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क्रेडिट कार्ड का बढ़ता बकाया अपने आप में बहुत बड़ी चिंता की बात नहीं है, जितनी कि ये दो बातें।

पहला, औद्योगिक कर्ज- या व्यापार या निकाय चलाने के लिए दिए गए कर्ज- में तेज़ी कायम नहीं रह पा रही है और इतिहास बताता है कि ये हमेशा निजी कर्ज की वृद्धि से आगे रहता है। इसके अलावा, डेबिट कार्ड खर्च, जिसमें कि अक्सर तेजी रहती है- बताता है कि उपभोक्ताओं में खर्च की प्रवृत्ति वास्तव में घट रही है।

इस हफ्ते राज्य सभा टीवी पर मेरे साप्ताहिक कार्यक्रम पॉलिसी वॉच शो में भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉक्टर सौम्य कांति घोष ने मुझे बताया कि इन कारणों का संयोजन भारतीय उपभोक्ताओं और उधार लेने वालों में बढ़ रही ऋणग्रस्तता की ओर इशारा करता है।

घोष ने कहा कि उन्होंने पिछले 10 वर्षों में उद्योग को दिए गए कर्ज और निजी कर्जों के बीच के रिश्तों का अध्ययन किया। उन्होंने कहा, "यह स्पष्ट रूप से पता चला है कि उद्योगों को दिए गए कर्ज में वृद्धि की रफ्तार निजी कर्ज से अधिक थी और कभी भी इसका उलटा नहीं हुआ।"

निजी कर्ज में हो रही बढ़ोतरी

As of March, each yearSource: Ecowrap, State Bank of India

घोष और अर्थशास्त्रियों की उनकी टीम के अनुसार, ये वो 9 वजहें हैं जिससे ये ट्रेंड चिंता का विषय हो सकता है।

  1. 1.हाल ही में जमा और कर्ज वृद्धि में कुल मिलाकर फासला बढ़ा है। पिछले साल, सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एएससीबी) की जमा वृद्धि 9.9% के साथ 53 साल के निचले स्तर पर पहुँच गई है, कर्ज देने (या धन उधार) देने में कुछ सुधार (18 मार्च 2016 को ये 11.3%) हुआ।
  2. 2.अधिकांश वृद्धिशील कर्ज में बढ़त निजी कर्ज क्षेत्र में थी, खासकर आवास और मुद्रा (सूक्ष्य और लघु उद्यमों के लिए कर्ज) भी। लेकिन, निजी कर्ज में भी, क्रेडिट कार्ड पर कर्ज तेज़ी से बढ़ रहा है।
  3. 3.इसके अलावा, घरेलू कर्ज, जिसे भारत में प्रति क्रेडिट कार्ड पर बकाये के रूप में मापा गया है, सांकेतिक और वास्तविक दोनों रूपों में बढ़ रहा है (थोक मूल्य सूचकांक या डब्ल्यूपीआई, महंगाई दर के लिए समायोजित करने के बाद)। सांकेतिक रूप में, फरवरी 2016 तक प्रति क्रेडिट कार्ड पर 8,668 रुपये बकाया थे, जो कि पिछले साल के मुकाबले 15.5% अधिक है।
  4. 4.इसके अलावा, पिछले 17 महीनों में नकारात्मक महंगाई दर के बावजूद वास्तविक बकाया बढ़ा है। इससे पता चलता है कि डब्ल्यूपीआई महंगाई दर के लगातार अनुमान से कम रहने के साथ, सांकेतिक डेबिट/क्रेडिट कार्ड का वास्तविक बकाया उम्मीद से अधिक हुआ है।
  5. 5.संयोग से, सालाना आधार पर, सालाना एक लाख रुपये से अधिक के बकाया के मामले बढ़ रहे हैं, जो कि सांकेतिक प्रति व्यक्ति आय 70,000 रुपये से अधिक है। विशेष रूप से जेब के लिए, एक बार फिर ये चिंता का विषय हो सकती है।
  6. 6.अगर हम उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को भी आधार माने तो नतीजों पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ता है। जिसका मतलब है कि हम एक वित्तीय जोखिम बनता हुआ देख सकते हैं जो परिवारों को उनके आय व्यय के खर्चे का प्रबंध करना मुश्किल बना देगा।
  7. 7.डेबिट कार्ड से खर्च घट रहा है। उपभोक्ताओं के व्यवहार में अधिक संरचनात्मक बदलाव को स्वीकार करने का एक तरीका ये देखना है कि क्या खर्च करने के सभी तरीकों में वृद्धि हो रही है। जाहिर है, मामला ये नहीं है। ये सिर्फ़ क्रेडिट कार्ड का खर्च है जो बढ़ रहा है।
  8. 8.इसमें ई-कॉमर्स लेन-देन और कम महंगाई दर का योगदान हो सकता है. लेकिन अंतत: चिंता ये है कि अगर आप और मैं अपनी चुकाने की हैसियत से अधिक खरीद रहे हैं, तब वहाँ समस्या है।
  9. 9.औद्योगिक कर्ज पर लौटें, अगर हम आंकड़ों को गंभीरता से देखें, तो इनमें से अधिकांश नया कर्ज नहीं है, बल्कि मौजूदा कर्ज को रीफाइनेंस किया गया है- या, आसान शब्दों में कहें तो एक ही कर्ज को फिर से बांटा गया है। इसलिए औद्योगिक कर्ज का एक हिस्सा मौजूदा कर्जों को रीफाइनेंस करने में जा रहा है, जबकि उपभोक्ता क्रेडिट कार्ड पर नई खरीदारी कर रहे हैं।

अब दूसरे पहलू पर नज़र डालते हैं:

  1. 1.आर्थिक गति में निश्चित तौर पर सुधार हो रहा है। उपभोक्ता ज्यादा खर्च कर रहे हैं क्योंकि वो चीजों के बारे में अच्छा महसूस कर रहे हैं, जिसमें कम महंगाई दर का माहौल और भविष्य के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण शामिल है। ये एक संरचनात्मक बदलाव हो सकता है (जिसका मतलब है कि कि अर्थव्यवस्था बदल रही है)।
  2. 2.मजबूत आपूर्ति। जैसा कि अर्थशास्त्री दीपांकर मित्रा ने बताया कि बैंक आक्रामक तरीके से एक बार फिर व्यक्तिगत उपभोक्ताओं को लक्षित कर रहे हैं। इसका कारण ये है कि (जैसा कि हम जानते हैं) उद्योगों को कर्ज की रफ्तार धीमी है और, मत भूलिए, भारत का बैंकिंग क्षेत्र के ऊपर अब भी गैर निष्पादित संपत्तियों (एनपीए) का बड़ा बादल मंडरा रहा है।
  3. 3.कुल मिलाकर बकाया के आंकड़े अब भी कम हैं। 2008 से पहले, क्रेडिट कार्ड का बकाया कुल प्राप्तियों का 5% था, अब वे 3% के स्तर पर हैं। गड़बड़ केवल ये है कि भले ही प्राप्तियां कम रही हों, ब्याज की उच्च दर उन लोगों को चोट पहुँचा सकती है जिन्हें बकाया चुकाना है।

रास्ता क्या है?

ये निर्भर करता है, जहाँ आप बैठते हैं। मित्रा का मानना है कि उपभोक्ता ऋण के लिए बाज़ार अब भी बहुत बड़ा और अज्ञात है, खासकर उस देश में जहां उपभोक्ता ऋण का मौजूदा रूप सिर्फ 20 साल पुराना है।

बड़ी बैंकिंग व्यवस्था के लिए तुरंत समस्या निश्चित तौर पर ऐसे कर्ज हैं जिनका उन्हें भुगतान नहीं मिल रहा और औद्योगिक कर्ज में तेजी न आना है। इन समस्याओं से निपटना होगा और इनसे निपटने की काफी कोशिश भी की जा रही है।

बैंक बोर्ड्स को क्रेडिट कार्ड पर बढ़ती बकाया रकम पर ध्यान देना होगा और कुछ समझदारी भरे कदम उठाने होंगे। इसके लिए संभवतः उपभोक्ता की रकम चुकाने की क्षमता पर दोबारा विचार करना और वर्तमान सीमाओं को और कड़ा करना जैसे काम किए जा सकते हैं।

आखिर में, अपने कदम पर ध्यान दें। अगली बार जब आप स्वाइप करें, खुद से पूछें, क्या आपको वास्तव में इसकी आवश्यकता है और आप केवल इसे चाहते हैं? और आखिरकार, क्या आप अपने क्रेडिट कार्ड बिल पूरे चुका सकते हैं जब वे अगले वर्ष के अंत में आपके मेलबॉक्स में पहुंचेंगे?

(इथिराज IndiaSpend.org के संस्थापक हैं। यह लेख पहले boomlive.in पर प्रकाशित हुआ था।)

यह लेख मूलतः अंग्रेजी में 25 अप्रैल 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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