नई दिल्ली के एक झुग्गी बस्ती के पास नाले के उपर बने अस्थाई जगह पर सोते लोग। छवि: रायटर / अनिंदितो मुखर्जी

वर्ल्ड बैंक के नए आकड़ों के मुताबिक भारत की गरीबी दर घटी है। 2011-12 में गरीबी दर 21% रहने का अनुमान था जो कि घट कर 12.4% रह गया है। वर्ल्ड बैंक ने इसके पीछे गांवों की विद्युतीकरण को अहम माना है जिसकी वजह से गावों में खर्च करने की क्षमता में बढ़ोत्तरी से लेकर छात्राओं की शिक्षा तक में सुधार हुआ है

इससे पहले के 296 मिलियन लोगों के गरीबी रेखा से नीचे रहने के अनुमान किया गया था। सरकार आंकड़ों के अनुसार अब देश में 176 मिलियन लोग गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं। हालांकि विश्व बैंक ने रेखा को संशोधित किया है।

विश्व बैंक से अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा को मौजूदा 125 डॉलर ( 81 रुपए ) प्रतिदिन से बढ़ा कर 1.90 डॉलर ( 123.5 रुपए ) प्रतिदिन कर दिया है। यह परिवर्तन वर्ष 2011 की कीमतों के आधार पर देश भर में जीवन यापन की लागत में अंतर के प्रतिबिंबित करने के लिए किया गया है। यदि दूसरे शब्दों में कहा जाए तो यह परिवर्तन मुद्रास्फीति और अन्य आर्थिक चर के लिए समायोजित करने के लिए किया गया है। यहां अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा में परिवर्तन करने की व्याख्या ठीक प्रकार दी गई है।

विश्व बैंक ने कहा कि “2011 की कीमतों के आधार पर नई अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा 1.90 डॉलर पर निर्धारित की गई है। वर्ष 2012 में विश्व स्तर पर करीब 900 मिलियन लोग इस रेखा से नीचे रहते थे ( ताज़ा आंकड़ों पर आधारित ) एवं हमारा अनुमान है कि वर्ष 2015 में करीब 700 मिलियन लोग बेहद गरीबी में जी रहे हैं।”

इस वर्ष उम्मीद की जा रही है कि 1.90 डॉलर पर गरीबी रेखा से नीचे रह रहे लोगों की संख्या काफी गिरावट होगी और शायद पहली बार यह आंकड़े एक अंक में आएंगे।

1.90 डॉलर से नीचे प्रतिदिन जीने वाले लोगों की हिस्सेदारी

किस प्रकार ग्रामीण विद्युतीकरण एवं अन्य बुनियादी सुविधाएं बनीं गरीबी गिरावट के महत्वपूर्ण कारक?

क्या भारत की नई गरीबी संख्या सांख्यिकीय कोई छलावा है या फिर सच में देश में गरीबों की संख्या में कमी हुई है?

विश्व बैंक के मुताबिक, बेहतर बुनियादी ढांचे , विशेष रूप से ग्रामीण विद्युतीकरण से काफी प्रभाव पड़ा है। इससे आय एवं उपभोग में बदलाव के साथ-साथ लड़कियों की स्कूली शिक्षा में भी प्रोत्साहन मिली है।

बैंक के मुताबिक, “भारत में ग्रामीण विद्युतीकरण के कारण खपत एवं आय में बदलाव हुई है। विद्युतीकरण के कारण पुरुष एवं महिलाओं की श्रम आपूर्ति में वृद्धि के साथ लड़कियों के काम करने के समय को पुन: निर्धारित करने से उनकी स्कूलों में अधिक उपस्थिति भी देखी गई है। भारत में रेलमार्ग के माध्यम से एकीकरण और संयुक्तता में निवेश से भारत में कृषि की कीमतों के अनावरण को कम करने के साथ साथ बेमौसमी झटकों के साथ जुड़े अकाल और मृत्यु दर जोखिम को कम करने में सहायता मिली है”।

इंडियास्पेंड ने पहले ही अपनी रिपोर्ट में बताया है कि गरीबी कम करने में जो भूमिका विद्युतीकरण ने निभाई है वह विशेष रुप से महत्वपूर्ण है क्योंकि ग्रामीण विद्युतीकरण अपूर्ण है एवं इसकी आपूर्ति अविश्वसनीय है।

छह राज्यों से लिए गए आंकड़ों पर आधारित इस नए रिपोर्ट के अनुसार, भारत के करीब 96 फीसदी गांवों तक बिजली पहुंच चुकी है लेकिन सिर्फ 67 फीसदी घरों में ही बिजली कनेक्शन है। उद्हारण के तौर पर भारत के सर्वाधिक आबादी वाले राज्य, उत्तर प्रदेश में 99 फीसदी गांवों तक बिजली पहुंच चुकी है लेकिन सिर्फ 60 फीसदी घरों में ही बिजली का कनेक्शन है, जहां चार में से तीन घरों में दिन में 12 घंटों से कम के लिए बिजली आती है।

इसका अर्थ है कि नियमित एवं विश्वसनीय बिजली का गरीबी कम करने में खासा प्रभाव पड़ सकता है ( बगैर यह ध्यान दिए कि गरीबी रेखा की गणना कैसे होती है )।

कैसे बनाई गई है भारतीय गरीबी रेखा

भारत में गरीब लोगों की संख्या का अनुमान लगाने के लिए विश्व बैंक ने कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा जारी की गई प्रति व्यक्ति मासिक खर्च के आंकड़ों का इस्तेमाल किया है।

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ ) ने भारतीयों के खर्च का अनुमान लगाने के लिए एक नया तरीका निकाला है – लोगों को याद कर यह बनाने को कहा गया कि पिछले सात दिनों से लेकर एक महीने तक उन्होंने क्या खाना खाया है। एनएसएसओ भी एक नया सवाल भी जोड़ा है – एक साल में कितने कम आवृत्ति , गैर-खाद्य वस्तु जैसे कपड़े एवं दवाइयों का उपभोग करते हैं?

विश्व बैंक ने बताया कि पहले के अनुमान की तुलना में ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में भोजन के लिए कम से कम स्मरण अवधि में 10 से 12 फीसदी की अनुमानित व्यय में वृद्धि हुई है।

रिपोर्ट के अनुसार, “यह उच्च व्यय, जो गरीबी रेखा के चारों ओर एक उच्च जनसंख्या घनत्व के साथ जुड़ा है, वर्ष 2011-12 के लिए 12.4 फीसदी की गरीबी दर को परिवर्तित करता है।”

इंडियास्पेंड ने पहले ही अपनी रिपोर्ट में बताया है कि तत्कालीन योजना आयोग के अनुसार वर्ष 2011-12 के अंत तक तेंदुलकर पद्धति का उपयोग कर ग्रामीण क्षेत्र के लिए राष्ट्रीय गरीबी रेखा प्रति माह प्रति व्यक्ति 816 रुपये अनुमानित की गई थी जबकि शहरी क्षेत्रों के लिए यह आंकड़े प्रति माह प्रति व्यक्ति 1000 रुपये अनुमान की गई थी। जोकि ग्रामीण क्षेत्रों के लिए प्रति दिन 27 रुपये है और शहरी इलाकों के लिए 33 रुपए प्रतिदिन है।

उद्हारण के तौर पर, ग्रामीण इलाकों में पांच लोगों के एक परिवार के लिए उपभोग व्यय के मामले में भारतीय गरीबी रेखा प्रति माह करीब 4080 रुपए होगी जबकि शहरी इलाकों के लिए 5000 रुपए प्रति माह होगा।

इस अनुमान के आधार पर कुल 269.3 मिलियन लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं – ग्रामीण क्षेत्रों में 216.5 मिलियन एवं शहरी इलाकों में 52.8 मिलियन।

इसका अर्थ हुआ कि जुलाई 2013 में योजना आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 1.2 बिलियन लोगों के 21.9 फीसदी लोग गरीब हैं।

वर्ष 2012 में भारत के गवर्नर सी रंगराजन के पूर्व रिजर्व बैंक की अध्यक्षता में एक नई समिति ने गरीबी रेखा गणना में परिवर्तन करते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति 32 रुपये और शहरी क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति 42 रुपये के लिए सिफारिश की है। 2014 में प्रस्तुत की सिफारिशों को सरकार से मंजूरी का इंतजार है।

गरीबी अनुपात, 1993-94 से 2011-12

कम एवं मध्यम आय वाले देश जैसे कि भारत और चीन अब भी दुनिया के आधे गरीबों का घर है।

Source: World Bank

औसतन, निम्न मध्यम आय वाले देशों के 19 फीसदी गरीब लोगों की तुलना में, 1,405 डॉलर ( 91,325 रुपए ) या उससे कम प्रति वार्षिक आय के साथ कम आय वाले देशों में लोगों के 43 फीसदी लोग गरीब हैं।

कम आय वाले देशों की एक तिहाई की तुलना में, निम्न मध्यम आय वाले देशों में दुनिया के आधे गरीब लोग रहते हैं।

विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, इसकी एक वजह, सबसे बड़ी आबादी वाली चार देश एक समय में निम्न आय में वर्गीकृत की गई थी जो अब निम्न मध्यम आय देशों में हैं - चीन (1999 में पुनर्वर्गीकृत ), भारत ( 2007) , इंडोनेशिया एवं नाइजीरिया (2011 में )।

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 20 अक्तूबर 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

____________________________________________________________________________

"क्या आपको यह लेख पसंद आया ?" Indiaspend.com एक गैर लाभकारी संस्था है, और हम अपने इस जनहित पत्रकारिता प्रयासों की सफलता के लिए आप जैसे पाठकों पर निर्भर करते हैं। कृपया अपना अनुदान दें :