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( 35 वर्षीय ज्योतिर्मय अकालादेवी, तेलंगाना के करीमनगर स्थित ‘मदर एंड चाइल्ड हेल्थ सेंटर’ के 30 दाई यानी मिडवाइफ प्रशिक्षुओं में से एक हैं। दिसंबर, 2018 के अंतिम दो सप्ताह में, एक वर्ष का कोर्स पूरा करने और अब मिडवाइफ इंटर्न के रूप में काम करते हुए, अकालादेवी ने पहले से ही संगारेड्डी जिले के ‘मदर एंड चाइल्ड केयर अस्पताल’ में एक दर्जन से अधिक शिशुओं की डिलीवरी में सहायता की थी। )

करीमनगर (तेलंगाना) और दिल्ली: मिडवाइफ के रुप में प्रशिक्षित होने के लिए कुछ चीजों को भूल जाने की आदत डालनी होती है और भूल जाने वाली चीजों की सूची बताते हुए 35 वर्षीय ज्योतिर्मयी अकालादेवी बताती हैं, “ एक नर्स के रूप में, हम एक मां को रोगी के रूप में देखते थे। एक मिडवाइफ के रूप में हमने जो पहली चीज सीखी, वह थी उन्हें मां के रूप में मानना ​​और न कि मरीज की तरह देखना। ”

अकालादेवी भारत में पेशेवर रूप से प्रशिक्षित मिडवाइफ के पहले बैच से हैं। यह तेलंगाना राज्य सरकार द्वारा शुरू किए गए एक पायलट कार्यक्रम का हिस्सा है। जब हम 2018 के नवंबर में मिले थे, तब उन्होंने करीमनगर के ‘मदर एंड चाइल्ड हेल्थ सेंटर’ में मिडवाइफ का एक साल का शैक्षणिक प्रशिक्षण पूरा किया था। इस कार्यक्रम का अब बारीकी से अध्ययन किया जाएगा, क्योंकि भारत, दाई की अगुवाई में देखभाल की प्रक्रिया को शुरू करने के लिए तैयार है। भारत सरकार ने मिडवाइफरी सर्विसेज पर दिशानिर्देशों की घोषणा की है, जिसमें दिसंबर 2018 में दिल्ली में मातृत्व, नवजात शिशु और बाल स्वास्थ्य के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के विश्वस्तरीय फोरम, पार्टनर्स फोरम में मिडवाइफरी प्रशिक्षण और प्रमाणन के लिए सिफारिशें शामिल हैं। इस विकास के लिए हमने वर्षों की मेहनत की है और अंतरराष्ट्रीय दबाव को सहन किया, और भारत की मातृ स्वास्थ्य नीति में एक रचनात्मक परिवर्तन को देखा है।केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में मातृ स्वास्थ्य के लिए डिप्टी कमिश्नर दिनेश बसवाल ने कहा, "यह देश के लिए एक गेम चेंजर बनने जा रहा है। हमें मातृ और शिशु मृत्यु दर में ज्यादा गिरावट लाने की जरूरत है और हम इसे एक प्रभावी हस्तक्षेप के रूप में देखते हैं। "

यह मिडवाइफ के कैडर बोझ से भरे सेकेंडरी और तृतीयक देखभाल सुविधाओं का समर्थन करेगा, जहां भारत में शिशु और मातृ स्वास्थ्य से संबंधित सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करने के लिए पर्याप्त प्रसूति विशेषज्ञ नहीं हैं। बसवाल ने कहा, "इससे देखभाल की गुणवत्ता में भी सुधार होगा और महिलाएं सुकून अनुभव करेंगी।" विश्व स्तर पर, मिडवाइफ को जीवन बचाने और गर्भावस्था और प्रसव के दौरान गुणवत्ता देखभाल प्रदान करने के लिए जाना जाता है - सभी मातृ मृत्यु और नवजात मृत्यु में से 83 फीसदी, मिडवाइफ की देखभाल के साथ टाला जा सकता है, जैसा कि डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों से पता चलता है।

जब गर्भावस्था के दौरान मिडवाइफ मुख्य देखभाल प्रदाता थीं, महिलाओं को समय से पहले जन्म देने या 24 सप्ताह से पहले अपने बच्चों को खोने की संभावना कम थी, जैसा कि डब्ल्यूएचओ द्वारा किए गए शोध से पता चलता है।

मिडवाइफ द्वारा जिन महिलाओं की देखभाल की गई, उन्हें कम एपीड्यूरल की जरूरत, जन्म के समय सहायता की कम जरूरतकम सहायक जन्म और सीजेरियन जन्म होने की संभावना कम थी। सीजेरियन जन्म ज्यादा तेलंगाना सरकार ने अक्टूबर 2017 में करीमनगर जिले में भारत का पहला मिडवाइफरी कोर्स शुरू किया। दो साल बाद, 2019 के मध्य तक, अकालादेवी और 29 अन्य महिलाएं स्नातक होंगी और राज्य भर के सार्वजनिक अस्पतालों में मिडवाइफ के रूप में तैनात होंगी।

तेलंगाना के करीमनगर में ‘मदर एंड चाइल्ड हेल्थ सेंटर’ में प्रशिक्षु मिडवाइफ। राज्य ने अक्टूबर 2017 में करीमनगर में भारत का पहला मिडवाइफरी कोर्स शुरू किया। दो साल बाद, 2019 के मध्य तक, 30 महिलाएं स्नातक होंगी और पूरे राज्य के सार्वजनिक अस्पतालों में मिडवाइफ के रूप में तैनात होंगी।

यह जानने के लिए कि मिडवाइफरी परियोजना को लागू करने के लिए करीमनगर को क्यों चुना गया था, इसे जानने के लिए निम्नलिखित आंकड़ों पर नजर डालना जरूरी है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2015-2016) के अनुसार, तेलंगाना में देश में सीजेरियन जन्म की दर सबसे अधिक थी, निजी क्षेत्र में 74.9 फीसदी और सार्वजनिक क्षेत्र में 40.3 फीसदी थी। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, विश्व स्तर पर, 10-15 फीसदी को "आदर्श दर" माना जाता है।

हालांकि दुनिया भर में सीजेरियन जन्म सामान्य बात होते जा रहे हैं, करीमनगर में 80 फीसदी से अधिक सीजेरियन जन्मों का खतरनाक आंकड़ा दर्ज किया गया है।

बी. नंदिनी और उनके परिवार का मामला इस समस्या को समझने में मदद कर सकता है।

25 वर्षीय नंदिनी एक एकाउंटेंट है। वह दो बच्चों की मां हैं और करीमनगर के लक्ष्मीपुर गांव में रहती है। उनके दोनों बच्चों का जन्म सीजेरियन ही हुआ है। 42 साल की उसकी मां निर्मला ने भी बच्चों को सीरियन सेक्शन के जरिए ही जन्म दिया है। उनके परिवार में स्वाभाविक रूप से जन्म देने वाली एकमात्र महिला नंदिनी की दादी भुवी देवी हैं।करीब 70 वर्ष की भुवी देवी ने इंडियास्पेंड के साथ बात करते हुए बताया कि, “मेरे समय में यह सब नहीं था। लेकिन अब, हर कोई ऑपरेशन कराता है। मुझे पता नहीं कि चीजें क्यों बदल गईं। " पिछले एक दशक से 2016 तक, सीजेरियन डिलीवरी का प्रतिशत भारत में 9 फीसदी से बढ़कर 18.5 फीसदी हो गया, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 20 दिसंबर, 2018 की रिपोर्ट में बताया था। सिजेरियन सेक्शन को मातृ स्वास्थ्य देखभाल संकेतक के रूप में विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त है। जब सीजेरियन सेक्शन की दर एक आबादी में 10 फीसदी तक जाती है, तो मातृ और नवजात मृत्यु घट जाती है। लेकिन यदि भारत में यह दर 10 फीसदी से अधिक हो जाती है ( जैसा कि भारत में ) मातृ या नवजात मृत्यु दर में सुधार का कोई सबूत नहीं है, जैसा कि डब्लूएचओ के अध्ययन के आधार पर इंडियास्पेंड ने 10 फरवरी, 2017 की रिपोर्ट में बताया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के मुद्दों को हल करने के लिए मिडवाइफ जरूरी हैं। इससे सीजेरियन जन्म दर कम होंगे, महिलाओं और उनके शिशुओं के लिए अनावश्यक जोखिम कम होगा और मातृ और शिशु स्वास्थ्य बेहतर होगा, जैसा कि वैश्विक स्तर के साक्ष्य दिखाते हैं।

कैसे मदद कर सकती हैं मिडवाइफ

मिडवाइफरी के नेतृत्व वाली देखभाल महिलाओं के सम्मान, गोपनीयता और करुणा के सिद्धांतों और सम्मानजनक मातृ देखभाल पर आधारित है।

अकालादेवी कहती हैं, “जब मैंने कोर्स चुना, तो मैंने अपने आप से सोचा, कि वे हमें किस चीज़ के बारे में सिखा सकते हैं? हमें सम्मानजनक मातृ देखभाल के बारे में कुछ नहीं पता था। अब जब हम कम जोखिम वाले गर्भावस्था के मामले में एक सामान्य प्रसव का विकल्प चुनने के लिए मां को सलाह देते हैं, तो यह उनके साथ बातचीत करने, उनका विश्वास हासिल करने और उन्हें विकल्प के बारे में जागरूक करने के बाद होता है।”

तेलंगना के करीमनगर में ' मदर एंड चाइल्ड हेल्थ केअर सेंटर’ में एक मां को देखती मिडवाइफ। मिडवाइफरी के नेतृत्व वाली देखभाल महिलाओं के सम्मान, गोपनीयता और करुणा के सिद्धांतों और सम्मानजनक मातृ देखभाल पर आधारित है।

अकालादेवी ने ‘मदर एंड चाइल्ड’ में एक जनरल नर्स के रूप में काम किया था। अकालादेवी ने तेलंगाना के संगारेड्डी जिले में ‘मदर एंड चाइल्ड हेल्थ सेंटर’ में एक सामान्य नर्स के रूप में 14 साल तक काम किया था, जब उन्होंने एक स्थानीय तेलुगु पेपर में एक विज्ञापन देखा, जिसमें मिडवाइफरी के एक कोर्स के लिए आवेदन आमंत्रित किए थे।

दिसंबर 2018 के अंतिम दो सप्ताह में, कोर्स का एक वर्ष समाप्त करने के बाद और मिडवाइफ इंटर्न के रूप में काम करते हुए, अकालादेवी ने पहले ही तेलंगाना में संगारेड्डी जिले के मदर एंड चाइल्ड केयर अस्पताल में एक दर्जन से अधिक शिशुओं की डिलीवरी में सहायता की थी।

इंडियास्पेंड के साथ बात करते हुए अकालादेवी ने बताया कि, "इंटर्नशिप शुरू होने के बाद से मैंने हर दिन एक डिलीवरी में सहायता की है। पहले तो डॉक्टर और नर्स हमें लेबर रूम में देखकर खुश नहीं होते थे । उन्हें लगता था कि हम उनके अधिकार या काम का अतिक्रमण कर रहे हैं, लेकिन जब उन्होंने हमारा काम देखा और देखा कि हम मांओं की देखभाल कैसे करते हैं, तो उन्होंने कहा कि उन्हें हमारी जरूरत है। " पिछले एक दशक में, भारत में संस्थागत प्रसव बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है, लेकिन मांओं की देखभाल की गुणवत्ता के बारे में बहुत कम बात हुई है। भारत में संस्थागत प्रसवों की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ बच्चे के जन्म को मानवीय बनाने की जरुरत है, ताकि महिलाएं इसे गरिमा के साथ और स्वायत्त व्यक्तियों के रूप में देख सकें। आंशिक रुप से यही कारण था कि केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने लेबर रूम में देखभाल की गुणवत्ता में सुधार के लिए 2018 में एक कार्यक्रम 'लक्ष्य' शुरू किया था।

ऐसे देश के लिए, जो अपने मातृ स्वास्थ्य संकेतकों को बेहतर बनाने के लिए प्रयासरत है, भारत ने ऐसे देशों से जिन्होंने मिडवाइफ को एक पेशेवर कैडर बनाने में निवेश किया है, जैसे कि श्रीलंका, बांग्लादेश और अफगानिस्तान को पीछे छोड़ते हुए मिडवाइफ के महत्व को नजरअंदाज किया है।

भारत में योग्य स्वास्थ्य पेशेवरों के रूप में मिडवाइफ पर बहुत कम जागरूकता है और इसे अभी भी पारंपरिक जन्म सहायक (डाइस), सहायक नर्स-दाई (एएनएम) या पंजीकृत नर्स और पंजीकृत दाई (आरएनआरएम) के रूप में देखा जाता है।

भारत ने अब तक मिडवाइफ को मान्यता नहीं दी है और केवल अपने एएनएम और आरएनआरएम को नर्सिंग प्रशिक्षण के साथ मिडवाइफ का प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।

एक प्रमाणित मिडवाइफ, वैश्विक रूप से स्वीकृत संदर्भ में, जैसे यूरोप में- जहां 75 फीसदी जन्म मिडवाइफ द्वारा भाग लिया जाता है- कोई ऐसी लड़की या महिला है, जिसने अंतर्राष्ट्रीय परिसंघ के दाइयों के मानकों के आधार पर मिडवाइफरी का शिक्षा कार्यक्रम पूरा किया है, और पंजीकृत होने के लिए अपेक्षित योग्यता हासिल कर ली है और कानूनी रूप से मिडवाइफ का काम करने के लिए उन्हें लाइसेंस प्राप्त है।

बसवाल कहते हैं, “ भारत उन कुछ देशों में से एक है, जिन्होंने मिडवाइफ के मामले में कोई प्रगति नहीं की है। हम लंबे समय से इस पर विचार-विमर्श कर रहे हैं, लेकिन तमाम विचार-विमर्श ने अब गति प्राप्त की है। ''इससे पहले भी भारत में, उद्हारण के लिए पशिचम बंगाल और गुजरात में मिडवाइफरी स्थापित करने का प्रयास विफल रहा है। दिसंबर 2018 में जारी किए गए मिडवाइफरी पर नए दिशानिर्देशों में कहा गया है कि मिडवाइफरी (एनपीएम) में नर्स प्रैक्टिशनर का एक कैडर बनाया जाएगा, जो कि मिडवाइफ के अंतर्राष्ट्रीय परिसंघ के मानकों के अनुसार कुशल होगा। एनपीएम एक पंजीकृत नर्स-मिडवाइफ होगी जो मिडवाइफरी में 18 महीने के अतिरिक्त बुनियादी प्रशिक्षण के बाद पंजीकृत होगी।

असम, महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में पहले चरण में पांच क्षेत्रीय मिडवाइफरी प्रशिक्षण संस्थान (एनपीएम के प्रशिक्षण के लिए) स्थापित किए जाने का प्रस्ताव है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में मातृ स्वास्थ्य पर प्रमुख सलाहकार सलीमा भाटिया कहती हैं, "सभी गर्भवती महिलाओं को पहले मिडवाइफरी के नेतृत्व वाली देखभाल इकाइयों में भेजा जाएगा, जिन्हें सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में स्थापित किया जाएगा।" अच्छी तरह से प्रशिक्षित मिडवाइफों का एक कैडर बनाने के लिए, एनपीएम को प्रशिक्षित करने के लिए कुशल मिडवाइफरी प्रशिक्षकों का होना महत्वपूर्ण होगा। मिडवाइफरी के बांग्लादेश मॉडल की सीमाओं में से एक सक्षम मिडवाइफरी प्रशिक्षकों की कमी है। भारत ने प्रशिक्षकों की शिक्षा और प्रशिक्षण के लिए एक राष्ट्रीय मिडवाइफरी प्रशिक्षण संस्थान की योजना बनाई है, जिसे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों और यूरोप के उन देशों के विशेषज्ञों का समर्थन मिलेगा, जहां मिडवाइफरी का काम अच्छी तरह से स्थापित है।

भारत में ' द सोसाइटी ऑफ मिडवाइव्स’ के संस्थापक( जो अब आंसर फाउंडेशन चलाते हैं, जिसमें देश में मिडवाइफरी की लंबे समय से वकालत की गई है) मल्लावरपू प्रकाशम्मा कहते हैं,“भारत को कई हजार मिडवाइव्स की जरूरत होगी, लेकिन यह असंभव नहीं है। हमने देखा है कि संस्थागत प्रसव के लिए प्रयास कैसे सफल रहा है। ”

आगे का रास्ता

अब जब भारत मिडवाइफरी को लागू करने के लिए तैयार है, तेलंगाना मॉडल पूरे देश को एक महत्वपूर्ण केस स्टडी प्रदान करेगा। राज्य ने मिडवाइफ के लिए 126 नए पद सृजित किए हैं और राज्य नर्सों को वेतन के रूप में अतिरिक्त 15,000 रुपये प्रदान करता है, जो 18 महीने का प्रशिक्षण (संयुक्त कक्षा / हैंड्स-ऑन ट्रेनिंग का एक वर्ष और छह महीने का क्लीनिकल इंटर्नशिप) पूरा कर लेते हैं।

परियोजना को सार्वजनिक-निजी भागीदारी के रूप में विकसित किया गया है। राज्य सरकार ने हैदराबाद में यूनिसेफ और फर्नांडीज अस्पताल से समर्थन मांगा है, जो कि भारत में 2011 के बाद से मिडवाइफ के लिए पेशेवर मिडवाइफ सेवाएं और मिडवाइफ प्रशिक्षण प्रदान करने वाला एकमात्र स्थान है।

फर्नांडीज अस्पताल की प्रबंध निदेशक इविता फर्नांडीज ने कहा, "यह कुछ दशक बाद होगा जब पेशेवर मिडवाइफ हर महिला की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम हो जाएंगी। वर्तमान दिशानिर्देश मिडवाइफ के लिए प्रत्यक्ष-प्रवेश की अनुमति नहीं देते हैं, क्योंकि केवल नर्सें ही मिडवाइफ के प्रशिक्षण के लिए अर्हता प्राप्त कर सकती हैं। भारत में नर्सों की पर्याप्त संख्या नहीं हैं और सीधे प्रवेश से मिडवाइव्स की संख्या में वृद्धि होगी, लेकिन कम से कम शुरुआत तो हुई है। ”

संस्थागत समर्थन के अलावा, मिडवाइफरी महिलाओं के लिए रोजगार भी पैदा करती है, जिससे उन्हें एक नए पेशे में प्रवेश करने, अपने कौशल को उन्नत करने और बेहतर कमाई करने के मौके मिलते हैं। एक सामान्य नर्स के रूप में काम करने के कई वर्ष बाद, अब अकालादेवी कहती हैं, “इस कोर्स ने मुझे अपने काम में बेहतर होने के लिए विशेषज्ञ बनने का मौका दिया था। नर्सिंग मेरा पेशा था, मिडवाइफरी मेरा धर्म है। ”

(कुमार स्वतंत्र पत्रकार हैं और दिल्ली में रहती हैं।)

इस रिपोर्टिंग के लिए बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन की ओर से फंडिंग और यूरोपीय पत्रकारिता केंद्र की ओर से अनुदान मिला था।

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 7 फरवरी, 2019 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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