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(उत्तर प्रदेश के फररुखाबाद जिले के बदनामो गांव में टीकाकरण के बाद एक मां को सलाह देती एएनएम अर्चना )

मुंबई: वर्ष 2016 में, लगभग 261,000 भारतीय बच्चों की मौत उनके पांचवें जन्मदिन से पहले दस्त या निमोनिया के कारण हुई है। यह दोनों ही निवारणीय रोग हैं। इन दो रोगों के कारण हुई मौतों की यह संख्या दुनिया के किसी भी हिस्से से ज्यादा है, जैसा कि 2018 निमोनिया और डायरिया प्रगति रिपोर्ट से पता चलता है। यह रिपोर्ट 12 नवंबर, 2018 को जारी किया गया था।

इसका मतलब है कि 2016 में हर दिन इनमें से किसी एक रोग के कारण लगभग 735 भारतीय बच्चों की मौत हुई है, यानी हरेक दो मिनट में एक बच्चे की मौत। विश्व स्तर पर, पांच साल से कम आयु के बच्चे के भीतर एक-चौथाई बच्चों की मृत्यु का कारण निमोनिया और दस्त है और इससे एक साथ लड़ने से दुनिया भर में बाल मृत्यु को काफी कम किया जा सकता है।

साल 2016 में भारत को दस्त और निमोनिया की रोकथाम, नियंत्रण और उपचार में मिश्रित सफलता मिली है।टीकाकरण कवरेज में सुधार हुआ है, लेकिन उपचार संकेतक में गिरावट थी, जैसा कि जॉन्स हॉपकिन्स ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के इंटरनेश्नल वैक्सीन एक्सेस सेंटर की रिपोर्ट में बताया गया है। यह रिपोर्ट विश्लेषण करती है कि, दस्त और निमोनिया के इलाज के लिए किए कैसे देश 10 प्रमुख दस्तक्षेप कर रही है - स्तनपान, टीकाकरण, देखभाल तक पहुंच, एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग, मौखिक पुनर्जलीकरण समाधान (ओआरएस) और जस्ता अनुपूरण।2015 से हेमोफिलस इनफ्लुएनजा प्रकार बी टीका का कवरेज, जो निमोनिया से बचाता है, उसमें 8 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई है, जैसा कि रिपोर्ट से पता चलता है। रोटावायरस टीकों द्वारा कवर बच्चों की संख्या, जो गंभीर दस्त के खिलाफ सुरक्षा करता है और 2016 के मध्य में पेश किया गया है, पिछले साल की रिपोर्ट के बाद से 9 प्रतिशत अंक बढ़ गया है।

इसके विपरीत, भारत के अन्य उपचार संकेतक में कमी आई- ओआरएस कवरेज (13 प्रतिशत अंक), विशेष रूप से स्तनपान (10 प्रतिशत अंक), और निमोनिया देखभाल पहुंच (4 प्रतिशत अंक)।

इस बीच, आंकड़ों के अनुसार, पांच साल से कम आयु के बच्चों में, दस्त और निमोनिया की मौत में लगातार गिरावट आई है, दस्त के लिए हर साल लगभग 7.2 फीसदी और निमोनिया के लिए 6.8 फीसदी। 2000 से 2018 तक, दस्त से होने वाली मौतों में 69.7 फीसदी की गिरावट हुई है ( 339,937 से 102,813 ) और निमोनिया से होने वाली मौत में 67 फीसदी कमी हुई है ( 485,094 से 158,176 तक )।

2000 से 2018 के बीच, दस्त से होने वाली मौत में 69.7 फीसदी कमी, निमोनिया में 67 फीसदी कमी

भारत ने 2005 से 2015 के बीच पांच साल की उम्र के बच्चों के बीच दस्त के मामले में समय पर इलाज, टेटनस और खसरा के लिए टीकाकरण, और अस्पताल के जन्म में वृद्धि जैसे हस्तक्षेपों के साथ 1 मिलियन मौतों को रोका है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने अक्टूबर 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

जॉन्स हॉपकिंस यूनवर्सिटी के ‘इंटरनेश्नल हेल्थ एंड पीडीऐट्रिक्स डिपार्टमेंट’ के प्रोफेसर माटु संतोषम कहते , "भारत ने जबरदस्त सुधार किए हैं, लेकिन इसे और अधिक करने की जरूरत है। वर्तमान में दस्त के साथ केवल 20 फीसदी बच्चों को जस्ता की खुराक मिलती है, देश भर में रोटावायरस टीका अभी भी उपलब्ध नहीं है और पीसीवी (न्यूमोकोकल संयुग्म टीका) केवल छह राज्यों में है।"

भारत में न्यूमोकोकल संयुग्म टीका टीका ( न्यूमोकोकल संक्रमण के खिलाफ जो निमोनिया का कारण बन सकता है ) को मई 2017 से शुरु किया गया है लेकिन अब उसकी गति कम है। इसे केवल छह राज्यों में ही शामिल किया गया है, और किसी भी बच्चे को अभी तक टीका की तीसरी खुराक नहीं मिली है।

पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में सबसे ज्यादा दस्त और निमोनिया से होने वाले मौतों के साथ देशों में उपचार

Treatment In Countries With Most Under-Five Pneumonia & Diarrhoea Deaths
% of children under 5 with suspected pneumonia% of children under 5 with suspected diarrhea
Global rankCountryTaken to an appropriate health care providerReceiving antibioticsReceiving ORSReceiving zinc supplements
Target: 90%
1India73N/A2120
2Nigeria24233733
3Pakistan6442381
4DRC4240392
5Ethiopia3173033

Source: 2018 Pneumonia & Diarrhoea Progress Report

निवारक और उपचार हस्तक्षेप भारत को 2030 तक पांच से कम बच्चों के बीच प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 25 मौत तक मृत्यु दर को कम करने की संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य को प्राप्त करे में सहायता कर सकता है। भारत की वर्तमान पांच साल के बच्चों के बीच मृत्यु दर प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 39 मौतों का है और 2012 से मौतों की संख्या में 30 फीसदी की कमी आई है, 1.4 मिलियन से 989,000 तक, जैसा कि इंडियास्पेंड ने सितंबर 2018 की रिपोर्ट में बताया है।

तंजानिया के साथ-साथ पड़ोसी बंग्लादेश ने निमोनिया और डायरिया के नियंत्रण के लिए कई उपायों की एक समग्र सूचक में सबसे बड़ा सकारात्मक बदलाव का अनुभव किया है, जैसा कि रिपोर्ट में कहा गया है।

टीकाकरण में वृद्धि, लेकिन उपचार अक्सर गलत

निमोनिया और दस्त के रोकथाम और नियंत्रण (जीएपीपीडी) हस्तक्षेप स्कोर ( पिछले 10 संकेतकों के आधार पर एक समग्र स्कोर ) के लिए वैश्विक कार्य योजना पर भारत का प्रदर्शन में पिछले साल से 50 फीसदी तक एक प्रतिशत अंक से सुधार हुआ है।

लेकिन यह 86 फीसदी के लक्ष्य स्कोर के लिए एक लंबा रास्ता है, जो कार्य योजना में सूचीबद्ध 15 देशों में से किसी ने भी हासिल नहीं किया है। सूचीबद्ध देशों में 2016 में दस्त और निमोनिया की मौत की सबसे ज्यादा संख्या थी।

भारत ने दस्त से नियंत्रण और रोकथाम पर बेहतर प्रदर्शन किया है। निमोनिया के लिए 84 फीसदी के लक्ष्य स्कोर के मुकाबले भारत ने 65 फीसदी की वृद्धि दर्ज की है। दस्त के मामले में यह 82 फीसदी के लक्ष्य के मुकाबले 39 फीसदी था।

पांच वर्ष की आयु के बीच सबसे निमोनिया और दस्त से सबसे ज्यादा मौत के साथ देश: रोकथाम और नियंत्रण के लिए वैश्विक कार्य योजना पर प्रदर्शन

Countries With Most Under-Five Pneumonia & diarrhoea Deaths: Performance On Global Action Plan For Prevention & Control
Global rankCountry2018 GAPPD
Overall Target 86%Pneumonia* Target 84%Diarrhoea* Target 82%
1India506539
2Nigeria303327
3Pakistan506333
4DRC496434
5Ethiopia525353
Median across 15 high-burden countries505936

Source: 2018 Pneumonia & Diarrhoea Progress Report

यह इस तथ्य के बावजूद है कि, पांच वर्ष की आयु के भीतर दस्त से ग्रसित केवल 20 फीसदी बच्चों को ओआरएस नमक और 21 फीसदी को जस्ता प्राप्त होता है ( दस्त के इलाज के लिए दो जीवन रक्षक उपाय ), जैसा कि रिपोर्ट में बताया गया है।

इसके अलावा, बचपन दस्त के उपचार के 90 फीसदी से अधिक सही नहीं हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 18 फरवरी 2017 की रिपोर्ट में बताया है। अपेक्षाकृत सरल जीवन-बचत दवाओं से अपरिचित, अयोग्य चिकित्सक अक्सर एंटीबायोटिक दवाओं और अन्य संभावित हानिकारक दवाओं का निर्धारण करते हैं, जैसा कि रिपोर्ट में कहा गया है। ओआरएस स्वच्छ पानी, नमक और चीनी का मिश्रण है, जो छोटी आंत में अवशोषित होता है और पानी को बदलता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबकि, जस्ता की खुराक दस्त से एपिसोड की अवधि को 25 फीसदी तक कम करती है, और मल की मात्रा में 30 फीसदी की कमी से जुड़ी होती है। संतोषम कहते हैं, "कुल मिलाकर यह देखा गया है कि टीकाकरण कवरेज बढ़ती जा रही है, लेकिन लंबी अवधि में यह टीका या उपचार पर ध्यान केंद्रित करने के बारे में नहीं है, हमें दस्त और निमोनिया के कारण मौतों को कम करने की जरूरत है। "बच्चों के प्रतिशत पर भारत 15 देशों में तीसरे स्थान पर रहा (77 फीसदी) है, जिन्हें निमोनिया के इलाज के लिए हेल्थकेयर प्रदाताओं को ले जाया गया था। हालांकि, निमोनिया के इलाज के लिए कितने भारतीय बच्चों को एंटीबायोटिक दवाएं मिलीं, इस पर कोई डेटा नहीं था।

कवरेज पर असमानता प्रभाव: गरीब घरों की लड़कियां सबसे उपेक्षित

यह समझने के लिए कि राष्ट्रीय डेटा में सामाजिक-जनसांख्यिकीय कारक टीकाकरण कवरेज में असमानताओं का कारण बनते हैं रिपोर्ट में लिंग, धन, मातृ शिक्षा और निवास के आंकड़ों का भी विश्लेषण किया गया है।इस विश्लेषण ने असमानताओं का खुलासा किया है। भारत भर में गरीब शहरी क्षेत्रों में महिला और बच्चों के बीच कम टीका कवरेज देखा गया था। उदाहरण के लिए, एक अध्ययन के अनुसार, दिल्ली के कम आय वाले क्षेत्रों में 100 पुरुषों की तुलना में 78 महिलाओं को पूरी तरह से प्रतिरक्षित किया गया है।संतोषम कहते हैं, "हमें उन बच्चों को खोजने की जरूरत है, जिन्हें टीका नहीं मिल रहा है या इलाज नहीं किया जा रहा है क्योंकि वे गरीब हैं और संक्रमण से मृत्यु की संभावना है।"हालांकि, भारत की ओर से कई पहल हैं, जो काम कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, वार्षिक टीकाकरण सप्ताह (अप्रैल 24-30) दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में कवरेज में सुधार कर रहा है। लिंग स्वास्थ्य अंतर से निपटने के लिए - राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत सफल संचार हस्तक्षेप भी शामिल हैं, जिसमें समुदाय स्वास्थ्य कर्मियों और कार्यकर्ताओं के समूहों को विकसित करने की पहल शामिल हैं - और स्वास्थ्य सुविधाओं की यात्रा की प्रतिपूर्ति भी करती है।हरियाणा में स्वास्थ्य स्वास्थ्य मिशन की लिंग और सामाजिक असमानता पर प्रभाव का आकलन करने वाले 2016 के एक अध्ययन का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है, "इस दृष्टिकोण ने लड़कों और लड़कियों के बीच अंतर करने के लिए लड़कों में लगभग 6 % उच्च पूर्ण टीकाकरण कवरेज की बेसलाइन को सफलतापूर्वक बंद कर दिया।"

( यदवार प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं। )

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 15 नवंबर, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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