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सिंगापुर में एक आवासीय क्षेत्र में कीटनाशक छिड़काव करता एक कार्यकर्ता। 27 अगस्त को वैश्विक पर्यटन हब ने पहले ज़ीका वायरस मामले की घोषणा है।

दुनिया भर में तेजी से फैलने वाला ज़ीका वायरस भारत में कदम रख सकता है। विशेषज्ञों ने भारत में 'ज़ीका' वायरस का खतरा मंडारने की ओर इशारा किया है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के वैज्ञानिकों द्वारा लिखी गई एक आगामी पेपर के अनुसार, भारत में ज़ीका वायरस (जिसका अब तक कोई इलाज या टीका नहीं है)का सबसे पहला मामला 64 वर्ष पहले पुणे के एक सर्वेक्षण के हिस्से के रुप में सामने आया था, जिसमें वायरस जनित मस्तिष्क संक्रमण के जापानी और रूसी किस्मों के लिए प्रतिरोधक क्षमता का परीक्षण किया गया था जिसे दिमागी बुखार कहा जाता है।

यह पेपर,लैसेंट,एक मेडिकल जर्नल, में प्रकाशित एक अध्ययन के बाद आई है। पेपर में यह पुर्वानुमान करने के लिए कि भारत और चार अन्य देशों (चीन, फिलीपींस , इंडोनेशिया और थाईलैंड) में साल के दौरान ज़ीका वायरस के संचरण का खतरा सबसे अधिक है, यात्रा पैटर्न का इस्तेमाल किया गया है। गौर हो कि भारत में हर साल 67,000 से अधिक हवाई यात्री आते हैं। चीन की जनसंख्या अधिक है लेकिन भारत के लोगों में ज़ीका का खतरा अधिक है।

सबसे पहले वर्ष 1947 में युगांडा के ज़ीका के वन बंदरों में इस वायरस का पता चला था। इसके सात सालों के बाद नाइजीरिया में मानव में पहले ज़ीका वायरस का मामले दर्ज किया गया था। ज़ीका की ओर विश्व का ध्यान आकर्षित हुआ है क्योंकि इसका उग्र रुप (ब्राज़िल में एक मिलियन से अधिक संक्रमण के मामले दर्ज हुए हैं) माइक्रोसेफली, यानि कि भ्रूण में असामान्य रूप से छोटे सिर और दिमाग से संबंधित है।

2007 में एक दूरदराज के प्रशांत द्वीप पर पहली बार अस्तित्व में आने के बाद, मादा एडिस मच्छरों द्वारा काटने और हवाई यात्रा से मई 2015 में ब्राजील में ज़ीका वायरस का पता चला। और अब यह अमेरिका में 26 देशों, अफ्रीका के केप वर्डे और सिंगापुर में फैल चुका है, जहां आठ दिनों में संक्रमण के 200 मामले सामने आए हैं। सेंटर फॉर डीज़िज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन, (सीडीसी), अमेरिकी राष्ट्रीय स्वास्थ्य एजेंसी, के अनुसार वर्तमान में 58 देश और क्षेत्र ज़ीका वायरस से प्रभावित हैं।

5 सितंबर, 2016 को फिलीपींस ने भी अपनी पहली ज़ीका संक्रमण की पुष्टि की है।

पीटर होटेज़, अमरीका के ह्यूस्टन में बेयर कॉलेज ऑफ मेडिसिन में नेशनल स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन के डीन, ने ई-मेल के ज़रिए ज़ीका के खतरे पर प्रकाश डालते हुए इंडियास्पेंड को बताया कि “मूल अफ्रीकी विकृति एशिया में 1954 से 2000 के बीच आया है जिसके कारण माइक्रेसेफली नहीं होता था।”

“यह महामारी 2007 में माइक्रोनेशिया में और 2013 में फ्रेंच पोलिनेशिया में बदली। इसे कभी-कभी एशियाई विकृति कहा जाता है जो पूर्व की नई दुनिया में चला गया। अब एशियाई विकृति अफ्रीका से होते हुए भारत की ओर बढ़ रहा है।”

एक सप्ताह के दौरान कई ईमेल अनुरोधों के बावजूद, रोग नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय केन्द्र, विषाणु विज्ञान के राष्ट्रीय संस्थान (एनआईवी), और एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (आईडीएसपी) द्वारा भारत में ज़ीका के खतरे के संबंध में कोई जवाब नहीं मिला है।

हम बाद में देखेंगे कि, भारत यह नहीं जानता है कि 1952 में पुणे में पता चलने वाला विकृति फैला है और इससे भारतीय अतिसंवेदनशील हुए हैं।

तबदीली जिसने ज़ीका को अधिक खतरनाक बनाया

मई, 2016 में, प्रकाशित माइक्रोब्स एंड इंफेक्शन, एक वैज्ञानिक पत्रिका में होटेज़ कहते हैं,ज़ीका 'ओल्ड वर्ल्ड' के संवेदनशील क्षेत्रों - यूरोप, मध्य पूर्व और अफ्रीका में फैलने से ग्रह के चारों ओर अपनी यात्रा पूरी कर सकता है।

समय के साथ ज़ीका के चरित्र में बदलाव आया है। इस इंटरनेशनल जर्नल ऑफ इंफेटियस डिजीज में प्रकाशित इस रिव्यू पेपर के अनुसार, अपेक्षाकृत सौम्य वायरस से बुखार , बेचैनी, त्वचा लाल चकत्ते, नेत्रश्लेष्मलाशोथ (लाल आँख), मांसपेशियों और जोड़ों के दर्द और सिरदर्द से बदल कर अब मस्तिष्क संबंधी बीमारियों, जैसे कि माइक्रोसेफली और गुल्लाइन बर्र सिंड्रोम (जीबीएस), एक अस्थायी रुप से लकवाग्रस्त, का कारण बनता है।

होटेज़ कहते हैं, “ऐसा प्रतीत होता है कि अधिक न्युरोट्रोपिक और मनुष्य और मच्छरों में बेहतर अनुकूलित विकसित करने के लिए संभवतः अपनी एनएस1 जीन में ज़िका कई महत्वपूर्ण तबदीली के माध्यम से गुज़रा है।”

एनएस1 जीन ज़ीका वायरस में मदद करता है (फ्लाविवाइरस के परिवार से, सबसे बड़ा रक्त कोशिका से 120 गुना छोटा) प्रतिकृति बनाता है, और मानव प्रतिरक्षा प्रणाली से एक प्रतिक्रिया से बचता है।

फ्लाविवाइरस अपने संवाहक के लिए अनुकुलित होती है, आमतौर पर मादा एडिस एजिप्टी मच्छर । जैसे कि वन निवास से मच्छर उभरते हैं और मानव रक्त भोजन के लिए अनुकूलित होते हैं, फ्लाविवाइरस का खतरा बढ़ता है जोकि पीले बुखार, डेंगू, चिकनगुनिया, पश्चिम नील नदी बुखार और अब ज़िका के प्रसार को बताते हैं।

प्रो. होटेज कहते हैं कि नई ज़ीका विकृति के संबंध में डरावना हिस्सा गर्भवती महिलाओं को संक्रमित करना और और अजन्मे भ्रूण माइक्रोसेफली का खतरा बढना है जिससे शिशुओं में न केवल विकृत लक्षण होते हैं बल्कि उनके मस्तिष्क का विकास भी रुक जाता है।

विश्व भर में कैसे हुआ ज़ीका का प्रसार

1954 में नाइजीरिया में मानवों में ज़ीका का पता चलने के बाद, 1951 से 1981 के बीच कम से कम सात अफ्रीकी देशों और भारत, मलेशिया , फिलीपींस, थाईलैंड, वियतनाम और इंडोनेशिया सहित एशिया के कुछ हिस्सों से मानव संक्रमण का सीरम साक्ष्य - रक्त सीरम से साक्ष्य – के मामले दर्ज की गई थी।

प्रो. होटेज़ के अनुसार, 2007 से 2014 के बीच इससे माइक्रोनेशिया, फ्रेंच पोलिनेशिया, और ईस्टर द्वीप - दक्षिण प्रशांत में "विस्फोटक" प्रकोप हुआ है।

फिर मई 2015 में, ब्राजील के राष्ट्रीय प्रयोगशाला देशी या स्थानीय संचरण के मामले दर्ज हुए हैं।

मई 2016 की विश्व स्वास्थ्य संगठन के इस रिपोर्ट – वन इयर इनटू का ज़ीका आऊटब्रेक : हाऊ एन ऑब्सेक्योर डिजीज़ बिकेम के ग्लोबल इमरजेंसी कहती है कि, “अमरीका में वास्तव में एक नया मच्छर जनित रोग आया है हालांकि कोई नहीं जानता था कि क्या मतलब हो सकता है।”

मध्य जुलाई, 2015 तक डब्लूएचओ की मस्तिष्क संबंधी बीमारियों - मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी की सूजन, जीबीएस और माइक्रोसेफली - स्पाइक को ब्राजील ने अधिसूचित किया।

इस समीक्षा पेपर के अनुसार, ब्राजील में अपने प्रवेश के बाद से अमेरिका में 26 देशों के माध्यम से ज़ीका ने अपना रास्ता बनाया है।

1 फरवरी, 2016, डब्ल्यूएचओ ने ज़ीका को एक "अंतरराष्ट्रीय चिंता का सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थिति" घोषित किया। साथ ही समन्वित अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया की आवश्यकता की बात भी कही गई है।

The history of Zika virus

Source: World Health Organization

दुनिया भर में ज़ीका का फैलाव जारी

फरवरी, 2016 में चीन ने अपना पहला मामला (शायद अमेरिका से आयातित) दर्ज किया है; मार्च में, बांग्लादेश ने अपने पहले मामले की पुष्टि की है; जुलाई के अंत में, अमेरिका ने स्थानीय स्तर पर पहले अधिग्रहण मामले की घोषणा की, हालांकि पहली यात्रा से संबंधित मामला 2007 में दर्ज की गई थी।

27 अगस्त को सिंगापुर - एक वैश्विक यात्रा केंद्र - 31 अगस्त , 2016 को ज़ीका के साथ पहली गर्भवती महिला का मामला दर्ज किया है। 8 सितंबर , 2016 तक, 13 दिनों के भीतर 292 मामलों की सूचना दी गई है। और आनुवंशिक अनुक्रमण से पता चला है कि वायरल विकृति ब्राजील आयात नहीं था बल्कि एशिया के भीतर से आया है।

69 वर्षों के दौरान जब ज़ीका का प्रसार दुनिया में हुआ है, अफ्रिका से एशिया और अमरीका तक, कोई मौतो और अस्पताल में दाखिल होने की रिपोर्ट न होने के साथ इसे अनुकूल माना गया था।

लेकिन वायरस – जैसा वायरस अक्सर करते – शांति के साथ बदल रहा है।

चूंकि पुराने विकृति कुछ बुरे प्रभावों का नेतृत्व करते हैं, लोग यात्रा करते हैं, वायरस फैलता है जो कि अपने प्राथमिक वाहक, एडीज एजिप्टी मच्छर प्रजातियों, के साथ एडीज एल्बोपिकटस के माध्यम से महाद्वीपों तक पहुंच गया है। जहां भी यह मच्छर गए हैं, वायरस फैला है।

थॉमस युइल्ल, प्रोमड, संक्रामक रोग फैलने के लिए एक वैश्विक रिपोर्टिंग प्रणाली, पर विस्कॉन्सिन-मैडिसन , संयुक्त राज्य अमरीका के विश्वविद्यालय में प्रोफेसर एमेरिटस, ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए बताया कि "मच्छरों बहुत दूर की यात्रा नहीं है, लेकिन संक्रमित लोग करते हैं।"

युइल्ल कहते हैं, “माइक्रोनेशिया, फ्रेंच पोलिनेशिया और ईस्टर द्वीप में ज़ीका वायरस की उपस्थिति आश्चर्य की बात है क्योंकि इन वायरस का पहला प्रकोप ' अफ्रीका और एशिया के सामान्य क्षेत्र के बाहर था। वायरस का ब्राज़िल आना यह दिखाता है कि किस प्रकार वायरस लंबी दूरी पर ले जाया जा सकता है और नए स्थानों में महामारी का आरंभ हो सकता है।”

कैसे फैलता है ज़िका : मादा मच्छर के खून भोजन के माध्यम से

2016 के इस समीक्षा पेपर के अनुसार, ज़ीका का प्राथमिक संचरण मार्ग मादा एडिस मच्छर के काटना है जब वो मानव रक्त भोजन के रुप में लेते हैं। संचरण के अन्य साधनों में संभोग, रक्ताधान और गर्भावस्था या प्रसव के दौरान भ्रूण को संचारण होना शामिल है।

संचारण मनुष्यों से शुरू होता है। जब मच्छर भोजन के रुप में रक्त लेते हैं तब वायरस कीट को संक्रमित करता है, लार ग्रंथियों तक फैलता है और फिर जब वो मच्छर दूसरे मनुष्यों को काटते हैं तो वे वायरस दूसरे तक फैलता है।

अमरीकन जर्नल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन एंड हाईजिन, वैज्ञानिक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, और फिर वहां ऊर्ध्वाधर संचरण होता है (वायरस एडीज एजिप्टी मच्छर से उनके संतानों में जाता है)।

मच्छर के खून भोजन के बाद वायरस ऊष्मायन अवधि तीन और 12 दिनों के बीच होती है जिसके बाद अधिक मामलों में एक सप्ताह के लिए कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं होता है।

पांच में से एक मामले में, लक्षण अन्य ज़िका की तरह के वायरस से होने वाली बीमारी के साथ ओवरलैप करते हैं, जैसे कि डेंगू और चिकनगुनिया जो अभी गांवों और शहरों में हद तक फैला हुआ है।

आम लक्षण है, जो दो दिन से एक सप्ताह तक रह सकते हैं उनमें बुखार, बेचैनी, त्वचा पर लाल चकत्ते, नेत्रश्लेष्मलाशोथ (लाल आँख), मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द, सिर में दर्द शामिल हैं।

क्यों भारत पर है खतरा

भारत में ज़ीका की ' बीमारी पारिस्थितिकी" शामिल है - एडीज एजिप्टी और एडीज मच्छर एलबोपीक्टस, भीड़, गरीबी, स्वच्छता और सफाई की कमी, यात्रियों और आगंतुकों और गर्मी जो मच्छरों को बढ़ाता है। और इससे केवल एक संक्रमित व्यक्ति के भारत की यात्रा करने और उसके बाद टाइगर मच्छर के काटने से यह फैल सकता है।

एडीज एजिप्टी अब मुख्य रूप से घरों और अन्य इमारतों में पाया जाता है, जो मानसूनी हवाओं और अन्य कारकों से संरक्षित है जिससे इसका प्रसार धीमा हुआ है। यह दिन के दौरान सक्रिय रहते हैं और यह क्रमिक विकास का कारण है।

प्रोसिडिंग ऑफ रॉयल सोसायटी बी, एक वैज्ञानिक पत्रिका, में प्रकाशित हुए एक अध्ययन के अनुसार, 5 फीसदी से 20 फीसदी के बीच मच्छरों की आबादी का सामूहिक जीनोम, दिए गए समय में विकासवादी दबाव की प्रतिक्रिया देती है।

ए.एईजीप्टी के लिए घटना अंक

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Source: Nature.com

युईल्ली बताते हैं, भारत वायरस से प्रभावित तब हो सकता है जब एडीज एजिप्टी या एडीज एल्बोपिकटस मच्छरों की बड़ी आबादी के पास लोगों की बड़ी आबादी रहती है।

पश्चिमी गोलार्द्ध में जहां भी ज़ीका का प्रकोप है वहां एडीज एजिप्टी और डेंगू फैला हुआ है। होटेज़ कहते हैं कि इंडोनेशिया और भारत इस समय दुनिया में सबसे खराब डेंगू समस्याओं का सामना कर रहे हैं।

वह कहते हैं कि, “धारणा के आधार पर भारत पर सबसे बड़ा खतरा है। हलांकि, भारत के मामले में कुछ बाते अब भी अनजान हैं।”

सबसे पहले, भारत में यह बताया गया था कि 1950 के दौरान अफ्रिकि विकृति कितनी व्यापक थी और भारत की आबादी इस पहली लहर के प्रति कितनी अनावृत है।

होटेज़ कहते हैं कि, “पहली विकृति माइक्रोसेपली का कारण नहीं थी लेकिन संभवतः इस नए वायरस विकृति के लिए प्रतिरक्षा उत्पन्न कर सकता है।” इसका पता लगाने के लिए भारत को और अध्ययन की आवश्यकता है।

दूसरा, नई महामारी ज़ीका विकृति, भारत को प्रभावित कर सकता है जैसा कि यह वर्तमान में यह सिंगापुर में कर रहा है ?

होटेज़ कहते हैं, “हमने देखा है कि पश्चिमी गोलार्ध में जहां भी डेंगू हुआ है वहां ज़ीका के मामले पाए गए हैं। लेकिन हम यह नहीं जानते कि क्या इसका कारण दोनों वायरस का एडीज एजिप्टी द्वारा प्रेषित होना है या पिछले डेंगू संक्रमण का ज़िका वृद्धि की संवेदनशीलता को बढ़ावा देना है।”

जैसा कि डेंगू, चिकनगुनिया और ज़िका वायरस संक्रमण के लक्षण समान हैं और केवल प्रयोगशाला परीक्षण से ही दूसरे में अंतर पा सकते हैं। और यह संभव है कि डेंगू या चिकनगुनिया बुखार के रूप में पहचान किए गए मामले ज़ीका के हों।

युइल्ल कहते हैं, “यह भारत का मामला हो सकता है लेकिन जब तक अच्छे प्रयोगशाला समर्थन के साथ भावी निगरानी नहीं होती, कुछ कहा नहीं जा सकता है।”

युइल्ल का प्रश्न है कि क्या भारत में ज़ीका के मामले नहीं है या 40 वर्षों से किसी ने देखा नहीं है।

भारत में नहीं होना चाहिए था चिनकगुनिया ; लेकिन धीरे-धीरे फैला वायरस

ज़ीका की तरह ही एक और वायरस चिकनगुनिया का भारत भर में (केरल को छोड़कर जहां एडीज एजिप्टी मच्छर नहीं पाए गए थे) प्रमुख रुप से फैलाव, 1964 से 1967 के बीच हुआ था।

चिकनगुनिया सार्वजनिक और वैज्ञानिक स्मृति से फीका पड़ गया था और अब यह 2002 में वापस लौटा है।

टी जैकब जॉन, एक सेवानिवृत्त वायरोलोजिस्ट, कहते हैं कि भारत में दूसरी बार चिकनगुनिया उत्परिवर्तित और अधिक उग्र वायरस के माध्यम से आया।

यह पूछने पर कि क्या पिछला डेंगू संक्रमण लोगों को ज़ीका के लिए और अधिक संवेदनशील बनाता है, जॉन कहते हैं, "मेरी जानकारी है कि पिछले डेंगू संक्रमण ज़ीका बदतर बना देता है।"

जॉन कहते हैं कि स्वास्थ्य मंत्रालय वायरस के प्रकोप के पूर्वानुमान के लिए तैयार नहीं है और एहतियाती जांच का संचालन करता है।

चिकनगुनिया की दूसरी प्रविष्टि विषाणु विज्ञान के राष्ट्रीय संस्थान द्वारा प्रलेखित किया गया था न कि मंत्रालय द्वारा।

होटेज़ कहते हैं कि स्थिति के लिए तैयार रहने के लिए भारत को सेरोप्रिवेलेंस अध्ययन शुरु करने की आवश्यकता है जो यह निर्धारित करेगा कि पिछले दशकों में भारत में ज़िका संक्रमण कितने बड़े पैमाने पर फैला था और ज़िका के नए अवतार के लिए भारत अतिसंवेदनशील है की नहीं।

जैविक घटनाएं अप्रत्याशित होती हैं लेकिन सरकार की प्रतिक्रियाएं नहीं होनी चाहिए।

हालांकि, जॉन कहते हैं कि, " सभ्य देश भाग्य पर सब छोड़ देने (जैसा कि हम भारतीय करते हैं) की बजाय एहतियाती पक्ष की ओर ध्यान देते हैं।"

(वर्मा आंध्र प्रदेश स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। वर्मा विज्ञान संबंधित विषय पर लिखते हैं एवं इनकी जलवायु विज्ञान, पर्यावरण और पारिस्थितिकी में विशेष रुचि है।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 10 सितंबर 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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