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एक वर्ष पहले, बैंगलोर में सार्वजनिक बसों में सफर करना कितना वहन करने योग्य है, यह विश्लेषण करने के लिए मैंने एक मॉल के कर्मचारी का साक्षात्कार लिया। हालांकि इस अध्ययन का उदेश्य केवल यात्रा के पैटर्न को समझना था, लेकिन आंकड़ों से प्रमुख लिंग भेद का अंतर पता चला – पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक सार्वजनिक बसों का इस्तेमाल करती हैं, और पुरुष अधिकतर दो-पहिया वाहन द्वारा यात्रा करते हैं।

लैंगिक समानता और विकास पर विश्व विकास रिपोर्ट 2012 में, भिन्न आंकड़े लिंग के प्रति संवेदनशील शहरी परिवहन योजना और नीति निर्माण के लिए आवश्यक पहले कदम के रूप में व्यक्त किए गए हैं। हालांकि परिवहन अध्ययन या कई शहरों की योजनाओं पर नज़र डालें तो पता चलता है कि लिंग अनुपात केवल लिंग से संबंधित आंकड़े हैं।

यही कारण है कि भारत की जनगणना ने हाल ही में 'अन्य कार्यकर्ताओं' (जो कुछ आर्थिक गतिविधियों में शामिल हैं लेकिन जो किसान और खेतिहर मजदूर नहीं हैं या घरेलू उद्योग से संबंधित हैं) के लिए 'काम की जगह तक यात्रा' पर जारी किए गए आंकड़े महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह लिंग पर अलग-अलग आंकड़े प्रदान करता है कि वे कैसे और कितनी दूर यात्रा करते हैं।

पुरुषों की तुलना में महिलाएं कम दूरी तय करती हैं

जैसा कि आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बंगलौर और चेन्नई सहित सभी प्रमुख भारतीय शहरों महिलाओं द्वारा यात्रा की औसत दूरी, पुरुषों की तुलना में कम है। इसके अलावा, यदि पुरुषों की तुलना में देखा जाए तो महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा ऐसी नौकरी करता है जिसमें यात्रा करना आवश्यक नहीं है।

लिंग के आधार पर औसत यात्रा की दूरी

घर से काम करने वाले लोग

यात्रा के लिए महिलाए करती हैं धीमे साधन का उपयोग

पुरुषों की तुलना में जो महिलाएं काम करने के स्थान तक यात्रा करती हैं उनमें से महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा पैदल चलता है एवं सार्वजनिक बसों का इस्तेमाल करता है। शहरों में, 37 फीसदी महिलाएं काम के स्थान तक पैदल चलती हैं जबकि पुरुषों के लिए यह आंकड़े 27 फीसदी हैं। वहीं 30 फीसदी महिलाएं सार्वजनिक बसों का इस्तेमाल करती हैं जबकि 25 फीसदी पुरुष बसों द्वारा यात्रा करते हैं।

प्रमुख भारतीय शहरों में लिंग के आधार पर परिवहन साधन

कम दूरी के लिए साइकिल की तुलना में पैदल चलना एवं लंबी दूरी के लिए निजी वाहनों की तुलना में सार्वजनिक बसों (समय इंतजार, हस्तांतरण के समय, बस स्टॉप की संख्या और बसों के लिए प्राथमिकता गलियों का अभाव जैसे कारकों के साथ) के धीमें होने के साथ दोनों की परिवहन के धीमें साधन हैं। बंगलौर गतिशीलता संकेतक 2011 के अनुसार निजी वाहनों की तुलना में सार्वजनिक परिवहन के द्वारा 9 किलोमीटर की दूरी की यात्रा करने में 1.5 गुना समय अधिक लगता है।

यह नमूने दिल्ली, चेन्नई और बेंगलूर में अधिक स्पष्ट रहे हैं। मुंबई संभवत: पुरुषों और महिलाओं के बीच अपेक्षाकृत समान साधन विकल्पों के साथ एक विसंगति है और इसका कारण उपनगरीय रेल प्रणाली की उपलब्धता हो सकती है जिससे महिलाओं और पुरुषों दोनों को यात्रा करने में सुविधा होती है।

आगे रिसर्च से पता चल सकता है कि किस प्रकार धीमी गति के परिवाहन से महिलाओं के लिए नौकरियां सीमित होती हैं

इन कारकों के सहसम्बद्धित करने से (महिलाए काम के लिए कम दूरी की यात्रा करती हैं एवं धीमे परिवान साधन का उपयोग करती हैं ) यह संकेत मिल सकता है कि महिलाओं के घर के पास नौकरियों का चयन करने से भी उन्हें आने-जाने में अधिक समय लगता है क्योंकि वे धीमे साधन का इस्तेमाल करती हैं।

तो यह तर्क दिया जा सकता है कि परिवहन के तेज साधन पर पहुंच के अभाव में महिलाओं को काम करने के स्थान के चयन को सीमित करना पड़ता है जिससे उनके रोजगार का विकल्प भी सीमित होता है।

सर्वेक्षण के सीमित संख्या पर आधारित पिछले अध्ययन से रोजगार और महिलाओं के बीच यात्रा में एक समान कड़ी दिखती है। वर्तमान में उपलब्ध आंकड़े बहुत कच्चे हैं; हम अभी केवल अनुमान और तर्क दे सकते हैं। लेकिन महिलाओं एवं पुरुषों के यात्रा पैटर्न अलग हैं, इसे नज़अंदाज़ नहीं किया जा सकता है। ऐसी स्थितियों के निहितार्थ की पहचान करने एवं कारण जानने के लिए हम और अधिक लिंग संबंधित अलग-अलग आंकड़े एकत्र करने पर ज़ोर दे सकते हैं। रोजगार और गतिशीलता के बीच के संबंध में एक बड़ा अंतर्दृष्टि से अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी में महत्वपूर्ण सुधार हो सकता है।

(राव इंडियन इंसटिट्यूट ऑफ ह्यूमन सेटलमेंट के शिक्षा और अनुसंधान टीम के साथ काम करती है। गतिशीलता और शहरी सूचना विज्ञान के क्षेत्रों में राव की खास दिलचस्पी है।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 8 जनवरी 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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