मुंबई: उत्तर-पूर्वी भारतीय राज्य त्रिपुरा, जहां रविवार, 18 फरवरी, 2018 को चुनाव हुए हैं, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी (सीपीआई-एम) का अंतिम जीवित गढ़ है।

लेकिन यह छोटा राज्य (आबादी 3.6 मिलियन, जो जयपुर के बराबर है ) सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए भारत के उत्तर-पूर्व में अपने आधार के विस्तार के लिए महत्वपूर्ण हो गया है।सीपीआई (एम) के अधीन ( 25 साल तक और इससे पहले 1978 और 1988 के बीच 10 वर्षों के लिए वाम मोर्चा के गठबंधन का नेतृत्व करने वाले ) यह त्रिपुरा के इतिहास में पहली बार हुआ कि भाजपा राज्य शासन के लिए एक प्रमुख दावेदार के रूप में सामने आई थी।

भाजपा के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने त्रिपुरा में हर परिवार के लिए रोजगार और खाद्य प्रसंस्करण, बांस, वस्त्र आदि के लिए विशेष आर्थिक पैकेज का वादा किया है, जैसा कि ‘द मिंट’ ने 13 फरवरी, 2018 की रिपोर्ट में बताया है। एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री ने कहा था कि, "त्रिपुरा के बेरोजगार युवक रोजगार के लिए प्रयास कर रहे हैं , नौकरी की कमी से पीड़ित हैं। "

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने एक रैली में कहा, "त्रिपुरा की अगली सरकार भाजपा की होगी। पूरे राज्य में सीपीएम सरकार के खिलाफ क्रोध है, क्योंकि उनके उत्पीड़न के कारण विकास के मामले में त्रिपुरा आखिरी स्थान पर खड़ा होता है।"

इस हरी पहाड़ी राज्य के विकास के पैरामीटर मिश्रित हैं। इसकी साक्षरता दर 87.8 फीसदी है और 2011 की जनगणना के अनुसार देश का पांचवा सबसे साक्षर राज्य है। राज्य का लिंग अनुपात, प्रति 1,000 पुरुषों पर 960 महिलाएं, राष्ट्रीय औसत के 942 से ऊपर हैं। कई सामाजिक और स्वास्थ्य संकेतकों पर, त्रिपुरा गोवा, केरल, कर्नाटक और गुजरात के साथ प्रतिस्पर्धा करता है ( जो 2014-15 के आंकड़ों के अनुसार प्रति व्यक्ति आय में क्रमश: पहले, आठवें, दसवें और बारहवें स्थान पर हैं,) जैसा कि हमारे विश्लेषण से पता चलता है।

लेकिन, 19.7 फीसदी का त्रिपुरा में भारत में सबसे अधिक बेरोजगारी का प्रतिशत भी है, जो राष्ट्रीय औसत 4.9 फीसदी का चार गुना है, जैसा कि श्रम मंत्रालय की वार्षिक रोजगार-बेरोजगारी सर्वेक्षण- 2015-16 रिपोर्ट पर इंडियास्पेंड के विश्लेषण में सामने आया है। राज्य की 64 फीसदी आबादी के लिए आय का मुख्य स्रोत कृषि है, लेकिन राज्य में 60 फीसदी वनभूमि है और त्रिपुरा की भूमि का केवल 27 फीसदी खेती के लिए उपलब्ध है।

प्रति व्यक्ति आय के संदर्भ में त्रिपुरा का स्थान नीचे है। 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में त्रिपुरा 24वें स्थान पर है, जैसा कि 2017-18 के लिए भारत की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट से पता चलता है।

सरकारी आंकड़ों पर इंडिया स्पेंड विश्लेषण के मुताबिक, 2014-15 में प्रति व्यक्ति 71,666 रुपये की आय के साथ, त्रिपुरा राष्ट्रीय औसत (86,454 रुपए) से नीचे, राजस्थान (75,201 रुपए) और मध्यप्रदेश (56,182 रुपए) के बीच रहा है।

क्या है जो त्रिपुरा को पीछे रख रहा है? राज्य के आर्थिक सर्वेक्षण 2015-16 के मुताबिक " गरीबी उच्च दर, कम प्रति व्यक्ति आय, कम पूंजी निर्माण, अपर्याप्त बुनियादी सुविधाओं, भौगोलिक अलगाव, संचार बाधा, शोषण, जंगल और खनिज संसाधनों का अपर्याप्त उपयोग, औद्योगिक क्षेत्र में कम प्रगति और उच्च बेरोजगारी की समस्या है।"

10 राज्यों में बेरोजगारी और प्रति व्यक्ति आय

Unemployment And Per Capita,Income In 10 States
StatePer Capita Income (Rs)*Unemployment rate (In %)**
Kerala13553712.5
Goa2891859.6
Meghalaya646384.8
Tripura7166619.7
Gujarat1270170.9
Assam528956.1
Karnataka1298231.5
All India average864544.9
Uttar Pradesh422677.4
Madhya Pradesh561824.3
Rajasthan752017.1

Source: Economic Survey 2017-18, Labour Bureau 2015-16; *Figures for 2014-15, **Figures for 2015-16

अन्य महत्वपूर्ण निष्कर्ष:

  • जिन 10 राज्यों का हमने विश्लेषण किया है, उनमें त्रिपुरा ने शिशु मृत्यु दर में सबसे अच्छा सुधार दिखाया है। त्रिपुरा में 24 अंक की गिरावट देखी गई है, 2005-06 में प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 51 मौतों से गिरकर 2015-16 में 27 का आंकड़ा हुआ है;
  • पांच साल से कम उम्र के बच्चों के लिए राज्य की मृत्यु दर में 26 अंकों की गिरावट आई है और 10 राज्यों में चौथे स्थान ( प्रति 1,000 पर 33 मौत ) पर रहा है ।
  • त्रिपुरा भारत में सबसे ज्यादा महिला साक्षरता दर (89.5 फीसदी) में से एक का दावा करता है, लेकिन 10 वर्षों से अधिक शिक्षित महिलाओं की दूसरी सबसे कम प्रतिशत (23.4 फीसदी) है, जो राष्ट्रीय औसत (35.7 फीसदी) से काफी कम है।

पद्धति:

हमारे विश्लेषण के लिए, हमने स्वास्थ्य, शिक्षा, लिंग, रोजगार और बेहतर बुनियादी ढांचे तक पहुंच में 18 विकास संकेतों पर, नौ अन्य राज्यों और राष्ट्रीय औसत के साथ त्रिपुरा के प्रदर्शन की तुलना की है।

तुलना की अवधि, 2005-06 और 2015-16 के लिए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस 3) और (एनएफएचएस -4 ) राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल (एनएचपी) 2017, श्रम और रोजगार मंत्रालय, और आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 से आंकड़ों का उपयोग करते हुए 2005-06 से 2015-16 तक, एक दशक में फैला हुआ है।

हमारे विश्लेषण के लिए चुने गए राज्यों में विकास के नेतृत्व में केरल, गोवा, गुजरात और कर्नाटक जैसे उच्च प्रति व्यक्ति आय और मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश, असम और मेघालय के साथ, उत्तर-पूर्व क्षेत्र में त्रिपुरा के पड़ोसी राज्यों कम आय वाले गरीबों राज्यों को शामिल किया गया है।

राजनीतिक रूप से चार राज्य-मध्य प्रदेश, राजस्थान, गोवा और गुजरात- भाजपा-शासन के तहत हैं। हालांकि, अब उत्तर प्रदेश और असम में भी भाजपा का शासन है, वे 2016 में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस द्वारा शासित थे जो हमारे विश्लेषण के लिए कट ऑफ वर्ष है।

केरल सीपीआई (एम) का एक और बंद गढ़ है, जबकि कर्नाटक एक कांग्रेस शासित राज्य है।

सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा प्रभावी, लेकिन डॉक्टरों की कमी

पांच साल से कम उम्र के बच्चों के स्टंटिंग (उम्र के लिए कम ऊंचाई) और वेस्टिंग (ऊंचाई के लिए कम वजन) के संदर्भ में, त्रिपुरा ने 2015-16 के दशक में अपने स्वास्थ्य देखभाल प्रयासों में काफी सुधार किया है। यह हमारे विश्लेषण में, यह अब दोनों मामलों पर सर्वोत्तम राज्यों के बीच तीसरे स्थान ( कर्नाटक और गुजरात से आगे ) पर है। राज्य की स्टंटिंग दर 24.3 फीसदी और इसकी वेस्टिंग दर 16.8 फीसदी है।

अन्य राज्यों के साथ-साथ त्रिपुरा का स्वास्थ्य सूचकांक

Health Indicators Of Tripura Vis-a-vis Other States
StateStunting (In %)Wasting (In %)Infant Mortality RateUnder-five Mortality Rate
Kerala19.715.767
Goa20.121.91313
Meghalaya43.815.33040
Tripura24.316.82733
Gujarat38.526.43443
Assam36.4174857
Karnataka36.226.12832
India Avg38.4214150
Uttar Pradesh46.317.96478
Madhya Pradesh4225.85165
Rajasthan39.1234151

Source: National Family Health Survey 2015-16 data for Kerala, Goa, Meghalaya, Tripura, Gujarat, Assam, Karnataka, India, Uttar Pradesh, Madhya Pradesh, Rajasthan; Mortality rates in deaths per 1,000 live births.

उत्तर-पूर्व में अन्य राज्यों की तरह, त्रिपुरा के लिए भी कनेक्टिविटी एक बड़ी चुनौती है। उत्तर, दक्षिण और पश्चिम के आसपास बांग्लादेश से घिरा होने के साथ राज्य आगे मुख्य भूमि से अलग है। एक एकल राजमार्ग, राष्ट्रीय राजमार्ग 44, राज्य में चलता है और इसे शेष भारत से जोड़ता है।

पूर्व रियासत के भारतीय गणतंत्र के साथ विलय के 59 साल बाद, इसकी राजधानी अगरतला अंततः 2008 में देश के रेलवे नेटवर्क से जुड़ी थी।

इसके बावजूद, विश्लेषण किए गए 10 राज्यों में से त्रिपुरा ने शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) में सबसे अच्छा सुधार किया है। इस संबंध में त्रिपुरा में 24 अंकों की गिरावट हुई है। आंकड़े 2005-06 में प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 51 मौतों से गिर कर 2015-16 में 27 हुआ है। गुजरात का स्थान केरल (6) और गोवा (13) के पीछे, त्रिपुरा का आईएमआर अब कर्नाटक (28) और गुजरात (34) कै बाद है।

पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर के संदर्भ में, हमारे द्वारा किए गए विश्लेषण किए गए 10 राज्यों में त्रिपुरा में 26 अंक की गिरावट हुई है और राज्य चौथे स्थान (प्रति हजार पर 33 मृत्यु ) पर पहुंचा है।

ये सकारात्मक स्वास्थ्य परिणाम बताते हैं कि त्रिपुरा में जन्म के पूर्व में देखभाल बेहतर हैं। 2015-16 में, गर्भावस्था के दौरान, स्वास्थ्य सेवा कार्यकर्ता द्वारा कम से कम चार बार दौरा ( विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों के अनुसार न्यूनतम आवश्यकताएं ) करने वाले महिलाओं का प्रतिशत 2005-06 में 50.6 फीसदी से बढ़ कर 64.3 फीसदी ,हुआ है।

जन्मपूर्व देखभाल का गुजरात कवरेज, जो 2005-06 में 50.1 फीसदी के समान स्तर पर था, 2015-16 में 20 प्रतिशत अंक आगे बढ़कर 70.6 फीसदी हुआ है।

10 राज्यों में त्रिपुरा की प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य व्यय (2,266 रुपए) तीसरा सबसे ज्यादा है ( गोवा 2,927 रुपए और मेघालय 2,366 रुपए के बाद ) और यहां तक कि केरल (1,437 रुपए), गुजरात (1,156 रुपए) और कर्नाटक (1,043 रुपए) से भी अधिक है, जैसा कि एनएचपी 2017 के आंकड़ों में बताया गया है।

इसके अलावा, त्रिपुरा में केवल 9 फीसदी लोगों ने निजी स्वास्थ्य सुविधाओं का उपयोग किया है, जबकि इस संबंध में राष्ट्रीय स्तर पर 55.1 फीसदी का आंकड़ा रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर 52.1 फीसदी की तुलना में सभी प्रसव में से 69.1 फीसदी सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा में कराए गए हैं, जैसा कि 2015-16 के लिए एनएफएचएस -4 डेटा से पता चलता है।

संस्थागत जन्मों में, हालांकि, त्रिपुरा में 33 प्रतिशत अंकों के सुधार की रिपोर्ट के साथ 2015-16 में यह 79.9 फीसदी हुआ है, लेकिन फिर भी हमारे विश्लेषण में राज्य सातवें स्थान पर है और पीछे है। हालांकि यह राष्ट्रीय औसत (78.9 फीसदी) से ऊपर है, केवल असम (70.6 फीसदी), उत्तर प्रदेश (67.8 फीसदी) और मेघालय (51.4 फीसदी) का प्रदर्शन बद्तर है।

इस सूचक पर प्रगति त्रिपुरा के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी से संबंधित हो सकती है। 2016 से नवीनतम ग्रामीण स्वास्थ्य आंकड़ों के मुताबिक त्रिपुरा के सीएचसी में आवश्यक 80 विशेषज्ञ डॉक्टरों में से केवल एक ही पद पर कार्यरत हैं।

2011 के आबादी की संख्या के आधार पर, जबकि पर्याप्त उप केंद्र हैं, राज्य में आवश्यक पीएचसी और सीएचसी की संख्या में काफी कमी है – 14 फीसदी और 26 फीसदी, जैसा कि ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन द्वारा इस विश्लेषण में बताया गया है।

त्रिपुरा अभी भी जन्म के समय की देखभाल के साथ संघर्ष करता है। राष्ट्रीय स्तर पर 21 फीसदी की तुलना में केवल 7.6 फीसदी महिलाओं ने जन्मपूर्व देखभाल की सभी सिफारिशें प्राप्त की हैं।

इसके अलावा, राज्य में टीकाकरण कवरेज में 4.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, यानी 49.7 फीसदी से बढ़कर 54.5 फीसदी हुआ है ( हमारे द्वारा विश्लेषण किए गए राज्यों में सबसे कम ) और हमारे विश्लेषण में छठे स्थान पर रहा है। यह असम (47.1 फीसदी), गुजरात (50.4 फीसदी), उत्तर प्रदेश (51.1 फीसदी) और मध्य प्रदेश (53.6 फीसदी) से ऊपर है।

इस दशक के दौरान, राष्ट्रीय स्तर पर, पूर्ण प्रतिरक्षण प्राप्त करने वाले बच्चों का प्रतिशत ( यह पोलियो, बीसीजी, डीपीटी, और खसरा टीकों को शामिल करता है ) 18.5 प्रतिशत अंक बढ़ा है, 2005-06 में 43.5 फीसदी से बढ़ कर 2015-16 में 62 फीसदी हुआ है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 28 अप्रैल, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

10 राज्यों में मातृ स्वास्थ्य, संस्थागत प्रसव और प्रतिरक्षण

Source: National Family Health Survey 2015-16 data for Kerala, Goa, Meghalaya, Tripura, Gujarat, Assam, Karnataka, India, Uttar Pradesh, Madhya Pradesh, Rajasthan; *for women aged 15-49 years, **for children aged 12-23 months

महिलाओं के लिए उच्च साक्षरता दर, लेकिन कम उम्र में विवाह की दर ज्यादा

त्रिपुरा भारत में सबसे ज्यादा महिला साक्षरता दर (89.5 फीसदी) में से एक है और इसने 2001-2011 के लिए पुरस्कार प्राप्त किया है। राज्य में अधिकांश विवाहित महिलाएं घरेलू फैसले में भाग लेती हैं (91.7 फीसदी) और यह आंकड़े राष्ट्रीय औसत ( 84 फीसदी ) से बेहतर हैं और विश्लेषण किए गए 10 राज्यों में तीसरा सबसे बेहतर है। फिर भी 23.4 फीसदी पर 10 वर्ष से ज्यादा शिक्षा प्राप्त महिलाओं की संख्या हमारे विश्लेषण में दूसरा सबसे कम है और राष्ट्रीय औसत (35.7 फीसदी) से भी ज्यादा बद्तर है।

इसके अलावा, त्रिपुरा में लगभग एक तिहाई महिलाओं (33.1 फीसदी) की शादी 18 वर्ष की आयु से पहले होती है। यह राजस्थान (35.4 फीसदी) के बाद दूसरा उच्चतम अनुपात है और राष्ट्रीय औसत ( 26.8 फीसदी ) से ज्यादा है। हालांकि, जब राजस्थान में एक दशक से 2015-16 तक लगभग 30 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई है, लेकिन 2005-06 के बाद से त्रिपुरा ने शुरुआती विवाहों में महज 8.5 फीसदी अंक की कमी की है।

इन सामाजिक स्थितियों के परिणाम हैं कि राज्य में 15-18 वर्ष आयु वर्ग के लगभग 19 फीसदी महिलाएं गर्भवती हैं और 7.9 फीसदी के राष्ट्रीय औसत से दो गुना ज्यादा हैं।

त्रिपुरा में, प्रजनन उम्र की आधे से अधिक महिलाएं, या 54.5 फीसदी महिलाओं में खून की कमी है। 10 वर्षों में 10.6 फीसदी सुधार होने के बावजूद, एनीमिया का प्रसार, गुजरात ( 54.9 फीसदी ) के बाद दूसरा सबसे ज्यादा और राष्ट्रीय औसत (54 फीसदी) से अधिक है।

कम आयु में विवाह और निम्न शिक्षा त्रिपुरा की प्रजनन उम्र की महिलाओं के बीच एनीमिया के साथ जारी संघर्ष के आधारभूत कारक हो सकते हैं। गर्भावस्था के दौरान एनीमिया भ्रूण मृत्यु, असामान्यताएं, प्रीरम और कम वजन के बच्चे होने की संभावना को बढ़ाता है और पांचवी मातृ मृत्यु का कारण बनती है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने अक्टूबर 2016 की रिपोर्ट में बताया है।

10 राज्यों में लिंग संकेतक

Source: National Family Health Survey 2015-16 data for Kerala, Goa, Meghalaya, Tripura, Gujarat, Assam, Karnataka, India, Uttar Pradesh, Madhya Pradesh, Rajasthan

बिजली, पीने के पानी की अच्छी पहुंच, लेकिन बेहतर स्वच्छता’ तक पहुंच नहीं

92.7 फीसदी पर, त्रिपुरा में घरों के लिए बिजली की उपलब्धता राष्ट्रीय औसत (88.2 फीसदी) से बेहतर है और केरल, गोवा, गुजरात और कर्नाटक के समृद्ध राज्यों के बराबर है।

त्रिपुरा में 87 फीसदी से अधिक परिवारों में ‘पीने ​​के पानी के लिए बेहतर स्रोत’ है ( पानी के पाइप या संरक्षित स्रोत के लिए आधिकारिक ) और 89.8 फीसदी परिवारों की राष्ट्रीय औसत से नीचे है। फिर भी, राज्य का प्रदर्शन मेघालय (67.9 फीसदी) और असम (83.8 फीसदी) से बेहतर है।

हालांकि, त्रिपुरा में खुले में शौच का दर 3.5 ( देश में सबसे कम ) फीसदी है, इसकी आबादी का लगभग 40 फीसदी तक अभी भी ‘बेहतर स्वच्छता’ तक पहुंच नहीं है। फिर भी, जैसा चार्ट नीचे दिखाया गया है, यह ज्यादातर राज्यों से बेहतर है और समृद्ध कर्नाटक की तुलना में बेहतर है।

बेहतर स्वच्छता सुविधाओं तक पहुंच का अभाव बच्चों में स्टंटिंग और एनीमिया को रोकने के लिए प्रगति में बाधा पहुंचा सकता है, जैसा कि इंडियास्पेंड पर अप्रैल 2017 और सितंबर 2016 को प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया है।

10 राज्यों में सामाजिक बुनियादी ढांचा

Source: National Family Health Survey 2015-16 data for Kerala, Goa, Meghalaya, Tripura, Gujarat, Assam, Karnataka, India, Uttar Pradesh, Madhya Pradesh, Rajasthan

(सलदानहा सहायक संपादक हैं और यदवार प्रमुख संवाददाता हैं। दोनों इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 17 फरवरी 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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