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69वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्र के नाम संदेश में एक नए अभियान ‘स्टार्ट-अप इंडिया, स्टैंड-अप इंडिया’ अभियान की घोषणा के साथ ही स्टार्ट अप को बढ़ावा देने के उदेश्य से वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2,000 करोड़ रुपए ( 304 मिलियन डॉलर ) के इंडिया एसपिरेशन फंड की शुरुआत की है।

वर्ष 2014 में स्टार्ट अप कंपनियों में किए गए 33,125 करोड़ रुपए ( 5 बिलियन डॉलर ) एवं वर्ष 2015 के पहले छह महीने में 23,187 करोड़ रुपए ( 3.5 बिलियन डॉलर ) के निवेश की तुलना में यह एक छोटा परिवर्तन है।

फिर भी यह स्पष्ट है कि स्टार्ट-अप सरकार के रडार पर है – और यह एक अच्छी बात है क्योंकि युवा कंपनियां, सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यमों ( एमएसएमई) की तुलना में बेहतर रोज़गार निर्माता होती हैं।

  • 2015 केपीएमजी की रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में प्रति उद्यम 2.3 लोग के औसत से 46 मिलियन मझोले उद्यम 106 मिलियन लोगों के लिए रोज़गार उपलब्ध कराते हैं। वर्ष 2010 में, अनौपचारिक क्षेत्र के उद्यमों में एक-तिहाई उद्यम एक-व्यक्ति कंपनी थे।
  • प्रेमजिथ अल्मपिल्ली ऑफ मेरिट टार्क सर्विसेज (स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र पर नजर रखने वाली एक आकलन कंपनी ) के अनुसार वर्ष 2014 में, प्रति उद्यम 125 के औसत से भारत के करीब 4,000 प्रलेखित स्टार्ट- अप ( निगरानी की पारिस्थितिकी तंत्र के बाहर हजारों की गिनती नहीं) ने 500,000 लोगों को रोजगार प्रदान किया है।
  • ज़िन्नोव , एक परामर्श, और नैसकॉम , एक सॉफ्टवेयर उद्योग संघ के अनुसार पिछले वर्ष प्रति उद्यम 21 के औसत से मोटे तौर पर 3,100 तकनीक स्टार्ट अप ने 65,000 लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया है। यह आंकड़े वर्तमान में भारत के बहुराष्ट्रीय अनुसंधान एवं विकास केंद्रों द्वारा नियोजित श्रम बल का कम से कम 23 फीसदी है। वर्ष 2020 तक 11,500 तकनीक स्टार्ट अप का श्रमबल, बहुराष्ट्रीय अनुसंधान एवं विकास केंद्रों के आकार से आधे से अधिक हो जाएगा।

स्टार्ट अप एवं मझोले उद्यमों द्वारा उपलब्ध रोज़गार

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Source: KPMG India, MeritTrac Services, Zinnov, Nasscom; Employment per MSME projection for 2020 based on assumption of no change in number of MSMEs, Overall MSME employment figure for 2020 not a projection, based on assumption of considerable reforms

भारत में रोज़गार के अवसर पैदा करने की अति आवश्यकता है।

प्रत्येक महीने एक मिलियन लोग भारत के श्रम बल में शामिल होते हैं और अगले दो दशक तक यही आंकड़ा चलता रहेगा। लेकिन वर्ष 2014 में भारत के आठ मुख्य उद्यमों ने केवल 420,000 नए रोज़गार के अवसर पैदा किए हैं एवं उसके पिछले वर्ष 410,000 नए रोज़गार के अवसर पैदा किए गए थे।

शुद्ध परिणाम : वर्ष 2013 में भारत की अधिकारिक रोज़गार दर 4.9 फीसदी दर्ज की गई थी। इसका मतलब 44.79 मिलियन लोग बेरोज़गार थे। एक साथ स्टार्ट अप आने से वर्ष 2030 तक की गई अधिकारिक रोज़गार दर 7 फीसदी की वृद्धि की भविष्यवाणी को टालने में सहायक हो सकता है।

छोटी कंपनियों के मुकाबले युवा एवं बड़ी कंपनियां देती हैं बेहतर रोज़गार अवसर

भारत में लघु एवं मझौले उद्योग ने विशेष प्रोत्साहन का आंदन उठाया है। 1967 के शुरुआत से निर्माण के कुछ क्षेत्रों को लघु उद्योग क्षेत्र के लिए आरक्षित कर दिया गया था। इसका पीछे उद्योग को बढ़ावा देने, रोज़गार के अवसर पैदा करने एवं धन विभाजित करने का उदेश्य था।

इस नज़रिए से एमएसएमई क्षेत्र ने अच्छा काम किया है। यह देश के कुल श्रम बल से 28 फीसदी लोगों को रोज़गार के अवसर प्रदान करता है, भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 8 फीसदी का योगदान देता है, देश के कुल औद्योगिक उत्पादन में 45 फीसदी एवं निर्यात में 40 फीसदी का योगदान भी देता है।

विशेषज्ञों के अनुसार जितना अच्छा यह सुनने में लगता है उतना उत्साहित होने जैसी कोई बात नहीं है।

व्हार्टन बहुराष्ट्रीय प्रबंधन प्रोफेसर एन हैरिसन एवं अन्य द्वारा 2014 के एक अध्ययन के अनुसार आरक्षण के ज़रिए लघु उद्योगों को बढ़ावा दिए जाने की वजह से भारत में नौकरियों में कमी आई है।

भारत में छोटे उद्योग वास्तव में विकास और रोजगार सृजन का ज़रिया है, यह समझने के लिए, हैरिसन ने राष्ट्रीय स्तर पर रोजगार पर लघु उद्योग के लिए चुनिंदा वस्तुओं की अपरक्षण के प्रभाव का अध्ययन किया है।

इंडियास्पेंड से बात करते हुए हैरिसन ने बताया कि “हमने पाया कि वर्ष 2000 एवं 2007 में जो ज़िले अपरक्षण नीति से अधिक अवगत थे, उन ज़िलों में कुल रोज़गार में 7 फीसदी अधिक वृद्धि हुई है”।

आपरक्षण से लघु एवं पुराने प्रतिष्ठानों में रोज़गार की कमी देखी गई है जबकि युवा प्रतिष्ठानों ( बड़े ) को प्रोत्साहित करते हुए कुल रोज़गार में वृद्धि दर्ज की गई है ।

हैरिसन ने कह “लघु कंपनियों की तुलना में युवा कंपनियां ( और बड़ी कंपनियां ) अधिक रोज़गार के अवसर पैदा करती हैं।”

मूलत: उन्होंने पाया कि छोटी कंपनियां छोटी ही रहती हैं।

सांख्यिकी भी इस बिंदु का समर्थन करती है। एमएसएमई की चौथी अखिल भारतीय गणना के अनुसार भारत के उद्यमों में सूक्ष्म उद्यमों की हिस्सेदारी 94.9 फीसदी की है। लघु उद्यमों की हिस्सेदारी 4.9 फीसदी है जबकि मध्यम उद्यमों की हिस्सेदारी 0.2 फीसदी देखी गई है।

पंजीकृत और अपंजीकृत एमएसएमई पंजीकृत एमएसएमई का ब्रेक अप

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Source: Ministry of Small, Medium & Micro Enterprises

अनौपचारिक फर्मों की तुलना में औपचारिक फर्म अधिक रोज़गार अवसर पैदा करते हैं

यदि नई कंपनियां रोज़गार के अवसर पैदा करती हैं तो एमएसएमई सहित किसी भी प्रकार की उद्यमिता को बढ़ावा देना सहायक रहेगा?

विश्व बैंक के अर्थशास्त्री एजाज गनी, किसी भी तरह उद्यमशीलता, अनौपचारिक या औपचारिक का समर्थन करते हैं।

हू क्रिएट्स जॉब्स? वर्ष 2011 में भारत के लिए किया गया एक विशेष अध्ययन, जिसके एजाज गनी सहलेखक हैं, दावा करते हैं कि विकास के दृष्टि से भारत में कुछ ही उद्यम हैं।

इंडियास्पेंड से बात करते हुए गनी ने बताया कि कृषि निर्वाह क्षेत्र में रोज़गार या बेरोज़गारी की तुलना में एक- व्यक्ति नई कंपनियां बेहतर अवसर प्रदान कर सकती हैं। उन्होंने कहा “एक व्यक्ति नई कंपनियों को शहरी क्षेत्रों के लिए भी अवस्थांतर सक्षम कर सकते हैं। "

रोड़ा : एक व्यक्ति नई कंपनियां केवल उद्यमी के लिए रोजगार उत्पन्न करत है। वे समाज के लिए रोजगार के अवसर पैदा नहीं करते हैं।

बाहरी सीमा पर, पंजीकृत एमएसएमई प्रति युनिट 5.95 लोगों को रोजगार उपलब्ध कराता है। लेकिन 5 फीसदी से भी कम एमएसएमई पंजीकृत हैं। अधिकांश एमएसएमई अपंजीकृत हैं जो प्रति युनिट 2.06 लोगों को रोज़गार प्रदान करते हैं।

वर्तमान में भारत का स्टार्ट अप अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करने, पूंजी बाजार के उपयोग करने की दृष्टि से शामिल किया गया है।

कई स्टार्ट-अप - विशेष रूप से ई -कॉमर्स उद्यम और डिजिटल स्पेस कहीं तेजी से बढ़ रही है। भारत में ऑनलाइन लेनदेन की बढ़ती संख्या होना इसका मुख्य कारण है।

आनंद डैनियल, एक्सेल पार्टनर्स से एक उपक्रम निवेशक ने इस रिपोर्ट में बताया है कि “जो लेनदेन पहले 12 महीने में होती थी अब वह 12 हफ्ते में हो रही है।”

केवल रोज़गार पैदा करना नहीं, नव परिवर्तन भी है ज़रुरी

हैरिसन के अध्ययन से स्पष्ट है कि भारत में युवा फर्म वास्तव में महत्वपूर्ण प्रवर्तक हैं।

प्रीति आनंद, ज़िन्नोव में एसोसिएट डायरेक्टर , परामर्श, ने पाया कि “भारत में स्टार्ट-अप नवीनता की ओर है। ये नई पीढ़ी की कंपनियां , एक तेज गति से उत्पाद, प्रक्रिया और व्यापार मॉडल नवाचारों आगे बढ़ रही हैं। इसी का परिणाम है कि कई क्षेत्रों में व्यापार में बदलाव आ रहे हैं। ”

इसके विपरीत, मौजूदा एमएसएमई में एक महत्वपूर्ण घटक, नवीनता गैर हाज़िर है।

हैरिसन के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि लघु उद्यमों से दी हुई आर्थिक संरक्षण वापस लेने पर अस्तित्व के लिए संघर्ष करती रह जाती हैं। वर्ष 2012 में भारतीय कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ( फिक्की) के मंडलों और वाणिज्य मंत्रालय के सर्वेक्षण के अनुसार केवल 2.6 फीसदी एमएसएमई ने किसी भी प्रकार की नवीनता का इस्तेमाल किया था।

नवीनता उद्यमों को बढ़ाने में मदद करता है, लेकिन सही प्रतिभा समर्थ बनाता है।

एमएसएमई कर सकते तुलना में अच्छी तरह से वित्त पोषित प्रौद्योगिकी स्टार्ट अप ( 10 मिलियन डॉलर से अधिक राशि ) बेहतर इंजीनियरिंग स्नातकों को जुटा सकते हैं । कई स्टार्ट-अप बहुराष्ट्रीय कंपनियों जितना ही वेतन भुगतान करते हैं। स्टार्ट- अप इक्विटी और स्टॉक विकल्प भी प्रदान कर सकता है।

अधिकांश स्टार्ट अप अच्छे प्रवर्तक बनाते हैं।

2014 में, मेरिटट्रैक सर्विसेज के अल्मापिल्ली के अनुमान के अनुसार भारत के 4,000 स्टार्ट अप ने करीब 50,000 लोगों को काम पर रखा है।

अल्मपिल्ली का अनुमान सरकारी स्थापना की इन्क्यूबेटरों द्वारा समर्थित स्टार्ट अप के दस्तावेज़ों, और त्वरक, उद्योग निकायों जैसे नैसकॉम , भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) , और शैक्षणिक संस्थानों जैसे आईआईटी पर आधारित है।

उन्होंने कहा कि स्टार्ट अप द्वारा काम पर रखे जाने वाले प्रमुख प्रौद्योगिकी संस्थानों और प्रबंधन स्कूलों के बेहतरीन लोग होते हैं। स्टार्ट अप एमएसएमई से काफी आगे है। कईयों का मानना है कि कर्मचारियों को कौशल विकास के लिए अवसर प्रदान करने स्टार्ट अप कई बड़ी कंपनियों से भी आगे हैं। प्रतिभा को आकर्षित करने एवं बनाए रखने के लिए कुछ स्टार्ट अप कंपनियां द्योग के औसत वेतन से भी बेहतर भुगतान करती हैं।

अक्टूबर 2010 में में दुष्यंत सिंहा ने इंटेग्रेटेड सेंटर फॉर कंसलटेंसी प्राइवेट लिमिटेड, एक मीडिया और संचार कंपनी , की स्थापना की तो वह अपने आप में वन मैन शो था। वर्तमान में सिंहा ने अपने पांच ऑफिस में 60 लोगों के लिए रोज़गार उपलब्ध किया है।

सिंहा ने कहा “हमारे प्रवेश स्तर के कर्मचारी उद्योग के मानकों से दोगुना कमाते हैं। मैं खुद जितना किसी कर्मचारी के रुप में कमाता, उसके मुकाबले तीन गुना कमाता हूं।”

लैब्रेट, एक ऑनलाइन स्वास्थ्य संचार और डॉक्टरों के लिए वितरण मंच, के कर्मचारियों का वेतन उद्योग के औसत वेतन मानक के बराबर है। लैब्रेट के सीईओ, सौरभ अरोड़ा के अनुसार, “हम द्वि- वार्षिक वेतन समीक्षा , काम करने के लचीले घंटे और कहीं से भी काम करने की नीति रखते हैं।”

स्टार्ट अप रोज़गार देते हैं एवं स्वरोज़गार में मदद करते हैं

एक खास तरह का स्टार्ट अप जिसे एग्रीगेटर के नाम से जाना जाता है, सकारात्मक रुप से स्वनियोजित, अर्धकुशल एवं प्रशिक्षित कर्मचारियों की संभावनाओं को प्रभावित कर रहा है।

अनिल नायर , जेनीजी के संस्थापक , पुणे में सेवा प्रदाताओं की एक एग्रीगेटर, ने कहा एग्रीगेटर व्यापार को बढ़ाने में मदद करता है।

जेनीजी 20 से अधिक लोगों को काम पर नहीं रखता है। हालांकि इसके सहयोगी सेवा प्रदाता इवेंट मैनेजमेंट, घर के रखरखाव, वित्त, मूवर्स एंड पैकर्स, निर्माण क्षेत्र में लिए पेशेवर नियुक्त करते हैं। अंतिम गणना में यह आंकड़े 100 से अधिक दर्ज की गई थी।

और जेनीजी घर सेवाओं के क्षेत्र में आरभं की गई कई स्टार्ट-अप में से एक है – टास्कबॉब, टाइमसेवर्स, ज़िम्मबर, डोरमिंट, अरबनक्लैप, वर्कहॉर्स, हाउसजॉय एवं अन्य – हज़ारों प्रदाताओं की सेवाओं का समग्र देते हैं।

लैब्रेट लोगों को भरोसेमंद डॉक्टर को खोजने एवं उनके साथ संवाद कराने में मदद करता है।

दो वर्षों में लैब्रेट में कर्मचारियों की संख्या दो से 50 पहुंच गई है। इस टीम के अलावा, लैब्रेट 80,000 से अधिक डॉक्टरों की सेवाओं के एकत्र करता है।

( बाहरी माउंट आबू , राजस्थान स्थित एक स्वतंत्र लेखक और संपादक है )

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 19 सितंबर 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है


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