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मुंबई: नवीनतम राष्ट्रीय आंकड़ों के मुताबिक, भारत में न्यूनतम संपत्ति वर्ग में 10 में से 5 अनुसूचित जनजातियां हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 (एनएफएचएस -4) से पता चलता है कि अनुसूचित जनजाति के 45.9 फीसदी सदस्य न्यूनतम संपत्ति वर्ग में थे। जबकि अनुसूचित जातियों के लिए आंकड़े 26.6 फीसदी, अन्य पिछड़ी जातियों के लिए 18.3 फीसदी, अन्य जातियों के लिए 9.7 फीसदी और जिनकी जाति अज्ञात है, उनके लिए 25.3 फीसदी हैं।

एक दशक पहले की तुलना में, न्यूनम संपत्ति वर्ग में अनुसूचित जनजातियों के प्रतिशत में 4 प्रतिशत की गिरावट आई है, यानी यह आंकड़े 2005-06 में 49.9 फीसदी से गिरकर 2015-16 में 45.9 फीसदी हुआ है। लेकिन न्यूनम वर्ग में उन लोगों की आबादी में 13.5 प्रतिशत अंकों की वृद्धि हुई है जो अपनी जाति ‘नहीं जानते’ हैं। इस संबंध में आंकड़े 2005-06 में 12.1 फीसदी से बढ़ कर 2015-16 में 25.6 फीसदी हुआ है।

इसके अलावा, 70.7 फीसदी अनुसूचित जनजाति, 50.8 फीसदी अनुसूचित जाति और 47.3 फीसदी ऐसे लोग जो अपनी जाति ‘नहीं जानते’, नीचे के दो संपत्ति वर्ग में आते हैं। अन्य पिछड़ी जातियों के लिए यह आंकड़े 37.6 फीसदी और अन्य जातियों के लिए 24.8 फीसदी है।

एक दशक के दौरान जाति अनुसार संपत्ति वर्ग

Source: National Family Health Surveys 2005-06 and 2015-16

एनएफएचएस -4 में संपत्ति वर्ग की गणना उपभोक्ता वस्तुओं की संख्या और प्रकार के आधार पर की जाती है, जिसमें टीवी से लेकर साइकिल या कार, आवास और चिह्नक जैसे कि पीने के पानी के स्रोत, शौचालय की सुविधा, और घरों में इस्तेमाल फर्श सामग्री शामिल हैं।

भारत की आबादी में अनुसूचित जनजाति की हिस्सेदारी 8 फीसदी है ( 2011 की जनगणना के अनुसार 104 मिलियन ) फिर भी, विश्व बैंक के संक्षिप्त ब्योरे, इंडियाज आदिवासीज के मुताबिक, उनकी आबादी का एक चौथाई हिस्सा गरीबी में रहने वाले क्विंटल में है। 1983 और 2011 के बीच गरीबी दर में एक तिहाई की गिरावट के बावजूद, गरीबी की दर उनके कम प्रारंभिक बिंदु के कारण उच्च रहती है, जैसा कि संक्षेप में आगे कहा गया है।

पांच वर्ष से कम आयु वर्ग के अनुसूचित जाति / जनजाति के 32 से 33 फीसदी लड़के कम वजन के हैं। जबकि सामान्य आबादी के लिए यह आंकड़े 21 फीसदी है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने अक्टूबर 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

इसके अलावा, सामाजिक बहिष्कार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों को सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं और कार्यक्रमों तक पहुंचने से रोकता है और उनकी स्वास्थ्य और पोषण संबंधी स्थिति बिगड़ती है, जैसा कि अगस्त 2015 के इस अध्ययन में बताया गया है।

(यदवार प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 28 फरवरी 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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