबकि 59.1 फीसदी मुस्लिम साक्षर थे। 2011 में, साक्षर हिंदुओं का प्रतिशत बढ़ कर 73.3 फीसदी हुआ जबिक मुसलमानों का 68.5 फीसदी तक हुआ है।

आबादी का प्रजनन दर, जिनकी प्रजनन क्षमता उच्च है जैसे कि कम आय वाले परिवार और मुसलमानों, अन्य समूहों की तुलना में अधिक तेजी से गिर रहे हैं।

(शाह एक स्वतंत्र पत्रकार एवं जॉर्ज टाउन विश्वविद्यालय, संयुक्त राज्य अमरीका में ग्लोबल मानव विकास कार्यक्रम में स्नातक है।).

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 10 अगस्त 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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