NPA-620

जून 2014 में वित्तीय स्थिरता विकास परिषद की बैठक के दौरान वित्त मंत्री अरुण जेटली और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर रघुराम राजन।

इंडयास्पेंड के विश्लेषण के अनुसार, यदि भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा बकाया ऋण वापस ले लिया जाता है तो वह वर्ष 2015 में वे भारत की रक्षा , शिक्षा, राजमार्गों, और स्वास्थ्य खर्च के भुगतान के लिए पर्याप्त होगा।

सार्वजनिक क्षेत्रों के यह बुरे ऋण या सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए), जैसा कि बैंकिंग भाषा के रुप में बोला जाता है, 4.04 लाख करोड़ रुपए (59 बिलियन डॉलर पार कर चुका है) हैं। यह आंकड़े मार्च 2011 की तुलना में 450 फीसदी अधिक हैं।

निजी क्षेत्र के बैंकों में भी एनपीए समस्या है, लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की तुलना में इनके बुरे ऋण आधे हैं, कुल ऋण में इनकी हिस्सेदारी 73 फीसदी है।

भारतीय बैंकों का संकट, जिसे इंडियास्पेंड ने बार-बार अपनी खास रिपोर्ट के ज़रिए बताया है (यहां, यहां और यहां), एक ऐसे मोड़ तक पहुंच गया है जहां कई सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के एनपीए, उनकी शुद्ध मूल्य की तुलना में अधिक है।

संपादक और स्तंभकार टी एन नैनन ने हाल ही में बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि यह व्यवसाय के लिए नए सिरे से ऋण बनाने के लिए उनकी क्षमता को प्रभावित करता है और यह बकाया ऋण अंततः भारत के करदाताओं द्वारा भुगतान किए जाते हैं जो सरकार के स्वामित्व वाली सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के अंतिम उत्तरदायी हैं।

बैंकिग संकट पर लिखते हुए वह पूछते हैं कि, “तो, इसके लिए क्या किया जाना चाहिए? सबसे आसान विकल्प है कि आपसे अधिक कर के पैसे लिए जाएं और उन्हीं बैंकों को दे दिए जाएं। सरकार ने उन्हें और 2.4 लाख करोड़ रुपए देने की बात की है - हर परिवार , अमीर और गरीब से 10,000 रुपये लिए जाएंगे।”

“दरअसल, 24 सूचीबद्ध सरकारी बैंक स्टॉक में से 19, आधे से भी कम बहीमूल्य उद्धृत करती हैं, कुछ तो 75 फीसदी की छूट तक उद्धृत करती हैं। ज़ाहिर है कि निवेशकों को अब भी लगता है कि बैंक बहीखाता कल्पना के समान है।”

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का सकल एनपीए

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वित्तीय वर्ष 2015-16 बनाम बैंक एनपीए का बजटीय आवंटन

Source: Budget documents of ministries: Defence, Health & Family Welfare, Human Resource Development: Department of School Education and Literacy, Human Resource Development: Department of Higher Education, Road Transport and Highways.

दरअसल, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के ऐसे ऋण की तादाद एनपीए से अधिक है जिनकी किश्त पिछली तिमाही से नहीं मिली है या फिर जिनके ब्याज दर बाज़ार भाव से कम करने पड़े हैं।

तनावग्रस्त ऋण + बकाया ऋण = 8 लाख करोड़ रुपए ( 117 बिलियन डॉलर )

ऐसे कई ऋण हैं जिनका पुनर्गठन किया गया है, जिसका मतलब है कि ऋण लेने वाले को ऋण चुकाने के लिए अधिक समय मिलता है; कभी-कभी ब्याज दर भी कम होता है – क्योंकि उधारकर्ता ऋण चुकाने की मूल शर्तों का पालन नहीं कर सकता, या करता नहीं या करना नहीं चाहता है।

एनपीए और पुनर्गठित परिसंपत्तियों का संयुक्त स्तर, भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा किए गए सभी ऋण (करीब 8 लाख करोड़ रुपए, 117 बिलियन करोड़ डॉलर) का 14 फीसदी है – या सात रुपए में एक है। यह राशि ओमान, श्रीलंका और म्यांमार की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) से अधिक है एवं संभवत: खतरे में है।

यह समस्या वित्त मंत्री, अरुण जेटली के लिए बड़ा हो गया है। हालांकि अगस्त 2015 में जारी किए एक संदेश में उन्होंने कहा था कि घबराने की कोई बात नहीं है।

सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कई तिमाहियों में समस्या का समाधान निकालने की कोशिश की है। पिछले साल के बजट से पहले जारी किए गए आर्थिक सर्वेक्षण 2014-15 में बढ़ते एनपीए की पहचान बड़ी समस्या के रुप में की है एवं बकाया ऋण रिपोर्टिंग पर सख्त दिशा निर्देशों सहित एनपीए पर अंकुश लगाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक के प्रयासों को सूचीबद्ध किया है।

सख्त रिपोर्टिंग के दिशा निर्देश, एनपीए का स्तर बढ़ाने में आंशिक रुप से ज़िम्मेदार है: ऋण जिनका खुलासा पहले लेखांकन व्याख्यान में नहीं किया गया वो अब बकाया ऋण के रुप में रिपोर्ट किए जा रहे हैं।

बुरा जोखिम प्रबंधन ( रिस्क मैनेजमेंट ) हमेशा धोखाधड़ी नहीं होता

भारतीय रिजर्व बैंक ऋण, जो बुरे ऋण हुए हैं, उनके लिए तीन कारणों का हवाला देती है: वास्तविक व्यापार के कारण ; गलत व्यापार निर्णय और अक्षमता और खराब आचरण।

सभी तनावग्रस्त संपत्तियों में से करीब 85 फीसदी औद्योगिक क्षेत्र से हैं (नीचे चार्ट देखें) ज्यादातर प्रमुख क्षेत्रों जैसे कि लोहा और इस्पात , बुनियादी ढांचा, इंजीनियरिंग, निर्माण , कपड़ा और जहाज निर्माण, सभी भारत के औद्योगिक मंदी से प्रभावित हैं।

हाल ही में कुछ ऋण जो बकाया ऋण में शामिल हुए हैं वह हैं:

आम धारणा के विपरीत, सभी बकाया ऋण धोखाधड़ी या राजनीतिक प्रभाव का परिणाम नहीं होते हैं। उद्हारण के लिए, ऊपर दिए गए चार उद्हारण भौतिक संपत्ति के साथ परिचालन कंपनियां रही है। वह बुरे आर्थिक स्थिति एवं अपनी पूंजी और मुनाफे के मुकाबले उच्च ऋण स्तर सहति कई कारकों के कारण नीचे आई हैं।

कुछ मामलो में, भूमि अधिग्रहण के मुद्दों, स्थानीय विरोध या पर्यावरण मंजूरी के कारण परियोजनाओं को ठप्प कर दिया गया है: यह विशेष रुप से यह पनबिजली क्षेत्र के लिए सत्य है जहां लगभग सभी परियोजनाएं निर्धारित समय से पीछे हैं।

कई बकाया या तनावग्रस्त ऋण गलत प्रबंधन और, शायद टायकून विजया माल्या, जिनके किंगफिशर एयरलाइंस का 4,000 करोड़ रुपये बकाया है जैसे अत्यधिक व्यापार अनुमानों का परिणाम होते हैं।

बड़े उधारकर्ताओं को दण्ड से मुक्ति

ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि धोखाधड़ी नहीं हुई है। कई हाई-प्रोफाइल उधारकर्ता दोषी बने हैं जैसे कि विनसम डायमंड्स , डेक्कन क्रॉनिकल होल्डिंग्स और सूर्या विनायक इंडस्ट्रीज जिन्होंने बहुत कम भौतिक संपत्ति और निवेश के माध्यम के साथ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से कई हजार करोड़ उधार लिए हैं।

कहां से आ रहा है बैंक में तनाव

रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने जनवरी में प्रभावशाली उधारकर्ताओं पर निशाना साधा, जो बाहर निकलने के लिए भुगतान नहीं करते हैं। राजन ने भारतीय रिजर्व बैंक के कर्मचारियों को एक ईमेल में लिखा कि “हम गलत करने वाले को सज़ा नहीं देते हैं - जब तक की उधारकर्ता छोटा और कमजोर नहीं होता। यह विश्वास इस पर ही पूरी होती है। कोई भी अमीर एवं बड़े-बड़े लोगों से संबंध रखने वाले कर्ता के पीछे नहीं जाना चाहता है, जिसका मतलब हुआ कि वह और अधिक दूर चले जाते हैं। यदि हमे सतत विकास को मजबूत करना है तो दण्ड से मुक्ति की इस संस्कृति बंद कर देना चाहिए।”

कैसे करदाता बकाया ऋण और एनपीए के अन्य प्रभावों के लिए भुगतान करता है

बैंकिंग प्रणाली पर बुरे ऋण के दो प्रभाव दिखते हैं।

सबसे पहला, यह पूरा सिलसिला करदाताओं पर आ कर समाप्त होता है। बैंक जमाकर्ताओं से पैसे लेती है जो वह उधारकर्ताओं को देती है। यदि उधारकर्ता ऋण वापस नहीं कर पाता है तो यह कमी बैंक अपनी पूंजी और मुनाफे से करती है। यदि बैंक के पास बकाया ऋण होता है तो इसके शेयरधारकों पर प्रभाव पड़ता है। भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, सरकार के स्वामित्व में हैं और, इसलिए, यह बकाया ऋण सरकार और करदाता के लिए नुकसानदेह हैं।

दूसरा, बकाया ऋण से आर्थिक गतिविधि की गति धीमी होती है। बैंक कंपनियों को मुनाफा बनाने के लिए और उनकी कार्यशील पूंजी बढ़ाने के लिए उधार देती है। बकाया ऋण के उच्च स्तर बैंक पूंजी को कम करते हैं, उनके ताजा पूंजी जुटाने के लिए क्षमता को कम करता है और साथ ही बैंकों के उधार देने की क्षमता को भी कम करता है जिससे ही आर्थिक गतिविधि की गति धीमी होती है।

निजी क्षेत्र के बैंक भी बकाया ऋण की तुलना में तनावग्रस्त ऋण का सामना करती है लेकिन उनकी समस्याएं सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के जैसी नहीं हैं।

बकाया ऋण के लिए, सबसे अच्छे सार्वजनिक बैंकों की तुलना में सबसे खराब निजी बैंक हैं

आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, भारत की निजी क्षेत्र के बैंकों की बकाया ऋण में से कुल तनावग्रस्त परिसंपत्तियों 6.7 फीसदी है जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए यहि आंकड़े 14 फीसदी हैं।

निजी बैंकों ने लगातार एनपीए का स्तर को कम किया है। दिसंबर 2015 को समाप्त तिमाही में, कई निजी बैंकों, जैसे कि एचडीएफसी बैंक, इंडसइंड बैंक और यस बैंक में एनपीए का स्तर 1 फीसदी से भी कम है ; सबसि बद्तर प्रदर्शन करने वाले निजी बैंक, जैसे कि आईसीआईसीआई बैंक और फेडरल बैंक, सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की तुलना में बेहतर है।

(भंडारी, एक मीडिया, अनुसंधान और वित्त पेशेवर है। भंडारी आईआईटी- बीएचयू से एक बी - टेक और आईआईएम- अहमदाबाद से एमबीए हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 16 फरवरी 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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