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2015 की एक अध्ययन के अनुसार भारत में बढ़ते हृदय रोग, मधुमेह और मोटापे से होने वाली 200 मौतों में से एक मौत चीनी युक्त मीठे पेय के कारण होता है।

दारिउश मोज़फ्फरिअन, अध्ययन के सह लेखक और फ्राइडमैन स्कूल न्यूट्रिशन, टफ्ट्स विश्वविद्यालय, अमरिका के डीन ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए बताया कि, “मीठे पेय से बढ़ते वज़न एवं मधुमेह के कारण 80 फीसदी मौत होती है। जबकि चीनी युक्त मीठे पेय पदार्थ से होने वाले हृदय रोग के कारण 15 फीसदी मौत होती है।”

भारत में हृदय रोग और मधुमेह महामारी के स्तर तक पहुंच गया है। यह दोनों बिमारियां देश में होने वाले कुल मौतों में से 28 फीसदी के लिए ज़िम्मेदार हैं। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने पहले भी बताया है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, सदी की अंतिम चौथाई के दौरान, भारत में मोटापा डेढ़ गुना अधिक बढ है। वैज्ञानिक सबूतों के आधार पर प्रतिदिन एक या दो मीठा पेय पदार्थ लेने से - जो आपकी नज़र में नुकसानदेह नहीं है - काफी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।

वैज्ञानिक सबूतों के आधार पर प्रतिदिन एक या दो मीठा पेय पदार्थ लेने से - जो आपकी नज़र में नुकसानदेह नहीं है - काफी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।

जो लोग मीठे पेय का सेवन नहीं करते या महीने में एक-आध बार करते हैं, उनकी तुलना में दिन भर में एक या दो मीठे पेय का सेवन करने वाले लोगों में टाइप II मधुमेह होने का जोखिम 26 फीसदी अधिक होता है।

इस अध्ययन के अनुसार, महिलाएं जो मीठे पेय पदार्थों का सेवन नहीं करती हैं, उनकी तुलना में जो महिलाएं एक दिन में एक या एक से अधिक मीठे पेय पदार्थों का सेवन करती हैं उनमें कोरोनरी हृदय रोग होने का जोखिम 35 फीसदी अधिक होता है। वहीं कभी-कभार मीठे पेय पदार्थों का सेवन करने वाले पुरुषों की तुलना में जो पुरुष प्रतिदिन एक या अधिक मीठे पेय पदार्थों का सेवन करते हैं उनमें दिल का दौरा पड़ने या दिल के दौरे से मृत्यु होने का जोखिम 20 फीसदी अधिक बढ़ जाता है।

कर वृद्धि से मांग में कटौती: मैक्सिकन अनुभव

अधिक वजन और जीवन शैली की बीमारियों के साथ भारत की लड़ाई में उच्च कैलोरी खाद्य पदार्थ और पेय पदार्थों पर ध्यान दिया गया है, और परिणामस्वरूप कर-निर्धारण पर ध्यान दिया गया है जिसे खपत कम करने की क्षमता के साथ एक उपकरण के रुप में देखा जा रहा है।

उच्च करों से कीमतों में वृद्धि होती है और परिणामस्वरुप मांग में गिरावट होती है। इस फॉर्मूला ने मेक्सिको में बेहतर ढंग से काम किया है।

10 से 12 फीसदी खपत को कम करने के उदेश्य से जनवरी 2014 में शीतल पेय में 10 फीसदी कर की वृद्धि की गई थी। मेक्सिकन के एक नए अध्ययन से पता चलता है कि इस कर वृद्धि से वास्तव में शीतल पेय की कुल खपत में 12 फीसदी या प्रति व्यक्ति 4.2 लीटर की कमी हुई है। गरीब परिवारों में शीतल पेय खपत में 17 फीसदी की गिरावट देखी गई है।

2014 के इस अध्ययन के अनुमान के अनुसार, मीठे पेय पदार्थों पर 20 फीसदी कर से एक दशक में भारत के अधिक वज़न एवं मोटापा प्रसार में 3 फीसदी की कटौती हो सकती है।

इसका मतलब यह हुआ कि भारत में मोटापे के 11.2 मिलियन और टाइप -2 मधुमेह के 400,000 कम मामले होंगे।

यदि शीतल पेय की खपत में आगे वृद्धि होती है – 1998 से वार्षिक रुप से औसतन 13 फीसदी वृद्धि के साथ, खपत में वृद्धि होने की संभावना है - भारतीय अध्ययन के लेखक सुझाव देते हैं कि कर-निर्धारण से प्रचलित अधिक वजन/ मोटापे को 4.2 फसीदी एवं टाइप -2 मधुमेह के 2.5 फीसदी मामलों को टाला जा सकता है।

भारत में उच्च कर से अधिक शीतल पेय पर मौसम का प्रभाव

जुलाई 2014 में, शीतल पेय की खपत को कम करने के उदेश्य से भारत सरकार ने मीठे पेय पदार्थों पर 5 फीसदी कर की वृद्धि की है।

इसके साथ ही, मीठे पेय पर करीब 18 फीसदी कर की वृद्धि हुई है जोकि सुनने में अधिक लगता है लेकिन इंडियास्पेंड के विश्लेषण से पता चलता है कि यह मांग को कम करने के पर्याप्त नहीं है।

भारतीय पेय एसोसिएशन, एक लॉबी समूह के अनुसार 2014 में, वातित पेय की बिक्री में 10 फीसदी की वृद्धि हुई है। इंडियास्पेंड से बात करते हुए अरविंद वर्मा, भारतीय पेय एसोसिएशन के महासचिव, ने बताया कि इसका कारण, “कर में वृद्धि होने से पहले, जुलाई 14 में गर्मियों का समाप्त हो जाना था।” करीब 40 फीसदी शीतल पेय उद्योग की सालाना बिक्री अप्रैल और जून के बीच होती है।

अप्रैल और सितंबर 2015 के बीच वातित पेय की बिक्री में 10 फीसदी की गिरावट हुई है। वर्मा कहते हैं कि, “इसका मुख्य कारण 2015 में कम गर्मी पड़ना है लेकिन वातित पेय पदार्थों में अतिरिक्त 5 फीसदी का कर उद्योग पर गहरा प्रभाव डालती है।”

कोका-कोला, उद्योग का नेतृत्व करने वाली कंपनी, ने जुलाई और सितंबर के बीच बिक्री में 4 फीसदी की वृद्धि के साथ, अप्रैल और जून 2015 के बीच "मध्य एकल अंकों की गिरावट" के लिए मौसम को ज़िम्मेदार बताया है।

यूरोमॉनिटर इंटरनेश्नल, एक मार्केट इंटेलिजेंस कंपनी, के अनुसार, 2014 में, जब अतिरिक्त कर लगाया गया था, तब मीठे पेय पदार्थों की बिक्री में 9 फीसदी की वृद्धि हुई है। इसी तरह की वृद्धि का अनुमान 2015 के लिए भी किया गया है।

भारत में मीठे पेय पदार्थों की बिक्री, (2008 से 2016)

यदि भारत में, पिछले बार कर पर किए गए 5 फीसदी वृद्धि से मांग में कटौती नहीं हो पाई है तो यह वक्त कर में एक बार फिर वृद्धि करने का है।

बैरी पोपकिन , पोषण के प्रोफेसर, नार्थ कैरोलिना विश्वविद्यालय, अमरिका एवं मैक्सिकन अध्ययन, जो हतोत्साहित के रूप में करों की वकालत करती है, के सह-लेखक, कहते हैं कि, “कर, जो अधिक है, के परिणामस्वरुप भारत में खपत में गिरावट की उम्मीद की जा सकती है, क्योंकि मेक्सिको की तरह ही भारत में भी कीमत के प्रति सजग उपभोक्ता अजीर्ण है और अपेक्षाकृत कम आय के स्तर उपभोक्ता क्षेत्र के हैं जो अधिक कीमत के प्रति संवेदनशील हैं।”

जागरुकता से ही बनेगी भारत की सेहत

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं कि सरकार को करों में वृद्धि करनी चाहिए, जागरुकता अभियान शुरु करना चाहिए और शीतल पेय की उपलब्धता, विशेष रूप से स्कूलों और खेल परिसरों में कटौती करनी चाहिए।

मनु राज माथुर, वैज्ञानिक अनुसंधान और सहायक प्रोफेसर , भारतीय पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन, कहते हैं कि, “खपत कम करने के लिए उच्च कर एक मजबूत हस्तक्षेप है लेकिन इसे सामाजिक मानदंडों और धारणाओं को बदलने के लिए मजबूत व्यवहार उपायों के साथ लाया जाना चाहिए।” माथुर किशोरों और स्कूली बच्चों के बीच मीठे पेय की खपत को कम करने के तरीकों का अध्ययन करते हैं।

हेमलता आर, वरिष्ठ उप निदेशक और वैज्ञानिक , हेड, क्लिनिकल प्रभाग, माइक्रो एंड इम्यूनोलॉजी , पोषण, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन, हैदराबाद, कहती हैं कि, “अधिक चीनी का सेवन से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले जोखिम के संबंध में जागरुकता बढ़ाने से जरूरी आहार में परिवर्तन के लिए प्रेरित करने में मदद मिलेगी।”

उनके शिक्षकों से बातचीत से पता चलता है कि इनमें से अधिक लोग मीठे पेय पदार्थों का मतलब फिज़ी (गैस मिले पेय या बुदबुदाने वाले पेय) पेय को ही मानते हैं। वो कहते हैं कि, “वे टेट्रा पैक में बंद किए गए फलों के रस को मीठे पेय के रुप में पहचान नहीं कर पाए, और यहां तक ​​कि कोक और पेप्सी के मुकाबले इन पैक को स्वस्थ विकल्प के रूप में पहचान की है।”

डिब्बाबंद फलों के रस में अतिरिक्त चीनी मिलाई जाती है। डेरी पेय पदार्थों, खेल और ऊर्जा पेय में भी चीनी मिली होती है। माता-पिता और शिक्षक चाहते हैं कि प्रमुख फिल्मी सितारे और खेल से जुड़े लोग, मीठे पेय की सेलिब्रिटी विज्ञापन का मुकाबला करें। ऐसे विज्ञापनों से बढ़ते बच्चों को लगता है कि यह पेय हानिकारक नहीं हैं - माथुर के अध्ययन का यह एक प्रमुख गुणात्मक निष्कर्ष है।

कैसा मीठे पेय पदार्थ से बढ़ता है वज़न – और कुपोषण

कोई लिक्विड कैंडी के कुछ घूंट ही नहीं पीता है – सेंटर फॉर साइंस इन पब्लिक इंट्रेस्ट, अमरिका की संस्था मीठे पेय पदार्थ को लिक्विड कैंडी कहते हैं।

330 एमएल की औसत पेय हिस्से (यदि आप बड़ा, दो लीटर का वैल्यू पैक नहीं लेते) में 36 ग्राम चीनी– लगभग नौ चम्मच- 145 किलो कैलोरी ऊर्जा शामिल होती है और शीला कृष्णास्वामी , बेंगलुरू आधारित आहार , पोषण और कल्याण सलाहकार के मुताबिक इसमें "कोई विटामिन और मिनिरल” नहीं होता है।

शीतल पेय में चीनी अधिकतर सूक्रोज है और उच्च फ्रकटोज कॉर्न सिरप होता है, दोनों आसानी से अवशोषित होते हैं और आहार विशेषज्ञों के अनुसार ग्लाइसेमिक लोड बढ़ता है जो वज़न बढ़ने का कारण है।

मीठा पेय, ठोस आहार की तरह, भूख शांत नहीं करता है। अध्ययन के अनुसार, इसलिए पेय पदार्थ में अतिरिक्त कैलोरी की क्षतिपूर्ति के लिए उपभोक्ता खाद्य भागों को कम नहीं करते हैं।

सभी अतिरिक्त कैलोरी के कारण वज़न में वृद्धि होती है: 2014 एक भारतीय अध्ययन से पता चलता है कि प्रति सप्ताह 1.8 कैन कोका कोला के खपत से बच्चों के वज़न में सालाना 1.3 किलोग्राम की वृद्धि होती है। अध्ययन से पता चलता है कि शीतल पेय से वयस्कों के वज़न में भी वृद्धि होती है।

कृष्णास्वामी कहती हैं कि, “कभी-कभी मेनू में स्वास्थवर्धक चीज़ों की जगह मीठा पेय ले लेता है। इससे शरीर में पोषण कम होता है और कुपोषण बढ़ता है।”

(बाहरी माउंट आबू , राजस्थान स्थित एक स्वतंत्र लेखक और संपादक है।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 30 जनवरी 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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