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तटरेखा कटाव को रोकने के लिए पांडिचेरी में बनाया गया एक बांध

भारत की 8,414 किलोमीटर लंबी तटरेखा का कम से कम 45 फीसदी हिस्सा कटाव की समस्या से जूझ रहा है। यह बात इंडियन अकादमी ऑफ सांइस की एक पत्रिका, करंट साइंस में छपी एक रिपोर्ट में सामने आई है। पत्रिका में छपी रिपोर्ट में 15 साल से अधिक उपग्रहों के आंकड़ों को लिया गया है।

रिपोर्ट को अब तक का सबसे विस्तृत अध्ययन माना जा रहा है। इस अध्ययन से यह भी पता चलता है कि तटरेखा के नज़दीक 19 फीसदी हिस्सा स्थिर है एवं 36 फीसदी हिस्से में अभिवृद्धि या विस्तार देखा जा रहा है। भारतीय तट का लगभग 73 वर्ग किमी शुद्ध क्षेत्र नष्ट हो गया है।

स्पेस एप्लीकेशन सेंटर ( सैक ) के वैज्ञानिकों एवं अहमदाबाद और केंद्र जल आयोग, जल संसाधन मंत्रालय के वैज्ञानिकों ने भारत के तट रेखा पर आए परिवर्तन को मापने के लिए दो अवधियों 1989-91 एवं 2004-06 की उपग्रह चित्रों की तुलना की है।

बंगाल की खाड़ी द्वारा करीब 89 फीसदी तटरेखा नष्ट होने के साथ अंडमान निकोबार द्वीप समूह को सबसे अधिक कटाव का सामना करना पड़ रहा है।

वर्णक्रम के दूसरे छोड़ पर तमिलनाडु है जिसे 62 फीसदी तट से साथ, नए तटरेखा का फायदा हुआ है।

गोवा में स्थिर तटरेखा का सबसे अधिक प्रतिशत ( 52 फीसदी ) देखा गया है।

किसी भी अन्य समुद्रीय देश की तरह ही भारत की प्रायद्वीपीय क्षेत्र लगातार कटाव की समस्या से जूझ रहा है। अक्सर तटीय गतिशीलता को समझे बगैर ही विकासात्मक कार्यकलापकिया जाता है जिससे की लंबे समय तक अच्छा खासा नुकसान, विशेष कर स्थानीय समुदायों को भुगतना पड़ता है।

Maritime States and Union territoriesErosion length (km)Accretion length (km)Stable length (km)Total length (km)Area under accretion (sq km)Area under erosion (sq km)Net gain/loss (sq km)
Gujarat, Daman and Diu486.4298697.71482.143.527.316.2
Maharashtra449.5244.548.3742.35.17.8-2.8
Goa274781.4155.41.50.80.8
Karnataka106.1118.773.3298.16.35.21.1
Kerala21829473.6585.69.55.34.2
Tamil Nadu and Puducherry281.6514.129.3824.942.617.225.5
Andhra Pradesh443.9186.9340.5971.325.146.9-21.8
Odisha19920532.1436.113.313.8-0.5
West Bengal115.119.5147.7282.21.511.6-10.1
Lakshadweep Islands7263.21136.30.81.7-0.9
Andaman Islands740.4944.836.8172227.117.99.2
Nicobar Islands690.168.319.2777.60.894.7-94
Total3829.130041580.88413.9177.2250.2-73.1

Source: A S Rajawat et al

प्रकृति रखता है संतुलन, मानव गतिविधियों से होती हैं बाधित

क्यों कुछ क्षेत्रों में कम तो कुछ में अधिक कटाव दिखते हैं? इसके मानवजनित और भौगोलिक दोनों ही कारण हैं। दूसरे शब्दों में प्रकृति एवं मानव गतिविधियां, दोनों ही बढ़ते कटाव के लिए ज़िम्मेदार हैं।

टेड मूर्ति, कनाडा में ओटावा विश्वविद्यालय में एक समुद्र विज्ञानी के अनुसार हवा और लहरों द्वारा दिए गए आकार से तटरेखा या तो उत्तल होती है या अवतल एवं इस आकार का तटीय कटाव पर बड़ा प्रभाव होता है। मूर्ति करंट साइंस के अध्ययन से संबंधित नहीं हैं।

यदि आने वाली लहरों की उर्जा समुद्री तट से मिल जाती है तो यह कटेगा।यदि लहरें छितरा जाती हैं तो कटाव कम होगा। समुद्र तरंग उर्जा तटीय कटाव का मुख्य कारण है।

भौगोलिक प्रक्रियाएं कटाव एवं अभिवृद्धि का सतत संतुलन बनाए रखती हैं। मानव गतिविधियां एवं प्राकृतिक आपदाएं जैसे कि सुनामी, प्राकृतिक लय में बाधा बन कटाव का कारण बनती है।

शोधकर्ताओं के अनुसार, निकोबार द्वीप समूह मामले में भी कटाव का मुख्य कारण दिसंबर 2004 में आई सुनामी हो सकती है। नदियों और बंदरगाहों , मछली पकड़ने के स्थानों पर जलग्रहण क्षेत्रों में बांध के निर्माण से अन्य क्षेत्रों में कटाव की संभावना अधिक बढ़ती है।

उद्हारण के लिए हम आंध्रप्रदेश का पल्लेटम्मालापलेम मामले को देख सकते है। यहां पर नदी ज्वारनदमुख से तलछट के कम प्रवाह के कारण तट में उल्लेखपूर्ण ढ़ंग से कटाव पाया गया है। ए.एस राजावत, अध्ययन के सहलेखक एवं सैक, (अहमदाबाद) के वैज्ञानिक के अनुसार, “नदियों के जलग्रहण क्षेत्रों पर बांध के निर्माण के कारण आपूर्ति में कमी आई थी।”

पुरानी बंदरगाह के बदले विशाल मरीना बीच बनाने के लिए चुकानी पड़ी भारी कीमत

रमेश रामचंद्रन , भारत के प्रमुख तटीय विशेषज्ञों में से एक एवं सतत तटीय प्रबंधन , चेन्नई के लिए राष्ट्रीय केन्द्र के निदेशक के अनुसार नई अध्ययन के परिणाम भारतीय समुद्री तटरेखा एवं कटाव के निष्कर्ष दर्शाते हैं।

रामचंद्रन ने यह भी कहा कि तमिलनाडु के समुद्र तट पर हो रहे अभिवृद्धि के विषय में भी ज़्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। समुद्र तट क्षेत्र के रुप में केवल 25 किमी को ही फायदा हुआ है, कई क्षेत्रों में कटाव की समस्या जारी है।

चेन्नई के मुख्य समुद्री तट, मरीना, ( जो कि चेन्नई बंदरगाह के दक्षिणी छोर पर स्थित है) का उद्हारण देते हुए रामचंद्रन बताते हैं बंदरगाह के कारण वहां रेत का विशाल संग्रह हुआ है जिससे कि मरीना बीच विश्व का सबसे बड़ा समुद्र तट बन गया है। लेकिन दक्षिण क्षेत्र में अत्यधिक रेत के जमाव के कारण उत्तरी क्षेत्र में कटाव की समस्या उत्पन्न हो गई है।

रामचंद्रन कहते हैं कि तटीय कटाव का सामना समग्र रुप से करने की ज़रुरत है। फिलहाल रामचंद्रन एक समेकित तटीय क्षेत्र प्रबंधन कार्यक्रम पर पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के साथ काम कर रहे हैं जोकि कई तटीय समस्याएं जैसे कि कटाव, प्रदूषण, पर्यटन एवं तलछट के निर्वहन को कम करने के लिए काम करता है।

रामचंद्रन एवं मंत्रालय ने गुजरात, ओडिसा एवं पश्चिम बंगाल में कई सफल कार्यक्रम चलाए हैं। रामचंद्रन अब यह कार्यक्रम राष्ट्रीय स्तर पर चलाने की उम्मीद कर रहे हैं।

भारत को चाहिए अधिक एवं नियमित प्रतिचित्रण

यह पहली बार हुआ है जब राष्ट्रीय स्तर पर तटरेखा परिवर्तन की वस्तुसूची, 1:25,000 माप पर तैयार की गई है।

इस मामले में नक्शे पर एक सेंटीमीटर, जमीन के 250 मीटर दर्शाता है। यह सूची, 800 नक्शे के एक समामेलन है जिसमें प्रत्येक नक्शा लगभग 185 वर्ग किलोमीटर ( 13.6 किमी * 13.6 किमी ) तक शामिल किया गया है।

इन प्रयासों का समापन भारत के तटरेखा एटलस के रुप में हुआ है जो कि जल संसाधन मंत्रालय, नई दिल्ली के तहत केन्द्रीय जल आयोग के तटीय कटाव निदेशालय के पास उपलब्ध है।

तटीय कटाव मामले में एख और पहलू जिस पर विचार करने की ज़रुरत है वह है कटाव फैलाव की निगरानी एवं जांच के लिए दी गई समय सीमा। वॉंग पोह पोह, सिंगापुर स्थित तटीय विशेषज्ञ ( जिन्होंने तिसरी, चौथी एवं पांचवी जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की रिपोर्ट में योगदान दिया था ) के अनुसार “यदि अन्य दो समय अवधी का इस्तेमाल किया जाता तो निश्चित तौर पर कटाव का प्रतिशत अलग आता।”

राजवत ने भी इस बात पर सहमती जताई है। राजवत ने कहा कि “यह अब तक का सबसे अच्छा एटलस है जिसमें तटीय वस्तु सूची बेहतर तरीके से दी गई है। ” राजवत ने कम से कम हर दशक में एक बार इस तरह के मानचित्रण अभ्यास का आग्रह किया है, विशेष कर संवेदनशील क्षेत्रके लिए जैसे कि 1:10,000।

( मनुप्रिया बंगलुरु स्थित स्वतंत्र विज्ञान लेखिका हैं )

यह लेख मूलत: 11 अगस्त 2015 को अंग्रेज़ी में indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है.

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