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एक विनिर्माण स्टार्ट-अप को जमीन पाने के लिए औसतन 83.6 दिन, निर्माण परमिट के 58.7 दिन, बिजली कनेक्शन प्राप्त करने के लिए 44 दिन और जल कनेक्शन प्राप्त करने के लिए 30.2 दिन का समय लगा, जबकि फर्म को एक महीने में औसतन 33.6 घंटे बिजली की कमी और 33 घंटे पानी की कमी का सामना करना पड़ा है। यह निष्कर्ष, मुंबई स्थित सार्वजनिक नीति संस्था ‘आईडीएफसी संस्थान’ और सरकारी संस्था ‘नीति आयोग’ द्वारा संकलित रिपोर्ट, 'द इज ऑफ डूइंग बिजनेस रिपोर्टिंग' का है।

रिपोर्ट कहती है कि, "यदि भारत को ‘दोहरे अंक’ के आर्थिक विकास क्लब में प्रवेश करना है, तो स्पष्ट रूप से इसके कारोबारी माहौल को लगातार सुगम बनाने और सुधारने की आवश्यकता है।"सर्वेक्षण में वर्ष 2014 के दौरान और बाद शुरु किए गए स्टार्ट-अप फर्म और पुराने फर्म, दोनों को शामिल किया गया है। रिपोर्ट कहती है कि नई कंपनियों के लिए अनुमोदन प्राप्त करने की प्रक्रिया आसान है, जो यह बताती है कि हाल के दिनों में व्यवसाय स्थापित करने में तेजी आई है।

मिसाल के तौर पर, स्टार्ट-अप फर्म के लिए जमीन मिलने में औसतन 83.6 दिन लगते हैं, जबकि वर्ष 2014 से पहले स्थापित की गई कंपनियों के लिए 118.3 दिनों का समय लगा है। सर्वेक्षण में पाया गया कि, स्टार्ट-अप के लिए निर्माण परमिट पाने के लिए 58.7 दिनों का समय लगा है और नॉन-स्टार्ट-अप के लिए 75.5 दिनों का समय लगा है।

तुलनात्मक रूप से, मलेशिया के राजधानी कुआलालंपुर में, नए व्यापार शुरु करने में 18.5 दिन और निर्माण परमिट मिलने में 79 दिनों का समय लगा है, जैसा कि विश्व बैंक की डूइंग बिजनेस रिपोर्ट 2017 में बताया गया है। (नोट: नीती आयोग सर्वेक्षण और विश्व बैंक के सर्वेक्षण तुलनात्मक नहीं हैं, क्योंकि दोनों अलग-अलग तरीकों का उपयोग करते हैं।)

नीती आयोग की रिपोर्ट औपचारिक क्षेत्र में 3,276 विनिर्माण उद्यमों के सर्वेक्षणों पर आधारित है, जिसमें 2016 में एक बाजार अनुसंधान एजेंसी, कांतर-आईएमआरबी द्वारा आयोजित 23 विनिर्माण श्रेणियों में 141 नए फर्म शामिल हैं।

सर्वेक्षण में अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, अंडमान निकोबार और लक्षद्वीप को छोड़कर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को शामिल किया गया था।

सर्वेक्षण में कई राज्यों में वकील, चार्टर्ड एकाउंटेंट और कंपनी सचिवों के साक्षात्कार भी शामिल थे, और विश्व बैंक के डूइंग बिज़नेस सर्वे की तुलना में काफी व्यापक गुंजाइश थी, जो कि दिल्ली और मुंबई पर ही ध्यान केंद्रित करती थी।

नई फर्मों के लिए स्वीकृति प्राप्त करने की प्रक्रिया तेज

स्टार्ट-अप के लिए अधिकांश मामलों में स्वीकृति मिलने में कम दिन लगे हैं जैसे कि भूमि आवंटन, निर्माण परमिट और पानी, बिजली या सीवरेज कनेक्शन प्राप्त करना, लेकिन सर्वेक्षण में पाया गया कि पर्यावरण मंजूरी मिलने में ज्यादा समय लगा है।

छोटे अनुमोदन का समय आंशिक रूप से इस तथ्य से समझाया जा सकता है कि ज्यादातर स्टार्ट-अप उच्च विकास वाले राज्यों में थे जहां मंजूरी पूरे देश के मुकाबले तेज थी। लेकिन सर्वेक्षण में पाया गया कि अन्य राज्यों में भी पुरानी कंपनियों की तुलना में स्टार्ट-अप के लिए स्वीकृति ज्यादा तेज थी, जो यह बताता है कि कुल मिलाकर, एक व्यवसाय स्थापित करने में लगने वाला समय कम हुआ है।

स्टार्ट अप के लिए स्वीकृति में लगने वाला औसत समय

Source: Niti Aayog and IDFC Institute Ease of Doing Business Report

रिपोर्ट कहती है कि, "उच्च वृद्धि वाले राज्यों में उद्यम के लिए, कम विकास वाले राज्यों में स्थित उद्यमों की तुलना में भूमि और निर्माण से संबंधित मंजूरी, पर्यावरण मंजूरी और पानी और स्वच्छता उपलब्धता में गंभीर बाधाओं की काफी कम संभावना है। "

उच्च विकास वाले राज्य वे राज्य हैं, जिनकी वृद्धि दर 2004-05 और 2013-14 के बीच मध्यम औसत वृद्धि दर के हिसाब से विकास दर उच्च या समान थी। कम-वृद्धि वाले राज्यों में फर्मों की तुलना में उच्च-विकास वाले राज्यों की फर्म, एक महीने में 25 फीसदी कम बिजली की कमी की सूचना देते हैं।

100 से अधिक कर्मचारियों वाले फर्मों ने ज्यादा समय और आवश्यक मंजूरी के लिए उच्च लागत की सूचना दी है और 10 से कम कर्मचारियों के साथ छोटी कंपनियों की तुलना में व्यापार में विनियामक बाधाओं की संभावना वहां ज्यादा दिखी।

रिपोर्ट कहती है कि, यह इंगित करता है कि फर्मों के आकार में वृद्धि या बढ़ने के लिए ये स्थितियां बाधक हैं। देश में 98.6 फीसदी गैर-कृषि प्रतिष्ठानों द्वारा दस से कम श्रमिकों को रोजगार देने के साथ यह समझा सकता है कि भारत में फर्म कम क्यों हैं, जैसा कि नवीनतम 2013-2014 आर्थिक जनगणना के आंकड़े बताते हैं।

विनिर्माण उद्यमों की स्थापना के लिए स्वीकृति मिलने में लगने वाला समय

Source: Niti Aayog and IDFC Institute Ease of Doing Business Report

ज्यादातर कंपनियों ‘सिंगल विंडो क्लिरन्स सिस्टम’ से अनजान

रिपोर्ट में कहा गया है कि “आश्चर्यजनक' निष्कर्षों में से एक यह भी है कि राज्यों द्वारा स्थापित ‘सिंगल विंडो क्लिरन्स सिस्टम’ के बारे में उद्यमियों में कम जागरूकता थी।” रिपोर्ट में मिली जानकारी के मुताबिक हाल ही में स्थापित किए गए स्टार्ट-अप में से औसतन केवल 20 फीसदी ने व्यवसाय की स्थापना के लिए ‘सिंगल विंडो क्लिरन्स सिस्टम’ के जरिये काम किया। आधे से कम यानी करीब 41 फीसदी को इन सुविधाओं के अस्तित्व के संबंध में कोई ज्ञान नहीं था।

सर्वेक्षण में पाया गया कि अलग-अलग राज्यों में कानूनी विवाद सुलझाने में लगने वाला समय भिन्न था। यह समय 1 से 13 वर्षों का पाया गया है। सिविल कोर्ट में, मामले को सुलझाने में लगने वाला औसत समय 598 दिन या 1.6 साल था, जबकि अदालत में अब भी लंबित मामले का औसत समय 1,304 दिन या, 3.6 साल था।

विनिर्माण उद्यमों के लिए कानूनी विवादों में औसत समय

Source: Niti Aayog and IDFC Institute Ease of Doing Business Report

सर्वेक्षण में यह भी पाया कि, एक फर्म के लिए वित्तपोषण का सबसे बड़ा स्रोत उद्यम से बचाई बचत (35 फीसदी ) है, दूसरा स्रोत बैंकों से ऋण लेना (32 फीसदी) और तीसरा व्यक्तिगत बचत (25 फीसदी) है।

विनिर्माण उद्यमों के लिए वित्तपोषण का स्रोत

Source: Niti Aayog and IDFC Institute Ease of Doing Business Report

(शाह रिपोर्टर/संपादक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं। )

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 12 सितंबर 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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