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नई दिल्ली: पिछले पांच सालों से 2017 तक, थर्मल पावर प्लांटों ( भारत के मुख्य प्रदूषक ) ने देश भर में सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) जैसे जहरीली गैस के स्तर को 32 फीसदी और पीएम 2.5 को 34 फीसदी तक बढ़ाया है।

दो साल की अनुपालन अवधि के लिए सहमत होने के बावजूद, इन संयंत्रों ने 7 दिसंबर, 2017 की समय सीमा और साफ करने के लिए पर्यावरण मंत्रालय द्वारा प्रख्यापित 2015 के एक कानून पर ध्यान नहीं दिया है। अब वही मंत्रालय तर्क दे रहा है कि इतने सारे बिजली संयंत्र ऑफलाइन नहीं जा सकते हैं और सर्वोच्च न्यायालय से समय सीमा 2022 तक बढ़ाने का आग्रह कर रहे हैं। इस मामले की सुनवाई 1 फरवरी, 2018 को होगी।

अगर बिजली उद्योग ने नए मानदंडों को लागू किया होता तो थर्मल पावल प्लांटों से उत्सर्जन 70-85 फीसदी तक गिर सकता था, जैसा कि गैर लाभकारी संस्था ग्रीनपीस इंडिया, हेल्प दिल्ली ब्रीद, माई राइट टू ब्रीद, झटका, क्लाइमेट एजेंडा और ऊर्जा के स्वयंसेवकों और कार्यकर्ताओं के एक समूह द्वारा जारी 2017 के संक्षिप्त ब्योरा में बताया गया है।

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 2015 के तहत पर्यावरण मंत्रालय द्वारा दिसंबर 2015 में नए वायु प्रदूषण नियमों को अधिसूचित करने के बाद देश भर में 300 से अधिक थर्मल पावर प्लांट को स्क्रबर्स और फिल्टर स्थापित करने थे।

नवंबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट के सामने दायर एक सरकारी हलफनामे ने तर्क दिया कि उपकरणों की मरम्मत के लिए सभी इकाइयों को ऑफ़लाइन नहीं लिया जा सकता क्योंकि थर्मल प्लांटों से बिजली की आपूर्ति ( जो भारत की बिजली का 80 फीसदी आपूर्ति करता है ) बाधित नहीं की जा सकती है।

हलफनामे में कहा गया है कि, "... दिसंबर 2022 तक विस्तार होने वाली एक व्यावहारिक योजना तैयार की गई है।"

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SO2, NOx, पीएम 2.5 और मर्क्यरी के जहरीले उत्सर्जन को कम करने के उद्देश्य से 2015 के नियम बनाए गए हैं। पीएम 2.5 ( और पीएम 10 ) छोटे हवाई कण हैं जो मानव फेफड़ों में प्रवेश कर सकते हैं और लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल सकते हैं। NOx श्वसन संक्रमण का कारण बन सकता है और SO2 से ब्रोन्कोकोन्सट्रक्शन हो सकता है।

एक मेडिकल जर्नल ‘लैनसेट’ में अक्टूबर 2017 की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2015 में, पीएम 2.5 प्रदूषण भारत में 5,00,000 से अधिक मौतों का कारण बना है। अध्ययन में 2015 में 21 एशियाई देशों में 1.9 मिलियन मौतों का अनुमान लगाया गया है। हर चार मौतों में से एक मौत भारत में हुई है।

देश भर में थर्मल पावर प्लांट कर रहे हैं वायु प्रदूषित

संस्था ग्रीनपीस इंडिया की एक 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक, थर्मल पावर प्लांटों से उत्सर्जन, भारत में पार्टिकुलेट मैटर के स्तर को बढ़ाने के सबसे बड़े योगदानकर्ताओं में से एक हैं।

रिपोर्ट ने भारत में वायु प्रदूषण के आकर्षण केंद्रों की पहचान जाहिर तौर पर थर्मल पावर प्लांट समूहों से जुड़ा है।एक अद्यतन 2017 ग्रीनपीस अध्ययन ने SO2 स्तर में 32 फीसदी वृद्धि और पीएम 2.5 के स्तर में 34 फीसदी की वृद्धि की गणना करने के लिए उपग्रह डेटा का इस्तेमाल किया है, जिसका हमने पहले जिक्र किया था।

थर्मल, या कोयले से चलाए गए, बिजली संयंत्रों से निकलने वाला प्रदूषण ने लगभग 115,000 भारतीयों की जान ली है और 4.6 बिलियन डॉलर (29,500 करोड़ रुपये) का आर्थिक नुकसान किया है, जैसा कि 2017 आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है। ये आंकड़े 2012 के आंकड़ों पर आधारित हैं। तब से भारत की कोयला क्षमता 150 फीसदी से अधिक हुई है, इसलिए जीवन, स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव बढ़ता जाएगा जब तक कि इस पर नियंत्रण नहीं रखा जाए, जैसा कि ग्रीनपीस इंडिया में जलवायु और ऊर्जा प्रचारक नंदिकेश शिवलिंगम ने बताया है।

थर्मल प्लांटों ने प्रदूषण कम करने में बहुत कम काम किया: आरटीआई उत्तर

एक संस्था, की झटका द्वारा दायर सूचना (आरटीआई) के अधिकारों की एक श्रृंखला ने बताया कि अपने उत्सर्जन की जांच के लिए दिए गए दो वर्षों में थर्मल पावर प्लांट ने बहुत कम काम किया है।

झटका ने 90 प्लांटों से आरटीआई द्वारा जानकारी मंगाई, लेकिन उनमें से केवल 17 ने ही जवाब दिया। दिए गए जवाब बताते हैं कि अधिकतर प्लांटों में प्रौद्योगिकियां होती हैं जो पार्टिकुलेट मैटर को दबा सकते हैं, लेकिन उनमें से कोई भी SO2 और NOx उत्सर्जन को नियंत्रित नहीं कर सकता था।

उत्सर्जन नियंत्रण अनुपालन की स्थिति
State + Number of power plantsInstallations of Electrostatic Precipitators (ESPs) for particulate matterInstallation of Flue Gas Desulphurization (FGD) for SOx emissionsModification of burner designs for low NOx emissionsTimeline for complianceNotes
Rajasthan - 2 plantsYesNoNoNone ProvidedCorrespondence is in progress for FGD installation
Tamil Nadu - 1 plantYesNoYesNone Provided
Maharashtra - 4 plantsYesNoNo1 plant mentioned 4-6 yearsIn planning phase/ conducting feasibility studies for FGD installation
West Bengal - 2 plantsYesNoNo1 plant mentioned 3 yearsIn the initial phase of consideration for FGD installation for 1 plant. Purchase orders have been placed for NOx emissions control for 1 plant
Haryana - 3 plantsYesNoNoNone ProvidedUnder process for FGD installation for 1 plant
Karnataka - 1 plantYesNoNoNone ProvidedFeasibility studies underway for FGD installation
Madhya Pradesh - 4 plantsYesNoNoMarch 2021ESP not installed for all units in any of the plants. Feasibility studies planned for FGD installation

Source: Replies to right to information applications filed by Jhatkaa

2015 के नियमों के तहत, थर्मल पावर प्लांटों को तीन प्रौद्योगिकी स्थापित करना चाहिए: पार्टिकुलेट मैटर को रोकने के लिए इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रेसिपिटीटर्स (ईएसपी), SO2 और मर्क्यरी को कम करने के लिए फ्ल्यू गैस डिस्लाफराइजेशन (एफजीडी) और NOx को कम करने के लिए चयनात्मक कैटालेटिक कन्वर्टर्स (एससीआर) और चयनात्मक गैर- कैटालेटिक कन्वर्टर्स। आरटीआई के जवाब बताते हैं कि ज्यादातर प्लांट अभी भी एफजीडी की व्यवहार्यता का अध्ययन कर रहे हैं और उन्होंने कैटालेटिक कन्वर्टर स्थापित नहीं किया है।

झटका के कार्यकारी निदेशक अविजीत माइकल ने एक बयान में कहा, "यह निराशाजनक है कि बिजली संयंत्रों ने पिछले दो सालों में पर्याप्त कार्रवाई नहीं की है और अब वे उत्सर्जन में कमी करने की तकनीक स्थापित करने के लिए और समय देने का भी अनुरोध कर रहे हैं।" वह कहते हैं, यह दिखाने के लिए कि भारतीयों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता मानता है, पर्यावरण मंत्रालय को बकाएदारों को दंड देना चाहिए।

प्लांटों को पुनःसंयोजन में समय लगेगा, बिजली की कीमतें बढ़ेंगी उद्योग

आरटीआई के सवाल के जवाब में, नेश्नल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) ने कहा है कि कैटालेटिक कन्वर्टर्स और एफजीडीएस स्थापित करने के लिए वह 20 से अधिक बिजली संयंत्रों को बंद नहीं कर सकता, जो सामूहिक रूप से भारत की लगभग चौथाई बिजली का उत्पादन कर सकता है, क्योंकि ऐसा करने से देश अंधेरे में डूब जाएगा।

“पुनःसंयोजन के लिए एक संयंत्र की एक इकाई को बंद करने के लिए दो साल पहले उन्होंने (एनटीपीसी) क्या ऐसा नहीं किया था? क्या यह तार्किक कार्रवाई नहीं था? ” जैसा कि पूर्व में लिखित गैर-लाभकारी संस्थाओं के समूह से संक्षिप्त पूछा गया है।

नई दिल्ली स्थित पावर प्रोड्यूसर्स की एसोसिएशन कहती है, भारत के कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को साफ करने के लिए 38 बिलियन डॉलर (2.4 लाख करोड़ रुपये) का खर्च आएगा।

हालांकि, थिंक टैंक ‘सेंटर फॉर साइंस एंड ‘ ने 2016 की एक अध्ययन में अनुमान लगाया कि साफ-सफाई की लागत अगले तीन वर्षों में बिजली की दरों में सालाना 3 फीसदी से कम की वृद्धि होगी। पर्यावरण मंत्रालय के सचिव सीके मिश्रा ने हाल ही में हुई देरी को उचित बताया है।

10 दिसंबर, 2017 को न्यूज 18 में मिश्रा ने कहा कि, "मंत्रालय अपनी अधिसूचना के साथ खड़ा है। हालांकि, हमें व्यावहारिक होना चाहिए। हम रातों-रात इन प्रौद्योगिकियों पर स्विच नहीं कर सकते हैं। उचित समय के भीतर ऐसा करने के लिए उनके साथ (थर्मल पावर प्लांट्स) बातचीत चल रही है। "

पर्यावरण मंत्रालय, बिजली मंत्रालय, बिजली उद्योग और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के बीच कई बैठकों के बाद दो साल के अनुपालन का समय का फैसला लिया गया है, जिसे मंत्रालय अब बहुत छोटा मानता है।

अनुपालन की देखरेख करने के लिए एक समिति तैयार करें: याचिका

पर्यावरण मंत्रालय भी ग्रीनपीस इंडिया के प्रचारक सुनील दहिया के खिलाफ राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के सामने मामला लड़ रहा है, जिन्होंने आरोप लगाया है कि मंत्रालय वायु प्रदूषण नियम 2015 को लागू नहीं कर रहा है।

याचिकाकर्ता दाहिया के लिए उपस्थित एक पर्यावरण वकील ऋत्विक दत्ता ने इंडियास्पेंड को बताया, एनजीटी ने अनुपालन स्थिति के लिए मंत्रालय से कहा है। वह कहते हैं, "हमने अनुपालन की देखरेख के लिए एक समिति की मांग की है। नए मानदंडों के पालन न करने वाले संयंत्रों को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत दंडित किया जाना चाहिए।"

(त्रिपाठी प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 21 दिसंबर 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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